उत्तर प्रदेश: अब गोरखपुर में मस्जिद को ध्वस्त करने का जीडीए का आदेश

Written by sabrang india | Published on: February 24, 2025
मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता का कहना है कि जीडीए नक्शे को आधार बनाकर ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है जबकि नगर विकास विभाग द्वारा साल 2008 का आदेश है कि 100 वर्ग मीटर तक भूमि पर निर्माण के लिए नक्शे की जरूरत नहीं है। मस्जिद सिर्फ 24×26 वर्ग फीट पर बनी है। इसलिए उसके लिए नक्शे की कोई जरूरत नहीं है।


फोटो साभार : स्क्रीन ग्रैब हेट डिटेक्टर 'एक्स'

गोरखपुर सिटी में मेवातीपुर मोहल्ले की मस्जिद को जीडीए (गोरखपुर विकास प्राधिकरण) ने नक्शा स्वीकृत कराए बिना बनाने का आरोप लगाते हुए ध्वस्त करने का आदेश जारी किया है। ये आदेश जीडीए ने 15 फरवरी को जारी किया। अपने आदेश में मस्जिद को अवैध निर्माण बताया है और मस्जिद के पक्षकार शुएब अहमद को 15 दिन के भीतर मस्जिद को स्वयं ध्वस्त करने का आदेश भी दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि अगर उन्होंने खुद इस संरचना को ध्वस्त नहीं किया तो जीडीए द्वारा किए जाने वाले ध्वस्तीकरण के खर्च को उनसे वसूल किया जाएगा।

द वायर हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, जीडीए के इस ध्वस्तीकरण आदेश की प्रति मस्जिद पर चस्पा भी कर दी गई। उधर, मस्जिद के पक्षकार शुएब अहमद ने आदेश के खिलाफ प्राधिकरण के अध्यक्ष कमिश्नर के यहां अपील दाखिल की है जिसकी सुनवाई 25 फरवरी को होनी है।

जिस जगह मस्जिद का निर्माण हुआ है, उसके पास बहुत पुरानी मस्जिद थी जिसे गोरखपुर नगर निगम ने 25 जनवरी 2024 को उस स्थान पर स्थित कई घरों और दुकानों के साथ गिरा दिया था। बाद में नगर निगम और मस्जिद पक्षकार में आपसी समझौते के आधार पर नगर निगम ने 24×26 फीट वर्ग फीट जमीन मुहैया करवाई थी जिस पर वर्तमान मस्जिद बनी है।

मस्जिद के मुतवल्ली सुहेल अहमद मस्जिद की व्यवस्था देखते थे। जुलाई 2024 में उनका निधन हो गया, अब उनकी जगह पर उनके बेटे शुएब अहमद मस्जिद की व्यवस्था देखते हैं।

शुएब अहमद ने बताया कि उनके अधिवक्ता जय प्रकाश नारायण श्रीवास्तव ने प्राधिकरण के अध्यक्ष/कमिश्नर के यहां अपील दाखिल की है जिस पर 18 फरवरी को सुनवाई होनी थी लेकिन उस दिन सुनवाई नहीं हो सकी। अगली तारीख 25 फरवरी को तय की गई है।

उन्होंने मीडिया को बताया कि घोष कंपनी चौक के पास मेवातीपुर में अबु हुरैरा नाम की काफी पुरानी मस्जिद थी जिसके मुतवल्ली सुहेल अहमद थे। मेवातीपुर में काफी पुराना अस्तबल व गैरेज था जिसके बीचोंबीच मस्जिद थी। वर्ष 1963 में दीवानी न्यायालय में मुकदमा शेख फुन्ना बनाम म्युनिसिपल बोर्ड दाखिल हुआ। चार वर्ष बाद 19 अप्रैल 1967 को शेख फुन्ना आदि और म्युनिसिपल बोर्ड के बीच मस्जिद में किसी भी तरह के हस्तक्षेप न करने का सुलहनामा हुआ। दीवानी न्यायालय ने सुलहनामे को 26.04.67 को स्वीकृत किया गया।

पिछले साल नगर निगम ने मस्जिद और उसके आस-पास की जमीन पर अपना दावा किया। नगर निगम ने 24 जनवरी 2024 को मस्जिद के आस-पास की करीब 46 डिसमिल जमीन पर बने 16 घरों और 31 दुकानों को ध्वस्त कर दिया और अब यहां मल्टीलेवल पार्किंग और काम्प्लेक्स का निर्माण करा रहा है।

शुएब के अनुसार, उस दौरान दिन के समय में मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया लेकिन आधी रात को मस्जिद को भी गिरा दिया गया जबकि दीवानी न्यायालय के आदेश के अनुसार मस्जिद को कानूनन ध्वस्त नहीं किया जा सकता था। इस बारे में उनके पिता सुहेल अहमद ने नगर निगम को पूरी जानकारी दी तो नगर निगम ने अपनी गलती मानते हुए छठी बैठक में 27 फरवरी 2024 को प्रस्ताव पारित कर जमीन के दक्षिण पश्चिम कोने पर 24×26 फीट जमीन मस्जिद बनाने के लिए दे दी।

अनुमति मिलने के बाद सुहेल अहमद ने अपनी निगरानी में लोगों की मदद से मस्जिद का ग्राउंड फ्लोर, फर्स्ट फ्लोर और थर्ड फ्लोर का निर्माण कराया।

इस कड़ी में नया मोड़ उस समय आया जब जीडीए ने सुहेल अहमद को 16 मई 2024 को नोटिस जारी कर कहा कि उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम 1973 की धारा 14 व 15 के अनुसार प्राधिकरण की इजाजत लिए बिना और नक्शा स्वीकृत कराए बिना ग्राउंड फ्लोर का निर्माण कर लिया गया है और दूसरे फ्लोर की शटरिग का काम किया जा रहा है। उस समय जीडीए ने 30 मई 2024 तक जवाब देने को कहा था।

शुएब अहमद के अनुसार, 16 मई 2024 की नोटिस का डिटेल जवाब उनके पिता सुहेल अहमद की ओर विकास प्राधिकरण के समक्ष 09/6/2024 को प्रस्तुत किया गया। इसके बाद जीडीए ने दाखिल किए गए जवाब के क्रम में प्रपत्रों की विधिमान्य व सत्य प्रतिलिपि प्रस्तुत करने को कहा। इसी बीच 12 जुलाई 2024 को उनके पिता का इंतकाल हो गया। उन्होंने कहा कि, ‘मैंने 11 सितंबर को जीडीए को दीवानी न्यायालय की डिक्री, पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र और नगर निगम बोर्ड द्वारा पारित प्रस्ताव की प्रति दाखिल की। पांच फरवरी 2025 का नोटिस 13 फरवरी को मिला, 14 फरवरी को आपत्ति दाखिल करते हुए जवाब देने के लिए समय की मांग की गई लेकिन समय नहीं देते हुए अगले ही दिन 15 फरवरी को ध्वस्त करने का आदेश दे दिया गया।’

15 फरवरी को जीडीए द्वारा जारी ध्वस्तीकरण आदेश में कहा गया कि, ‘क्षेत्रीय अवर अभियंता द्वारा स्थल निरीक्षण के दौरान पाया गया कि 60 वर्ग मीटर में ग्राउंड फ्लोर, फर्स्ट फ्लोर का निर्माण करते हुए वर्तमान में द्वितीय तल की शटरिंग का काम किया जा रहा है। कोई स्वीकृत मानचित्र नहीं दिखाया गया। उक्त निर्माण को लेकर क्षेत्रीय अवर अभियंता द्वारा उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 की सुसंगत धाराओं के अंतर्गत दिनांक-15.05.2024 को पीठासीन अधिकारी के समक्ष चालान प्रस्तुत किया गया। इस चालानी रिपोर्ट का संज्ञान होने पर निर्माण के विरुद्ध वाद सं०-GRDA/ ANI/ 2024/ 0001624 दर्ज करते हुए निर्माणकर्ता को कारण बताओं नोटिस जारी कर दिनांक-30.05.2024 को कार्यालय में उपस्थित होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु अवसर देने के साथ जारी किया गया।'

नोटिस में आगे कहा गया कि पक्षकार शुऐब अहमद निर्धारित तारीख पर पेश नहीं हुए। इस क्रम में पुनः सुनवाई हेतु 04.02.2025 व 15.02.2025 की तिथि निर्धारित करते हुए फिर से सूचना नोटिस जारी किया गया। पर पक्ष द्वारा अपने निर्माण के सम्बन्ध में सुनवाई किए जाने हेतु कोई रुचि नहीं ली गई। उपस्थित नहीं हुए और न ही अनाधिकृत निर्माण का स्वीकृत मानचित्र अथवा नक्शा/अभिलेख प्रस्तुत किया गया, जिससे यह स्पष्ट है कि क्षेत्रीय अवर अभियंता द्वारा किया गया चालानी रिपोर्ट अवैध निर्माण को प्रदर्शित करता है तथा निर्माण का कोई मानचित्र स्वीकृत न होने के कारण निर्माण अवैध है, जिसके विरुद्ध ध्वस्तीकरण आदेश पारित किया जाना नियम संगत है।’

इसके अनुसार, ‘अब शुऐब अहमद को आदेशित किया जाता है, कि उक्त अवैध निर्माण को इस आदेश के पारित होने के 15 दिनों के भीतर ध्वस्त कर लें, अन्यथा निर्धारित अवधि के बाद उक्त अवैध निर्माण को प्राधिकरण द्वारा ध्वस्त किए जाने पर ध्वस्तीकरण में होने वाले व्यय को भू-राजस्व की भांति अवैध निर्माणकर्ता श्री शुऐब अहमद से वसूल किया जाएगा।’

जीडीए नोटिस में कहा गया है कि सुहेल अहमद ने 16 मई 2024 और उसके बाद चार फरवरी 2025 और 15 फरवरी 2025 को सुनवाई की तिथि पर उपस्थित नहीं हुए और स्वीकृत मानचित्र, अभिलेख प्रस्तुत किया गया जबकि मस्जिद पक्ष का कहना है कि उन्होंने हर नोटिस का जवाब दिया है।

शुएब अहमद के अधिवक्ता जय प्रकाश नारायण श्रीवास्तव का कहना है कि मस्जिद की जमीन को लेकर कोई सवाल नहीं है। जीडीए नक्शे को आधार बनाकर ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है जबकि नगर विकास विभाग द्वारा साल 2008 का आदेश है कि 100 वर्ग मीटर तक भूमि पर निर्माण के लिए नक्शे की जरूरत नहीं है। मस्जिद सिर्फ 24×26 वर्ग फीट पर बनी है। इसलिए उसके लिए नक्शे की कोई जरूरत नहीं है।

शुएब अहमद के अनुसार उनके पिता ने नगर निगम द्वारा दी गई जमीन पर मस्जिद निर्माण के पहले जीडीए में नक्शा बनवाने के लिए जानकारी ली, तो वहां से भी बताया गया कि इतनी कम भूमि पर निर्माण के लिए नक्शे की जरूरत नहीं है।

कांग्रेस के निर्वतमान प्रदेश उपाध्यक्ष विश्व विजय सिंह ने 20 फरवरी को मेवातीपुर का दौरा कर मस्जिद के व्यवस्थापकों से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि सरकार और गोरखपुर प्रशासन नफरती राजनीति से प्रेरित होकर निर्णय ले रहा है। एक साल पहले अवैधानिक तरीके से पुरानी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया। नगर निगम द्वारा जमीन देने पर जब दोबारा मस्जिद बनी तो अब नक्शे का आधार लेकर उसे ध्वस्त करने का आदेश दिया गया गया है। सरकार समाज को विभाजित करने के लिए इस तरह का काम करा रही है।

ज्ञात हो कि गोरखपुर के करीब कुशीनगर के हाटा में 9 फरवरी को मदनी मस्जिद को अवैध कब्जा, नक्शे के विपरीत निर्माण का आरोप लगाकर 9 फरवरी को ध्वस्त कर दिया गया। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को कुशीनगर के जिलाधिकारी के खिलाफ शीर्ष अदालत के नवंबर 2024 के एक फैसले का उल्लंघन करने के लिए अवमानना नोटिस जारी किया है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर महीने में अपने फैसले में देश भर में बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी थी। 

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