बिहार के ड्राफ्ट रॉल में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं के नाम ज्यादा कटे: स्क्रोल के विश्लेषण में खुलासा

Written by sabrang india | Published on: August 12, 2025
हिंदुओं के नाम हटाने की प्रक्रिया सबसे ज्यादा सीमांचल क्षेत्र में हुई है, जहां मुस्लिम आबादी 38% से 68% के बीच है।



“मैं आप लोगों से पूछना चाहता हूं,” केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 8 अगस्त को बिहार की एक रैली में मंच से गरजते हुए कहा। “क्या घुसपैठियों को वोटर लिस्ट से हटाया जाना चाहिए या नहीं? क्या चुनाव आयोग को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए या नहीं?”

शाह बिहार में मतदाता सूचियों की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के बारे में बोल रहे थे, जिसकी घोषणा इस साल जून में की गई थी।

उन्होंने कहा कि संशोधन से बांग्लादेश से आए उन "घुसपैठियों" के नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे जो मतदाता सूची में शामिल हो गए थे, जो राज्य के मुस्लिम मतदाताओं के लिए एक बड़ा झटका था। शाह ने राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के राहुल गांधी को संबोधित करते हुए कहा, "आप किसे बचाना चाहते हैं? घुसपैठिए आपका वोट बैंक हैं इसीलिए आप इसका [मतदाता सूची संशोधन का] विरोध कर रहे हैं।"

शाह की टिप्पणियों के विपरीत, दरअसल बिहार के सीमांचल क्षेत्र में हिंदू मतदाताओं को उनकी जनसंख्या के अनुपात की तुलना में मसौदा मतदाता सूची से असमान तरीके से बाहर रखा गया है। यह जानकारी 1 अगस्त को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के स्क्रोल द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

पूर्वी बिहार के सीमांचल क्षेत्र में अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जिले शामिल हैं। इन जिलों में मुसलमानों की आबादी 38% से 68% के बीच है। इन जिलों में हिंदू मतदाताओं को उनकी जनसंख्या के अनुपात से 6% से 9% से ज्यादा को बाहर रखा गया है।

इस क्षेत्र की विधानसभा सीटों में हिंदुओं का नाम उन सीटों पर सबसे ज्यादा हटाया गया है जिन्हें 2020 के विधानसभा चुनावों में विपक्षी दलों ने जीता था।

राज्य में मुस्लिम वोटरों के साथ ऐसा कोई बड़ा भेदभाव नहीं हुआ है। सबसे ज्यादा नाम काटने के मामले शिवहर, औरंगाबाद और जहानाबाद जिलों में दिखे हैं जहां करीब 1.8% मुस्लिम वोटरों के नाम लिस्ट से हटाए गए हैं।

कुल मिलाकर हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से जिन लोगों के नाम काटे गए हैं, उनमें 83.7% गैर-मुस्लिम हैं और 16.3% मुस्लिम। 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार की आबादी में हिंदू 82.7% और मुस्लिम 16.9% हैं।

पहले स्क्रॉल ने बताया था कि जिन पांच जिलों में मुस्लिम आबादी ज़्यादा है, वहां वोटर लिस्ट से नाम काटे जाने की दर सबसे ज्यादा थी। लेकिन अब इनमें से चार जिलों में यह पता चला है कि असमान रूप से हिंदू वोटरों के नाम ही ज्यादा हटाए गए हैं।

निर्वाचन आयोग की गहन समीक्षा के बाद तैयार की गई ड्राफ्ट वोटर सूची में वे मतदाता शामिल हैं जिन्होंने 24 जून से 26 जुलाई के बीच अपनी नामांकन फॉर्म आयोग को दिए थे। अब इन्हें अंतिम सूची में शामिल होने के लिए नागरिकता का प्रमाण देना होगा जो 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी।

कार्यप्रणाली

स्क्रॉल ने बिहार में बाहर किए गए मतदाताओं की धार्मिक पहचान तय करने के लिए दो चरणों वाली प्रक्रिया अपनाई है।

पहले चरण में, चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित दो सूचियों की तुलना की गई।

16 जुलाई को चुनाव आयोग ने उन मतदाताओं की सूची प्रकाशित की थी जिन्होंने इस गहन पुनरीक्षण के लिए अपना नामांकन फॉर्म नहीं जमा किया था। चुनाव आयोग ने इस डेटा को विधानसभा क्षेत्रों के अनुसार व्यवस्थित किया था।

इस सूची में कुल 1.49 करोड़ थे जिनमें मतदाताओं के नाम, उनके पिता या पति के नाम और उनके EPIC नंबर सहित अन्य जानकारी शामिल थी।

1 अगस्त को चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर सूची जारी की, जिसमें 7.24 करोड़ नाम थे। यह डेटा “Bihar SIR Draft Roll 2025” नाम की एक विशेष वेबसाइट पर अपलोड किया गया था और इसे भी विधानसभा क्षेत्रवार तैयार किया गया था।

चूंकि ये दोनों सूची शुरू में डिजिटल और मशीन-रीडेबल थीं, इसलिए स्क्रॉल ने एक कंप्यूटर प्रोग्राम का इस्तेमाल करके दोनों सूची से नाम निकाले और उनके EPIC नंबरों की तुलना की।

जिन मतदाताओं की जानकारी दोनों सूची में मिली, वे वही थे जिन्होंने 16 जुलाई से 26 जुलाई के बीच नामांकन फॉर्म जमा किए थे।

लेकिन जो EPIC नंबर 16 जुलाई की सूची में थे और 1 अगस्त की सूची में नहीं हैं वे ड्राफ्ट वोटर सूची से बाहर किए गए मतदाता हैं।

इस कंप्यूटर प्रोग्राम ने 64,85,945 मतदाताओं का डेटा निकाला जो चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़े 65 लाख हटाए गए मतदाताओं से कुछ हजार ही कम है।

दूसरे चरण के लिए, हमने एक और प्रोग्राम का इस्तेमाल किया ताकि हटाए गए मतदाताओं की धार्मिक पहचान पता की जा सके। यह प्रोग्राम, जिसका नाम "It’s All in the Name" है, फरवरी 2023 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा होस्ट किए गए डेटा रिपॉजिटरी हार्वर्ड डेटावर्स में प्रकाशित हुआ था।

यह प्रोग्राम एक दक्षिण एशियाई व्यक्ति और उसके माता-पिता के नाम का इस्तेमाल करके यह अनुमान लगाता है कि वह मुस्लिम है या गैर-मुस्लिम, और इसके लिए उसे एक ‘मुस्लिम स्कोर’ देता है।

यह प्रोग्राम मुस्लिम नामों को 0 से ज्यादा का स्कोर देता है, जबकि गैर-मुस्लिम नामों को 0 से कम का स्कोर मिलता है।

मुस्लिम नामों में, जो नाम अस्पष्ट होते हैं उन्हें कम स्कोर मिलता है और जो साफ-साफ मुस्लिम नाम होते हैं उन्हें ज्यादा स्कोर मिलता है। उदाहरण के तौर पर, फोर्ब्सगंज के एक मतदाता "नविसा" को 0.1 का स्कोर मिला, जबकि "मोहम्मद इरफान आलम" को 1.5 का स्कोर मिला।

स्क्रॉल ने इस प्रोग्राम को हटाए गए मतदाताओं के नाम और उनके पिता या पति के नाम दिए।

सटीक जानकारी पाने के लिए, स्क्रॉल ने ‘मुस्लिम स्कोर’ की सीमा को 0.3 रखा ताकि हर मतदाता की धार्मिक पहचान और ज्यादा सही तरीके से पता लग सके। सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम आबादी ज्यादा होने की वजह से, वहां यह स्कोर 0 कर दिया गया ताकि नतीजे और भी सही आएं।

64.9 लाख हटाए गए मतदाताओं में से इस प्रोग्राम ने 10.6 लाख को मुस्लिम और 54.3 लाख को गैर-मुस्लिम वर्ग में रखा।

चूंकि बिहार की गैर-मुस्लिम आबादी में हिंदू 99.48% हैं, इसलिए इस स्टोरी में स्क्रॉल ‘गैर-मुस्लिम’ और ‘हिंदू’ शब्दों का एक ही अर्थ में इस्तेमाल करेंगे।

निष्कर्ष

स्क्रॉल के विश्लेषण से पता चलता है कि गहन पुनरीक्षण का बिहार के हिंदू मतदाताओं पर असामान्य प्रभाव पड़ा है।

बिहार के 38 जिलों में से 20 जिलों में हिंदुओं को 2011 की जनगणना में उनकी आबादी के अनुपात से कहीं ज्यादा ड्राफ्ट वोटर सूची से बाहर रखा गया है।

नाम हटाने का यह मामला सबसे ज्यादा सीमांचल क्षेत्र में दिखता है, जहां मुस्लिम आबादी 38% से 68% के बीच है।

उदाहरण के लिए, अररिया जिले की आबादी में 57% हिंदू है, लेकिन जिले की ड्राफ्ट वोटर सूची से बाहर किए गए मतदाताओं में हिंदू समुदाय का हिस्सा 65.4% है, जो आबादी से 8.34% ज्यादा है।

मुस्लिम मतदाता बाकी 18 जिलों में असमान रूप से हटाए गए हैं, लेकिन उनकी संख्या हिंदुओं की तुलना में काफी कम है।

उदाहरण के लिए, जहानाबाद जिले की आबादी में मुस्लिमों का हिस्सा 6.7% है, जबकि जिले में हटाए गए मतदाताओं में मुस्लिमों का हिस्सा 8.5% है यानी लगभग 4,315 मतदाता।

गोपालगंज जिले में, जहां नाम हटाए जाने के प्रतिशत के हिसाब से बिहार में सबसे ज्यादा है, हिंदुओं को असमान रूप से 1.72% ज्यादा बाहर रखा गया है।

पटना में, जहां नाम काटे गए लोगों की संख्या के हिसाब से सबसे ज्यादा है, मुस्लिम मतदाताओं को असमान रूप से 0.2% अधिक बाहर रखा गया है।

विधानसभा क्षेत्र

सीमांचल में हिंदुओं के नाम हटाने का और गहनता से विश्लेषण करने के लिए, स्क्रॉल ने इस क्षेत्र की 24 विधानसभा सीटों में से 12 सीटों में हिंदू और मुस्लिम आबादी की तुलना उनके नाम हटाए जाने की दर से की।

ये सीटें अररिया जिले के फोर्ब्सगंज और अररिया, पूर्णिया जिले के अमौर, बैसी और पूर्णिया और कटिहार जिले के कोरहा, कटिहार, कड़वा, बलरामपुर, प्रणपुर, मनीहारी और बरारी हैं।

स्क्रॉल ने इन विधानसभा क्षेत्रों का चयन इसलिए किया क्योंकि ये क्षेत्र ऐसे एक या एक से अधिक ब्लॉक या नगर पंचायतों के साथ पूरी तरह मेल खाते हैं, जिनके लिए 2011 की जनगणना में आबादी का धार्मिक आधार पर विस्तृत विवरण मौजूद है।

बाकी 12 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो ब्लॉक के साथ-साथ ग्राम पंचायतों से भी बने हैं और आखिरी जनगणना में ग्राम पंचायतों के धार्मिक समूहों का डेटा उपलब्ध नहीं है।

स्कॉल ने पाया कि विधानसभा क्षेत्रों में नाम हटाए जाने के रुझान जिलों के स्तर के जैसे ही हैं। इन सभी 12 सीटों पर हिंदुओं को असमान रूप से बाहर रखा गया है।

इन विधानसभा क्षेत्रों में हिंदुओं के नाम हटाए जाने की दर पर नजर डालें तो पता चलता है कि यह दर उन सीटों पर ज्यादा है जिन्हें 2020 के विधानसभा चुनावों में विपक्षी दलों ने जीता था।

जहां भाजपा के विधायक हैं, उनमें से केवल कटिहार जिले की कोरहा विधानसभा क्षेत्र में हिंदुओं का असमान तरीके से नाम हटाना लगभग 10% के करीब था।

Related

राहुल गांधी का आरोप: 2024 में ‘वोट चोरी’, चुनावी धोखाधड़ी में भाजपा-ECI की सांठगांठ 

‘चुनाव आयोग वोट चोरी में शामिल’: राहुल गांधी ने फिर दोहराया आरोप, बिहार चुनाव से पहले किया ‘परमाणु बम’ जारी करने का दावा, साथ ही कहा ‘आपको बख्शा नहीं जाएगा’

बिहार SIR: 65 लाख वोटर लिस्ट से बाहर, गरीबी और मुस्लिम आबादी वाले किशनगंज जिले पर सबसे ज़्यादा असर की आशंका

बाकी ख़बरें