पांच सालों में 13.5 करोड़ भारतीय हुए गरीबी से मुक्त, अब बस 15 % लोग ही गरीब!

Written by Navnish Kumar | Published on: July 18, 2023
"बढ़ती महंगाई- घटती आय और 80 करोड़ को मुफ्त राशन के शोर के बीच खबर है कि भारत में गरीबी घट गई है। अब भले आलोचक इसे आंकड़ों और फार्मूले की बाजीगरी कहें या कुछ और लेकिन भारत सरकार के नीति आयोग का दावा है कि देश में गरीबों की संख्या 15 प्रतिशत से भी कम रह गई है। देश में अब 15 प्रतिशत लोग ही गरीब हैं। नीति आयोग के अनुसार, बीते 5 सालों में 13.5 करोड़ भारतीय गरीबी से मुक्त हो गए हैं।"



नीति आयोग ने अपनी हालिया नेशनल मल्टी डाइमेंशियल पावर्टी इंडेक्स रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच रिकॉर्ड 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए। एनडीटीवी से एक्सक्लूसिव बातचीत में नीति आयोग के वाईस चेयरमैन सुमन बेरी ने कहा, गरीबी में गिरावट लगभग हर राज्य में दर्ज़ की गई है। देश में गरीबी घट रही है। बीते पांच वर्ष में ही 13.5 करोड़ भारतीय गरीबी से मुक्त हुए हैं और वर्ष 2015-16 तथा 2019-21 के बीच गरीब व्यक्तियों की संख्या 24.85 प्रतिशत से गिरकर 14.96 प्रतिशत ही रह गई है।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने सोमवार को “राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांकः प्रगति संबंधी समीक्षा 2023” जारी की। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015-16 से 2019-21 की अवधि के दौरान रिकॉर्ड 13.5 करोड़ लोग गरीबी से मुक्त हुए। इस अवसर पर नीति आयोग ने नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल, डॉ. अरविंद विरमानी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम भी उपस्थिति रहे। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी तीव्रतम गति से 32.59 प्रतिशत से गिरकर 19.28 प्रतिशत रह गयी है।

यह रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण NFHM-4 व 5 (2015-16 और 2019-21) पर आधारित है। 

नीति आयोग के मुताबिक, इन पांच वर्षों में पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, रसोई गैस, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, परिसंपत्ति और बैंक खाते जैसे सभी इंडिकेटर में सुधार रिकॉर्ड किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गरीबों की संख्या वर्ष 2015-16 में 24.85 प्रतिशत थी और यह वर्ष 2019-2021 में 14.96 प्रतिशत हो गई जिसमें 9.89 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। इस अवधि के दौरान शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 प्रतिशत से गिरकर 5.27 प्रतिशत हो गई। इसके मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी तीव्रतम गति से 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत हो गई है।

इसके अलावा 36 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों तथा 707 प्रशासनिक जिलों के लिए गरीबी संबंधी अनुमान प्रदान करने वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि गरीबों के अनुपात में सबसे तीव्र कमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में हुई है। उत्तर प्रदेश में 3.43 करोड़ लोग गरीबी से मुक्त हुए जो कि गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट है। जिसके बाद बिहार एवं मध्य प्रदेश का स्थान है। ओडिशा और राजस्थान में भी अच्छी गिरावट दर्ज़ हुई है। सुमन ने कहा कि कोरोना संकट का गरीबी पर ज्यादा असर नहीं हुआ।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत वर्ष 2030 की निर्धारित समय सीमा से काफी पहले सहस्राब्दी विकास लक्ष्य एसडीजी को हासिल करने के पथ पर अग्रसर है। स्वच्छता, पोषण, रसोई गैस, वित्तीय समावेशन, पेयजल और बिजली तक पहुंच में सुधार पर सरकार के प्रयासों से प्रगति हुई है। पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे प्रमुख कार्यक्रमों ने स्वास्थ्य में अभावों को कम करने में योगदान प्रदान किया है। स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) और जल जीवन मिशन (जेजेएम) जैसी पहलों ने देशभर में स्वच्छता संबंधी सुधार किया है। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना (पीएमयूवाई) के माध्यम से सब्सिडी वाले रसोई गैस के प्रावधान ने जीवन को सकारात्मक रूप से बदल दिया है। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) और समग्र शिक्षा जैसी पहलों ने भी गरीबी को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

गरीबी में बड़ी गिरावट राहत की खबर ज़रूर है लेकिन अब भी करीब 15% लोग बहुआयामी गरीबी से जूझ रहे हैं। यानी गरीबी के मोर्चे पर चुनौती अब भी बनी हुई है.

 15 वर्षों के दौरान 41.5 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर निकले, यूएन की रिपोर्ट में दावा 

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया। रिपोर्ट में कहा गया, 'भारत में गरीबी में उल्लेखनीय रूप से कमी दिखी। यहां 15 वर्षों (2005-06 से 2019-21) की अवधि के भीतर 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले।

संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को कहा कि भारत में 2005-2006 से 2019-2021 के दौरान महज 15 साल के भीतर कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। यह बात वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के नवीनतम अपडेट में कही गई है। इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) की ओर से जारी किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित 25 देशों ने 15 वर्षों में अपने वैश्विक एमपीआई मूल्यों (गरीबी) को सफलतापूर्वक आधा कर दिया, यह आंकड़ा इन देशों में तेजी से प्रगति को दर्शाता है। इन देशों में कंबोडिया, चीन, कांगो, होंडुरास, भारत, इंडोनेशिया, मोरक्को, सर्बिया और वियतनाम शामिल हैं।

अमर उजाला की एक खबर के अनुसार, भारत में 2005-2006 से 2019-2021 के दौरान 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। 2005-2006 में जहां गरीबों की आबादी 55.1 प्रतिशत थी वह  2019-2021 में घटकर 16.4 प्रतिशत हो गई।

पोषण और बाल मृत्यु दर के आंकड़े हुए बेहतर

2005-2006 में भारत में लगभग 64.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में शामिल थे, यह संख्या 2015-2016 में घटकर लगभग 37 करोड़ और 2019-2021 में कम होकर 23 करोड़ हो गई। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सभी संकेतकों के अनुसार गरीबी में गिरावट आई है। सबसे गरीब राज्यों और समूहों, जिनमें बच्चे और वंचित जाति समूह के लोग शामिल हैं ने सबसे तेजी से प्रगति हासिल की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पोषण संकेतक के तहत बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोग 2005-2006 में 44.3 प्रतिशत थे जो 2019-2021 में कम होकर 11.8 प्रतिशत हो गए। इस दौरान बीवी और बाल मृत्यु दर 4.5 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत हो गई।

गरीबों के बीच खाना पकाने के ईंधन की उपलब्धता बढ़ी

रिपोर्ट के अनुसार जो खाना पकाने के ईंधन से वंचित गरीबों की संख्या भारत में 52.9 प्रतिशत से गिरकर 13.9 प्रतिशत हो गई है। वहीं स्वच्छता से वंचित लोग जहां 2005-2006 में 50.4 प्रतिशत थे उनकी संख्या 2019-2021 में कम होकर 11.3 प्रतिशत रह गई है। पेयजल के पैमाने की बात करें तो उक्त अवधि के दौरान बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोगों का प्रतिशत 16.4 से घटकर 2.7 हो गया। बिना बिजली के रह रहे लोगों की संख्या 29 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत और बिना आवास के गरीबों की संख्या 44.9 प्रतिशत से गिरकर 13.6 प्रतिशत रह गई है।

भारत ने गरीबी सूचकांक मूल्य को आधा करने में हासिल की सफलता

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के अलावे कई अन्य देशों ने भी अपने यहां गरीबों की संख्या में कमी की है। गरीबी कम करने में सफलता हासिल करने वाले देशों की सूची में 17 देश ऐसे हैं जहां उक्त अवधि की शुरुआत में 25 प्रतिशत से कम लोग गरीब थे। वहीं भारत और कांगो में उक्त अवधि की शुरुआत में 50 प्रतिशत से अधिक लोग गरीब थे। रिपोर्ट के अनुसार भारत उन 19 देशों की लिस्ट में शामिल है जिसके जिन्होंने 2005-2006 से 2015-2016 की अवधि के दौरान अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मूल्य को आधा करने में सफलता हासिल की।

गरीबी घटने के साथ बढ़ते कर्ज का विरोधाभास 

जहां एक ओर देश में गरीबी घटने का दावा है तो वहीं दूसरी ओर बढ़ती महंगाई, घटती आय और 80 करोड़ को मुफ्त राशन के साथ साथ देश यानी देशवासियों पर बढ़ते कर्ज का विरोधाभास है। दुनिया को देखा जाए तो विकासशील दुनिया इस वक्त कर्ज के कैसे बोझ तले दबी हुई है, इसकी एक चिंताजनक तस्वीर अब सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट से जाहिर हुआ है कि दुनिया की आधी आबादी उन देशों में रहती हैं, जो स्वास्थ्य देखभाल या शिक्षा पर खर्च करने के बजाय कर्ज की किश्तें चुकाने पर अपना अधिक बजट खर्च करने के लिए मजबूर हैं। 

संयुक्त राष्ट्र वैश्विक संकट कार्रवाई समूह ने ‘कर्ज की दुनिया’ नाम की यह रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक 52 देश फिलहाल ‘गंभीर कर्ज संकट’ से गुजर रहे हैं। यह विकासशील दुनिया का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है। पिछले वर्ष विभिन्न देशों की सरकारों पर कर्ज 9.2 हजार अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो एक रिकॉर्ड है। इसका 30 फीसदी भार विकासशील देशों पर है। चूंकि यह ऋण संकट ज्यादातर गरीब और विकासशील देशों पर है, इसलिए इस पर अपेक्षित चर्चा नहीं होती। दुनिया के सूचना तंत्र पर धनी पश्चिमी देशों का नियंत्रण है, जिसकी वजह से ये देश विश्व समस्याओं को अपने नजरिए पेश करने में हमेशा सफल रहते हैं। चूंकि ज्यादातर कर्ज पश्चिमी संस्थाओं ने ही दे रखा है, इसलिए इस मुद्दे पर ज्यादा बहस नहीं होती- संभवतः इसलिए भी कि अगर बहस हुई, तो ऋण माफी की मांग जोर पकड़ सकती है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ताजा रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने तैयार की है। उसमें कहा गया है कि कोविड महामारी, दैनिक खर्चों में भारी बढ़ोतरी और यूक्रेन में युद्ध ने 2020 के बाद 16.5 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेल दिया। अनुमान है कि 2023 के अंत तक 7.5 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में धकेल दिए जाएंगे। इसका अर्थ है कि वे प्रतिदिन 2.15 डॉलर से भी कम  खर्च पर जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर हो जाएंगे। अन्य 9 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को मजबूर हो जाएंगे, जिनके पास रोजाना खर्च करने के लिए मात्र 3.65 डॉलर तक उपलब्ध होंगे।  रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे गरीब लोग हाल की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। उनकी आय आज भी 2023 में कोरोना काल के पहले वाले स्तर से नीचे है।

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