भारत की जनसंख्या पर यूएन की रिपोर्ट: गिनती के पीछे गहरे विरोधाभास

Written by sabrang india | Published on: June 13, 2025
यूएनएफपीए की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2025 में यह पाया गया है कि हर तीन में से एक वयस्क भारतीय (36%) ने अनचाहे गर्भधारण का अनुभव किया है। वहीं, करीब एक-तिहाई लोग (30%) ऐसे हैं, जो अपनी संतान संबंधी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाए।


प्रतीकात्मक तस्वीर ; साभार सोशल मीडिया

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या गिनती से परे एक गंभीर संकट को दर्शा रही है, जहां लोग अपने परिवार के लिए बच्चे प्लान नहीं कर पा रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2025 में पाया गया है कि हर तीन में से एक वयस्क भारतीय (36%) को अनचाहे गर्भधारण का सामना करना पड़ा है।

वहीं, करीब एक-तिहाई यानी 30% लोग बच्चों की अधूरी इच्छा से परेशान हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सर्वेक्षण में शामिल 23% भारतीयों ने दोनों स्थितियों का सामना किया है।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘असल प्रजनन की समस्या केवल जनसंख्या के आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित करने से आगे बढ़कर बदलाव की मांग करती है।’ इसमें कहा गया है कि असली संकट कम या ज्यादा जनसंख्या नहीं है, बल्कि यह है कि सिस्टम ‘सेक्स, गर्भनिरोधक और परिवार शुरू करने के बारे में स्वतंत्र और सूचित निर्णय लेने की व्यक्ति की क्षमता’ का सही समर्थन नहीं कर पा रहा है।’

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि एक अनुमान के मुताबिक अप्रैल तक भारत की जनसंख्या 146.39 करोड़ तक पहुंच चुकी है।

भारत में राष्ट्रीय प्रतिस्थापन-स्तर प्रजनन दर (national replacement-level fertility rate) 2.0 है। यूएनएफपीए के अनुसार, यह उच्च प्रजनन और कम प्रजनन क्षमता के बीच विरोधाभास को दर्शाता है। यह असमानताओं को उजागर करता है। उदाहरण के तौर पर, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रजनन दर, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों की तुलना में ज्यादा है। रिपोर्ट इसे आर्थिक अवसर, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और क्षेत्रीय लिंग मानदंडों तक असमान पहुंच से जोड़ती है।

14 देशों में किए गए YouGov सर्वेक्षण के परिणामों से पता चलता है कि वित्तीय चिंताएं भारतीयों के लिए सबसे बड़ी बाधा हैं, जिनमें से लगभग दस में से चार लोगों ने इसे प्रमुख कारण बताया है।

नौकरी की असुरक्षा, आवास की कमी और विश्वसनीय बाल देखभाल का अभाव भी इस समस्या में योगदान देते हैं। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 19% भारतीय उत्तरदाताओं - जो किसी भी देश में सबसे ज्यादा हैं - ने कहा कि उनके साथी द्वारा कम बच्चों की इच्छा रखना इसका एक प्रमुख कारण है।

इस संदर्भ में यूएनएफपीए इंडिया की प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनर के हवाले से द वायर ने लिखा, "बेहतर शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के चलते भारत ने प्रजनन दर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। इसके परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु दर में भी गिरावट आई है... हालांकि, अभी भी राज्यों, जातियों और आय वर्गों के बीच गहरी असमानताएं बनी हुई हैं।"

वोजनर ने आगे कहा, "वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश तब मिलता है जब प्रत्येक व्यक्ति के पास सूचित प्रजनन विकल्प चुनने की स्वतंत्रता और संसाधन उपलब्ध होते हैं। भारत के पास यह दिखाने का एक अनूठा अवसर है कि प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि कैसे एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।"

रिपोर्ट में बिहार के एक परिवार की तीन पीढ़ियों की महिलाओं की कहानी के जरिए इन मुद्दों को दर्शाया गया है। यह कहानी बताती है कि दादी की शादी 16 साल की उम्र में कर दी गई थी और सामाजिक दबाव व गर्भनिरोधक जानकारी की कमी के चलते उनके पांच बेटे हुए। उनकी बहू ने कम बच्चे चाहने के बावजूद छह बच्चों को जन्म दिया। वहीं पोती, जो यूनिवर्सिटी से स्नातक है, ने एक सुरक्षित भविष्य की आवश्यकता को समझते हुए केवल दो बच्चों का ही प्लान किया है।

यूएनएफपीए ‘जनसांख्यिकीय लचीलापन’ (Demographic Resilience) की वकालत करता है, जिसका मतलब है जनसंख्या में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप ढलना। भारत के संदर्भ में, संगठन एक समग्र और अधिकार-आधारित दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश करता है।

रिपोर्ट में यह मांग की गई है कि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से बांझपन से जुड़ी देखभाल तक पहुंच को व्यापक बनाया जाए। साथ ही, बाल देखभाल और आवास क्षेत्र में निवेश बढ़ाने, अविवाहित व्यक्तियों और हाशिए पर मौजूद समुदायों के लिए समावेशी नीतियां लागू करने, शारीरिक स्वायत्तता से जुड़ा बेहतर डेटा जुटाने और रूढ़िवादी सोच को चुनौती देने के लिए व्यापक सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया है।

यूएनएफपीए का मानना है कि केवल जनसंख्या की संख्या पर ध्यान केंद्रित करना असल मुद्दों से ध्यान भटका देता है। संस्था का तर्क है कि किसी देश की वास्तविक सफलता इस बात से आंकी जानी चाहिए कि उसके नागरिक अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने और परिवार बनाने में कितने सक्षम हैं।

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