यह राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्र की अखंडता और हमारे संसाधनों के संरक्षण का मामला है। साथ ही, हमारी साझा विरासत भी है-बंगाल और पंजाब में भाषा एक समान है, लेकिन सीमा हमें अलग करती है। हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार इस विषय में स्पष्टीकरण दे।’

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 29 अगस्त को केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या बांग्ला भाषी लोगों को विदेशी मानने के लिए किसी तरह का पूर्वाग्रह अपनाया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष कोर्ट ने यह टिप्पणी उस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें पश्चिम बंगाल के मुस्लिम कामगारों को बांग्लादेशी नागरिक होने के शक में हिरासत में लिए जाने का मुद्दा उठाया गया था।"
गौरतलब है कि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच पश्चिम बंगाल प्रवासी कामगार कल्याण बोर्ड द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मई में गृह मंत्रालय के एक आदेश के बाद राज्य के अधिकारी बांग्ला भाषी प्रवासी मजदूरों को बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में ले रहे हैं।
पीठ ने अवैध घुसपैठ की समस्या को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या अधिकारी किसी 'विशेष भाषा' बोलने को व्यक्ति के विदेशी होने के अनुमान का आधार बना रहे हैं।
लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस बागची ने टिप्पणी की, 'याचिका में यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि अधिकारी अपनी शक्तियों का प्रयोग एक निश्चित पूर्वाग्रह के साथ कर रहे हैं -यानी किसी विशेष भाषा के इस्तेमाल को विदेशी होने की धारणा से जोड़ा जा रहा है। क्या यह सही है? आप इसे स्पष्ट कर सकें...’
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस सूर्यकांत को जवाब देते हुए कहा कि ऐसा कोई मामला नहीं है और सरकार अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है।
मानक प्रक्रिया को लेकर अदालत का सवाल
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘कृपया हमें वह मानक प्रक्रिया बताएं जिसे अधिकारी पालन करते हैं। कुछ लोग प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें वापस भेजना सही है और इसमें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन जिनके बारे में माना जाता है कि वे पहले से देश में हैं और अब उन्हें वापस भेजा जा रहा है, उनके लिए पहला सवाल यह होगा कि वे भारतीय नागरिक होने का प्रमाण पेश करें।
जस्टिस बागची ने यह भी कहा कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के संवेदनशील मुद्दों से जुड़ा है, लेकिन उन्होंने बंगाल और पंजाब की साझी विरासत की ओर भी इशारा किया।
उन्होंने कहा, ‘यह राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्र की अखंडता और हमारे संसाधनों के संरक्षण का मामला है। साथ ही, हमारी साझा विरासत भी है-बंगाल और पंजाब में भाषा एक समान है, लेकिन सीमा हमें अलग करती है। हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार इस विषय में स्पष्टीकरण दे।’
गौरतलब है कि इस मामले में पीठ ने केंद्र सरकार से एक सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। साथ ही, याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर एक अंतरिम आवेदन पर भी नोटिस जारी किया गया है, जिसमें अधिकारियों को बिना किसी व्यक्ति की नागरिकता की पुष्टि किए उसे निर्वासित करने से रोकने की मांग की गई है।
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 29 अगस्त को केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या बांग्ला भाषी लोगों को विदेशी मानने के लिए किसी तरह का पूर्वाग्रह अपनाया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष कोर्ट ने यह टिप्पणी उस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें पश्चिम बंगाल के मुस्लिम कामगारों को बांग्लादेशी नागरिक होने के शक में हिरासत में लिए जाने का मुद्दा उठाया गया था।"
गौरतलब है कि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच पश्चिम बंगाल प्रवासी कामगार कल्याण बोर्ड द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मई में गृह मंत्रालय के एक आदेश के बाद राज्य के अधिकारी बांग्ला भाषी प्रवासी मजदूरों को बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में ले रहे हैं।
पीठ ने अवैध घुसपैठ की समस्या को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या अधिकारी किसी 'विशेष भाषा' बोलने को व्यक्ति के विदेशी होने के अनुमान का आधार बना रहे हैं।
लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस बागची ने टिप्पणी की, 'याचिका में यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि अधिकारी अपनी शक्तियों का प्रयोग एक निश्चित पूर्वाग्रह के साथ कर रहे हैं -यानी किसी विशेष भाषा के इस्तेमाल को विदेशी होने की धारणा से जोड़ा जा रहा है। क्या यह सही है? आप इसे स्पष्ट कर सकें...’
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस सूर्यकांत को जवाब देते हुए कहा कि ऐसा कोई मामला नहीं है और सरकार अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है।
मानक प्रक्रिया को लेकर अदालत का सवाल
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘कृपया हमें वह मानक प्रक्रिया बताएं जिसे अधिकारी पालन करते हैं। कुछ लोग प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें वापस भेजना सही है और इसमें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन जिनके बारे में माना जाता है कि वे पहले से देश में हैं और अब उन्हें वापस भेजा जा रहा है, उनके लिए पहला सवाल यह होगा कि वे भारतीय नागरिक होने का प्रमाण पेश करें।
जस्टिस बागची ने यह भी कहा कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के संवेदनशील मुद्दों से जुड़ा है, लेकिन उन्होंने बंगाल और पंजाब की साझी विरासत की ओर भी इशारा किया।
उन्होंने कहा, ‘यह राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्र की अखंडता और हमारे संसाधनों के संरक्षण का मामला है। साथ ही, हमारी साझा विरासत भी है-बंगाल और पंजाब में भाषा एक समान है, लेकिन सीमा हमें अलग करती है। हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार इस विषय में स्पष्टीकरण दे।’
गौरतलब है कि इस मामले में पीठ ने केंद्र सरकार से एक सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। साथ ही, याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर एक अंतरिम आवेदन पर भी नोटिस जारी किया गया है, जिसमें अधिकारियों को बिना किसी व्यक्ति की नागरिकता की पुष्टि किए उसे निर्वासित करने से रोकने की मांग की गई है।
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