असम के गोलाघाट जिले के उरियमघाट और आस-पास के गांवों में असम सरकार के बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे बेदख़ली अभियान पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए असम के गोलाघाट जिले के उरियमघाट और आसपास के इलाकों में चल रहे असम सरकार के व्यापक बेदखली अभियान पर अंतरिम रूप से रोक लगा दी है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 22 अगस्त को दिए अपने आदेश में कहा, 'नोटिस जारी किया जाए... और विशेष अनुमति याचिका के निपटारे तक वर्तमान स्थिति बरकरार रखी जाए।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदूरकर की पीठ ने नागरिक अब्दुल खालिक और अन्य प्रभावित परिवारों द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर यह आदेश पारित किया।
इस याचिका में हाईकोर्ट द्वारा 5 और 18 अगस्त को पारित समवर्ती आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिनमें याचिकाकर्ताओं को कोई राहत देने से इनकार कर दिया गया था।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र उदय सिंह और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड आदील अहमद याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए और गौहाटी हाईकोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी, जिसमें अदालत ने लंबे समय से बसे उन निवासियों को-जिनमें से कई पिछले सात दशकों से भी ज्यादा समय से राज्य द्वारा दस्तावेजी मान्यता के साथ निर्बाध रूप से वहां रह रहे हैं-असम वन विनियमन, 1891, वन अधिकार अधिनियम, 2006 और संवैधानिक सुरक्षा उपायों के तहत आवश्यक प्रक्रिया, पुनर्वास या निपटान की जांच के बिना जबरन बेदखली से संरक्षण देने से इनकार कर दिया था।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता असम के गोलाघाट ज़िले के विभिन्न गांवों-जैसे नंबर 2 नेघेरिबिल, गेलजान, विद्यापुर, राजपुखुरी, उरियमघाट और आस-पास के क्षेत्रों-के स्थायी निवासी हैं। उनके पूर्वज सात दशक से ज्यादा समय पहले इन गांवों में आकर बसे थे और तब से अब तक याचिकाकर्ता व उनके परिवारों ने स्थायी या अर्ध-स्थायी आवास बनाए हैं और कृषि भूमि पर खेती-बाड़ी करते रहे हैं।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन निवासियों को बिजली कनेक्शन, राशन कार्ड और आधार संख्या दी गई है और वे लगातार अपने निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में नामांकित रहे हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि कई निवासियों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास सहायता स्वीकृत की गई है। ये सभी तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता लंबे समय से वहां बसे स्थायी निवासी हैं।
उल्लेखनीय है कि उरियमघाट स्थित रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट में बेदखली अभियान जारी है। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, राज्य प्रशासन ने 29 जुलाई, 2025 से करीब 700 से 800 पुलिसकर्मियों, सीआरपीएफ जवानों और वन विभाग के अधिकारियों की तैनाती की है। इसके साथ ही लगभग 11,000 बीघा वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के उद्देश्य से बुलडोज़र और खनन मशीनों जैसी भारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निशाना बनाए गए परिवारों में से 70% से ज्यादा, जिनमें अधिकांश ‘मिया’ मुस्लिम समुदाय से हैं, ने अपने घर खाली कर दिए हैं। कई लोग मध्य असम के नागांव और मोरीगांव जिलों में अपने पैतृक स्थानों पर चले गए हैं, जिससे संभावित भूमि विवाद और अनधिकृत पुनर्वास को लेकर चिंता पैदा हो गई है।
नॉर्थईस्ट नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने इस अभियान को राज्य का अब तक का सबसे बड़ा वन बेदखली अभियान बताया है, जिसका मकसद पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित करना और संरक्षित वन क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमणों को रोकना है। हालांकि, निवासियों के विस्थापन के तरीके को लेकर इस अभियान की आलोचना भी हुई है।
ज्ञात हो कि इससे पहले इसी जुलाई महीने में धुबरी ज़िला प्रशासन ने जिले के बिलाशीपारा में असम सरकार द्वारा प्रस्तावित 3,400 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट स्थल पर 2,000 से अधिक मिया मुस्लिम परिवारों के घर ध्वस्त कर दिए थे।
राज्य के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के सत्ता में आने से अगस्त 2025 तक कुल 15,270 परिवारों-जिनमें अधिकांश मुस्लिम समुदाय के हैं-को सरकारी जमीन से बेदखल किया गया है। इसी अवधि में बेदखली के दौरान करीब आठ मुसलमानों की गोली मारकर हत्या हुई है।
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द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 22 अगस्त को दिए अपने आदेश में कहा, 'नोटिस जारी किया जाए... और विशेष अनुमति याचिका के निपटारे तक वर्तमान स्थिति बरकरार रखी जाए।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदूरकर की पीठ ने नागरिक अब्दुल खालिक और अन्य प्रभावित परिवारों द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर यह आदेश पारित किया।
इस याचिका में हाईकोर्ट द्वारा 5 और 18 अगस्त को पारित समवर्ती आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिनमें याचिकाकर्ताओं को कोई राहत देने से इनकार कर दिया गया था।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र उदय सिंह और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड आदील अहमद याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए और गौहाटी हाईकोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी, जिसमें अदालत ने लंबे समय से बसे उन निवासियों को-जिनमें से कई पिछले सात दशकों से भी ज्यादा समय से राज्य द्वारा दस्तावेजी मान्यता के साथ निर्बाध रूप से वहां रह रहे हैं-असम वन विनियमन, 1891, वन अधिकार अधिनियम, 2006 और संवैधानिक सुरक्षा उपायों के तहत आवश्यक प्रक्रिया, पुनर्वास या निपटान की जांच के बिना जबरन बेदखली से संरक्षण देने से इनकार कर दिया था।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता असम के गोलाघाट ज़िले के विभिन्न गांवों-जैसे नंबर 2 नेघेरिबिल, गेलजान, विद्यापुर, राजपुखुरी, उरियमघाट और आस-पास के क्षेत्रों-के स्थायी निवासी हैं। उनके पूर्वज सात दशक से ज्यादा समय पहले इन गांवों में आकर बसे थे और तब से अब तक याचिकाकर्ता व उनके परिवारों ने स्थायी या अर्ध-स्थायी आवास बनाए हैं और कृषि भूमि पर खेती-बाड़ी करते रहे हैं।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन निवासियों को बिजली कनेक्शन, राशन कार्ड और आधार संख्या दी गई है और वे लगातार अपने निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में नामांकित रहे हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि कई निवासियों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास सहायता स्वीकृत की गई है। ये सभी तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि याचिकाकर्ता लंबे समय से वहां बसे स्थायी निवासी हैं।
उल्लेखनीय है कि उरियमघाट स्थित रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट में बेदखली अभियान जारी है। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, राज्य प्रशासन ने 29 जुलाई, 2025 से करीब 700 से 800 पुलिसकर्मियों, सीआरपीएफ जवानों और वन विभाग के अधिकारियों की तैनाती की है। इसके साथ ही लगभग 11,000 बीघा वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के उद्देश्य से बुलडोज़र और खनन मशीनों जैसी भारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निशाना बनाए गए परिवारों में से 70% से ज्यादा, जिनमें अधिकांश ‘मिया’ मुस्लिम समुदाय से हैं, ने अपने घर खाली कर दिए हैं। कई लोग मध्य असम के नागांव और मोरीगांव जिलों में अपने पैतृक स्थानों पर चले गए हैं, जिससे संभावित भूमि विवाद और अनधिकृत पुनर्वास को लेकर चिंता पैदा हो गई है।
नॉर्थईस्ट नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने इस अभियान को राज्य का अब तक का सबसे बड़ा वन बेदखली अभियान बताया है, जिसका मकसद पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित करना और संरक्षित वन क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमणों को रोकना है। हालांकि, निवासियों के विस्थापन के तरीके को लेकर इस अभियान की आलोचना भी हुई है।
ज्ञात हो कि इससे पहले इसी जुलाई महीने में धुबरी ज़िला प्रशासन ने जिले के बिलाशीपारा में असम सरकार द्वारा प्रस्तावित 3,400 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट स्थल पर 2,000 से अधिक मिया मुस्लिम परिवारों के घर ध्वस्त कर दिए थे।
राज्य के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के सत्ता में आने से अगस्त 2025 तक कुल 15,270 परिवारों-जिनमें अधिकांश मुस्लिम समुदाय के हैं-को सरकारी जमीन से बेदखल किया गया है। इसी अवधि में बेदखली के दौरान करीब आठ मुसलमानों की गोली मारकर हत्या हुई है।
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