इसका दावा मजार के सचिव इसरार ने किया है। 16वीं सदी से इस मजार पर उर्स मनाया जा रहा था। सचिव के अनुसार, प्रशासन ने 5 जून के ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद यह कार्रवाई की।

उत्तर प्रदेश के बहराइच के कतर्नियाघाट जंगल में स्थित लक्कड़ शाह बाबा की मजार को रात में बुलडोजर कार्रवाई करते हुए ध्वस्त कर दिया गया। इसका दावा मजार के सचिव इसरार ने किया है। 16वीं सदी से इस मजार पर उर्स मनाया जा रहा था। सचिव के अनुसार, प्रशासन ने 5 जून के ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद यह कार्रवाई की।
सचिव इसरार ने एनबीटी को बताया कि, रात में प्रशासन ने दरगाह पर बुलडोजर चलाकर उसे ध्वस्त कर दिया। उस समय रात में दरगाह के कुछ कर्मचारी थे, वहां मौजूद श्रद्धालुओं को प्रशासन पहले ही हटा चुका था। इस मामले में दरगाह प्रबंधन हाई कोर्ट गया था। सचिव का कहना था कि प्रशासन ने 5 जून के ट्रिब्यूनल के आदेश को उन्हें रिसीव कराया और रात में बुलडोजर चला दिया। वहां पर पीएसी वगैरह लगा दी गई है। राजस्व, पुलिस प्रशासन और वन विभाग की टीम ने मिलकर यह कार्रवाई की है। आगे क्या करेंगे, इस सवाल पर उनका कहना था कि वह इस कार्रवाई के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे।
मेले पर प्रतिबंध और प्रशासन का तर्क
इससे पहले प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कई मजारों पर लगने वाले मेलों पर रोक लगा दी थी। इन्हीं में बहराइच जिले के कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के कोर क्षेत्र में स्थित लक्कड़ शाह बाबा की मजार पर हर साल लगने वाला एक दिवसीय मेला भी शामिल था। इस मेले पर प्रतिबंध का उद्देश्य मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाओं को रोकना था।
हालांकि, मेला आयोजकों ने इस निर्णय का विरोध किया था। वहीं, प्रशासन की ओर से स्पष्ट किया गया कि मजार पर धार्मिक गतिविधियों और जियारत पर कोई प्रतिबंध नहीं है। रोक केवल बड़े पैमाने पर भीड़ जुटने और मेले के आयोजन पर लगाई गई है।
इस संबंध में कतर्नियाघाट के प्रभागीय वन अधिकारी बी. शिवशंकर ने जानकारी दी कि लक्कड़ शाह बाबा की मजार प्रभाग के मूर्तिहा रेंज में स्थित है। ज्येष्ठ माह में यहां आयोजित होने वाले एक दिवसीय मेले में बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। चूंकि यह स्थान जंगल के कोर क्षेत्र में आता है, इसलिए पिछले चार वर्षों से यहां भीड़ इकट्ठा करने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है।
उन्होंने आगे बताया कि भीड़ नियंत्रण के लिए स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स, सशस्त्र सीमा बल, पुलिस तथा वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बी. शिवशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि मजार पर धार्मिक क्रियाकलाप और जियारत पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। केवल भीड़ को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वाहनों के आवागमन, आग जलाकर भोजन पकाने, क्षेत्र में रुकने और रात्रि विश्राम पर रोक लगाई गई है।
भूमि स्वामित्व का विवाद
बी. शिवशंकर ने यह भी बताया कि मजार के प्रबंधकों ने इस स्थल को वक्फ की जमीन बताकर वन विभाग के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत किया था। हालांकि, वे जमीन के स्वामित्व के संबंध में कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए, जिसके कारण उनका दावा अस्वीकार कर दिया गया।
वहीं, लक्कड़ शाह मजार प्रबंध समिति के अध्यक्ष रईस अहमद ने इस फैसले पर विरोध जताया था। रईस अहमद के अनुसार, यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है, जहां दोनों धर्मों के लोगों की आस्था है। उन्होंने दावा किया कि यहां 40 प्रतिशत मुस्लिम और 60 प्रतिशत हिंदू लोग आते हैं। सदियों से यहां मेले लगते रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश के बहराइच के कतर्नियाघाट जंगल में स्थित लक्कड़ शाह बाबा की मजार को रात में बुलडोजर कार्रवाई करते हुए ध्वस्त कर दिया गया। इसका दावा मजार के सचिव इसरार ने किया है। 16वीं सदी से इस मजार पर उर्स मनाया जा रहा था। सचिव के अनुसार, प्रशासन ने 5 जून के ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद यह कार्रवाई की।
सचिव इसरार ने एनबीटी को बताया कि, रात में प्रशासन ने दरगाह पर बुलडोजर चलाकर उसे ध्वस्त कर दिया। उस समय रात में दरगाह के कुछ कर्मचारी थे, वहां मौजूद श्रद्धालुओं को प्रशासन पहले ही हटा चुका था। इस मामले में दरगाह प्रबंधन हाई कोर्ट गया था। सचिव का कहना था कि प्रशासन ने 5 जून के ट्रिब्यूनल के आदेश को उन्हें रिसीव कराया और रात में बुलडोजर चला दिया। वहां पर पीएसी वगैरह लगा दी गई है। राजस्व, पुलिस प्रशासन और वन विभाग की टीम ने मिलकर यह कार्रवाई की है। आगे क्या करेंगे, इस सवाल पर उनका कहना था कि वह इस कार्रवाई के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे।
मेले पर प्रतिबंध और प्रशासन का तर्क
इससे पहले प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कई मजारों पर लगने वाले मेलों पर रोक लगा दी थी। इन्हीं में बहराइच जिले के कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के कोर क्षेत्र में स्थित लक्कड़ शाह बाबा की मजार पर हर साल लगने वाला एक दिवसीय मेला भी शामिल था। इस मेले पर प्रतिबंध का उद्देश्य मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाओं को रोकना था।
हालांकि, मेला आयोजकों ने इस निर्णय का विरोध किया था। वहीं, प्रशासन की ओर से स्पष्ट किया गया कि मजार पर धार्मिक गतिविधियों और जियारत पर कोई प्रतिबंध नहीं है। रोक केवल बड़े पैमाने पर भीड़ जुटने और मेले के आयोजन पर लगाई गई है।
इस संबंध में कतर्नियाघाट के प्रभागीय वन अधिकारी बी. शिवशंकर ने जानकारी दी कि लक्कड़ शाह बाबा की मजार प्रभाग के मूर्तिहा रेंज में स्थित है। ज्येष्ठ माह में यहां आयोजित होने वाले एक दिवसीय मेले में बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। चूंकि यह स्थान जंगल के कोर क्षेत्र में आता है, इसलिए पिछले चार वर्षों से यहां भीड़ इकट्ठा करने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है।
उन्होंने आगे बताया कि भीड़ नियंत्रण के लिए स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स, सशस्त्र सीमा बल, पुलिस तथा वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बी. शिवशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि मजार पर धार्मिक क्रियाकलाप और जियारत पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। केवल भीड़ को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वाहनों के आवागमन, आग जलाकर भोजन पकाने, क्षेत्र में रुकने और रात्रि विश्राम पर रोक लगाई गई है।
भूमि स्वामित्व का विवाद
बी. शिवशंकर ने यह भी बताया कि मजार के प्रबंधकों ने इस स्थल को वक्फ की जमीन बताकर वन विभाग के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत किया था। हालांकि, वे जमीन के स्वामित्व के संबंध में कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए, जिसके कारण उनका दावा अस्वीकार कर दिया गया।
वहीं, लक्कड़ शाह मजार प्रबंध समिति के अध्यक्ष रईस अहमद ने इस फैसले पर विरोध जताया था। रईस अहमद के अनुसार, यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है, जहां दोनों धर्मों के लोगों की आस्था है। उन्होंने दावा किया कि यहां 40 प्रतिशत मुस्लिम और 60 प्रतिशत हिंदू लोग आते हैं। सदियों से यहां मेले लगते रहे हैं।
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