एफआईआर 14 मई को आजमगढ़ के कठारिपुर थाने में दर्ज की गई, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353(2) और आईटी एक्ट की धारा 67 लगाई गई है। ये धाराएं ऐसे बयान और ऑनलाइन कंटेंट से जुड़ी हैं जो कथित रूप से जनता में अशांति फैला सकते हैं या आपत्तिजनक माने जा सकते हैं।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के दलित पीएचडी स्कॉलर और छात्र नेता मनीष कुमार के खिलाफ आजमगढ़ पुलिस ने एक फेसबुक पोस्ट को लेकर एफआईआर दर्ज की है। इस पोस्ट में मनीष ने "ऑपरेशन सिंदूर", राफेल डील और भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान कथित भ्रष्टाचार व नुकसान पर मोदी सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए थे।
कौन-कौन सी धाराएं लगीं?
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, FIR 14 मई को आजमगढ़ के कठारिपुर थाने में दर्ज की गई, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353(2) और आईटी एक्ट की धारा 67 लगाई गई है। ये धाराएं ऐसे बयान और ऑनलाइन कंटेंट से जुड़ी हैं जो कथित रूप से जनता में अशांति फैला सकते हैं या आपत्तिजनक माने जा सकते हैं।
पोस्ट में क्या लिखा था मनीष ने?
मनीष ने अपने पोस्ट में लिखा था, "मोदी सरकार ने अब तक यह क्यों नहीं साफ किया कि राफेल फाइटर प्लेन भारत-पाक संघर्ष में सच में खोए गए या नहीं? अगर ये झूठ है, तो सरकार खुलकर इसका खंडन क्यों नहीं कर रही? पारदर्शिता कहां है?"
उन्होंने राफेल डील में कॉर्पोरेट हितों, खासकर अंबानी ग्रुप की भूमिका को भी उठाया, जो पहले से ही विवादों में रही है।
विरोध और समर्थन में क्या कहा गया?
प्रदेश भर के छात्र संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस FIR की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, खासकर जब सवाल उठाने वाला व्यक्ति किसी वंचित समुदाय से आता हो।
AISA (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) यूपी के अध्यक्ष ने कहा, "कॉमरेड मनीष पर FIR कोई इकलौता मामला नहीं है। यह असहमति की आवाजों को दबाने की देशव्यापी मुहिम का हिस्सा है, जो पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद शुरू हुई है।"
AISA ने यह भी कहा कि कश्मीर में 3,000 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं, असम में 42 लोगों को 'प्रो-पाकिस्तान' पोस्ट के लिए जेल भेजा गया और यूपी में अब तक 30 गिरफ्तारियां और 40 FIR दर्ज हो चुकी हैं।
अब क्या हो सकता है?
मनीष कुमार की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है, लेकिन उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई जारी है। मानवाधिकार संगठनों ने इस FIR को अदालत में चुनौती देने का फैसला लिया है, उनका कहना है कि यह मामला संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।
पुलिस की तरफ से अभी तक स्पष्ट जवाब नहीं आया है कि पोस्ट में ऐसा क्या था जो कानून के तहत अपराध बनता है। वहीं, नागरिक अधिकारों के पक्षधर कह रहे हैं कि ऐसे मामलों से खासतौर पर विश्वविद्यालयों और युवाओं में खुलकर चर्चा करने की आजादी खतरे में पड़ती है।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के दलित पीएचडी स्कॉलर और छात्र नेता मनीष कुमार के खिलाफ आजमगढ़ पुलिस ने एक फेसबुक पोस्ट को लेकर एफआईआर दर्ज की है। इस पोस्ट में मनीष ने "ऑपरेशन सिंदूर", राफेल डील और भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान कथित भ्रष्टाचार व नुकसान पर मोदी सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए थे।
कौन-कौन सी धाराएं लगीं?
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, FIR 14 मई को आजमगढ़ के कठारिपुर थाने में दर्ज की गई, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353(2) और आईटी एक्ट की धारा 67 लगाई गई है। ये धाराएं ऐसे बयान और ऑनलाइन कंटेंट से जुड़ी हैं जो कथित रूप से जनता में अशांति फैला सकते हैं या आपत्तिजनक माने जा सकते हैं।
पोस्ट में क्या लिखा था मनीष ने?
मनीष ने अपने पोस्ट में लिखा था, "मोदी सरकार ने अब तक यह क्यों नहीं साफ किया कि राफेल फाइटर प्लेन भारत-पाक संघर्ष में सच में खोए गए या नहीं? अगर ये झूठ है, तो सरकार खुलकर इसका खंडन क्यों नहीं कर रही? पारदर्शिता कहां है?"
उन्होंने राफेल डील में कॉर्पोरेट हितों, खासकर अंबानी ग्रुप की भूमिका को भी उठाया, जो पहले से ही विवादों में रही है।
विरोध और समर्थन में क्या कहा गया?
प्रदेश भर के छात्र संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस FIR की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, खासकर जब सवाल उठाने वाला व्यक्ति किसी वंचित समुदाय से आता हो।
AISA (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) यूपी के अध्यक्ष ने कहा, "कॉमरेड मनीष पर FIR कोई इकलौता मामला नहीं है। यह असहमति की आवाजों को दबाने की देशव्यापी मुहिम का हिस्सा है, जो पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद शुरू हुई है।"
AISA ने यह भी कहा कि कश्मीर में 3,000 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं, असम में 42 लोगों को 'प्रो-पाकिस्तान' पोस्ट के लिए जेल भेजा गया और यूपी में अब तक 30 गिरफ्तारियां और 40 FIR दर्ज हो चुकी हैं।
अब क्या हो सकता है?
मनीष कुमार की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है, लेकिन उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई जारी है। मानवाधिकार संगठनों ने इस FIR को अदालत में चुनौती देने का फैसला लिया है, उनका कहना है कि यह मामला संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।
पुलिस की तरफ से अभी तक स्पष्ट जवाब नहीं आया है कि पोस्ट में ऐसा क्या था जो कानून के तहत अपराध बनता है। वहीं, नागरिक अधिकारों के पक्षधर कह रहे हैं कि ऐसे मामलों से खासतौर पर विश्वविद्यालयों और युवाओं में खुलकर चर्चा करने की आजादी खतरे में पड़ती है।