केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने शैक्षणिक वर्ष 2025-26 के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना के तहत चयनित 106 उम्मीदवारों में से केवल 40 छात्रों को प्रोविजनल छात्रवृत्ति पत्र प्रदान किए हैं। मंत्रालय के अनुसार शेष उम्मीदवारों को 'धन की उपलब्धता के अनुसार' छात्रवृत्ति सर्टिफिकेट जारी किए जाएंगे।

प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार : एचटी
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने शैक्षणिक वर्ष 2025–26 के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति (एनओएस) योजना के तहत चयनित 106 छात्रों में से केवल 40 को ही प्रोविजनल छात्रवृत्ति पत्र जारी किए हैं, जो कुल संख्या का आधे से भी कम है।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने कहा है कि शेष 66 उम्मीदवारों को छात्रवृत्ति प्रमाण पत्र 'धन की उपलब्धता के अनुसार' जारी किए जा सकते हैं।
इस संबंध में मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि उसे आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति से मंजूरी नहीं मिली है। उल्लेखनीय है कि इस समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं।
अखबार ने 1 जुलाई को मोदी सरकार द्वारा की गई घोषणा का हवाला देते हुए बताया कि चयनित सूची के शेष उम्मीदवारों (क्रमांक 41 से 106) को प्रोविजनल छात्रवृत्ति पत्र नियत समय पर जारी किए जा सकते हैं, लेकिन यह धन की उपलब्धता पर निर्भर करेगा।
गौरतलब है कि एनओएस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1954–55 में की गई थी। यह योजना अनुसूचित जाति (एससी), विमुक्त घुमंतू जनजाति (डीएनटी), अर्ध-घुमंतू जनजाति, भूमिहीन कृषि मजदूरों और पारंपरिक कारीगर समुदायों के उन छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिनकी पारिवारिक वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम है।
इस योजना के तहत सामान्यतः सभी चयनित छात्रों को प्रोविजनल छात्रवृत्ति पत्र दिए जाते हैं, लेकिन इस वर्ष मंत्रालय ने पत्र जारी करने की प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से करने का निर्णय लिया है, जो पूरी तरह से धन की उपलब्धता पर निर्भर करेगा।
अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय के इस निर्णय से छात्रों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। हालांकि, मंत्रालय ने फंड की कमी से जुड़ा मामला आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति को भेज दिया है।
इस मामले पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के एक अधिकारी ने न्यूज पेपर से बातचीत में कहा, ‘छात्रवृत्ति योजनाओं के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा धन आवंटन को मंजूरी न दिया जाना एक प्रमुख मुद्दा है। हमारे पास फंड उपलब्ध है, लेकिन उसका इस्तेमाल करने के लिए हमें शीर्ष स्तर से स्वीकृति की आवश्यकता है।’
उल्लेखनीय है कि इससे पहले मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (एमएएनएफ) में भी इसी तरह की अनियमितताओं की खबर सामने आ चुकी है। जनवरी 2025 से 1,400 से ज्यादा पीएचडी शोधार्थियों को वज़ीफ़े के भुगतान में रुकावट का सामना करना पड़ रहा है।
द वायर की जून में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से अधिकांश शोधकर्ताओं को दिसंबर 2024 से लेकर मई 2025 तक वज़ीफ़ा नहीं मिला है। कुछ शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्हें इस अवधि से पहले भी भुगतान नहीं किया गया था।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा संचालित मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप योजना भारत के छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी- के शोधकर्ताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
ज्ञात हो कि जून 2024 के लिए अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप योजना में भी असमंजस की स्थिति बनी रही, जबकि इसकी चयन सूची इस वर्ष अप्रैल में ही प्रकाशित की गई थी।
इस संबंध में, राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी ने शुरूआत में मार्च 2025 में 865 स्कॉलर्स की चयन सूची जारी की थी। हालांकि, अप्रैल में जारी संशोधित सूची में चयनित संख्या घटाकर 805 कर दी गई और पहले से चुने गए 487 उम्मीदवारों को सूची से बाहर कर दिया गया।
विपक्ष का प्रधानमंत्री को पत्र
गौरतलब है कि इस विषय पर लोकसभा में विपक्षी नेता राहुल गांधी ने 10 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वंचित समुदायों के छात्रों के आवास और छात्रवृत्ति योजनाओं को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी।
अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि दलित, अनुसूचित जनजाति (एसटी), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए आवासीय छात्रावासों की स्थिति दयनीय है। इसके अलावा, मैट्रिक के बाद छात्रवृत्ति प्रदान करने में हो रही देरी के कारण इन वर्गों के लगभग 90 प्रतिशत छात्रों के शिक्षा के अवसर बाधित हो रहे हैं।
राहुल गांधी ने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा था कि छात्रवृत्ति पोर्टल लगभग तीन वर्षों तक काम नहीं कर रहा, जिसके कारण 2021-22 के शैक्षणिक वर्ष में कोई छात्रवृत्ति नहीं दी जा सकी।
उन्होंने छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की संख्या में तेज गिरावट पर ध्यान दिलाते हुए लिखा कि दलित छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की संख्या वित्त वर्ष 2023 में 1.36 लाख से घटकर वित्त वर्ष 2024 में मात्र 0.69 लाख रह गई है। साथ ही, छात्रों ने शिकायत की है कि छात्रवृत्ति की राशि अपमानजनक रूप से कम है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार : एचटी
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने शैक्षणिक वर्ष 2025–26 के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति (एनओएस) योजना के तहत चयनित 106 छात्रों में से केवल 40 को ही प्रोविजनल छात्रवृत्ति पत्र जारी किए हैं, जो कुल संख्या का आधे से भी कम है।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने कहा है कि शेष 66 उम्मीदवारों को छात्रवृत्ति प्रमाण पत्र 'धन की उपलब्धता के अनुसार' जारी किए जा सकते हैं।
इस संबंध में मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि उसे आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति से मंजूरी नहीं मिली है। उल्लेखनीय है कि इस समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं।
अखबार ने 1 जुलाई को मोदी सरकार द्वारा की गई घोषणा का हवाला देते हुए बताया कि चयनित सूची के शेष उम्मीदवारों (क्रमांक 41 से 106) को प्रोविजनल छात्रवृत्ति पत्र नियत समय पर जारी किए जा सकते हैं, लेकिन यह धन की उपलब्धता पर निर्भर करेगा।
गौरतलब है कि एनओएस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1954–55 में की गई थी। यह योजना अनुसूचित जाति (एससी), विमुक्त घुमंतू जनजाति (डीएनटी), अर्ध-घुमंतू जनजाति, भूमिहीन कृषि मजदूरों और पारंपरिक कारीगर समुदायों के उन छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिनकी पारिवारिक वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम है।
इस योजना के तहत सामान्यतः सभी चयनित छात्रों को प्रोविजनल छात्रवृत्ति पत्र दिए जाते हैं, लेकिन इस वर्ष मंत्रालय ने पत्र जारी करने की प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से करने का निर्णय लिया है, जो पूरी तरह से धन की उपलब्धता पर निर्भर करेगा।
अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय के इस निर्णय से छात्रों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। हालांकि, मंत्रालय ने फंड की कमी से जुड़ा मामला आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति को भेज दिया है।
इस मामले पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के एक अधिकारी ने न्यूज पेपर से बातचीत में कहा, ‘छात्रवृत्ति योजनाओं के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा धन आवंटन को मंजूरी न दिया जाना एक प्रमुख मुद्दा है। हमारे पास फंड उपलब्ध है, लेकिन उसका इस्तेमाल करने के लिए हमें शीर्ष स्तर से स्वीकृति की आवश्यकता है।’
उल्लेखनीय है कि इससे पहले मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (एमएएनएफ) में भी इसी तरह की अनियमितताओं की खबर सामने आ चुकी है। जनवरी 2025 से 1,400 से ज्यादा पीएचडी शोधार्थियों को वज़ीफ़े के भुगतान में रुकावट का सामना करना पड़ रहा है।
द वायर की जून में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से अधिकांश शोधकर्ताओं को दिसंबर 2024 से लेकर मई 2025 तक वज़ीफ़ा नहीं मिला है। कुछ शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्हें इस अवधि से पहले भी भुगतान नहीं किया गया था।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा संचालित मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप योजना भारत के छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी- के शोधकर्ताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
ज्ञात हो कि जून 2024 के लिए अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप योजना में भी असमंजस की स्थिति बनी रही, जबकि इसकी चयन सूची इस वर्ष अप्रैल में ही प्रकाशित की गई थी।
इस संबंध में, राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी ने शुरूआत में मार्च 2025 में 865 स्कॉलर्स की चयन सूची जारी की थी। हालांकि, अप्रैल में जारी संशोधित सूची में चयनित संख्या घटाकर 805 कर दी गई और पहले से चुने गए 487 उम्मीदवारों को सूची से बाहर कर दिया गया।
विपक्ष का प्रधानमंत्री को पत्र
गौरतलब है कि इस विषय पर लोकसभा में विपक्षी नेता राहुल गांधी ने 10 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वंचित समुदायों के छात्रों के आवास और छात्रवृत्ति योजनाओं को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी।
अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि दलित, अनुसूचित जनजाति (एसटी), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए आवासीय छात्रावासों की स्थिति दयनीय है। इसके अलावा, मैट्रिक के बाद छात्रवृत्ति प्रदान करने में हो रही देरी के कारण इन वर्गों के लगभग 90 प्रतिशत छात्रों के शिक्षा के अवसर बाधित हो रहे हैं।
राहुल गांधी ने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा था कि छात्रवृत्ति पोर्टल लगभग तीन वर्षों तक काम नहीं कर रहा, जिसके कारण 2021-22 के शैक्षणिक वर्ष में कोई छात्रवृत्ति नहीं दी जा सकी।
उन्होंने छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की संख्या में तेज गिरावट पर ध्यान दिलाते हुए लिखा कि दलित छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की संख्या वित्त वर्ष 2023 में 1.36 लाख से घटकर वित्त वर्ष 2024 में मात्र 0.69 लाख रह गई है। साथ ही, छात्रों ने शिकायत की है कि छात्रवृत्ति की राशि अपमानजनक रूप से कम है।
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