पश्चिम बंगाल में SIR प्रक्रिया ने लगभग 50 लाख नाम को मतदाता सूची से हटाए जाने के संभावित मामलों के रूप में चिन्हित किया, जिससे मतदाताओं में घबराहट फैल गई। राज्य ने इस घबराहट से जुड़े 39 मौतों को “SIR” से जोड़ा है। TMC सरकार ने प्रभावित निवासियों की मदद के लिए 2 दिसंबर से मुआवजा और ब्लॉक स्तर के ‘मे आई हेल्प यू’ कैंप शुरू करने की घोषणा की है।

4 नवंबर 2025 को शुरू किए गए चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) ने तेजी से डिजिटल फॉर्म के आधार पर मतदाता सूची की जांच आगे बढ़ाई। प्रक्रिया के दौरान जारी ताजा रुझानों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में लगभग 50 लाख नाम ऐसे पाए गए जिन्हें मतदाता सूची से हटाने के संभावना है। यह संख्या सिर्फ 24 घंटों में 46 लाख से बढ़कर 50 लाख हो गई, जिसे अधिकारियों ने रिकॉर्ड के लगातार डिजिटाइजेशन और कैटेगराइजेशन की वजह बताया।
अब तक जिन एंट्रीज़ पर निशान लगाया गया है, उनमें ज्यादातर वे ही मामले हैं जिनकी वजह से आमतौर पर नाम हटाए जाते हैं जैसे मृत मतदाता, पता बदल चुके लोग, जिन्हें ट्रेस नहीं किया जा सका और डुप्लिकेट नाम।
राज्य की वोटर लिस्ट, जिसे आखिरी बार 27 अक्टूबर, 2025 को सर्टिफाइड किया गया था, उसमें 7,66,37,529 रजिस्टर्ड वोटर हैं। इस हिसाब से, 50 लाख का शुरुआती आंकड़ा वोटरों का एक बड़ा हिस्सा है। चुनाव अधिकारियों और मुख्य चुनाव अधिकारी के ऑफिस ने बार-बार जोर दिया है कि यह डिजिटाइजेशन प्रोसेस का एक शुरुआती नतीजा है और इसे प्रशासनिक प्रक्रिया के हिसाब से समझा जाना चाहिए, जिसमें ड्राफ्ट लिस्ट का पब्लिकेशन, नोटिस, सुनवाई और दावों और आपत्तियों का निपटारा और आखिर में ECI की जांच और फाइनल लिस्ट के लिए मंजूरी शामिल है।
ड्राफ्ट लिस्ट 16 दिसंबर, 2025 को पब्लिश होने वाली थी और किसी भी नाम को फाइनल रूप से हटाने से पहले सुनवाई और वेरिफिकेशन होना था।
द न्यूज मिनट के अनुसार, CEO के ऑफिस में काम करने वाले अधिकारियों ने लगभग 50 लाख प्रोविजनल मामलों का ब्यौरा दिया: 23 लाख से ज्यादा मामलों को "मृत" के रूप में, 18 लाख से ज्यादा को "शिफ्टेड" के रूप में और 7 लाख से ज्यादा को "लापता" के रूप में क्लासिफाई किया गया था, बाकी एंट्री डुप्लीकेट या हटाने के दूसरे कारणों से थीं। ये श्रेणियां वैसे तो वही सामान्य प्रशासनिक वजहें हैं जिनके आधार पर आम तौर पर मतदाता सूची से नाम हटाए जाते हैं। लेकिन इस बार लोगों में चिंता इन वजहों से नहीं, बल्कि जिस तेजी और बड़े पैमाने पर नामों को चिन्हित किया जा रहा है, उससे बढ़ी है और इससे आम मतदाताओं, नागरिक समूहों और राजनीतिक दलों सभी में बेचैनी है।
अंतिम आंकड़े उन सुनवाइयों और जांच पर निर्भर करेंगे जो दिसंबर के मध्य से लेकर फरवरी 2026 की शुरुआत तक तय की गई हैं।
कैसे SIR एक सार्वजनिक संकट बन गया
2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह स्पेशल इंटेंसिव रिविजन गैरकानूनी और असंवैधानिक है। उनका कहना है कि इसे जिस पैमाने, समय और तरीके से लागू किया गया है, वह तय चुनावी नियमों का उल्लंघन करता है। इन चुनौतियों के लंबित रहने के बावजूद, मतदाता सूची का संशोधन अपने आप में एक नियमित लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है। राज्य सरकार और चुनाव आयोग - दोनों की यह जिम्मेदारी है कि मतदाता सूची सही और अपडेट रहे ताकि पात्र मतदाता न तो छूटें और न ही उनका नाम एक बार से ज्यादा बार दर्ज हो।
इसके बावजूद, इस बार की पूरी प्रक्रिया के कुछ पहलू - जैसे इसकी तेज रफ्तार, बहुत कम समय सीमा, बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) द्वारा किया गया व्यापक घर-घर सत्यापन और डिजिटाइजेशन में लगे “फ़्लैग” लगभग रियल-टाइम में दिखना - यह सब ऐसे माहौल में हुआ जहां जनता पहले से ही बहुत सतर्क और चिंतित थी। इससे चिंता तेजी से बढ़ी। सोशल मीडिया पर फैलती सूचनाएं, राजनीतिक दलों की कड़ी निगरानी और इधर-उधर से आने वाली अधूरी या गलत जानकारी ने मिलकर लोगों में और भ्रम पैदा किया - खासकर उन नागरिकों में जो पहले से सामाजिक या आर्थिक रूप से कमजोर हैं और "अस्थायी फ़्लैग" का मतलब समझ नहीं पा रहे थे।
कई जिलों में पुलिस और प्रशासनिक रिकॉर्ड में ऐसे लोगों के बयान दर्ज हुए हैं, जिन्होंने बताया कि उन्हें डर है कि कहीं उनका नाम वोटर लिस्ट से न हट जाए या कागजात अधूरे होने की वजह से उन पर कोई कानूनी मुसीबत न आ जाए। मीडिया द्वारा जुटाए गए कई परिवारों के इंटरव्यू बताते हैं कि इस प्रक्रिया ने लोगों में घबराहट और भ्रम पैदा किया। कई मामलों में उनकी पहले से मौजूद कमजोरियां -जैसे बुज़ुर्ग होना, पहचान के नियमित कागजों का न होना, प्रवासी मज़दूर होना या कम पढ़े-लिखे होना -एक साधारण प्रशासनिक नोटिस को भी उनके लिए बड़ी चिंता और तनाव का कारण बना देती थीं। यह घबराहट का पैटर्न नया नहीं है। जब भी बड़े प्रशासनिक अभियान होते हैं और जनता तक सही जानकारी ठीक से नहीं पहुंचती, तो ऐसी ही स्थिति पहले भी देखी गई है। लेकिन इस बार की स्थिति इसलिए अलग थी, क्योंकि हजारों प्रोविजनल डिलीशन (provisional deletions) बहुत तेजी से दिखाई देने लगे और सोशल मीडिया व राजनीतिक दावों के जरिए तरह-तरह की डरावनी बातें कुछ ही घंटों में फैल गईं। The News Minute ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
ग्राउडं पर काम कर रहे कर्मचारियों ने बताया कि उन पर काफी दबाव था और प्रक्रिया की शुरुआत में कुछ BLOs की मौत ने चिंताओं को और गंभीर बना दिया। कर्मचारी संगठनों, स्थानीय अधिकारियों और नागरिक समूहों ने मीडिया को बताया कि इतनी कम समय-सीमा में काम पूरा करने के लिए BLOs पर असाधारण बोझ आ गया था। उन्हें तय डेडलाइन के भीतर घर-घर जाकर जांच पूरी करनी थी - अक्सर सर्वर या ऐप की दिक्कतों के बीच, खराब परिवहन व्यवस्था के साथ, या अस्पष्ट निर्देशों के बावजूद। इस दौरान सामने आईं दुखद मौतों ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए कि क्या इतने बड़े स्तर की प्रक्रिया के लिए पर्याप्त स्टाफ था? क्या कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता मिली? और क्या समय-सीमा इतनी वास्तविक थी कि लोग बिना दबाव के अपना काम सही तरीके से कर सकें?

मौतों की संख्या और सरकार की प्रतिक्रिया
SIR प्रक्रिया के आखिरी हफ्तों में, तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने उन मौतों की सूची तैयार की और सार्वजनिक रूप से पेश की जिनके बारे में उसका दावा है कि वे SIR से पैदा हुई परेशानी के कारण हुईं। TMC का एक प्रतिनिधिमंडल यह सूची लेकर चुनाव आयोग पहुंचा और बार-बार सार्वजनिक बयान दिया कि दर्जनों लोग - जिनमें BLOs और आम नागरिक दोनों शामिल हैं - सीधे या परोक्ष रूप से SIR की वजह से मारे गए। पार्टी के नेताओं ने इन मौतों को “मानवीय संकट” और SIR के लागू होने में “बड़ी प्रशासनिक व राजनीतिक असफलता” बताया। TMC ने अपने विभिन्न ज्ञापनों और प्रेस वार्ताओं में मौतों की संख्या “40” या “39” बताई। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
2 दिसंबर 2025 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की कि 39 लोगों के परिवारों को, जिनकी मौत “SIR” की वजह से हुई बताई गई, 2 लाख रुपये की सहायता दी जाएगी। इसके अलावा, उन लोगों को 1 लाख रुपये दिए जाएंगे जिनकी हालत सत्यापन प्रक्रिया के दौरान बिगड़ी, लेकिन वे बच गए। राज्य सरकार ने इस घोषणा को एक मानवीय कदम बताया ताकि प्रभावित परिवारों के दुख को कुछ कम किया जा सके और यह संदेश दिया जा सके कि SIR प्रक्रिया का उद्देश्य किसी को दंडित करना नहीं है। मुख्यमंत्री और राज्य अधिकारियों ने कहा कि इतनी ज्यादा फैली चिंता और पीड़ा को देखते हुए यह कदम जरूरी था और यह भी कि सरकार प्रभावित परिवारों के साथ खड़ी है।

TMC ने नई दिल्ली में चुनाव आयोग (ECI) के साथ बैठक के दौरान भी मृतकों की सूची सौंपी। इस बैठक में पार्टी नेताओं ने ECI और पश्चिम बंगाल में SIR को लागू करने के उसके तरीके की कड़ी आलोचना की। TMC का आरोप था कि आयोग इस प्रक्रिया से पैदा हुई सामाजिक और भावनात्मक परेशानियों को लेकर असंवेदनशील रहा और पार्टी ने अलग-अलग ज़िलों से सामने आई मौतों और अस्पताल में भर्ती होने के मामलों का हवाला दिया। TMC के विरोध प्रदर्शनों और प्रतिनिधिमंडलों की सक्रियता ने SIR प्रक्रिया के मानवीय प्रभावों पर जनता और मीडिया का ध्यान और ज्यादा केंद्रित कर दिया।

इस बीच, ECI ने कोर्ट में और पब्लिक स्टेटमेंट में आरोपों का जवाब दिया है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के सामने एफिडेविट और सुनवाई में, कमीशन ने बड़े पैमाने पर वोट देने के अधिकार से वंचित करने के दावों को "बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया" बताया और कहा कि SIR एक संवैधानिक रूप से अनिवार्य और पारदर्शी प्रशासनिक प्रक्रिया है जिसका मकसद सही चुनावी लिस्ट बनाए रखना है। ECI ने राजनीतिक पार्टियों को BLOs को डराने-धमकाने के खिलाफ भी चेतावनी दी और इस बात पर जोर दिया कि डिजिटाइज़ेशन के दौरान जिन भी नामों पर सवाल उठाए जाएंगे, उन्हें फाइनल डिलीट करने से पहले नोटिस, सुनवाई और आपत्ति विंडो में उचित प्रक्रिया से गुज़ारा जाएगा।
इन संस्थागत चर्चाओं - यानी TMC के आरोप और चुनाव आयोग (ECI) के जवाब -के साथ-साथ ही राज्य सरकार की राहत घोषणाएं भी सामने आती रहीं। दोनों प्रक्रियाएं समानांतर चलती रहीं।
ECI का क्या कहना है और अदालतों में क्या चल रहा है
सुप्रीम कोर्ट में SIR का बचाव करते हुए चुनाव आयोग (ECI) ने कहा कि सिर्फ डिजिटाइजेशन के दौरान दिख रहे रुझान ही अंतिम रूप से नाम-हटाने का आधार नहीं होते। अंतिम फैसला तभी होगा जब नोटिस, सुनवाई और आपत्तियों के निपटारे जैसी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी हो जाएं। लिखित हलफ़नामों में आयोग ने तर्क दिया कि बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट से नाम हटाने का आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं है और यह राजनीतिक रूप से प्रेरित है। आयोग ने चुनाव कानून में मौजूद प्रक्रिया-संबंधी सुरक्षा उपायों का हवाला भी दिया। सार्वजनिक तौर पर ECI ने राजनीतिक दलों को चेतावनी दी कि वे फील्ड अधिकारियों को डराने-धमकाने की कोशिश न करें और BLOs को बिना किसी रुकावट के अपना काम पूरा करने दें।
इसी दौरान, पश्चिम बंगाल के राजनीतिक प्रतिनिधिमंडलों ने चुनाव आयोग के समक्ष और मीडिया के माध्यम से यह दलील दी कि SIR प्रक्रिया की जल्दबाजी, उसका समय और उसके पीछे माने जा रहे उद्देश्यों से जनता का अविश्वास और गहरा सकता है। उनका कहना था कि पहले से ही ध्रुवीकृत राजनीतिक माहौल में तेजी से चल रही यह सत्यापन प्रक्रिया संवेदनशील समुदायों को असामान्य रूप से प्रभावित कर सकती है, और इसलिए आयोग को अधिक प्रशासनिक संवेदनशीलता दिखाने की आवश्यकता है। कानूनी, प्रशासनिक और राजनीतिक आशंकाओं के बीच उभरते ये तनाव ही 16 दिसंबर 2025 को ड्राफ़्ट मतदाता सूची के प्रकाशन से पहले और बाद के हफ्तों का माहौल निर्धारित करते हैं।
ममता का जनता तक सीधा संपर्क: ‘मे आई हेल्प यू’ कैंप और रैलियां
घबराहट के बढ़ने के मद्देनजर और इसे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के कदम के रूप में पेश करते हुए, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बड़े पैमाने पर जनसंपर्क योजना की घोषणा की। 12 दिसंबर से, राज्य सरकार पश्चिम बंगाल के हर ब्लॉक में “मे आई हेल्प यू” कैंप स्थापित करेगी।
इन कैंपों का उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जिनके नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में चिन्हित किए गए हैं, उन्हें आवश्यक कागजात इकट्ठा करने या सुधारने में मदद करना, दावे और आपत्तियां दर्ज करने की प्रक्रिया में मार्गदर्शन देना और यह सुनिश्चित करना कि केवल कागजात की कमी के कारण कोई भी असली मतदाता सूची से न हटे। ये कैंप नागरिकों को यह भी स्पष्ट और तुरंत भरोसा दिलाने के लिए हैं कि सुनवाई और सत्यापन के दौरान राज्य सक्रिय रूप से उनका समर्थन करेगा।
ममता ने इन घोषणाओं का इस्तेमाल जनसभाओं और जिला दौरों में किया, जहां उन्होंने SIR प्रक्रिया को राजनीतिक रूप से प्रेरित और केंद्र सरकार द्वारा चलाए जाने वाला बताया।

सभाओं में उन्होंने मतदाता सूची संशोधन को “हथियार बनाए जाने” के खिलाफ चेतावनी दी और पार्टी कार्यकर्ताओं तथा स्थानीय अधिकारियों से कहा कि वे ‘मे आई हेल्प यू’ कैंपों में नागरिकों की मदद करें। मुख्यमंत्री के सार्वजनिक भाषणों में प्रशासनिक निर्देश (कैंपों की स्थापना और स्टाफिंग) को राजनीतिक दावों के साथ जोड़ा गया ताकि संवेदनशील निवासियों को भरोसा दिया जा सके और 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक एकजुटता को भी मजबूत किया जा सके।
ममता ने अपने सोशल मीडिया X (पूर्व Twitter) पर भी यह संदेश पोस्ट किया उनके सोशल मीडिया हैंडल से सरकार के फैसले साझा किए गए और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की गई, साथ ही आगे उठाए जा रहे प्रशासनिक कदमों की जानकारी भी दी गई। राज्य और पार्टी के आधिकारिक हैंडल ने जिला स्तर की यात्राओं का शेड्यूल, हेल्पलाइन नंबर और स्थानीय कैंप स्थलों का विवरण भी साझा किया।

हेल्पलाइन, कैंप और राहत योजना की व्यावहारिक बातें
राज्य के अधिकारियों ने "मे आई हेल्प यू" कैंप को तीन हिस्सों वाली मदद बताया, जिसमें नागरिकों को तुरंत सहायता देना (दस्तावेजों की जांच और फॉर्म भरने में मदद); रजिस्टर्ड दावेदारों को सुनवाई की तारीखों और अधिकारों के बारे में बताकर ERO सुनवाई में उनकी मौजूदगी को आसान बनाना; और जहां मौतें या गंभीर स्वास्थ्य गिरावट SIR से होने वाले तनाव से मजबूती से जुड़ी हो, वहां सीमित वित्तीय राहत देना शामिल है।

राज्य सरकार की जानकारी के अनुसार, इन कैंपों में सरकारी कर्मचारियों, स्थानीय स्वास्थ्य और कल्याण अधिकारियों और कुछ स्थानों पर TMC स्वयंसेवकों को लगाया जाएगा। इन कैंपों की सफलता काफी हद तक स्थानीय व्यवस्थाओं पर निर्भर करेगी: ब्लॉक मुख्यालय तक परिवहन, स्टाफ की संख्या, चुनाव अधिकारियों के साथ समन्वय और जनता को समय सीमा और आवश्यक कागजात के बारे में स्पष्ट जानकारी देना।
राज्य सरकार ने कहा कि प्रभावित परिवारों को दिए जाने वाले 2 लाख रुपये के एक्स ग्रैटिया भुगतान को तेजी से और जिला आपदा राहत डेस्क या समकक्ष कल्याण चैनलों के माध्यम से दिया जाएगा। जिन जीवित लोगों की SIR अवधि के दौरान गंभीर बीमारी हुई, उनके लिए अधिकारी ने कहा कि 1 लाख रुपये की सहायता चिकित्सा रिकॉर्ड और परिस्थितियों की जांच के बाद उपलब्ध कराई जाएगी। व्यावहारिक क्रियान्वयन - जैसे कि परिवारों को पैसा कितनी जल्दी मिलेगा, क्या सहायता एकमुश्त दी जाएगी या मौजूदा कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से - अगले हफ्तों में मीडिया और अधिकार समूहों द्वारा बारीकी से देखी जाएगी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में SIR प्रक्रिया एक कठिन प्रशासनिक विरोधाभास को दर्शाती है: मतदाता सूचियां लोकतांत्रिक निष्पक्षता बनाए रखने के लिए सही होनी चाहिए लेकिन उस सटीकता को हासिल करने की प्रक्रिया ऐसे तरीके से लागू होनी चाहिए कि समाज को नुकसान न पहुंचे। लगभग 50 लाख नामों को अस्थायी तौर पर चिन्हित करना एक सार्वजनिक संकट बन गया क्योंकि डिजिटाइजेशन का मशीनरी परिणाम उस सामाजिक हकीकत से टकरा गया जिसमें लाखों नागरिक - जो कुछ बिना दस्तावेज के हैं, कुछ स्थानांतरित हो चुके हैं, कुछ संवेदनशील बने हुए हैं- यह समझ नहीं पा रहे थे कि एक अस्थायी रूप से चिन्हिंत करना उनके कानूनी अधिकारों पर क्या असर डालता है।
पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रभावित परिवारों को दी जाने वाली मुआवजा राशि और ब्लॉक स्तर पर स्थापित “मे आई हेल्प यू” कैंप मानवीय संकट के तत्काल और लक्षित जवाब हैं; वहीं, चुनाव आयोग के अदालत में पेश किए गए हलफ़नामे और प्रक्रिया-संबंधी गारंटियां यह भरोसा देती हैं कि कानूनी सुरक्षा उपाय अभी भी बरकरार हैं। एक साथ ये दोनों हस्तक्षेप जनता का विश्वास बहाल कर पाएंगे या नहीं, यह जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा यानी पारदर्शी सुनवाई, सुलभ हेल्प डेस्क, उचित मामलों में राहत का तेजी में वितरण और अधिकारों व उपायों को स्पष्ट और सरल भाषा में जनता तक पहुंचाने के लिए प्रभावी सूचना अभियान।
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अब तक जिन एंट्रीज़ पर निशान लगाया गया है, उनमें ज्यादातर वे ही मामले हैं जिनकी वजह से आमतौर पर नाम हटाए जाते हैं जैसे मृत मतदाता, पता बदल चुके लोग, जिन्हें ट्रेस नहीं किया जा सका और डुप्लिकेट नाम।
राज्य की वोटर लिस्ट, जिसे आखिरी बार 27 अक्टूबर, 2025 को सर्टिफाइड किया गया था, उसमें 7,66,37,529 रजिस्टर्ड वोटर हैं। इस हिसाब से, 50 लाख का शुरुआती आंकड़ा वोटरों का एक बड़ा हिस्सा है। चुनाव अधिकारियों और मुख्य चुनाव अधिकारी के ऑफिस ने बार-बार जोर दिया है कि यह डिजिटाइजेशन प्रोसेस का एक शुरुआती नतीजा है और इसे प्रशासनिक प्रक्रिया के हिसाब से समझा जाना चाहिए, जिसमें ड्राफ्ट लिस्ट का पब्लिकेशन, नोटिस, सुनवाई और दावों और आपत्तियों का निपटारा और आखिर में ECI की जांच और फाइनल लिस्ट के लिए मंजूरी शामिल है।
ड्राफ्ट लिस्ट 16 दिसंबर, 2025 को पब्लिश होने वाली थी और किसी भी नाम को फाइनल रूप से हटाने से पहले सुनवाई और वेरिफिकेशन होना था।
द न्यूज मिनट के अनुसार, CEO के ऑफिस में काम करने वाले अधिकारियों ने लगभग 50 लाख प्रोविजनल मामलों का ब्यौरा दिया: 23 लाख से ज्यादा मामलों को "मृत" के रूप में, 18 लाख से ज्यादा को "शिफ्टेड" के रूप में और 7 लाख से ज्यादा को "लापता" के रूप में क्लासिफाई किया गया था, बाकी एंट्री डुप्लीकेट या हटाने के दूसरे कारणों से थीं। ये श्रेणियां वैसे तो वही सामान्य प्रशासनिक वजहें हैं जिनके आधार पर आम तौर पर मतदाता सूची से नाम हटाए जाते हैं। लेकिन इस बार लोगों में चिंता इन वजहों से नहीं, बल्कि जिस तेजी और बड़े पैमाने पर नामों को चिन्हित किया जा रहा है, उससे बढ़ी है और इससे आम मतदाताओं, नागरिक समूहों और राजनीतिक दलों सभी में बेचैनी है।
अंतिम आंकड़े उन सुनवाइयों और जांच पर निर्भर करेंगे जो दिसंबर के मध्य से लेकर फरवरी 2026 की शुरुआत तक तय की गई हैं।
कैसे SIR एक सार्वजनिक संकट बन गया
2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह स्पेशल इंटेंसिव रिविजन गैरकानूनी और असंवैधानिक है। उनका कहना है कि इसे जिस पैमाने, समय और तरीके से लागू किया गया है, वह तय चुनावी नियमों का उल्लंघन करता है। इन चुनौतियों के लंबित रहने के बावजूद, मतदाता सूची का संशोधन अपने आप में एक नियमित लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है। राज्य सरकार और चुनाव आयोग - दोनों की यह जिम्मेदारी है कि मतदाता सूची सही और अपडेट रहे ताकि पात्र मतदाता न तो छूटें और न ही उनका नाम एक बार से ज्यादा बार दर्ज हो।
इसके बावजूद, इस बार की पूरी प्रक्रिया के कुछ पहलू - जैसे इसकी तेज रफ्तार, बहुत कम समय सीमा, बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) द्वारा किया गया व्यापक घर-घर सत्यापन और डिजिटाइजेशन में लगे “फ़्लैग” लगभग रियल-टाइम में दिखना - यह सब ऐसे माहौल में हुआ जहां जनता पहले से ही बहुत सतर्क और चिंतित थी। इससे चिंता तेजी से बढ़ी। सोशल मीडिया पर फैलती सूचनाएं, राजनीतिक दलों की कड़ी निगरानी और इधर-उधर से आने वाली अधूरी या गलत जानकारी ने मिलकर लोगों में और भ्रम पैदा किया - खासकर उन नागरिकों में जो पहले से सामाजिक या आर्थिक रूप से कमजोर हैं और "अस्थायी फ़्लैग" का मतलब समझ नहीं पा रहे थे।
कई जिलों में पुलिस और प्रशासनिक रिकॉर्ड में ऐसे लोगों के बयान दर्ज हुए हैं, जिन्होंने बताया कि उन्हें डर है कि कहीं उनका नाम वोटर लिस्ट से न हट जाए या कागजात अधूरे होने की वजह से उन पर कोई कानूनी मुसीबत न आ जाए। मीडिया द्वारा जुटाए गए कई परिवारों के इंटरव्यू बताते हैं कि इस प्रक्रिया ने लोगों में घबराहट और भ्रम पैदा किया। कई मामलों में उनकी पहले से मौजूद कमजोरियां -जैसे बुज़ुर्ग होना, पहचान के नियमित कागजों का न होना, प्रवासी मज़दूर होना या कम पढ़े-लिखे होना -एक साधारण प्रशासनिक नोटिस को भी उनके लिए बड़ी चिंता और तनाव का कारण बना देती थीं। यह घबराहट का पैटर्न नया नहीं है। जब भी बड़े प्रशासनिक अभियान होते हैं और जनता तक सही जानकारी ठीक से नहीं पहुंचती, तो ऐसी ही स्थिति पहले भी देखी गई है। लेकिन इस बार की स्थिति इसलिए अलग थी, क्योंकि हजारों प्रोविजनल डिलीशन (provisional deletions) बहुत तेजी से दिखाई देने लगे और सोशल मीडिया व राजनीतिक दावों के जरिए तरह-तरह की डरावनी बातें कुछ ही घंटों में फैल गईं। The News Minute ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
ग्राउडं पर काम कर रहे कर्मचारियों ने बताया कि उन पर काफी दबाव था और प्रक्रिया की शुरुआत में कुछ BLOs की मौत ने चिंताओं को और गंभीर बना दिया। कर्मचारी संगठनों, स्थानीय अधिकारियों और नागरिक समूहों ने मीडिया को बताया कि इतनी कम समय-सीमा में काम पूरा करने के लिए BLOs पर असाधारण बोझ आ गया था। उन्हें तय डेडलाइन के भीतर घर-घर जाकर जांच पूरी करनी थी - अक्सर सर्वर या ऐप की दिक्कतों के बीच, खराब परिवहन व्यवस्था के साथ, या अस्पष्ट निर्देशों के बावजूद। इस दौरान सामने आईं दुखद मौतों ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए कि क्या इतने बड़े स्तर की प्रक्रिया के लिए पर्याप्त स्टाफ था? क्या कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता मिली? और क्या समय-सीमा इतनी वास्तविक थी कि लोग बिना दबाव के अपना काम सही तरीके से कर सकें?

मौतों की संख्या और सरकार की प्रतिक्रिया
SIR प्रक्रिया के आखिरी हफ्तों में, तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने उन मौतों की सूची तैयार की और सार्वजनिक रूप से पेश की जिनके बारे में उसका दावा है कि वे SIR से पैदा हुई परेशानी के कारण हुईं। TMC का एक प्रतिनिधिमंडल यह सूची लेकर चुनाव आयोग पहुंचा और बार-बार सार्वजनिक बयान दिया कि दर्जनों लोग - जिनमें BLOs और आम नागरिक दोनों शामिल हैं - सीधे या परोक्ष रूप से SIR की वजह से मारे गए। पार्टी के नेताओं ने इन मौतों को “मानवीय संकट” और SIR के लागू होने में “बड़ी प्रशासनिक व राजनीतिक असफलता” बताया। TMC ने अपने विभिन्न ज्ञापनों और प्रेस वार्ताओं में मौतों की संख्या “40” या “39” बताई। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
2 दिसंबर 2025 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की कि 39 लोगों के परिवारों को, जिनकी मौत “SIR” की वजह से हुई बताई गई, 2 लाख रुपये की सहायता दी जाएगी। इसके अलावा, उन लोगों को 1 लाख रुपये दिए जाएंगे जिनकी हालत सत्यापन प्रक्रिया के दौरान बिगड़ी, लेकिन वे बच गए। राज्य सरकार ने इस घोषणा को एक मानवीय कदम बताया ताकि प्रभावित परिवारों के दुख को कुछ कम किया जा सके और यह संदेश दिया जा सके कि SIR प्रक्रिया का उद्देश्य किसी को दंडित करना नहीं है। मुख्यमंत्री और राज्य अधिकारियों ने कहा कि इतनी ज्यादा फैली चिंता और पीड़ा को देखते हुए यह कदम जरूरी था और यह भी कि सरकार प्रभावित परिवारों के साथ खड़ी है।

TMC ने नई दिल्ली में चुनाव आयोग (ECI) के साथ बैठक के दौरान भी मृतकों की सूची सौंपी। इस बैठक में पार्टी नेताओं ने ECI और पश्चिम बंगाल में SIR को लागू करने के उसके तरीके की कड़ी आलोचना की। TMC का आरोप था कि आयोग इस प्रक्रिया से पैदा हुई सामाजिक और भावनात्मक परेशानियों को लेकर असंवेदनशील रहा और पार्टी ने अलग-अलग ज़िलों से सामने आई मौतों और अस्पताल में भर्ती होने के मामलों का हवाला दिया। TMC के विरोध प्रदर्शनों और प्रतिनिधिमंडलों की सक्रियता ने SIR प्रक्रिया के मानवीय प्रभावों पर जनता और मीडिया का ध्यान और ज्यादा केंद्रित कर दिया।

इस बीच, ECI ने कोर्ट में और पब्लिक स्टेटमेंट में आरोपों का जवाब दिया है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के सामने एफिडेविट और सुनवाई में, कमीशन ने बड़े पैमाने पर वोट देने के अधिकार से वंचित करने के दावों को "बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया" बताया और कहा कि SIR एक संवैधानिक रूप से अनिवार्य और पारदर्शी प्रशासनिक प्रक्रिया है जिसका मकसद सही चुनावी लिस्ट बनाए रखना है। ECI ने राजनीतिक पार्टियों को BLOs को डराने-धमकाने के खिलाफ भी चेतावनी दी और इस बात पर जोर दिया कि डिजिटाइज़ेशन के दौरान जिन भी नामों पर सवाल उठाए जाएंगे, उन्हें फाइनल डिलीट करने से पहले नोटिस, सुनवाई और आपत्ति विंडो में उचित प्रक्रिया से गुज़ारा जाएगा।
इन संस्थागत चर्चाओं - यानी TMC के आरोप और चुनाव आयोग (ECI) के जवाब -के साथ-साथ ही राज्य सरकार की राहत घोषणाएं भी सामने आती रहीं। दोनों प्रक्रियाएं समानांतर चलती रहीं।
ECI का क्या कहना है और अदालतों में क्या चल रहा है
सुप्रीम कोर्ट में SIR का बचाव करते हुए चुनाव आयोग (ECI) ने कहा कि सिर्फ डिजिटाइजेशन के दौरान दिख रहे रुझान ही अंतिम रूप से नाम-हटाने का आधार नहीं होते। अंतिम फैसला तभी होगा जब नोटिस, सुनवाई और आपत्तियों के निपटारे जैसी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी हो जाएं। लिखित हलफ़नामों में आयोग ने तर्क दिया कि बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट से नाम हटाने का आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं है और यह राजनीतिक रूप से प्रेरित है। आयोग ने चुनाव कानून में मौजूद प्रक्रिया-संबंधी सुरक्षा उपायों का हवाला भी दिया। सार्वजनिक तौर पर ECI ने राजनीतिक दलों को चेतावनी दी कि वे फील्ड अधिकारियों को डराने-धमकाने की कोशिश न करें और BLOs को बिना किसी रुकावट के अपना काम पूरा करने दें।
इसी दौरान, पश्चिम बंगाल के राजनीतिक प्रतिनिधिमंडलों ने चुनाव आयोग के समक्ष और मीडिया के माध्यम से यह दलील दी कि SIR प्रक्रिया की जल्दबाजी, उसका समय और उसके पीछे माने जा रहे उद्देश्यों से जनता का अविश्वास और गहरा सकता है। उनका कहना था कि पहले से ही ध्रुवीकृत राजनीतिक माहौल में तेजी से चल रही यह सत्यापन प्रक्रिया संवेदनशील समुदायों को असामान्य रूप से प्रभावित कर सकती है, और इसलिए आयोग को अधिक प्रशासनिक संवेदनशीलता दिखाने की आवश्यकता है। कानूनी, प्रशासनिक और राजनीतिक आशंकाओं के बीच उभरते ये तनाव ही 16 दिसंबर 2025 को ड्राफ़्ट मतदाता सूची के प्रकाशन से पहले और बाद के हफ्तों का माहौल निर्धारित करते हैं।
ममता का जनता तक सीधा संपर्क: ‘मे आई हेल्प यू’ कैंप और रैलियां
घबराहट के बढ़ने के मद्देनजर और इसे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के कदम के रूप में पेश करते हुए, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बड़े पैमाने पर जनसंपर्क योजना की घोषणा की। 12 दिसंबर से, राज्य सरकार पश्चिम बंगाल के हर ब्लॉक में “मे आई हेल्प यू” कैंप स्थापित करेगी।
इन कैंपों का उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जिनके नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में चिन्हित किए गए हैं, उन्हें आवश्यक कागजात इकट्ठा करने या सुधारने में मदद करना, दावे और आपत्तियां दर्ज करने की प्रक्रिया में मार्गदर्शन देना और यह सुनिश्चित करना कि केवल कागजात की कमी के कारण कोई भी असली मतदाता सूची से न हटे। ये कैंप नागरिकों को यह भी स्पष्ट और तुरंत भरोसा दिलाने के लिए हैं कि सुनवाई और सत्यापन के दौरान राज्य सक्रिय रूप से उनका समर्थन करेगा।
ममता ने इन घोषणाओं का इस्तेमाल जनसभाओं और जिला दौरों में किया, जहां उन्होंने SIR प्रक्रिया को राजनीतिक रूप से प्रेरित और केंद्र सरकार द्वारा चलाए जाने वाला बताया।

सभाओं में उन्होंने मतदाता सूची संशोधन को “हथियार बनाए जाने” के खिलाफ चेतावनी दी और पार्टी कार्यकर्ताओं तथा स्थानीय अधिकारियों से कहा कि वे ‘मे आई हेल्प यू’ कैंपों में नागरिकों की मदद करें। मुख्यमंत्री के सार्वजनिक भाषणों में प्रशासनिक निर्देश (कैंपों की स्थापना और स्टाफिंग) को राजनीतिक दावों के साथ जोड़ा गया ताकि संवेदनशील निवासियों को भरोसा दिया जा सके और 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक एकजुटता को भी मजबूत किया जा सके।
ममता ने अपने सोशल मीडिया X (पूर्व Twitter) पर भी यह संदेश पोस्ट किया उनके सोशल मीडिया हैंडल से सरकार के फैसले साझा किए गए और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की गई, साथ ही आगे उठाए जा रहे प्रशासनिक कदमों की जानकारी भी दी गई। राज्य और पार्टी के आधिकारिक हैंडल ने जिला स्तर की यात्राओं का शेड्यूल, हेल्पलाइन नंबर और स्थानीय कैंप स्थलों का विवरण भी साझा किया।

हेल्पलाइन, कैंप और राहत योजना की व्यावहारिक बातें
राज्य के अधिकारियों ने "मे आई हेल्प यू" कैंप को तीन हिस्सों वाली मदद बताया, जिसमें नागरिकों को तुरंत सहायता देना (दस्तावेजों की जांच और फॉर्म भरने में मदद); रजिस्टर्ड दावेदारों को सुनवाई की तारीखों और अधिकारों के बारे में बताकर ERO सुनवाई में उनकी मौजूदगी को आसान बनाना; और जहां मौतें या गंभीर स्वास्थ्य गिरावट SIR से होने वाले तनाव से मजबूती से जुड़ी हो, वहां सीमित वित्तीय राहत देना शामिल है।

राज्य सरकार की जानकारी के अनुसार, इन कैंपों में सरकारी कर्मचारियों, स्थानीय स्वास्थ्य और कल्याण अधिकारियों और कुछ स्थानों पर TMC स्वयंसेवकों को लगाया जाएगा। इन कैंपों की सफलता काफी हद तक स्थानीय व्यवस्थाओं पर निर्भर करेगी: ब्लॉक मुख्यालय तक परिवहन, स्टाफ की संख्या, चुनाव अधिकारियों के साथ समन्वय और जनता को समय सीमा और आवश्यक कागजात के बारे में स्पष्ट जानकारी देना।
राज्य सरकार ने कहा कि प्रभावित परिवारों को दिए जाने वाले 2 लाख रुपये के एक्स ग्रैटिया भुगतान को तेजी से और जिला आपदा राहत डेस्क या समकक्ष कल्याण चैनलों के माध्यम से दिया जाएगा। जिन जीवित लोगों की SIR अवधि के दौरान गंभीर बीमारी हुई, उनके लिए अधिकारी ने कहा कि 1 लाख रुपये की सहायता चिकित्सा रिकॉर्ड और परिस्थितियों की जांच के बाद उपलब्ध कराई जाएगी। व्यावहारिक क्रियान्वयन - जैसे कि परिवारों को पैसा कितनी जल्दी मिलेगा, क्या सहायता एकमुश्त दी जाएगी या मौजूदा कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से - अगले हफ्तों में मीडिया और अधिकार समूहों द्वारा बारीकी से देखी जाएगी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया।
इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में SIR प्रक्रिया एक कठिन प्रशासनिक विरोधाभास को दर्शाती है: मतदाता सूचियां लोकतांत्रिक निष्पक्षता बनाए रखने के लिए सही होनी चाहिए लेकिन उस सटीकता को हासिल करने की प्रक्रिया ऐसे तरीके से लागू होनी चाहिए कि समाज को नुकसान न पहुंचे। लगभग 50 लाख नामों को अस्थायी तौर पर चिन्हित करना एक सार्वजनिक संकट बन गया क्योंकि डिजिटाइजेशन का मशीनरी परिणाम उस सामाजिक हकीकत से टकरा गया जिसमें लाखों नागरिक - जो कुछ बिना दस्तावेज के हैं, कुछ स्थानांतरित हो चुके हैं, कुछ संवेदनशील बने हुए हैं- यह समझ नहीं पा रहे थे कि एक अस्थायी रूप से चिन्हिंत करना उनके कानूनी अधिकारों पर क्या असर डालता है।
पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रभावित परिवारों को दी जाने वाली मुआवजा राशि और ब्लॉक स्तर पर स्थापित “मे आई हेल्प यू” कैंप मानवीय संकट के तत्काल और लक्षित जवाब हैं; वहीं, चुनाव आयोग के अदालत में पेश किए गए हलफ़नामे और प्रक्रिया-संबंधी गारंटियां यह भरोसा देती हैं कि कानूनी सुरक्षा उपाय अभी भी बरकरार हैं। एक साथ ये दोनों हस्तक्षेप जनता का विश्वास बहाल कर पाएंगे या नहीं, यह जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा यानी पारदर्शी सुनवाई, सुलभ हेल्प डेस्क, उचित मामलों में राहत का तेजी में वितरण और अधिकारों व उपायों को स्पष्ट और सरल भाषा में जनता तक पहुंचाने के लिए प्रभावी सूचना अभियान।
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