फरवरी महीने में किश्तवाड़ के मजिस्ट्रेट ने दो महीने के लिए सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने वाला आदेश जारी किया था लेकिन बाद में एक अदालत ने इसे रद्द कर दिया था। अब किश्तवाड़ जिला अदालत ने तत्कालीन मजिस्ट्रेट राजेश कुमार शवन को फटकार लगाते हुए कहा है कि यह आदेश बेहद मनमाना और अवैध था।

साभार : एचटी
हाल ही में एक अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) के एक वरिष्ठ अधिकारी को इस वर्ष की शुरुआत में किश्तवाड़ जिले में मुफ्त बिजली की मांग को लेकर हुए प्रदर्शनों पर मनमाने और गैरकानूनी तरीके से प्रतिबंध लगाने के लिए फटकार लगाई।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, आठ पृष्ठों के आदेश में किश्तवाड़ के प्रधान सत्र न्यायाधीश सुधीर के. खजूरिया ने अधिकारी का नाम लिए बिना कहा कि उन्होंने इस वर्ष 10 फरवरी को आदेश पारित करते समय कानून के स्थापित मानदंडों के विरुद्ध जाकर ‘कानून के आदेश’ की अवहेलना की.
उस समय किश्तवाड़ के मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत जेकेएएस अधिकारी राजेश कुमार शवन ने यह आदेश उस समय जारी किया जब मुफ्त बिजली की मांग को लेकर सोशल मीडिया पर हो रहा विरोध प्रदर्शन जन आंदोलन का रूप लेने की संभावना जताई जा रही थी। यह विरोध उस जिले में हो रहा था जो पूरे वर्ष बिजली कटौती की समस्या से जूझता है।
10 फ़रवरी को भेजे गए एक पत्र में सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (तहसीलदार) ने किश्तवाड़ के तत्कालीन मजिस्ट्रेट को बताया कि कुछ 'उपद्रवी तत्व' पहाड़ी जिले में स्मार्ट मीटर लगाने की प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश कर रहे हैं। उसी दिन, मजिस्ट्रेट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 163 के तहत एक आदेश जारी किया जो जिला मजिस्ट्रेटों को कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की आशंका के आधार पर सार्वजनिक सभाओं या आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने का विशेषाधिकार प्रदान करता है।
गौरतलब है कि किश्तवाड़ के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट आर.के. शवन ने जिले में दो महीने के लिए सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन और पांच या अधिक व्यक्तियों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अपने आदेश में उन्होंने उल्लेख किया कि ‘किसी अप्रिय घटना के घटित होने की आशंका है, जो सार्वजनिक शांति, व्यवस्था और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।’
19 जनवरी को फेसबुक ‘लाइव’ के जरिए विरोध प्रदर्शन की शुरुआत करने वाले स्थानीय कार्यकर्ता वसीम अकरम भट ने एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से अदालत में इस 'यांत्रिक और औपचारिक' आदेश को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि यह आदेश उन नागरिकों के ‘लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन’ करता है, जो सरकार से मुफ्त बिजली की मांग कर रहे थे।
11 फरवरी को मुख्य सत्र न्यायाधीश मंजीत सिंह मन्हास की अदालत ने मजिस्ट्रेट द्वारा जारी आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन 'स्वस्थ लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा' है। हालांकि, राज्य सरकार ने इस निर्णय को चुनौती दी। इस मामले में नया आदेश मुख्य सत्र न्यायाधीश खजूरिया ने 28 अगस्त को सुनाया।
अदालती अभिलेखों की समीक्षा के बाद न्यायाधीश ने पाया कि डिप्टी कमिश्नर ने तहसीलदार को ‘मौखिक निर्देश’ देकर एक ऐसा दुष्चक्र खड़ा कर दिया, जिसमें सूचना देने और प्राप्त करने की प्रक्रिया के माध्यम से अवैध रूप से कार्रवाई की गई। इसके परिणामस्वरूप तहसीलदार ने कानून-व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका जताते हुए एक रिपोर्ट तैयार की।
अदालत ने टिप्पणी की कि डिप्टी कमिश्नर ने बीएनएसएस की धारा 163 के तहत एकपक्षीय आदेश पारित किया, जबकि उन्होंने बीएनएसएस की धारा 153 के तहत आवश्यक घोषणा के माध्यम से उसे अधिसूचित नहीं किया। धारा 153 उन प्रक्रियाओं को निर्धारित करती है जिनके तहत किसी व्यक्ति या जनता को, जिनके खिलाफ आदेश पारित किया जा रहा है, विधिपूर्वक सूचित किया जाना आवश्यक होता है।
अदालत ने आगे कहा, "यहां तक कि एकपक्षीय आदेश भी उपयुक्त जांच के बाद और तथ्यों पर आधारित राय बनने के बाद ही पारित किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी तथ्य को लेकर राय बिना जांच के नहीं बनाई जा सकती। प्रतिवादी द्वारा पारित आदेश का अवलोकन करने पर यह कहीं से भी नहीं प्रतीत होता कि यह आदेश किसी विधिसम्मत जांच या ठोस तथ्यों के आधार पर राय बनाकर जारी किया गया था।"
अदालत ने कहा कि राज्य ने यह साबित करने का प्रयास किया कि आदेश एक आधिकारिक जांच के बाद जारी किया गया था, "लेकिन आदेश में तहसीलदार किश्तवाड़ द्वारा की गई तथाकथित जांच का एक भी जिक्र नहीं है, जिसे तहसीलदार ने 10.02.2025 को नंबर 75/जेसी/टीके के पत्र के माध्यम से प्रतिवादी को सूचित करने का प्रयास किया था।"
अदालत ने कहा कि मामले की कार्यवाही केवल एक दिन के भीतर शुरू और समाप्त कर दी गई, जो कि कानूनी मानदंडों का उल्लंघन है। साथ ही, अदालत ने राज्य के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया कि आदेश तब जारी किया गया जब सरकारी अधिकारी जिले में मीटर लगाते समय अपने सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वहन में बाधाओं का सामना कर रहे थे।
न्यायाधीश ने उल्लेख किया कि अभियोजन पक्ष ने कोई आधिकारिक दस्तावेज या ‘सरकारी अधिकारियों द्वारा उनके सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालने संबंधी कोई शिकायत’ प्रस्तुत नहीं की है।
न्यायाधीश ने कहा, "रिपोर्ट में किश्तवाड़ के विभिन्न स्थानों पर स्मार्ट मीटर लगाने में उकसावे के कारण बाधा पैदा होने का स्पष्ट उल्लेख है, लेकिन संबंधित राजस्व अधिकारियों द्वारा किसी भी व्यक्ति की जांच नहीं की गई। यदि ऐसा किया गया होता, तो निश्चित रूप से पूर्व की घटनाओं का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध होता।"
अदालत ने कहा, "ऐसा लगता है कि पत्र… तथा तहसीलदार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट केवल इस उद्देश्य से तैयार की गई है कि प्रतिवादी द्वारा दिनांक 10.02.2025 को पारित आदेश को कानून के निर्देशों का पालन करता हुआ दिखाया जा सके। लेकिन रिकॉर्ड की गहन कानूनी जांच से स्पष्ट होता है कि उक्त आदेश पारित करते समय कानून के नियमों का पालन नहीं किया गया था।"
अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा जांच किए जाने का दावा किया गया है, लेकिन वास्तव में ऐसा लगता है कि कोई वास्तविक जांच नहीं की गई। अदालत ने कहा, ‘इस प्रकार की जांच की कल्पना या परिकल्पना कानून निर्माताओं ने बीएनएसएस 2023 के अध्याय XI में धारा 163 शामिल करते समय कभी नहीं की थी, और यह कार्रवाई कानून के जनादेश के विपरीत है।’
अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ एवं अन्य, तथा गुलाम नबी आजाद बनाम भारत संघ एवं अन्य मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि धारा 163 (जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के समकक्ष है) तब तक लागू नहीं की जा सकती जब तक भौतिक तथ्य कानून और व्यवस्था के बिगड़ने की संभावना स्पष्ट रूप से प्रदर्शित न करें।
अदालत ने कहा, "धारा 163 के तहत आदेश जारी करने की शक्ति का प्रयोग सद्भावना और उचितता के साथ किया जाना चाहिए, और यह ऐसे तथ्यों पर आधारित होना चाहिए जो तार्किक रूप से विचारणीय हों। इससे आदेश की न्यायिक समीक्षा संभव हो सकेगी।"
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हाल ही में एक अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) के एक वरिष्ठ अधिकारी को इस वर्ष की शुरुआत में किश्तवाड़ जिले में मुफ्त बिजली की मांग को लेकर हुए प्रदर्शनों पर मनमाने और गैरकानूनी तरीके से प्रतिबंध लगाने के लिए फटकार लगाई।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, आठ पृष्ठों के आदेश में किश्तवाड़ के प्रधान सत्र न्यायाधीश सुधीर के. खजूरिया ने अधिकारी का नाम लिए बिना कहा कि उन्होंने इस वर्ष 10 फरवरी को आदेश पारित करते समय कानून के स्थापित मानदंडों के विरुद्ध जाकर ‘कानून के आदेश’ की अवहेलना की.
उस समय किश्तवाड़ के मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत जेकेएएस अधिकारी राजेश कुमार शवन ने यह आदेश उस समय जारी किया जब मुफ्त बिजली की मांग को लेकर सोशल मीडिया पर हो रहा विरोध प्रदर्शन जन आंदोलन का रूप लेने की संभावना जताई जा रही थी। यह विरोध उस जिले में हो रहा था जो पूरे वर्ष बिजली कटौती की समस्या से जूझता है।
10 फ़रवरी को भेजे गए एक पत्र में सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (तहसीलदार) ने किश्तवाड़ के तत्कालीन मजिस्ट्रेट को बताया कि कुछ 'उपद्रवी तत्व' पहाड़ी जिले में स्मार्ट मीटर लगाने की प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश कर रहे हैं। उसी दिन, मजिस्ट्रेट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 163 के तहत एक आदेश जारी किया जो जिला मजिस्ट्रेटों को कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की आशंका के आधार पर सार्वजनिक सभाओं या आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने का विशेषाधिकार प्रदान करता है।
गौरतलब है कि किश्तवाड़ के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट आर.के. शवन ने जिले में दो महीने के लिए सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन और पांच या अधिक व्यक्तियों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अपने आदेश में उन्होंने उल्लेख किया कि ‘किसी अप्रिय घटना के घटित होने की आशंका है, जो सार्वजनिक शांति, व्यवस्था और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।’
19 जनवरी को फेसबुक ‘लाइव’ के जरिए विरोध प्रदर्शन की शुरुआत करने वाले स्थानीय कार्यकर्ता वसीम अकरम भट ने एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से अदालत में इस 'यांत्रिक और औपचारिक' आदेश को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि यह आदेश उन नागरिकों के ‘लोकतांत्रिक अधिकारों का दमन’ करता है, जो सरकार से मुफ्त बिजली की मांग कर रहे थे।
11 फरवरी को मुख्य सत्र न्यायाधीश मंजीत सिंह मन्हास की अदालत ने मजिस्ट्रेट द्वारा जारी आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन 'स्वस्थ लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा' है। हालांकि, राज्य सरकार ने इस निर्णय को चुनौती दी। इस मामले में नया आदेश मुख्य सत्र न्यायाधीश खजूरिया ने 28 अगस्त को सुनाया।
अदालती अभिलेखों की समीक्षा के बाद न्यायाधीश ने पाया कि डिप्टी कमिश्नर ने तहसीलदार को ‘मौखिक निर्देश’ देकर एक ऐसा दुष्चक्र खड़ा कर दिया, जिसमें सूचना देने और प्राप्त करने की प्रक्रिया के माध्यम से अवैध रूप से कार्रवाई की गई। इसके परिणामस्वरूप तहसीलदार ने कानून-व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका जताते हुए एक रिपोर्ट तैयार की।
अदालत ने टिप्पणी की कि डिप्टी कमिश्नर ने बीएनएसएस की धारा 163 के तहत एकपक्षीय आदेश पारित किया, जबकि उन्होंने बीएनएसएस की धारा 153 के तहत आवश्यक घोषणा के माध्यम से उसे अधिसूचित नहीं किया। धारा 153 उन प्रक्रियाओं को निर्धारित करती है जिनके तहत किसी व्यक्ति या जनता को, जिनके खिलाफ आदेश पारित किया जा रहा है, विधिपूर्वक सूचित किया जाना आवश्यक होता है।
अदालत ने आगे कहा, "यहां तक कि एकपक्षीय आदेश भी उपयुक्त जांच के बाद और तथ्यों पर आधारित राय बनने के बाद ही पारित किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी तथ्य को लेकर राय बिना जांच के नहीं बनाई जा सकती। प्रतिवादी द्वारा पारित आदेश का अवलोकन करने पर यह कहीं से भी नहीं प्रतीत होता कि यह आदेश किसी विधिसम्मत जांच या ठोस तथ्यों के आधार पर राय बनाकर जारी किया गया था।"
अदालत ने कहा कि राज्य ने यह साबित करने का प्रयास किया कि आदेश एक आधिकारिक जांच के बाद जारी किया गया था, "लेकिन आदेश में तहसीलदार किश्तवाड़ द्वारा की गई तथाकथित जांच का एक भी जिक्र नहीं है, जिसे तहसीलदार ने 10.02.2025 को नंबर 75/जेसी/टीके के पत्र के माध्यम से प्रतिवादी को सूचित करने का प्रयास किया था।"
अदालत ने कहा कि मामले की कार्यवाही केवल एक दिन के भीतर शुरू और समाप्त कर दी गई, जो कि कानूनी मानदंडों का उल्लंघन है। साथ ही, अदालत ने राज्य के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया कि आदेश तब जारी किया गया जब सरकारी अधिकारी जिले में मीटर लगाते समय अपने सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वहन में बाधाओं का सामना कर रहे थे।
न्यायाधीश ने उल्लेख किया कि अभियोजन पक्ष ने कोई आधिकारिक दस्तावेज या ‘सरकारी अधिकारियों द्वारा उनके सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालने संबंधी कोई शिकायत’ प्रस्तुत नहीं की है।
न्यायाधीश ने कहा, "रिपोर्ट में किश्तवाड़ के विभिन्न स्थानों पर स्मार्ट मीटर लगाने में उकसावे के कारण बाधा पैदा होने का स्पष्ट उल्लेख है, लेकिन संबंधित राजस्व अधिकारियों द्वारा किसी भी व्यक्ति की जांच नहीं की गई। यदि ऐसा किया गया होता, तो निश्चित रूप से पूर्व की घटनाओं का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध होता।"
अदालत ने कहा, "ऐसा लगता है कि पत्र… तथा तहसीलदार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट केवल इस उद्देश्य से तैयार की गई है कि प्रतिवादी द्वारा दिनांक 10.02.2025 को पारित आदेश को कानून के निर्देशों का पालन करता हुआ दिखाया जा सके। लेकिन रिकॉर्ड की गहन कानूनी जांच से स्पष्ट होता है कि उक्त आदेश पारित करते समय कानून के नियमों का पालन नहीं किया गया था।"
अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा जांच किए जाने का दावा किया गया है, लेकिन वास्तव में ऐसा लगता है कि कोई वास्तविक जांच नहीं की गई। अदालत ने कहा, ‘इस प्रकार की जांच की कल्पना या परिकल्पना कानून निर्माताओं ने बीएनएसएस 2023 के अध्याय XI में धारा 163 शामिल करते समय कभी नहीं की थी, और यह कार्रवाई कानून के जनादेश के विपरीत है।’
अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ एवं अन्य, तथा गुलाम नबी आजाद बनाम भारत संघ एवं अन्य मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि धारा 163 (जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के समकक्ष है) तब तक लागू नहीं की जा सकती जब तक भौतिक तथ्य कानून और व्यवस्था के बिगड़ने की संभावना स्पष्ट रूप से प्रदर्शित न करें।
अदालत ने कहा, "धारा 163 के तहत आदेश जारी करने की शक्ति का प्रयोग सद्भावना और उचितता के साथ किया जाना चाहिए, और यह ऐसे तथ्यों पर आधारित होना चाहिए जो तार्किक रूप से विचारणीय हों। इससे आदेश की न्यायिक समीक्षा संभव हो सकेगी।"
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