बेंगलुरु के पूर्व पुलिस आयुक्त और भाजपा नेता भास्कर राव ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर वकील राकेश किशोर द्वारा जूता फेंकने की घटना की पहले प्रशंसा की और जब विरोध बढ़ा तो माफी मांग ली।

बेंगलुरु के पूर्व पुलिस आयुक्त और भाजपा नेता भास्कर राव ने वकील राकेश किशोर द्वारा मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई पर किए गए हमले की सराहना कर विवाद खड़ा कर दिया।
द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व आईपीएस अधिकारी और भाजपा नेता भास्कर राव ने राकेश किशोर का जिक्र करते हुए कहा, "भले ही यह कानूनी रूप से गलत और गंभीर हो, लेकिन इस उम्र में बिना परिणामों की परवाह किए जो स्टैंड आपने लिया और जिस रास्ते पर चलने का साहस दिखाया, मैं उसकी प्रशंसा करता हूं।"
ज्ञात हो कि भास्कर राव ने 2023 में आम आदमी पार्टी (आप) से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को थामा था। राव 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और उन्होंने 2019 से 2020 के बीच बेंगलुरु पुलिस आयुक्त के रूप में सेवा दी थी। उन्होंने 2021 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया और इसके बाद 2022 में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे।
लेकिन पार्टी में शामिल होने के एक साल से भी कम समय में उन्होंने 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बयान को लेकर आलोचनाओं के बाद राव ने बुधवार 8 अक्टूबर को माफी मांग ली।
राव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मेरी प्रतिक्रिया स्तब्ध और सदमे से भरी थी कि एक व्यक्ति, इतना शिक्षित और वृद्ध होने के बावजूद, एक भयानक और कानूनी रूप से गलत कार्य के परिणामों को पूरी तरह से जानते हुए ऐसा कृत्य कर रहा है। मैंने न तो सर्वोच्च न्यायालय, न ही मुख्य न्यायाधीश या किसी समुदाय का अपमान किया है। अगर मेरे ट्वीट से किसी को ठेस पहुंची है या कोई नाराज हुआ है, तो मुझे खेद है।”
ज्ञात हो कि 6 अक्टूबर को वकील राकेश किशोर ने सुप्रीम कोर्ट के भीतर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर हमला करने का प्रयास किया था। इस घटना के बाद देशभर में व्यापक आक्रोश फैल गया। विभिन्न राजनीतिक दलों के कई नेताओं ने इस हमले की निंदा की, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि इसे जाति-आधारित उद्देश्यों से प्रेरित माना गया। मालूम हो कि सीजेआई गवई दलित समुदाय से आते हैं।
इस घटना के तुरंत बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने वकील राकेश किशोर की सदस्यता को निलंबित कर दिया।
द वायर ने लिखा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा द्वारा जारी एक पत्र में कहा गया कि राकेश किशोर का आचरण न केवल व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के स्थापित मानकों के खिलाफ था, बल्कि इससे न्यायालय की गरिमा भी प्रभावित हुई। निलंबन की अवधि के दौरान किशोर को भारत के किसी भी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकरण में उपस्थित होने, कार्य करने, पैरवी करने या वकालत करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
इस बीच, वकील राकेश किशोर अपने कृत्य को लेकर अडिग हैं। उन्होंने दावा किया कि यह कार्रवाई उनकी निजी इच्छा से नहीं, बल्कि "ईश्वरीय हस्तक्षेप" से प्रेरित थी। किशोर ने कहा, “मुझे कोई पछतावा नहीं है, मैंने वही किया जो सही था। मैंने सभी परिणामों पर विचार किया था—यहां तक कि मुझे जेल जाना पड़ सकता है, वहां कष्ट सहना पड़ सकता है... लेकिन यह सब मैंने ईश्वर के नाम पर किया, क्योंकि ईश्वर मुझे ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे थे।”
किशोर कथित तौर पर मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़ी एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की हालिया टिप्पणी से नाराज थे।
इस जनहित याचिका में खजुराहो के एक धरोहर स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग की गई थी। इसे "पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन" (पीआईएल) बताते हुए जस्टिस गवई ने कहा था, "जाओ और खुद भगवान से कुछ करने के लिए कहो। यदि आप भगवान विष्णु के प्रबल भक्त हैं, तो प्रार्थना और ध्यान करें।"
इसके अलावा, किशोर सीजेआई गवई द्वारा मॉरीशस में "बुलडोजर न्याय" के खिलाफ की गई टिप्पणी से भी नाराज थे।
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में राकेश किशोर ने कहा, “मुख्य न्यायाधीश को यह सोचना चाहिए कि इतने ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठने वाले को ‘माईलॉर्ड’ शब्द का सही अर्थ पता होना चाहिए और उसे अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए। आप मॉरीशस जाकर कहें कि देश बुलडोजर से नहीं चलेगा। मैं मुख्य न्यायाधीश और मेरे विरोधियों से पूछता हूं: क्या योगी आदित्यनाथ जी द्वारा सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ बुलडोजर चलाना गलत है? मैं आहत हूं और हमेशा रहूंगा।”
ज्ञात हो कि इस महीने की शुरुआत में मॉरीशस में आयोजित "सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन" विषय पर सर मौरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025 में जस्टिस बीआर गवई ने दोहराया कि भारत की न्याय व्यवस्था कानून के शासन से संचालित होती है, न कि "बुलडोजर के शासन" से। उन्होंने अपने ही एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें "बुलडोजर न्याय" की निंदा की गई थी।
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द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व आईपीएस अधिकारी और भाजपा नेता भास्कर राव ने राकेश किशोर का जिक्र करते हुए कहा, "भले ही यह कानूनी रूप से गलत और गंभीर हो, लेकिन इस उम्र में बिना परिणामों की परवाह किए जो स्टैंड आपने लिया और जिस रास्ते पर चलने का साहस दिखाया, मैं उसकी प्रशंसा करता हूं।"
ज्ञात हो कि भास्कर राव ने 2023 में आम आदमी पार्टी (आप) से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को थामा था। राव 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और उन्होंने 2019 से 2020 के बीच बेंगलुरु पुलिस आयुक्त के रूप में सेवा दी थी। उन्होंने 2021 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया और इसके बाद 2022 में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे।
लेकिन पार्टी में शामिल होने के एक साल से भी कम समय में उन्होंने 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बयान को लेकर आलोचनाओं के बाद राव ने बुधवार 8 अक्टूबर को माफी मांग ली।
राव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मेरी प्रतिक्रिया स्तब्ध और सदमे से भरी थी कि एक व्यक्ति, इतना शिक्षित और वृद्ध होने के बावजूद, एक भयानक और कानूनी रूप से गलत कार्य के परिणामों को पूरी तरह से जानते हुए ऐसा कृत्य कर रहा है। मैंने न तो सर्वोच्च न्यायालय, न ही मुख्य न्यायाधीश या किसी समुदाय का अपमान किया है। अगर मेरे ट्वीट से किसी को ठेस पहुंची है या कोई नाराज हुआ है, तो मुझे खेद है।”
ज्ञात हो कि 6 अक्टूबर को वकील राकेश किशोर ने सुप्रीम कोर्ट के भीतर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर हमला करने का प्रयास किया था। इस घटना के बाद देशभर में व्यापक आक्रोश फैल गया। विभिन्न राजनीतिक दलों के कई नेताओं ने इस हमले की निंदा की, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि इसे जाति-आधारित उद्देश्यों से प्रेरित माना गया। मालूम हो कि सीजेआई गवई दलित समुदाय से आते हैं।
इस घटना के तुरंत बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने वकील राकेश किशोर की सदस्यता को निलंबित कर दिया।
द वायर ने लिखा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा द्वारा जारी एक पत्र में कहा गया कि राकेश किशोर का आचरण न केवल व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के स्थापित मानकों के खिलाफ था, बल्कि इससे न्यायालय की गरिमा भी प्रभावित हुई। निलंबन की अवधि के दौरान किशोर को भारत के किसी भी न्यायालय, अधिकरण या प्राधिकरण में उपस्थित होने, कार्य करने, पैरवी करने या वकालत करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
इस बीच, वकील राकेश किशोर अपने कृत्य को लेकर अडिग हैं। उन्होंने दावा किया कि यह कार्रवाई उनकी निजी इच्छा से नहीं, बल्कि "ईश्वरीय हस्तक्षेप" से प्रेरित थी। किशोर ने कहा, “मुझे कोई पछतावा नहीं है, मैंने वही किया जो सही था। मैंने सभी परिणामों पर विचार किया था—यहां तक कि मुझे जेल जाना पड़ सकता है, वहां कष्ट सहना पड़ सकता है... लेकिन यह सब मैंने ईश्वर के नाम पर किया, क्योंकि ईश्वर मुझे ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे थे।”
किशोर कथित तौर पर मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़ी एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की हालिया टिप्पणी से नाराज थे।
इस जनहित याचिका में खजुराहो के एक धरोहर स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग की गई थी। इसे "पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन" (पीआईएल) बताते हुए जस्टिस गवई ने कहा था, "जाओ और खुद भगवान से कुछ करने के लिए कहो। यदि आप भगवान विष्णु के प्रबल भक्त हैं, तो प्रार्थना और ध्यान करें।"
इसके अलावा, किशोर सीजेआई गवई द्वारा मॉरीशस में "बुलडोजर न्याय" के खिलाफ की गई टिप्पणी से भी नाराज थे।
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में राकेश किशोर ने कहा, “मुख्य न्यायाधीश को यह सोचना चाहिए कि इतने ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठने वाले को ‘माईलॉर्ड’ शब्द का सही अर्थ पता होना चाहिए और उसे अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए। आप मॉरीशस जाकर कहें कि देश बुलडोजर से नहीं चलेगा। मैं मुख्य न्यायाधीश और मेरे विरोधियों से पूछता हूं: क्या योगी आदित्यनाथ जी द्वारा सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ बुलडोजर चलाना गलत है? मैं आहत हूं और हमेशा रहूंगा।”
ज्ञात हो कि इस महीने की शुरुआत में मॉरीशस में आयोजित "सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन" विषय पर सर मौरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025 में जस्टिस बीआर गवई ने दोहराया कि भारत की न्याय व्यवस्था कानून के शासन से संचालित होती है, न कि "बुलडोजर के शासन" से। उन्होंने अपने ही एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें "बुलडोजर न्याय" की निंदा की गई थी।
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