कनौजिया के निष्कासन के बाद 20 नवंबर से शांतिपूर्ण धरने में भाग लेने वाले छात्रों को प्रशासन द्वारा नोटिस जारी किए जा रहे हैं।

साभार : द मूकनायक
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में दलित शोधार्थी बसंत कनौजिया के निष्कासन के विरोध में शांतिपूर्ण धरना पिछले एक हफ्ते से जारी है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा लगाए गए ‘अनुशासनहीनता’ के आरोपों को कनौजिया सिरे से नकारते हैं और शिक्षा एवं न्याय के अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए लगातार धरने पर बैठे हैं।
मामला तब और गंभीर हो गया जब प्रशासन ने उनके समर्थन में खड़े छात्रों को भी चेतावनी नोटिस जारी कर दिए। नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद सहित कई प्रमुख बहुजन सक्रिय कार्यकर्ता खुले तौर पर कनौजिया के समर्थन में सामने आए हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन से निष्कासन तुरंत वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना बीबीएयू के इतिहास में जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक तानाशाही का एक और काला अध्याय जोड़ रही है। कनौजिया, जो इतिहास विभाग में पीएचडी शोधार्थी हैं, पिछले 14 वर्षों से विश्वविद्यालय में अध्ययनरत थे। 17 सितंबर को परिसर में हुई कथित अशांति के दौरान उन्हें 'छात्रों को भड़काने, तोड़फोड़ करने और वीसी कार्यालय में घुसपैठ' का दोषी ठहराया गया। जांच समिति और अनुशासन समिति ने सीसीटीवी फुटेज, छात्र बयानों तथा उनके पूर्व रिकॉर्ड (जिसमें 2012 से 14 अनुशासनहीनता के मामले, शो-कॉज नोटिस और एफआईआर शामिल हैं) के आधार पर उन्हें निष्कासित करने की सिफारिश की। कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने 17 अक्टूबर को जारी शो-कॉज नोटिस के जवाब को 'निराधार' बताते हुए उनके निष्कासन आदेश जारी कर दिए। आदेश में उन्हें परिसर में प्रवेश और भविष्य में प्रवेश से भी वंचित कर दिया गया।
निष्कासन के तुरंत बाद कनौजिया ने संवैधानिक दायरे में शांतिपूर्ण धरना शुरू किया, जो अब सातवें दिन में पहुंच गया है। यह धरना प्रशासनिक भवन के मुख्य प्रवेश द्वार पर चल रहा है, जहां वे छात्र कल्याण, जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने और शिक्षा के अधिकार की मांग कर रहे हैं।
हालांकि, प्रशासन की प्रतिक्रिया लगातार सख्त होती जा रही है। 20 नवंबर से धरने में शामिल छात्रों को चेतावनी नोटिस भेजे जा रहे हैं।
सबसे ताजा मामला सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के छात्र शिवम कुमार से जुड़ा है। विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर कार्यालय ने 21 नवंबर 2025 को पत्र संख्या 1084/प्रॉक्ट./बीबीएयू/2025 जारी करते हुए शिवम को ‘अनुशासनहीन गतिविधियों में लगातार शामिल रहने’ के आरोप में चेतावनी दी है। पत्र में उल्लेख है:
“यह पाया गया है कि आप बाहरी व्यक्तियों के साथ मिलकर 20.11.2025 से विश्वविद्यालय परिसर में प्रशासनिक भवन के मुख्य द्वार पर धरना-प्रदर्शन में शामिल हैं, जिससे भवन में प्रवेश करने वाले शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को बाधा पहुंची है तथा परिसर में अशांति की स्थिति बनी है। ऐसे कार्य विश्वविद्यालय की छात्र आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन हैं।”
पत्र में आगे चेतावनी देते हुए कहा गया: “अतः आपको निर्देश दिया जाता है कि आप तुरंत ऐसी अनुशासनहीन गतिविधियों से दूरी बनाकर अपने शैक्षणिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें। यदि आप इस प्रकार की गतिविधियों में सम्मिलित रहे, तो विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार आपके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।”
यह नोटिस केवल धरने में भाग लेने वालों को ही नहीं, बल्कि समर्थन व्यक्त करने वाले छात्रों के लिए भी मानसिक दबाव का कारण बन रहा है। कनौजिया का कहना है कि अब उनके समर्थन में खड़े अन्य छात्रों को भी इसी तरह के नोटिस भेजे जा रहे हैं।
कनौजिया ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया में प्रशासन पर तानाशाही का आरोप लगाया है। उन्होंने लिखा: “प्रशासन की तानाशाही का एक और शर्मनाक उदाहरण! दलित छात्रों के लिए 50% आरक्षण और 51 दलित प्रोफेसर वाले विश्वविद्यालय में ही दलित शोधार्थियों/छात्रों को सबसे ज्यादा जातिगत प्रताड़ित किया जा रहा है। मुझ पर झूठा अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर निष्कासन कर दिया गया और मैं अपने न्याय व शिक्षा के अधिकार की रक्षा के लिए संवैधानिक दायरे में रहकर शांतिपूर्ण धरने पर बैठा हूँ। लेकिन अब प्रशासन ने उन छात्रों को भी नोटिस जारी कर दिया जो सिर्फ मेरे समर्थन में खड़े हुए थे। सभी विभागाध्यक्षों को आदेश दिया गया है कि कोई भी छात्र/शोधार्थी बसंत कुमार कनौजिया के आंदोलन में शामिल न हो। यह साफ दिखाता है कि प्रशासन असहमति की आवाज से डरता है और जातिवादी मानसिकता से छात्रों को दबाने की कोशिश कर रहा है। अब मेरे समर्थन करने वाले दूसरे छात्र को भी नोटिस देकर मानसिक प्रताड़ना शुरू हो चुकी है। क्या यही है लोकतंत्र? क्या यही है बाबासाहेब के नाम पर चल रहा विश्वविद्यालय? सच यह है कि अन्याय के खिलाफ आवाज को नोटिस से नहीं दबाया जा सकता। हम संविधान के रास्ते पर हैं और संघर्ष जारी रहेगा।”
उधर, यह मामला अब राजनीतिक रूप भी ले चुका है। नगिना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने बसंत कनौजिया के समर्थन में खुलकर बयान दिया है। उनका कहना है कि बीबीएयू में एक दलित शोधार्थी पर लगाए गए मनगढ़ंत और फर्जी अनुशासनहीनता के आरोपों के आधार पर किया गया निष्कासन अन्यायपूर्ण है। शांतिपूर्ण आंदोलन के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन और “संघी मानसिकता से संचालित” कुलपति की चुप्पी गंभीर चिंता का विषय है। उनके अनुसार यह चुप्पी न केवल अनैतिक है, बल्कि एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक और संवैधानिक गरिमा पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
आजाद ने कहा कि यह संघर्ष सिर्फ एक छात्र का नहीं है, बल्कि अस्मिता की रक्षा, सम्मान की पुनर्स्थापना, संवैधानिक मूल्यों की सुरक्षा और विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक आत्मा को बचाने का आंदोलन है। उन्होंने स्पष्ट कहा: “दलित शोधार्थी पर अत्याचार अब देश बर्दाश्त नहीं करेगा।”
अपनी जनता पार्टी के अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि लखनऊ स्थित बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के दलित शोध छात्र बसंत कुमार कनौजिया पर अनुशासनहीनता का झूठा आरोप लगाकर, बिना तथ्य और बिना पक्ष सुने उन्हें निष्कासित कर दिया गया।
उनका कहना है कि विश्वविद्यालय परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखकर सही जानकारी प्राप्त की जा सकती थी, लेकिन ऐसा न करते हुए प्रशासन ने जातिवादी मानसिकता के तहत तानाशाही और भेदभावपूर्ण कार्रवाई की है, जिसकी वे कड़ी निंदा करते हैं।
मौर्य ने कहा कि दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं है — पहले भी शम्बूक का सिर काटकर और एकलव्य का अंगूठा काटकर अत्याचार किए गए थे। उन्होंने चिंता जताई कि मनुवादी सोच वाले लोग आज भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
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मामला तब और गंभीर हो गया जब प्रशासन ने उनके समर्थन में खड़े छात्रों को भी चेतावनी नोटिस जारी कर दिए। नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद सहित कई प्रमुख बहुजन सक्रिय कार्यकर्ता खुले तौर पर कनौजिया के समर्थन में सामने आए हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन से निष्कासन तुरंत वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना बीबीएयू के इतिहास में जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक तानाशाही का एक और काला अध्याय जोड़ रही है। कनौजिया, जो इतिहास विभाग में पीएचडी शोधार्थी हैं, पिछले 14 वर्षों से विश्वविद्यालय में अध्ययनरत थे। 17 सितंबर को परिसर में हुई कथित अशांति के दौरान उन्हें 'छात्रों को भड़काने, तोड़फोड़ करने और वीसी कार्यालय में घुसपैठ' का दोषी ठहराया गया। जांच समिति और अनुशासन समिति ने सीसीटीवी फुटेज, छात्र बयानों तथा उनके पूर्व रिकॉर्ड (जिसमें 2012 से 14 अनुशासनहीनता के मामले, शो-कॉज नोटिस और एफआईआर शामिल हैं) के आधार पर उन्हें निष्कासित करने की सिफारिश की। कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने 17 अक्टूबर को जारी शो-कॉज नोटिस के जवाब को 'निराधार' बताते हुए उनके निष्कासन आदेश जारी कर दिए। आदेश में उन्हें परिसर में प्रवेश और भविष्य में प्रवेश से भी वंचित कर दिया गया।
निष्कासन के तुरंत बाद कनौजिया ने संवैधानिक दायरे में शांतिपूर्ण धरना शुरू किया, जो अब सातवें दिन में पहुंच गया है। यह धरना प्रशासनिक भवन के मुख्य प्रवेश द्वार पर चल रहा है, जहां वे छात्र कल्याण, जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने और शिक्षा के अधिकार की मांग कर रहे हैं।
हालांकि, प्रशासन की प्रतिक्रिया लगातार सख्त होती जा रही है। 20 नवंबर से धरने में शामिल छात्रों को चेतावनी नोटिस भेजे जा रहे हैं।
सबसे ताजा मामला सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के छात्र शिवम कुमार से जुड़ा है। विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर कार्यालय ने 21 नवंबर 2025 को पत्र संख्या 1084/प्रॉक्ट./बीबीएयू/2025 जारी करते हुए शिवम को ‘अनुशासनहीन गतिविधियों में लगातार शामिल रहने’ के आरोप में चेतावनी दी है। पत्र में उल्लेख है:
“यह पाया गया है कि आप बाहरी व्यक्तियों के साथ मिलकर 20.11.2025 से विश्वविद्यालय परिसर में प्रशासनिक भवन के मुख्य द्वार पर धरना-प्रदर्शन में शामिल हैं, जिससे भवन में प्रवेश करने वाले शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को बाधा पहुंची है तथा परिसर में अशांति की स्थिति बनी है। ऐसे कार्य विश्वविद्यालय की छात्र आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन हैं।”
पत्र में आगे चेतावनी देते हुए कहा गया: “अतः आपको निर्देश दिया जाता है कि आप तुरंत ऐसी अनुशासनहीन गतिविधियों से दूरी बनाकर अपने शैक्षणिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें। यदि आप इस प्रकार की गतिविधियों में सम्मिलित रहे, तो विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार आपके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।”
यह नोटिस केवल धरने में भाग लेने वालों को ही नहीं, बल्कि समर्थन व्यक्त करने वाले छात्रों के लिए भी मानसिक दबाव का कारण बन रहा है। कनौजिया का कहना है कि अब उनके समर्थन में खड़े अन्य छात्रों को भी इसी तरह के नोटिस भेजे जा रहे हैं।
कनौजिया ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया में प्रशासन पर तानाशाही का आरोप लगाया है। उन्होंने लिखा: “प्रशासन की तानाशाही का एक और शर्मनाक उदाहरण! दलित छात्रों के लिए 50% आरक्षण और 51 दलित प्रोफेसर वाले विश्वविद्यालय में ही दलित शोधार्थियों/छात्रों को सबसे ज्यादा जातिगत प्रताड़ित किया जा रहा है। मुझ पर झूठा अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर निष्कासन कर दिया गया और मैं अपने न्याय व शिक्षा के अधिकार की रक्षा के लिए संवैधानिक दायरे में रहकर शांतिपूर्ण धरने पर बैठा हूँ। लेकिन अब प्रशासन ने उन छात्रों को भी नोटिस जारी कर दिया जो सिर्फ मेरे समर्थन में खड़े हुए थे। सभी विभागाध्यक्षों को आदेश दिया गया है कि कोई भी छात्र/शोधार्थी बसंत कुमार कनौजिया के आंदोलन में शामिल न हो। यह साफ दिखाता है कि प्रशासन असहमति की आवाज से डरता है और जातिवादी मानसिकता से छात्रों को दबाने की कोशिश कर रहा है। अब मेरे समर्थन करने वाले दूसरे छात्र को भी नोटिस देकर मानसिक प्रताड़ना शुरू हो चुकी है। क्या यही है लोकतंत्र? क्या यही है बाबासाहेब के नाम पर चल रहा विश्वविद्यालय? सच यह है कि अन्याय के खिलाफ आवाज को नोटिस से नहीं दबाया जा सकता। हम संविधान के रास्ते पर हैं और संघर्ष जारी रहेगा।”
उधर, यह मामला अब राजनीतिक रूप भी ले चुका है। नगिना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने बसंत कनौजिया के समर्थन में खुलकर बयान दिया है। उनका कहना है कि बीबीएयू में एक दलित शोधार्थी पर लगाए गए मनगढ़ंत और फर्जी अनुशासनहीनता के आरोपों के आधार पर किया गया निष्कासन अन्यायपूर्ण है। शांतिपूर्ण आंदोलन के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन और “संघी मानसिकता से संचालित” कुलपति की चुप्पी गंभीर चिंता का विषय है। उनके अनुसार यह चुप्पी न केवल अनैतिक है, बल्कि एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक और संवैधानिक गरिमा पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
आजाद ने कहा कि यह संघर्ष सिर्फ एक छात्र का नहीं है, बल्कि अस्मिता की रक्षा, सम्मान की पुनर्स्थापना, संवैधानिक मूल्यों की सुरक्षा और विश्वविद्यालय की लोकतांत्रिक आत्मा को बचाने का आंदोलन है। उन्होंने स्पष्ट कहा: “दलित शोधार्थी पर अत्याचार अब देश बर्दाश्त नहीं करेगा।”
अपनी जनता पार्टी के अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि लखनऊ स्थित बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के दलित शोध छात्र बसंत कुमार कनौजिया पर अनुशासनहीनता का झूठा आरोप लगाकर, बिना तथ्य और बिना पक्ष सुने उन्हें निष्कासित कर दिया गया।
उनका कहना है कि विश्वविद्यालय परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखकर सही जानकारी प्राप्त की जा सकती थी, लेकिन ऐसा न करते हुए प्रशासन ने जातिवादी मानसिकता के तहत तानाशाही और भेदभावपूर्ण कार्रवाई की है, जिसकी वे कड़ी निंदा करते हैं।
मौर्य ने कहा कि दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं है — पहले भी शम्बूक का सिर काटकर और एकलव्य का अंगूठा काटकर अत्याचार किए गए थे। उन्होंने चिंता जताई कि मनुवादी सोच वाले लोग आज भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
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