अजित कुमार की हिरासत में मौत: तमिलनाडु में पुलिस की गैर-जवाबदेही का दुखद सच

Written by | Published on: July 3, 2025
मंदिरों के शहर मडप्पुरम (जिला शिवगंगा) के बद्रकालीअम्मन मंदिर में कंट्रैक्चुअल सिक्योरिटी गार्ड 27 वर्षीय बी. अजित कुमार को 28 जून 2025 को पुलिस अधिकारियों द्वारा गायब हुए सोने की शिकायत के सिलसिले में उठाए जाने के बाद कथित रूप से प्रताड़ित कर मार दिया गया। इस मामले को लेकर लोग बेहद नाराज हो गए। न्यायिक जांच शुरू कर दी गई है। यह घटना 2020 में सथानकुलम में हुई जेयराज और बेन्निक्स की हिरासत में मौतों की दर्दनाक यादें फिर से ताज़ा कर गई है।



एक संदिग्ध जिसे सीसीटीवी कवरेज से दूर ले जाकर प्रताड़ित कर मार डाला गया

मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ में चल रही अदालती कार्यवाही के अनुसार, न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और ए.डी. मारिया क्लीट ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंता व्यक्त की और अजित कुमार की हिरासत की वैधता पर ही सवाल उठाए। पुलिस ने कथित रूप से अजित कुमार को मंदिर के गोशाला क्षेत्र और दूसरी एकांत जगहों पर ले जाकर — जहां सीसीटीवी नहीं थी — प्लास्टिक की पाइपों और लोहे की छड़ों से बेरहमी से पीटा। बाद में उसे पुलिस थाने ले जाया गया और मृत घोषित कर दिया गया। यह हिरासत में प्रताड़ना का मामला तमिलनाडु में ही नहीं, बल्कि देशभर में नाराज़गी का कारण बना है।

मानवाधिकार अधिवक्ता हेनरी टिपाग्ने ने वीडियो साक्ष्य पेश किए, जिसमें कथित तौर पर अजित कुमार को थिरुप्पुवनाम थाना परिसर के भीतर पुलिस अधिकारियों द्वारा पीटे जाते हुए देखा जा सकता है। यह फुटेज मंदिर के एक कर्मचारी शक्तिश्वरन द्वारा रिकॉर्ड किया गया था, जिसे न्यायालय ने "चौंका देने वाला" बताया। न्यायालय में उस समय एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ जब यह बताया गया कि शिवगंगा जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) भी उस समय थाने में मौजूद थे जब अजित को टॉर्चर किया जा रहा था।

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा, “एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई?”

राज्य सरकार ने न्यायालय को बताया कि 28 जून 2025 को गहनों के गुम होने की शिकायत के आधार पर सीएसआर (Community Service Register) पर एंट्री की गई थी, लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। इस पर कोर्ट हैरान रह गया और टिप्पणी की, “यदि यह केवल एक चोरी की जांच थी, तो संदिग्ध को पीट-पीटकर क्यों मार डाला गया?” पीठ ने तीखे सवाल पूछते हुए यह जानना चाहा कि अजित से पूछताछ करने वाली विशेष टीम को किसने अधिकृत किया और क्या ऐसी टीमें सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर गठित की जाती हैं?

इन अनियमितताओं में और जोड़ते हुए कोर्ट ने यह जिक्र किया कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) को केवल स्थानांतरित किया गया है, न कि निलंबित। न्यायाधीशों ने सरकार के इस दावे की भी कड़ी आलोचना की कि "कार्रवाई की जा रही है" और इसे पूरी तरह से अपर्याप्त करार दिया।

ऑटोप्सी में 18 चोटों का खुलासा हुआ, वीडियो में बेरहमी से पीटने की पुष्टि

इंडिया टुडे ने एक एक्सक्लूसिव वीडियो हासिल किया है जिसमें देखा जा सकता है कि अजित को पुलिसकर्मी लाठी से पीट रहे हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अजित के शरीर पर 18 अलग-अलग चोटों की पुष्टि हुई है। जैसे-जैसे लोगों की नाराजगी बढ़ी, तमिलनाडु सरकार ने मामला सीबी-सीआईडी को सौंप दिया। हालांकि, न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि पुलिस अपने ही अधिकारियों के खिलाफ मामलों की जांच नहीं कर सकती और स्वतंत्र जवाबदेही की आवश्यकता पर जोर दिया।



सथानकुलम की गूंज: क्या तमिलनाडु कभी सबक लेगा?

हालिया घटनाएं 2020 के सथानकुलम मामले की भयानक यादें ताज़ा कर देती हैं, जहां जेयराज और उनके बेटे बेन्निक्स को लॉकडाउन टाइम का उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में बेरहमी से प्रताड़ित कर मार डाला गया था। उस मामले में न्यायपालिका के हस्तक्षेप और लोगों की भारी नाराजगी के चलते कई पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी और मुकदमा संभव हो सका। उस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने सच्चाई सामने लाने के लिए एक स्वतंत्र न्यायिक अधिकारी की निष्पक्ष गवाही को आधार बनाया था।

सथानकुलम की तरह अजित कुमार के मामले में भी शुरुआती कोशिशें घोटाले की आड़, दस्तावेज तैयार करने में देरी और कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी जैसे संकेत देती हैं, जहां एफआईआर न होना, पोस्टमार्टम में देरी और जवाबदेही का अस्पष्ट स्वरूप देखने को मिला। जो सवाल जनता और विश्लेषकों के मन में बार-बार गूंजता है, वही है कि क्या तमिलनाडु की पुलिसिंग कल्चर में सचमुच कोई बदलाव आया है?

भारत की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां: UNCAT का अभी तक अनुपालन न होना

अजित कुमार की मौत ने एक बार फिर भारत की उस विफलता पर सवाल खड़ा कर दिया है कि उसने यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर (UNCAT) को अभी तक क्यों नहीं औपचारिक रूप से स्वीकार किया है। 1997 में इस संधि पर हस्ताक्षर करने के बावजूद, भारत ने अब तक कोई प्रभावी यातना-निषेध कानून (एंटी-टॉर्चर लॉ) लागू नहीं किया है। UNCAT में हिरासत में टॉर्चर के सख्त निषेध, इसे दंडनीय अपराध घोषित करने, स्वतंत्र जांच कराने तथा पीड़ितों को मुआवजा देने की मांग की गई है, जो इस केस में पूरी तरह से गायब है।

डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा था कि थर्ड डिग्री मेथड्स का लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई स्थान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित किया गया है। फिर भी, अजित कुमार के मामले की तरह ये मौलिक अधिकार पुलिस हिरासत में बार-बार निष्प्रभावी ढंग से उल्लंघन किए जाते हैं।

हिरासत में मौतें लगातार बढ़ रही हैं: पूरे देश में पुलिस की छूट का मामला

गृह मंत्रालय ने लोकसभा को बताया कि साल 2021–22 में ही न्यायिक हिरासत में 2,152 और पुलिस हिरासत में 155 लोग मरे। इतने ज़्यादा मामले होने के बावजूद, पिछले पांच साल में सिर्फ 21 मामलों में ही कोई कार्रवाई हुई और किसी पर मुकदमा तक नहीं चलाया गया।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2021–22 में 137 हिरासत में मौत के मामलों में कुल 4.53 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया, जो इसके पिछले साल 4.88 करोड़ रुपये से कम है। ये आंकड़े सिस्टम की विफलता को दर्शाते हैं कि दोषियों को ज़िम्मेदार ठहराने में कहीं न कहीं कमी रह गई है। तमिलनाडु, जहां सथानकुलम और अब अजित कुमार जैसे हिरासत में हिंसा के मामले सामने आए हैं, वहां भी यातना विरोधी कानून न होने के कारण पुलिस की छूट की संस्कृति बरकरार है।

आगे का रास्ता

मद्रास उच्च न्यायालय ने थिरुप्पुवनम के न्यायिक मजिस्ट्रेट और सरकारी राजाजी अस्पताल के डीन को प्रारंभिक और पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। मंदिर अधिकारियों सहित गवाहों और वीडियो रिकॉर्ड करने वाले शक्तिश्वरन को भी समन भेजा गया है। पीड़ित परिवार को मुआवजा देने और मामले की जांच के लिए CBI/SIT जांच की मांग वाली याचिकाएं भी लंबित हैं।

ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि न्यायपालिका का समय पर दखल इस केस में सचमुच जवाबदेही ला पाएगा या फिर यह भी बाकी मामलों की तरह धीरे-धीरे दब जाएगा। लेकिन जो बात साफ है, वो ये है कि अजित कुमार की मौत कोई अलग घटना नहीं है। यह पूरी व्यवस्था के पतन का प्रमाण है।

(लेखक लॉ स्टूडेंट हैं और cjp.org.in में पहले इंटर्न रह चुके हैं।)
 

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