सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: कैंपस में जातिगत भेदभाव रोकने के लिए UGC को 8 हफ्ते में सख्त नियम तैयार करने होंगे!

Written by sabrang india | Published on: September 17, 2025
सुप्रीम कोर्ट 2019 में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिसे रोहित वेमुला और पायल ताडवी की मां ने दायर किया था। दोनों छात्र वंचित समुदायों से थे और कथित जातिगत उत्पीड़न का सामना करने के बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।


साभार : द मूकनायक

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रोहित वेमुला और पायल ताडवी मामलों की सुनवाई के दौरान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को निर्देश दिया कि वह उच्च शिक्षण संस्थानों में उत्पीड़न और भेदभाव को रोकने के लिए तैयार किए जा रहे नए नियमों में जातिगत भेदभाव की रोकथाम के लिए प्रभावी सुरक्षा उपायों पर विचार करे।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमल्या बागची की पीठ ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को आदेश दिया है कि वह आगामी आठ सप्ताह (लगभग दो महीने) के भीतर प्रस्तावित विनियमों को अंतिम रूप दे। सुप्रीम कोर्ट यह सुनवाई 2019 में दायर उस जनहित याचिका पर कर रही थी, जिसे रोहित वेमुला और पायल ताडवी की मां ने दायर किया था। दोनों छात्र हाशिए पर स्थित समुदायों से थे और कथित जातिगत उत्पीड़न के चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।

अपीलकर्ताओं की सहायक अधिवक्ता दिशा वाडेकर ने 'द मूकनायक' से बातचीत में बताया कि "अदालत ने आज दिए गए आदेश में हमारे सभी सुझाव दर्ज किए हैं और UGC को निर्देश दिया है कि वह उन्हें शामिल करते हुए 'इक्विटी इन हायर एजुकेशन रेगुलेशंस, 2025' को आठ सप्ताह के भीतर अधिसूचित करे।" इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने पैरवी की।

याचिका में 2012 के यूजीसी विनियमों के सख्ती से पालन की मांग की गई थी, साथ ही विश्वविद्यालय परिसरों में जातिगत भेदभाव से निपटने के लिए ठोस और विशिष्ट उपायों को लागू करने की भी अपील की गई थी। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि यूजीसी ने ऐसे मुद्दों के समाधान के लिए पहले ही मसौदा विनियम प्रकाशित कर दिए हैं और उन्हें इस पर कुल 391 सुझाव प्राप्त हुए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इन सुझावों की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है, जिसकी रिपोर्ट पर यूजीसी सक्रियता से विचार कर रहा है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने अदालत से आग्रह किया कि इस मामले को अनिश्चितकाल के लिए लंबित न रखा जाए। उन्होंने कहा, "यह याचिका 2019 में दायर की गई थी। तब से बहुत समय बीत चुका है और इस दौरान कई छात्रों ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया है।" जयसिंह ने यह भी रेखांकित किया कि जहां पूर्व के कई न्यायिक फैसलों में भेदभाव को सामान्य रूप से संबोधित किया गया, यह मामला विशेष रूप से जातिगत भेदभाव से जुड़ा है।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा प्रस्तुत लिखित नोट में दस प्रमुख बिंदुओं का सारांश दिया गया है, जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इनमें भेदभावपूर्ण प्रथाओं पर स्पष्ट प्रतिबंध, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श की व्यवस्था और संस्थानों में सामाजिक ऑडिट जैसे उपाय शामिल हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने अदालत से अनुरोध किया कि वह इस प्रक्रिया के लिए एक निर्धारित समयसीमा तय करे। पीठ ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए आश्वस्त किया कि प्रक्रिया को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रहने दिया जाएगा। साथ ही, जयसिंह ने यह भी मांग की कि जातिगत भेदभाव के मुद्दे को न्यायिक निर्धारण के लिए खुला रखा जाए।

अदालत ने निर्देश दिया कि वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा प्रस्तुत सुझावों वाला नोट, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के साथ विचार के लिए भेजा जाए। इस नोट में कुल दस प्रमुख सिफारिशें शामिल हैं, जिनमें निम्नलिखित बिंदु प्रमुख हैं: सभी ज्ञात भेदभावपूर्ण प्रथाओं पर स्पष्ट प्रतिबंध, छात्रावासों और कक्षाओं में जाति के आधार पर अलगाव पर सख्त रोक। शिकायत निवारण समितियों में कम से कम 50% सदस्य SC/ST/OBC समुदायों से हों। शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी तंत्र का निर्माण। जातिगत भेदभाव से जुड़ी शिकायतों में लापरवाही बरतने वाले स्टाफ की व्यक्तिगत जवाबदेही तय की जाए। नियमों का पालन न करने वाले संस्थानों के लिए सख्त दंड, जैसे अनुदान या वित्तीय सहायता वापस लेना।

अदालत ने कहा कि उसे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अंतिम निर्णय लेने से पूर्व इंदिरा जयसिंह के सुझावों सहित अन्य सभी हितधारकों की राय पर गंभीरता से विचार करेगा। कोर्ट ने UGC को निर्देश दिया कि वह संबंधित विनियमों को यथाशीघ्र अधिसूचित करे और इसके लिए अधिकतम आठ सप्ताह की समयसीमा निर्धारित की।

यह जनहित याचिका 2019 में रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मां-राधिका वेमुला और अबेदा सलीम तड़वी-द्वारा दाखिल की गई थी। रोहित वेमुला, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पीएचडी के छात्र थे, जिन्होंने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली थी। वहीं पायल तड़वी, एक आदिवासी समुदाय से आने वाली मेडिकल छात्रा थीं, जो मुंबई स्थित टी.एन. टोपिवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज में पढ़ रही थीं। उन्होंने 22 मई 2019 को आत्महत्या कर ली। दोनों मामलों में संस्थागत स्तर पर जातिगत भेदभाव के गंभीर आरोप लगाए गए थे।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों और शिक्षकों के खिलाफ जातीय भेदभाव व्यापक स्तर पर व्याप्त है, लेकिन इन संस्थानों द्वारा इसे नजरअंदाज किया जाता है। मौजूदा नियमों का सही ढंग से पालन नहीं होता और शिकायत निवारण तंत्र स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं हैं। साथ ही, ऐसे संस्थानों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई का कोई प्रभावी प्रावधान भी नहीं है, जो जातीय भेदभाव को रोकने में नाकाम रहते हैं।

याचिका में यह भी मांग की गई है कि सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में समान अवसर प्रकोष्ठ (Equal Opportunity Cells) स्थापित किए जाएं, जिनमें अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता या एनजीओ के प्रतिनिधि शामिल हों। इससे यह सुनिश्चित होगा कि शिकायतों की जांच और समाधान की प्रक्रिया निष्पक्ष एवं प्रभावी तरीके से संचालित हो।

एक पूर्व सुनवाई में केंद्र सरकार ने सूचित किया था कि यूजीसी ने संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए मसौदा विनियम तैयार कर लिए हैं। उस दौरान अदालत ने कहा था कि वह इस दिशा में “मजबूत और प्रभावी व्यवस्था” सुनिश्चित करना चाहता है ताकि “वास्तव में” जातीय भेदभाव जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को रोका जा सके। 

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