पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी राज्य की मतदाता सूची के विवादास्पद SIR के खिलाफ 4 नवंबर को कोलकाता में विरोध मार्च का नेतृत्व करेंगी।

फोटो साभार : पीटीआई
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी राज्य की मतदाता सूची के विवादास्पद विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ 4 नवंबर को कोलकाता में एक विरोध मार्च का नेतृत्व करेंगी।
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा राज्य होगा जहां यह विवादास्पद प्रक्रिया लागू की जाएगी।
इस संबंध में, निर्वाचन आयोग ने 28 अक्टूबर से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रव्यापी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू करने की घोषणा की है।
इस सूची में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, गोवा, पुडुचेरी, छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और लक्षद्वीप शामिल हैं। इस प्रक्रिया के तहत लगभग 51 करोड़ मतदाताओं को शामिल किया जाएगा।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में एसआईआर को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की एक साजिश है।
टीएमसी ने इस प्रक्रिया की तुलना राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से की है।
पार्टी ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष भाजपा के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारियों) को चेतावनी दी है कि यदि वे भाजपा के निर्देशों का पालन नहीं करेंगे, तो उन्हें जेल भेजा जाएगा।
वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज किया है। पार्टी प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारी) पूरी तरह स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
उन्होंने टीएमसी पर यह आरोप लगाया कि वह मतदाता सूची से “मृत मतदाताओं” के नाम हटाने की प्रक्रिया को रोकने की कोशिश कर रही है।
उल्लेखनीय है कि एसआईआर को लेकर लगभग 80,000 बूथ स्तरीय अधिकारियों, जिनमें से कई शिक्षक हैं, ने महीने भर चलने वाली घर-घर सत्यापन प्रक्रिया के दौरान अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। इस चिंता के बाद इस विवाद पर तनाव और बढ़ गया है।
शनिवार 1 नवंबर को आयोजित एक प्रशिक्षण सत्र के दौरान कुछ अधिकारियों ने स्पष्ट दिशा-निर्देशों और सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
इस बीच, राज्य की विपक्षी पार्टी सीपीआई(एम) ने घोषणा की है कि वह अपने ‘लाल स्वयंसेवक’ तैनात करेगी।
इस संबंध में राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा कि ये कार्यकर्ता मतदाताओं को कागजी प्रक्रिया में सहायता करेंगे और सत्यापन के दौरान पार्टी एजेंटों की मदद करेंगे, जिससे जमीनी स्तर पर एक तीसरी ताकत खड़ी होगी।
उल्लेखनीय है कि यह एसआईआर प्रक्रिया राज्य में 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक चलेगी।
ज्ञात हो कि हाल ही में पश्चिम बंगाल में एक आत्महत्या का मामला सामने आया जिसमें मृत के परिजनों का कहना था कि एनआरसी के डर से व्यक्ति ने आत्महत्या की। इसको लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया।
उत्तर 24 परगना जिले के अगरपारा स्थित महाजाति नगर में अपने घर पर 28 अक्टूबर को 57 वर्षीय प्रदीप कर फंदे से लटके हुए पाए गए। अगले दिन परिवार के सदस्यों को उनका शव मिला।
उनके परिवार ने बताया कि उन्होंने रात का खाना खाया और सोने चले गए थे। अगली सुबह, वह अपने कमरे में मृत पाए गए। घटनास्थल से बरामद एक डायरी में सुसाइड नोट मिला, जिसमें लिखा था, "एनआरसी मेरी मौत के लिए जिम्मेदार है।"
एनआरसी से जुड़ी रिपोर्टों से प्रदीप बेहद परेशान थे।
दैनिक भास्कर के अनुसार, बैरकपुर के पुलिस आयुक्त मुरलीधर शर्मा ने पुष्टि की कि यह नोट बंगाली में लिखा गया था और इसमें राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का विशेष उल्लेख था।
शर्मा ने कहा, "परिवार ने हमें बताया कि प्रदीप एनआरसी से जुड़ी रिपोर्टों से बेहद परेशान थे। सोमवार को एसआईआर की घोषणा के बाद वह बेचैन लग रहे थे, लेकिन उनके परिवार को लगा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। उन्होंने हमेशा की तरह रात का खाना खाया और सोने चले गए, लेकिन अगली सुबह उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।"
कर की बड़ी बहन ने पत्रकारों को बताया, "मेरा भाई एनआरसी लागू होने से बहुत डरा हुआ था।" न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, वह हमसे कहता था कि एनआरसी के नाम पर उसे उठा लिया जाएगा।
एसआईआर लागू होने से नई चिंताएं पैदा हो गई
यह आत्महत्या चुनाव आयोग द्वारा पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की घोषणा के बमुश्किल 24 घंटे बाद हुई। यह प्रक्रिया, जिसके तहत तुरंत गणना शुरू हो जाती है, बिहार में पहले की एसआईआर के दौरान व्यापक चिंता के बाद दस्तावेज़ सत्यापन को आसान बनाने के लिए शुरू की गई थी।
हालांकि, बंगाल में - जहां एनआरसी जैसी प्रक्रिया की आशंकाएं समय-समय पर सामने आती रही हैं - इस घोषणा ने पुरानी आशंकाओं को फिर से जगा दिया है।
ममता बनर्जी ने भाजपा की "डर की राजनीति" को जिम्मेदार बताया
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तीखी आलोचना की और उस पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विवादास्पद मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने का आरोप लगाया, जिसे उन्होंने "डर की राजनीति" करार दिया।
एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर उन्होंने कहा, "4 महाज्योति नगर, पानीहाटी, खरदाहा (वार्ड नंबर 9) के 57 वर्षीय प्रदीप कर ने आत्महत्या कर ली और अपने एक नोट में लिखा, 'एनआरसी मेरी मौत के लिए जिम्मेदार है।' भाजपा की भय और विभाजन की राजनीति का इससे बड़ा अभियोग और क्या हो सकता है? यह सोचकर ही मैं अंदर तक हिल जाती हूं कि कैसे वर्षों से भाजपा ने एनआरसी के डर से, झूठ फैलाकर, दहशत फैलाकर और वोटों के लिए असुरक्षा को हथियार बनाकर निर्दोष नागरिकों को सताया है। उन्होंने संवैधानिक लोकतंत्र को एक कठोर क़ानून-व्यवस्था में बदल दिया है, जहां लोगों को अपने अस्तित्व के अधिकार पर ही संदेह करने पर मजबूर किया जाता है। यह दुखद मौत भाजपा के ज़हरीले प्रचार का सीधा परिणाम है। दिल्ली में बैठकर राष्ट्रवाद का उपदेश देने वालों ने आम भारतीयों को इतनी निराशा में धकेल दिया है कि वे अपनी ही धरती पर मर रहे हैं, इस डर से कि उन्हें 'विदेशी' घोषित कर दिया जाएगा।"
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फोटो साभार : पीटीआई
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी राज्य की मतदाता सूची के विवादास्पद विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ 4 नवंबर को कोलकाता में एक विरोध मार्च का नेतृत्व करेंगी।
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा राज्य होगा जहां यह विवादास्पद प्रक्रिया लागू की जाएगी।
इस संबंध में, निर्वाचन आयोग ने 28 अक्टूबर से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रव्यापी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू करने की घोषणा की है।
इस सूची में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, गोवा, पुडुचेरी, छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और लक्षद्वीप शामिल हैं। इस प्रक्रिया के तहत लगभग 51 करोड़ मतदाताओं को शामिल किया जाएगा।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में एसआईआर को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की एक साजिश है।
टीएमसी ने इस प्रक्रिया की तुलना राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से की है।
पार्टी ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष भाजपा के नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारियों) को चेतावनी दी है कि यदि वे भाजपा के निर्देशों का पालन नहीं करेंगे, तो उन्हें जेल भेजा जाएगा।
वहीं, भाजपा ने इन आरोपों को खारिज किया है। पार्टी प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारी) पूरी तरह स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
उन्होंने टीएमसी पर यह आरोप लगाया कि वह मतदाता सूची से “मृत मतदाताओं” के नाम हटाने की प्रक्रिया को रोकने की कोशिश कर रही है।
उल्लेखनीय है कि एसआईआर को लेकर लगभग 80,000 बूथ स्तरीय अधिकारियों, जिनमें से कई शिक्षक हैं, ने महीने भर चलने वाली घर-घर सत्यापन प्रक्रिया के दौरान अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। इस चिंता के बाद इस विवाद पर तनाव और बढ़ गया है।
शनिवार 1 नवंबर को आयोजित एक प्रशिक्षण सत्र के दौरान कुछ अधिकारियों ने स्पष्ट दिशा-निर्देशों और सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
इस बीच, राज्य की विपक्षी पार्टी सीपीआई(एम) ने घोषणा की है कि वह अपने ‘लाल स्वयंसेवक’ तैनात करेगी।
इस संबंध में राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा कि ये कार्यकर्ता मतदाताओं को कागजी प्रक्रिया में सहायता करेंगे और सत्यापन के दौरान पार्टी एजेंटों की मदद करेंगे, जिससे जमीनी स्तर पर एक तीसरी ताकत खड़ी होगी।
उल्लेखनीय है कि यह एसआईआर प्रक्रिया राज्य में 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक चलेगी।
ज्ञात हो कि हाल ही में पश्चिम बंगाल में एक आत्महत्या का मामला सामने आया जिसमें मृत के परिजनों का कहना था कि एनआरसी के डर से व्यक्ति ने आत्महत्या की। इसको लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया।
उत्तर 24 परगना जिले के अगरपारा स्थित महाजाति नगर में अपने घर पर 28 अक्टूबर को 57 वर्षीय प्रदीप कर फंदे से लटके हुए पाए गए। अगले दिन परिवार के सदस्यों को उनका शव मिला।
उनके परिवार ने बताया कि उन्होंने रात का खाना खाया और सोने चले गए थे। अगली सुबह, वह अपने कमरे में मृत पाए गए। घटनास्थल से बरामद एक डायरी में सुसाइड नोट मिला, जिसमें लिखा था, "एनआरसी मेरी मौत के लिए जिम्मेदार है।"
एनआरसी से जुड़ी रिपोर्टों से प्रदीप बेहद परेशान थे।
दैनिक भास्कर के अनुसार, बैरकपुर के पुलिस आयुक्त मुरलीधर शर्मा ने पुष्टि की कि यह नोट बंगाली में लिखा गया था और इसमें राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का विशेष उल्लेख था।
शर्मा ने कहा, "परिवार ने हमें बताया कि प्रदीप एनआरसी से जुड़ी रिपोर्टों से बेहद परेशान थे। सोमवार को एसआईआर की घोषणा के बाद वह बेचैन लग रहे थे, लेकिन उनके परिवार को लगा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। उन्होंने हमेशा की तरह रात का खाना खाया और सोने चले गए, लेकिन अगली सुबह उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।"
कर की बड़ी बहन ने पत्रकारों को बताया, "मेरा भाई एनआरसी लागू होने से बहुत डरा हुआ था।" न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, वह हमसे कहता था कि एनआरसी के नाम पर उसे उठा लिया जाएगा।
एसआईआर लागू होने से नई चिंताएं पैदा हो गई
यह आत्महत्या चुनाव आयोग द्वारा पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की घोषणा के बमुश्किल 24 घंटे बाद हुई। यह प्रक्रिया, जिसके तहत तुरंत गणना शुरू हो जाती है, बिहार में पहले की एसआईआर के दौरान व्यापक चिंता के बाद दस्तावेज़ सत्यापन को आसान बनाने के लिए शुरू की गई थी।
हालांकि, बंगाल में - जहां एनआरसी जैसी प्रक्रिया की आशंकाएं समय-समय पर सामने आती रही हैं - इस घोषणा ने पुरानी आशंकाओं को फिर से जगा दिया है।
ममता बनर्जी ने भाजपा की "डर की राजनीति" को जिम्मेदार बताया
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तीखी आलोचना की और उस पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विवादास्पद मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने का आरोप लगाया, जिसे उन्होंने "डर की राजनीति" करार दिया।
एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर उन्होंने कहा, "4 महाज्योति नगर, पानीहाटी, खरदाहा (वार्ड नंबर 9) के 57 वर्षीय प्रदीप कर ने आत्महत्या कर ली और अपने एक नोट में लिखा, 'एनआरसी मेरी मौत के लिए जिम्मेदार है।' भाजपा की भय और विभाजन की राजनीति का इससे बड़ा अभियोग और क्या हो सकता है? यह सोचकर ही मैं अंदर तक हिल जाती हूं कि कैसे वर्षों से भाजपा ने एनआरसी के डर से, झूठ फैलाकर, दहशत फैलाकर और वोटों के लिए असुरक्षा को हथियार बनाकर निर्दोष नागरिकों को सताया है। उन्होंने संवैधानिक लोकतंत्र को एक कठोर क़ानून-व्यवस्था में बदल दिया है, जहां लोगों को अपने अस्तित्व के अधिकार पर ही संदेह करने पर मजबूर किया जाता है। यह दुखद मौत भाजपा के ज़हरीले प्रचार का सीधा परिणाम है। दिल्ली में बैठकर राष्ट्रवाद का उपदेश देने वालों ने आम भारतीयों को इतनी निराशा में धकेल दिया है कि वे अपनी ही धरती पर मर रहे हैं, इस डर से कि उन्हें 'विदेशी' घोषित कर दिया जाएगा।"
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