नई दिल्ली। क्या इस देश में ट्रांसजेंडरों को एजुकेशन लेने या देना का हक नहीं है? हम क्यों ट्रांसजेंडरों को एक अलग ही सोच और नजर से देखते है। ताजा मामला पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर महिला कॉलेज से सामने आया है। बता दें कि यहां पर प्रिंसिपल का पदभार संभाल रहीं ट्रांसजेंडर मनाबी बंधोपाध्याय को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया।
स्कूल प्रिंसिपल का पदभार संभाल रहीं मनाबी बंधोपाध्याय ने सभी ट्रांसजेंडर्स के सामने उदाहरण पेश किया था। उन्होंने बताया था कि ट्रांसजेंडर्स का शिक्षित होना व्यर्थ नहीं जाता, लेकिन उनके पद पर काम करने को लेकर सहकर्मियों और छात्रों ने उनका साथ नहीं दिया।
मनाबी के खिलाफ लगातार घेराव और प्रदर्शनों हो रहा था जिससे तंग आकर मनाबी ने आखिरकार 23 दिसंबर को अपना इस्तीफा दे दिया। बता दें कि मनाबी ने डेढ़ साल पहले प्रिंसिपल का पद संभाला था, शायद वह देश की पहली ट्रांसजेंडर हैं, जो किसी शैक्षणिक संस्थान की प्रिंसिपल बनीं।
अपनी बात को सामने रखते हुए मनाबी ने कहा, 'मैंने 23 दिसंबर को डीएम को अपना इस्तीफा भेज दिया। मेरे सारे सहकर्मी और स्टूडेंट्स मेरे खिलाफ थे। मैंने कॉलेज में अनुशासन और स्वस्थ वातावरण बहाल करने की कोशिश की लेकिन मेरी कोशिश नाकाम रही।'
उन्होंने आगे कहा, 'मुझे स्थानीय प्रशासन से पूरा समर्थन मिला, लेकिन सहकर्मियों और छात्रों से कोई सहयोग नहीं मिला। उनका सहयोग न मिलने से मैं मानसिक दबाव में आ गई, जिसे मैं और नहीं झेल सकती थी।'
इस मामले में मनाबी कहती हैं वह काफी उम्मीद के साथ कॉलेज आई थीं लेकिन वह हार गईं, अगर उनके खिलाफ कोई आरोप है तो वह उसकी जांच के लिए तैयार हैं, लेकिन कॉलेज में शिक्षा का वातावरण खराब करने का क्या फायदा? उन्होंने यह भी बताया कि NAAC की टीम उऩके काम से बहुत खुश थी, वह खुश हैं कि कॉलेज को ज्यादा फंड मिलेगा।
मामले को संज्ञान में लेते हुए नादिया के डीएम सुमित गुप्ता ने कहा कि प्रिंसिपल मनाबी का इस्तीफा उन्हें मिल गया है और उसे बुधवार को उच्च शिक्षा विभाग को भेज दिया गया है। आगे की कार्रवाई विभाग करेगा और जल्द कोई फैसला लिया जाएगा।
Courtesy: National Dastak
स्कूल प्रिंसिपल का पदभार संभाल रहीं मनाबी बंधोपाध्याय ने सभी ट्रांसजेंडर्स के सामने उदाहरण पेश किया था। उन्होंने बताया था कि ट्रांसजेंडर्स का शिक्षित होना व्यर्थ नहीं जाता, लेकिन उनके पद पर काम करने को लेकर सहकर्मियों और छात्रों ने उनका साथ नहीं दिया।
मनाबी के खिलाफ लगातार घेराव और प्रदर्शनों हो रहा था जिससे तंग आकर मनाबी ने आखिरकार 23 दिसंबर को अपना इस्तीफा दे दिया। बता दें कि मनाबी ने डेढ़ साल पहले प्रिंसिपल का पद संभाला था, शायद वह देश की पहली ट्रांसजेंडर हैं, जो किसी शैक्षणिक संस्थान की प्रिंसिपल बनीं।
अपनी बात को सामने रखते हुए मनाबी ने कहा, 'मैंने 23 दिसंबर को डीएम को अपना इस्तीफा भेज दिया। मेरे सारे सहकर्मी और स्टूडेंट्स मेरे खिलाफ थे। मैंने कॉलेज में अनुशासन और स्वस्थ वातावरण बहाल करने की कोशिश की लेकिन मेरी कोशिश नाकाम रही।'
उन्होंने आगे कहा, 'मुझे स्थानीय प्रशासन से पूरा समर्थन मिला, लेकिन सहकर्मियों और छात्रों से कोई सहयोग नहीं मिला। उनका सहयोग न मिलने से मैं मानसिक दबाव में आ गई, जिसे मैं और नहीं झेल सकती थी।'
इस मामले में मनाबी कहती हैं वह काफी उम्मीद के साथ कॉलेज आई थीं लेकिन वह हार गईं, अगर उनके खिलाफ कोई आरोप है तो वह उसकी जांच के लिए तैयार हैं, लेकिन कॉलेज में शिक्षा का वातावरण खराब करने का क्या फायदा? उन्होंने यह भी बताया कि NAAC की टीम उऩके काम से बहुत खुश थी, वह खुश हैं कि कॉलेज को ज्यादा फंड मिलेगा।
मामले को संज्ञान में लेते हुए नादिया के डीएम सुमित गुप्ता ने कहा कि प्रिंसिपल मनाबी का इस्तीफा उन्हें मिल गया है और उसे बुधवार को उच्च शिक्षा विभाग को भेज दिया गया है। आगे की कार्रवाई विभाग करेगा और जल्द कोई फैसला लिया जाएगा।
Courtesy: National Dastak