विश्व हिंदू परिषद की शिकायत पर अधिकारियों ने कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या और बाराबंकी ज़िलों में हर साल आयोजित होने वाले दो उर्स समारोहों को अनुमति देने से इनकार कर दिया है।

फोटो साभार : बिजनेस स्टैंडर्ड
उत्तर प्रदेश के दो ज़िलों—अयोध्या और बाराबंकी—में हर साल होने वाले दो वार्षिक उर्स समारोहों को इस बार प्रशासन ने कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए अनुमति नहीं दी है।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, अयोध्या के खानपुर मसौधा क्षेत्र स्थित दादा मियां की दरगाह पर होने वाले उर्स की अनुमति विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) द्वारा दर्ज कराई गई आपत्ति के बाद रद्द कर दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, बाराबंकी के फूलपुर क्षेत्र में आयोजित होने वाले सैयद शकील बाबा के उर्स से जुड़े कार्यक्रम को प्रशासन ने संभावित अशांति की आशंका के चलते अनुमति नहीं दी।
अयोध्या में विहिप की ओर से शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्ति ने आरोप लगाया कि यह आयोजन ‘गाजी बाबा’ के नाम पर किया जा रहा था — जो कि सैयद सालार मसूद का संदर्भ है। मुस्लिम समुदाय इस कार्यक्रम को 11वीं शताब्दी के प्रसिद्ध सैनिक सैयद सालार मसूद गाजी की याद में आयोजित करता रहा है, जिन्हें आमतौर पर गजनवी शासक महमूद गजनवी का भतीजा माना जाता है।
अयोध्या के सर्किल ऑफिसर आशुतोष तिवारी ने मीडिया को बताया कि "‘उर्स दादा मियां’ के नाम से दी गई अनुमति रद्द कर दी गई है, क्योंकि जांच में यह सामने आया कि कार्यक्रम वास्तव में गाजी बाबा के नाम पर आयोजित किया जा रहा था।"
बाराबंकी में उर्स कार्यक्रम को लेकर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) विकास त्रिपाठी ने कहा, "कुछ ऐसे विवाद सामने आए हैं, जिनसे सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होने की आशंका है," इसी कारण प्रशासन ने कार्यक्रम को अनुमति नहीं देने का निर्णय लिया है।
ज्ञात हो कि मार्च की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में पुलिस ने मुस्लिम समुदाय द्वारा सैयद सालार मसूद गाजी की याद में आयोजित किए जाने वाले सदियों पुराने ‘नेजा मेले’ पर रोक लगा दी थी। पुलिस ने वार्षिक नेजा मेले के आयोजन की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा था कि किसी आक्रमणकारी, लुटेरे और हत्यारे के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती, चाहे वह परंपरागत रूप से हर साल क्यों न होता आया हो।
इसी तरह, मई में बहराइच प्रशासन ने सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाले सदियों पुराने ‘जेठ मेले’ की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
द वायर ने लिखा है कि पिछले कुछ दशकों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उससे जुड़े संगठनों ने गाजी मियां की कहानी को मौजूदा राजनीतिक संदर्भों में ढालने का प्रयास किया है। उन्होंने सैयद सालार मसूद गाजी को एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया है, जिनकी मृत्यु एक पिछड़ी जाति के हिंदू योद्धा—महाराजा सुहेलदेव—के हाथों हुई थी। आज महाराजा सुहेलदेव को राजभर और पासी जैसे समुदाय अपना आदर्श मानते हैं।
उत्तर प्रदेश और केंद्र में सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस समुदाय तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसके तहत गाजी के कथित हत्यारे महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में एक नया स्मारक बनाया गया है। साथ ही गाजीपुर से दिल्ली तक चलने वाली एक सुपरफास्ट ट्रेन, एक नया विश्वविद्यालय और उनके नाम का एक डाक टिकट भी जारी किया गया है।
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फोटो साभार : बिजनेस स्टैंडर्ड
उत्तर प्रदेश के दो ज़िलों—अयोध्या और बाराबंकी—में हर साल होने वाले दो वार्षिक उर्स समारोहों को इस बार प्रशासन ने कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए अनुमति नहीं दी है।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, अयोध्या के खानपुर मसौधा क्षेत्र स्थित दादा मियां की दरगाह पर होने वाले उर्स की अनुमति विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) द्वारा दर्ज कराई गई आपत्ति के बाद रद्द कर दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, बाराबंकी के फूलपुर क्षेत्र में आयोजित होने वाले सैयद शकील बाबा के उर्स से जुड़े कार्यक्रम को प्रशासन ने संभावित अशांति की आशंका के चलते अनुमति नहीं दी।
अयोध्या में विहिप की ओर से शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्ति ने आरोप लगाया कि यह आयोजन ‘गाजी बाबा’ के नाम पर किया जा रहा था — जो कि सैयद सालार मसूद का संदर्भ है। मुस्लिम समुदाय इस कार्यक्रम को 11वीं शताब्दी के प्रसिद्ध सैनिक सैयद सालार मसूद गाजी की याद में आयोजित करता रहा है, जिन्हें आमतौर पर गजनवी शासक महमूद गजनवी का भतीजा माना जाता है।
अयोध्या के सर्किल ऑफिसर आशुतोष तिवारी ने मीडिया को बताया कि "‘उर्स दादा मियां’ के नाम से दी गई अनुमति रद्द कर दी गई है, क्योंकि जांच में यह सामने आया कि कार्यक्रम वास्तव में गाजी बाबा के नाम पर आयोजित किया जा रहा था।"
बाराबंकी में उर्स कार्यक्रम को लेकर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) विकास त्रिपाठी ने कहा, "कुछ ऐसे विवाद सामने आए हैं, जिनसे सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होने की आशंका है," इसी कारण प्रशासन ने कार्यक्रम को अनुमति नहीं देने का निर्णय लिया है।
ज्ञात हो कि मार्च की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में पुलिस ने मुस्लिम समुदाय द्वारा सैयद सालार मसूद गाजी की याद में आयोजित किए जाने वाले सदियों पुराने ‘नेजा मेले’ पर रोक लगा दी थी। पुलिस ने वार्षिक नेजा मेले के आयोजन की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा था कि किसी आक्रमणकारी, लुटेरे और हत्यारे के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती, चाहे वह परंपरागत रूप से हर साल क्यों न होता आया हो।
इसी तरह, मई में बहराइच प्रशासन ने सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाले सदियों पुराने ‘जेठ मेले’ की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
द वायर ने लिखा है कि पिछले कुछ दशकों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उससे जुड़े संगठनों ने गाजी मियां की कहानी को मौजूदा राजनीतिक संदर्भों में ढालने का प्रयास किया है। उन्होंने सैयद सालार मसूद गाजी को एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया है, जिनकी मृत्यु एक पिछड़ी जाति के हिंदू योद्धा—महाराजा सुहेलदेव—के हाथों हुई थी। आज महाराजा सुहेलदेव को राजभर और पासी जैसे समुदाय अपना आदर्श मानते हैं।
उत्तर प्रदेश और केंद्र में सरकार बनाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस समुदाय तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसके तहत गाजी के कथित हत्यारे महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में एक नया स्मारक बनाया गया है। साथ ही गाजीपुर से दिल्ली तक चलने वाली एक सुपरफास्ट ट्रेन, एक नया विश्वविद्यालय और उनके नाम का एक डाक टिकट भी जारी किया गया है।
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