मतदाता सूची में अयोग्य मतदाता: निर्वाचन आयोग ने 61 लाख से ज्यादा मतदाताओं को सूची से बाहर करने के बारे में बताया

Written by sabrang india | Published on: July 26, 2025
बिहार के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) की आखिरी तारीख के आते ही ECI के आंकड़े बताते हैं कि 61 लाख से ज्यादा मतदाता संभावित रूप से सूची से बाहर हो सकते हैं। इनमें लाखों मृत, पलायन कर गए और 1 लाख अनट्रेसेबल मतदाता शामिल हैं। साथ ही करीब 7 लाख ऐसे मतदाता हैं जिन्होंने फॉर्म जमा नहीं किया है। इस बड़े पैमाने पर नाम काटने की खबर ने INDIA ब्लॉक के विरोध को तीसरे दिन और भी तेज कर दिया विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खड़गे ने संसद के बाहर एक प्रतीकात्मक SIR दस्तावेज को फाड़ कर कूड़ेदान में डाल दिया।



24 जुलाई, 2025 को निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार के आगामी ड्राफ्ट मतदाता सूची में बड़ी संख्या में लोग शामिल नहीं हो सकते हैं। इसका प्रकाशन 1 अगस्त को निर्धारित है। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि 7.21 करोड़ मतदाताओं (91.32%) के फॉर्म प्राप्त होने के बाद डिजिटाइज़ किए जा चुके हैं, जिससे उनका नाम प्रारूप सूची में शामिल हो जाएगा। बाकी फॉर्म भी दावों और आपत्तियों की अवधि के दौरान सत्यापन के लिए डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया में हैं।

हालांकि ECI के आंकड़े ये भी दिखाते हैं कि कई ऐसे मतदाता हैं जिन्हें वोटर लिस्ट से हटाया जा सकता है। इनमें 21.6 लाख ऐसे मतदाता हैं जो अब जीवित नहीं हैं, 31.5 लाख मतदाता जो कहीं और जाकर बस गए हैं, 7 लाख ऐसे मतदाता जिनके नाम एक से ज्यादा जगहों पर नाम दर्ज हैं और 1 लाख ऐसे मतदाता जिनका पता नहीं चल पाया। इसके अलावा, करीब 7 लाख मतदाताओं के फॉर्म अभी तक नहीं मिले हैं, जबकि बूथ स्तर के अधिकारी और एजेंट घर-घर जाकर फॉर्म लेने की कोशिश कर रहे हैं।

कुल मिलाकर ये आंकड़े बताते हैं कि करीब 61 लाख से ज्यादा वोटर संभवतः वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। ECI का कहना है कि बिहार SIR का मुख्य मकसद ये है कि कोई भी योग्य वोटर छूटे नहीं और जो लोग वोटर लिस्ट में गलत तरीके से शामिल हैं उन्हें हटाया जाए। वे ये भी कहते हैं कि यह उनका संवैधानिक काम है कि चुनावी लिस्ट की विश्वसनीयता बनी रहे।

इसलिए, जो मतदाताओं ने फॉर्म नहीं भरे हैं, जो मर चुके हैं और जो स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं, उनकी बूथ स्तर की सूचियां 20 जुलाई, 2025 को सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ साझा की गईं ताकि वे गलती की जांच कर सकें। इसके अलावा, मतदाता और राजनीतिक पार्टियां 1 सितंबर, 2025 तक नाम ना होने की शिकायत या गलत नाम शामिल होने पर आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।

ECI का ये ताजा आंकड़ा उस वक्त आया है जब राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज हो रही हैं और चिंता भी बढ़ रही है। 24 जुलाई को रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार में “अनट्रेसेबल” मतदाताओं की संख्या में 809% का चौंकाने वाला इजाफा हुआ है, जो 22 जुलाई को 11,484 थी और 23 जुलाई तक बढ़कर 1 लाख हो गई। कुल मिलाकर 24 घंटे में हटाए गए नामों की संख्या भी 3 लाख बढ़कर 56 लाख हो गई। विपक्षी पार्टियां, जिनका नेतृत्व RJD के तेजस्वी यादव कर रहे हैं, आगामी प्रदेश चुनावों का बहिष्कार करने की चेतावनी दे रही हैं। उनका आरोप है कि SIR मोदी सरकार की एक “खतरनाक साजिश” है, जिससे गरीब और पिछड़े वर्गों के वोटर वंचित हो जाएंगे और चुनाव परिणामों में हेरफेर किया जाएगा।

24.07.2025 की ECI की प्रेस नोट यहां पढ़ी जा सकती है:



INDIA ब्लॉक ने विरोध जताया, खड़गे ने प्रतीकात्मक SIR दस्तावेज फाड़कर कूड़ेदान में डाल दिया

संसद में राजनीतिक माहौल तनावपूर्ण हो गया है क्योंकि INDIA ब्लॉक लगातार तीसरे दिन संसद के बाहर विरोध जारी रखे हुए है। इस ब्लॉक ने बिहार में चल रहे निर्वाचन आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया की कड़ी निंदा की है। विपक्षी दलों के सांसदों ने संसद के बाहर प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने इसे मतदाता सूची में बदलाव की कोशिश बताया। उनका विरोध प्रेरणा स्थल से मकर द्वार तक मार्च कर शुरू हुआ। विपक्ष ने चिंता जताई है कि बिहार की यह प्रक्रिया पूरे देश में मतदाता पंजीकरण को लेकर एक बड़ी योजना की शुरुआत हो सकती है।



INDIA ब्लॉक के विरोध के दौरान, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खड़गे ने एक प्रतीकात्मक SIR दस्तावेज फाड़कर कूड़ेदान में डाल दिया। इसे बड़ी संख्या में देखा गया, जो निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची सुधार योजनाओं के प्रति विपक्ष के विरोध को दर्शाती है।

खड़गे ने खुले तौर पर ECI के पूरे देश में किए जाने वाले SIR प्रस्ताव को चुनौती दी, जो 24 जून की अधिसूचना पर आधारित है। उन्होंने सरकार की आलोचना करते हुए कहा, “मोदी सरकार का मकसद गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और वंचितों की वोटिंग में रुकावट डालना है, ताकि वे मनुस्मृति के अनुसार भारत के संविधान में बदलाव कर सकें।”



उन्होंने आगे कहा, “आरएसएस-बीजेपी हमेशा से कमजोर तबकों के वोटर अधिकारों को छीनना चाहती है और अब SIR के जरिए यह अपनी पुरानी मंशा को पूरा करने पर उतारू है।”

कांग्रेस अध्यक्ष ने निराशा जताते हुए कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था बीजेपी-आरएसएस की इस ‘वोट दबाने’ की साजिश का समर्थन कर रही है।” उन्होंने आरोप लगाया कि “पूरे देश ने देखा है कि बिहार में चुनाव आयोग के BLO अपने ही लोगों को फॉर्म भरवा रहे हैं ताकि वंचित वर्गों के वोटर अधिकार छीन लिए जाएं।”

खड़गे ने एक भयावह नतीजे की चेतावनी देते हुए कहा, “अब चुनाव आयोग पूरे देश में यही काम करेगा। बीजेपी को भारत के संविधान और लोकतंत्र से नफरत है। हर दिन वह बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर और पंडित नेहरू द्वारा बनाए गए संविधान पर हमला करने के नए-नए तरीके ढूंढ़ती रहती है।”



विरोध और आरोपों के बीच, मतदाता सूचियों के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) से संबंधित चुनाव आयोग का 24 जून का आदेश विवाद का मुख्य बिंदु बना हुआ है। अपने आदेश में, ECI ने स्पष्ट रूप से कहा है, “आयोग ने अब पूरे देश में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन शुरू करने का फैसला किया है ताकि वह अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी यानी मतदाता सूचियों की विश्वसनीयता की रक्षा का निर्वाह कर सके…बाकी देश के लिए SIR का शेड्यूल समय आने पर जारी किया जाएगा।”

“100% पक्का सबूत है वोट चोरी का!” - राहुल गांधी

कांग्रेस सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बड़ा आरोप लगाते हुए इस लड़ाई में कदम रख दिया। गांधी ने सीधे चुनाव आयोग को चुनौती देते हुए कहा, “चुनाव आयोग को कोई भ्रम नहीं होना चाहिए! हमारे पास आपके वोट चोरी करने की रणनीतियों के 100% पक्के सबूत हैं।”



उन्होंने कड़ी चेतावनी दी और कहा, “हम सच सामने लाएंगे और आप नतीजों से बच नहीं पाएंगे - जो लोग लोकतंत्र और संविधान को नष्ट करने की कोशिश करेंगे, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।”

“भ्रामक और निराधार!” - आयोग ने गांधी के आरोपों को खारिज किया

तत्काल और स्पष्ट प्रतिक्रिया में, निर्वाचन आयोग ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल के जरिए राहुल गांधी के गंभीर आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। आयोग के आधिकारिक बयान में कहा गया, “इस सोशल मीडिया पोस्ट में किया गया दावा भ्रामक और निराधार है।”





इसके अलावा, चूंकि फॉर्म जमा करने की आखिरी तारीख खत्म हो गई है, ऐसे में अब लोगों का ध्यान 1 अगस्त को प्रारूप मतदाता सूची के प्रकाशन और उसके बाद दावों और आपत्तियों की अवधि पर है। संभावित बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने और विपक्ष की गहरी चिंताएं यह सुनिश्चित करती हैं कि बिहार का SIR विधानसभा चुनावों तक एक ज्वलंत विषय बना रहेगा।

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