देश की ओर से तीन युद्ध लड़ चुके भारतीय सेना के एक अफ़सर की बेटी और सिद्ध अभिनेत्री मीता वशिष्ठ ने टाइम्स नाउ के प्रचंड किस्म के ऐंकर अर्णब गोस्वामी को शट-अप कहकर जिस तरह से कार्यक्रम बीच में छोड़ा, उसकी आजकल काफ़ी चर्चा है। नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से निकलकर सीरियल और फ़िल्मी दुनिया में मुक़ाम बना चुकीं अभिनेत्री मीता को उम्मीद रही होगी कि अर्णव उन्हें बुलाया है तो सम्मान से पेश आयेंगे, लेकिन अर्णव को, हाँ में हाँ न मिलाने वालों को अपमानित करके टीआरपी बटोरने की लत है, इसका शायद उन्हें इल्म में नहीं था ।
दरअसल, 30 सितंबर को ‘टाइम्स नाउ’ पर देश में पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने को लेकर बहस चल रही थी। पैनल में अभिनेत्री मीता वशिष्ठ और कारगिल शहीद कर्नल विजयन्त थापर के पिता मौजूद थे। इसी बहस के दौरान अर्णव गोस्वामी मीता पर भड़क गए। उन्होंने मीता को शो से बाहर जाने के लिए कह दिया। मीता ने कुछ कहने की कोशिश की मगर अर्णव चुप नहीं हुए तो वह उन्हें ‘शट अप’ बोलकर उठ गईं।
दरअसल, बहस के दौरान मीता ने करगिल की याद दिलाई तो अर्णव बोले- ”सबसे पहली बात, मैं सरपरस्ती वाली आवाज़ें बर्दाश्त नहीं करता, जो कि आप कर रही हैं। आप कह रही हैं कि कारगिल में जो हुआ, हम सब उसे भूल गए हैं। कोई कुछ नहीं भूला। हम इसीलिए ये मुद्दा उठा रहे हैं। मुझे नहीं पता कि बॉलीवुड इसे (करगिल) भूल गया है या नहीं। बॉलीवुड फिल्म बनाते वक्त यह भूल जाता है। बालीवुड सेनाओं की तस्वीरों का इस्तेमाल करता हैं। बॉलीवुड फ़वाद खान से यह पूछना भूल जाता है कि आप एक भारतीय वीज़ा पर आए हैं, क्या वीज़ा पर आना आपको आपके देश पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के प्रति आंखें मूँदने को जायज़ ठहराता है। क्या भारतीय वीज़ा पर आने वालों कलाकारों को उड़ी हमलों की निंदा नहीं करनी चाहिए ताकि लोग यह मानें कि भारत-पाकिस्तान दोस्त हैं। और मीता वशिष्ठ, मैं बोल ही क्यों रहा हूँ, जब मेरे साथ विजयन्त थापर के पिता हैं। जिस तरह आप देश के शहीदों के बारे में बोल रही हैं, वह मुझे पसंद नहीं आ रहा।”
इस पर मीता कहती हैं, ‘मैं समझ नहीं पा रही। क्या आप चिल्लाने की बजाय बोल सकते हैं ? माफ कीजिए आप मेरी ओपिनियन जानना चाहते हैं या आप चाहते हैं कि मैं आपकी बात मान लूं?” अर्णव नाराज होते हुए कहते हैं, ”एक सेकेंड, मीता आखिरी बार मैं आपको बता रहा हूं, ठीक से समझ लीजिए। आप कर्नल थापर के बारे में बात कर रही हैं। मैं तुरंत आपको शो से बाहर कर रहा हूं जब तक आप सेना के अधिकारी, जो कि एक शहीद का पिता है, से तमीज से बात करना नहीं सीख लेतीं।.. क्या मैं उसे शो से बाहर कर सकता हूं?” …मीता अर्नब को ‘शट अप’ बोलकर उठ जाती हैं।
अर्णब ने मीता को बोलने का अवसर भले ही अपने चैनल पर नहीं दिया हो, लेकिन एक वेबसाइट पर उन्होंने लिखा है कि जैसे ही उन्होंने यह शो छोड़ा, थोड़ी देर बाद उनके सेलफोन पर संदेशों की बाढ़ आ गई। सभी ने 'वेल डन' लिखा और कहा कि अर्णब के अक्खड़पन के लिए यही सही जवाब था।
मीता लिखती हैं- मुझे पता चला कि मेरे शो से हटने के बाद अर्णब ने कहा कि 'शट अप' कह कर मैंने कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता का अपमान किया है। यह अर्णब की बहुत ही ख़तरनाक चाल है। मैं यहाँ बताना चाहूंगी कि मैंने शो में क्या कहा था।“
वे लिखती हैं- मेरी फ़वाद ख़ान या अन्य पाकिस्तानी कलाकारों में कोई रूचि नहीं है। बॉलीवुड में उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। बॉलीवुड निर्माता उन्हें अपनी फिल्मों में अवसर देते हैं क्योंकि वे ऐसा चाहते हैं, लेकिन अब निर्माताओं की संस्था चीख रही है कि वे हमारे देश के नहीं हैं और उन्हें प्रतिबंधित कर देना चाहिए तो वे ऐसा उड़ी में हुई घटना के प्रति रोष जताने के लिए कर रहे हैं। क्या ये बेहतर नहीं होता कि ये निर्माता अपनी ऊर्जा उड़ी आतंकी हमले में शहीदों के परिवार के कोष जुटाने में लगाते। इससे उन विधवाओं, बच्चों और माता-पिता की मदद हो जाती। उनसे पूछते कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं?
अर्णब लगातार चीख रहे थे। फिर मैंने कहा कि भारत और पाकिस्तान कभी दोस्त नहीं हो सकते। हम हमेशा दुश्मन रहे हैं तो इसमें इतनी हायतौबा क्यों? 1965 और 1971 के दो युद्ध तथा 1999 का कारगिल युद्ध क्या हम भूल सकते हैं। 1999 के बाद ही पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए थी यदि उनकी उपस्थिति हमारे लिए मुद्दा है तो।
मेरे यह कहने पर अर्णब चीखने लगे। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि मैं केवल अर्णब को ही सुन पा रही थी। इसके अलावा बहुत शोर भी था। मुझे नहीं पता था कि उस शो में और कौन हैं तथा वे क्या कह रहे हैं। मुझे कोई जानकारी नहीं थी कि कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता भी वहां मौजूद थे, इससे उनका अपमान करने का सवाल ही खत्म हो जाता है।
मीता ने बताया कि उनके पिता सेना में थे और उन्होंने तीनों युद्ध लड़े थे। वे लिखती हैं कि मेरी बहादुर माँ ने 1971 में कहा था कि यदि डैडी वापस नहीं आते हैं तो इसका ये मतलब होगा कि वे भगवान के पास चले गए हैं। मैं 1965 नहीं भूली, 1971 नहीं भूली और न ही 1999 । क्या इसके बाद भी पाकिस्तानी कलाकारों को भारत आने और प्रदर्शन करने की अनुमति देनी चाहिए। इसी लॉजिक से मैं कहती हूं कि पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम करते हैं या नहीं, ये मुद्दा ही नहीं है। फ़वाद खान से पाकिस्तान सरकार के विरोध की उम्मीद सही नहीं है। उनका परिवार पाकिस्तान में हैं जिसकी सुरक्षा की चिंता उन्हें है। इससे क्या वे भारत विरोधी सिद्ध हो जाते हैं।
मीता आगे लिखती हैं- जब कम्युनिस्ट रंगकर्मी सफदर हाशमी को सत्ताधारी पार्टी की युवा शाखा द्वारा दिन-दहाड़े मार दिया जाता है और एक राष्ट्र के रूप में हमने उसे भुला दिया तो फ़वाद खान कौन है? अगर बिनायक सेन को जेल भेज दिया जाता है तो पाकिस्तान में फ़वाद खान का क्या होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 1984 के दौरान हजारों सिखों को दिल्ली में ज़िंदा जला दिया गया, मार डाला गया और हम अपने घरों में छिप गए तो क्या हम देशद्रोही हो गए?
मीता ने अर्णब और टाइम्स नाउ चैनल को जोड़ते हुए शाब्दिक बाण चलाया और लिखा, तथ्य यह है कि यह पूरा शो मिस्टर अर्णब गोस्वामी जैसे व्यक्ति को दिया गया है, जो उस टाइम्स (समय) की बात करते हैं, जिसमें हम अब (नाउ) रह रहे हैं।
देखिये यह ''शट अप'' वीडियो—
Courtesy: Media Vigil
दरअसल, 30 सितंबर को ‘टाइम्स नाउ’ पर देश में पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने को लेकर बहस चल रही थी। पैनल में अभिनेत्री मीता वशिष्ठ और कारगिल शहीद कर्नल विजयन्त थापर के पिता मौजूद थे। इसी बहस के दौरान अर्णव गोस्वामी मीता पर भड़क गए। उन्होंने मीता को शो से बाहर जाने के लिए कह दिया। मीता ने कुछ कहने की कोशिश की मगर अर्णव चुप नहीं हुए तो वह उन्हें ‘शट अप’ बोलकर उठ गईं।
दरअसल, बहस के दौरान मीता ने करगिल की याद दिलाई तो अर्णव बोले- ”सबसे पहली बात, मैं सरपरस्ती वाली आवाज़ें बर्दाश्त नहीं करता, जो कि आप कर रही हैं। आप कह रही हैं कि कारगिल में जो हुआ, हम सब उसे भूल गए हैं। कोई कुछ नहीं भूला। हम इसीलिए ये मुद्दा उठा रहे हैं। मुझे नहीं पता कि बॉलीवुड इसे (करगिल) भूल गया है या नहीं। बॉलीवुड फिल्म बनाते वक्त यह भूल जाता है। बालीवुड सेनाओं की तस्वीरों का इस्तेमाल करता हैं। बॉलीवुड फ़वाद खान से यह पूछना भूल जाता है कि आप एक भारतीय वीज़ा पर आए हैं, क्या वीज़ा पर आना आपको आपके देश पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के प्रति आंखें मूँदने को जायज़ ठहराता है। क्या भारतीय वीज़ा पर आने वालों कलाकारों को उड़ी हमलों की निंदा नहीं करनी चाहिए ताकि लोग यह मानें कि भारत-पाकिस्तान दोस्त हैं। और मीता वशिष्ठ, मैं बोल ही क्यों रहा हूँ, जब मेरे साथ विजयन्त थापर के पिता हैं। जिस तरह आप देश के शहीदों के बारे में बोल रही हैं, वह मुझे पसंद नहीं आ रहा।”
इस पर मीता कहती हैं, ‘मैं समझ नहीं पा रही। क्या आप चिल्लाने की बजाय बोल सकते हैं ? माफ कीजिए आप मेरी ओपिनियन जानना चाहते हैं या आप चाहते हैं कि मैं आपकी बात मान लूं?” अर्णव नाराज होते हुए कहते हैं, ”एक सेकेंड, मीता आखिरी बार मैं आपको बता रहा हूं, ठीक से समझ लीजिए। आप कर्नल थापर के बारे में बात कर रही हैं। मैं तुरंत आपको शो से बाहर कर रहा हूं जब तक आप सेना के अधिकारी, जो कि एक शहीद का पिता है, से तमीज से बात करना नहीं सीख लेतीं।.. क्या मैं उसे शो से बाहर कर सकता हूं?” …मीता अर्नब को ‘शट अप’ बोलकर उठ जाती हैं।
अर्णब ने मीता को बोलने का अवसर भले ही अपने चैनल पर नहीं दिया हो, लेकिन एक वेबसाइट पर उन्होंने लिखा है कि जैसे ही उन्होंने यह शो छोड़ा, थोड़ी देर बाद उनके सेलफोन पर संदेशों की बाढ़ आ गई। सभी ने 'वेल डन' लिखा और कहा कि अर्णब के अक्खड़पन के लिए यही सही जवाब था।
मीता लिखती हैं- मुझे पता चला कि मेरे शो से हटने के बाद अर्णब ने कहा कि 'शट अप' कह कर मैंने कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता का अपमान किया है। यह अर्णब की बहुत ही ख़तरनाक चाल है। मैं यहाँ बताना चाहूंगी कि मैंने शो में क्या कहा था।“
वे लिखती हैं- मेरी फ़वाद ख़ान या अन्य पाकिस्तानी कलाकारों में कोई रूचि नहीं है। बॉलीवुड में उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। बॉलीवुड निर्माता उन्हें अपनी फिल्मों में अवसर देते हैं क्योंकि वे ऐसा चाहते हैं, लेकिन अब निर्माताओं की संस्था चीख रही है कि वे हमारे देश के नहीं हैं और उन्हें प्रतिबंधित कर देना चाहिए तो वे ऐसा उड़ी में हुई घटना के प्रति रोष जताने के लिए कर रहे हैं। क्या ये बेहतर नहीं होता कि ये निर्माता अपनी ऊर्जा उड़ी आतंकी हमले में शहीदों के परिवार के कोष जुटाने में लगाते। इससे उन विधवाओं, बच्चों और माता-पिता की मदद हो जाती। उनसे पूछते कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं?
अर्णब लगातार चीख रहे थे। फिर मैंने कहा कि भारत और पाकिस्तान कभी दोस्त नहीं हो सकते। हम हमेशा दुश्मन रहे हैं तो इसमें इतनी हायतौबा क्यों? 1965 और 1971 के दो युद्ध तथा 1999 का कारगिल युद्ध क्या हम भूल सकते हैं। 1999 के बाद ही पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए थी यदि उनकी उपस्थिति हमारे लिए मुद्दा है तो।
मेरे यह कहने पर अर्णब चीखने लगे। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि मैं केवल अर्णब को ही सुन पा रही थी। इसके अलावा बहुत शोर भी था। मुझे नहीं पता था कि उस शो में और कौन हैं तथा वे क्या कह रहे हैं। मुझे कोई जानकारी नहीं थी कि कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता भी वहां मौजूद थे, इससे उनका अपमान करने का सवाल ही खत्म हो जाता है।
मीता ने बताया कि उनके पिता सेना में थे और उन्होंने तीनों युद्ध लड़े थे। वे लिखती हैं कि मेरी बहादुर माँ ने 1971 में कहा था कि यदि डैडी वापस नहीं आते हैं तो इसका ये मतलब होगा कि वे भगवान के पास चले गए हैं। मैं 1965 नहीं भूली, 1971 नहीं भूली और न ही 1999 । क्या इसके बाद भी पाकिस्तानी कलाकारों को भारत आने और प्रदर्शन करने की अनुमति देनी चाहिए। इसी लॉजिक से मैं कहती हूं कि पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम करते हैं या नहीं, ये मुद्दा ही नहीं है। फ़वाद खान से पाकिस्तान सरकार के विरोध की उम्मीद सही नहीं है। उनका परिवार पाकिस्तान में हैं जिसकी सुरक्षा की चिंता उन्हें है। इससे क्या वे भारत विरोधी सिद्ध हो जाते हैं।
मीता आगे लिखती हैं- जब कम्युनिस्ट रंगकर्मी सफदर हाशमी को सत्ताधारी पार्टी की युवा शाखा द्वारा दिन-दहाड़े मार दिया जाता है और एक राष्ट्र के रूप में हमने उसे भुला दिया तो फ़वाद खान कौन है? अगर बिनायक सेन को जेल भेज दिया जाता है तो पाकिस्तान में फ़वाद खान का क्या होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 1984 के दौरान हजारों सिखों को दिल्ली में ज़िंदा जला दिया गया, मार डाला गया और हम अपने घरों में छिप गए तो क्या हम देशद्रोही हो गए?
मीता ने अर्णब और टाइम्स नाउ चैनल को जोड़ते हुए शाब्दिक बाण चलाया और लिखा, तथ्य यह है कि यह पूरा शो मिस्टर अर्णब गोस्वामी जैसे व्यक्ति को दिया गया है, जो उस टाइम्स (समय) की बात करते हैं, जिसमें हम अब (नाउ) रह रहे हैं।
देखिये यह ''शट अप'' वीडियो—
Courtesy: Media Vigil