महंगाई रोकने को सरकार की रीति नीति पूर्णतया फेल नजर आ रही है। खाद्य उत्पादों की बात करें तो आलम यह है कि न उपभोक्ता खुश है और न ही उत्पादक यानी किसान। अब प्याज को ही लें तो अभी तक उपभोक्ता 60 से 80 रुपए तक प्याज खरीदने को मजबूर था। उपभोक्ता को बचाने को सरकार ने निर्यात बैन किया तो उसका असर ये हुआ कि प्याज बेचने के लिए किसान को जेब से पैसे चुकाने पड़ रहे हैं। हां, बिचौलियों की जरूर बल्ले बल्ले है।
जी हां, एक्सपोर्ट बैन के बाद प्याज के दाम धड़ाम हो गए हैं। किसान नवंबर में जिस प्याज को 40 रुपये किलो के हिसाब से थोक में बेच रहा था उसका दाम अब 10 रुपये किलो तक भी नहीं मिल पा रहा है। महंगाई कम करने के नाम पर, किए गए इस फैसले से किसान हलकान है। हद तो तब हो गई जब एक किसान को फसल बेचने के लिए अपनी जेब से पैसा देना पड़ा है। एबीपी न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के बीड जिले में एक किसान को अपनी फसल बेचने के लिए 565 रुपये का भुगतान करना पड़ा। इससे गुस्साए किसान ने बची प्याज को फेंक दिया। जानकार इसे प्याज के निर्यात पर लगी रोक के साइड इफेक्ट के रूप में देख रहे हैं!
आखिर किसान को उसकी फसल का सही दाम कब मिलेगा? दूसरी ओर, उपभोक्ता भी खुश रहे। खास है कि उपभोक्ता मामले विभाग की जिम्मेदारी उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने की है और यह काम वह बखूबी कर रहा है। लेकिन कृषि मंत्रालय का काम किसानों के हितों की रक्षा करना है, जिसमें वो बुरी तरह से फेल साबित हुआ है। ऐसा लगता है कि उपभोक्ता मामले विभाग ने कृषि मंत्रालय को दबा रखा है।
देखा जाए तो प्याज के निर्यात पर रोक लगने से किसान मुसीबत में पड़ गए गए हैं। प्याज के दाम गिरने से किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिल पा रही है। आलम यह है कि मंडी में किसानों को एक रुपये प्रति किलो तक का भाव मिल रहा है। इस बीच महाराष्ट्र के बीड से एक चौंका देने वाली खबर सामने आई, जहां एक किसान को अपनी फसल बेचने के लिए जेब से पैसे भरने पड़े हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के गृहमंत्री धनंजय मुंडे के गृह जिले बीड के नेकनूर गांव में रहने वाले किसान वैभव शिंदे बीती 20 दिसंबर को अपनी प्याज बेचने के लिए सोलापुर की मंडी गए। इस दौरान व्यापारियों ने वैभव की प्याज का दाम कौड़ियों के भाव लगाया। इतना ही नहीं उन्हें 565 रुपये अपनी जेब से व्यापारी को देने पड़े।
बचे हुए प्याज को फेंका
रिपोर्ट के अनुसार, वैभव के पास कुल 7 एकड़ जमीन है, इसमें से दो एकड़ की जमीन पर 70 हजार रुपये प्रति एकड़ का खर्च करते हुए प्याज की फसल लगाई थी। वैभव शिंदे को उम्मीद थी अच्छी पैदावार होगी, उससे वह जो पैसा कमाएंगे उनसे उनकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी। प्याज का उचित दाम न मिलने पर गुस्से में आकर वैभव ने बचे हुए प्याज को खेत में ही फेंक दिया।
'किसान भीख मांगने पर मजबूर'
प्याज किसानों की इस हालत पर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला है। शिवसेना (उद्धव गुट) के प्रवक्ता आनंद दुबे ने तंज कसते हुए कहा सरकार सिर्फ उद्योगपतियों की सुन रही है और उन्हीं की मदद कर रही है। राज्य के किसानों की कोई सुध नहीं ले रहा है। किसान भीख मांगने पर मजबूर हो गए हैं। सरकार बदलने के बाद ही महाराष्ट्र के किसानों की हालत सुधरेगी।
विधानसभा से लेकर संसद तक उठा प्याज का मुद्दा
गौरतलब है कि संसद के शीतकालीन सत्र और महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्याज का मुद्दा खूब जोर शोर से उठाया गया था। वहीं सांसद सुप्रिया सुले ने भी प्याज को लेकर संसद में सरकार से सवाल किया था। शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के विधायक संजय सिरसाट का कहना है कि एक दो जगह से ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां प्याज की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान सहना पड़ा है।
प्याज: 5 महीने, 4 फैसले और तबाह हो गए प्याज किसान, कोई सही नीति नहीं सरकार के पास
सरकार के फैसलों से प्याज के किसान परेशान हैं। एक्सपोर्ट बैन के बाद प्याज के दाम धड़ाम हो गए हैं। किसान नवंबर में जिस प्याज को 40 रुपये किलो के हिसाब से थोक में बेच रहा था उसका दाम अब 10 रुपये भी नहीं मिल रहा है। महंगाई कम करने के इरादे से लिए गए इस फैसले से किसान हलकान है। महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि प्याज को राजनीतिक फसल मानकर सरकार लगातार उत्पादकों को परेशान कर रही है। आलम यह है कि देश के प्याज उत्पादक किसानों को सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। पिछले पांच महीने में ही सरकार ने प्याज के दाम पर वार करने वाले चार ऐसे फैसले लिए हैं कि किसान तबाह हो गए हैं।
अब प्याज की खेती करने वाले किसानों को कब अच्छा दाम मिलेगा कहा नहीं जा सकता। क्योंकि तीन महीने बाद लोकसभा के चुनाव हैं और ऐसे में सरकार नहीं चाहेगी कि प्याज के दाम बढ़ें। उपभोक्ता मामले विभाग पूरी कोशिश कर रहा है कि प्याज के दाम न बढ़ें. उपभोक्ता मामले विभाग की जिम्मेदारी उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने की है और यह काम वह बखूबी कर रहा है। लेकिन कृषि मंत्रालय का काम किसानों के हितों की रक्षा करना है, जिसमें वो बुरी तरह से फेल साबित हुआ है. ऐसा लगता है कि उपभोक्ता मामले विभाग ने कृषि मंत्रालय को दबा रखा है।
प्याज पर एक्सपोर्ट ड्यूटी से हुआ नुकसान
आईए समझते हैं कि आखिर सरकार के किन फैसलों से प्याज उत्पादक किसानों पर आर्थिक मार पड़ी है। पिछले दो साल से किसान प्याज को थोक में 2 से 10 रुपये प्रति किलो तक के भाव पर बेच रहे थे। यह दाम उत्पादन लागत से कम है। तब किसान सरकार से प्याज को एमएसपी के दायरे में लाने की मांग कर रहे थे, लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया। इसके बाद, जब अगस्त में प्याज के दाम बढ़ने लगे तो सरकार को उपभोक्ताओं की चिंता सताने लगी। तब महंगाई कम करने के लिए केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को प्याज पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी। इससे दाम गिर गया। हालांकि, कुछ ही दिन बाद दाम फिर बढ़ने लगे।
इन फैसलों से बढ़ी किसानों की परेशानी
प्याज के बढ़ रहे दाम को घटाने और घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने 28 अक्टूबर को एक बड़ा फैसला लेते हुए इसके एक्सपोर्ट पर 800 डॉलर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगा दिया। ताकि प्याज का एक्सपोर्ट कम हो जाए। चूंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक है इसलिए यहां से कई मुल्कों में बड़े पैमाने पर प्याज एक्सपोर्ट होता है। एमईपी लगाने के बाद दाम पर थोड़ा सा ब्रेक लगा लेकिन सरकार उससे संतुष्ट नहीं हुई। इसलिए 7 दिसंबर को प्याज के निर्यात पर बैन लगा दिया गया। इस फैसले के बाद दाम 40 से 50 फीसदी तक गिर गए हैं।
किसानों की नजर में खलनायक बने नेफेड-एनसीसीएफ
सरकार ने नेफेड और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) से बाजार के मुकाबले काफी कम दाम पर प्याज बिकवाना शुरू किया। इससे बाजार की नेचुरल चाल खराब हो गई। दाम गिरने लगे। पूरे देश में दोनों एजेंसियों ने केंद्र सरकार के कहने पर 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्याज बेचा। इसकी वजह से ये दोनों संस्थाएं किसानों की नजर में खलनायक बन गईं। नफेड की स्थापना किसानों के हित के लिए हुई है, लेकिन आजकल वो किसानों के हितों को कुचलकर कंज्यूमर्स के हितों के लिए काम कर रही है। जिससे उसके खिलाफ किसानों में गुस्सा है।
सभी एग्री प्रोडक्ट्स के निर्यात पर MEP लगाएगी सरकार?
प्याज पर एमईपी (minimum export price) लगाने के बारे में गौर करने वाली एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने हाल ही में बासमती चावल पर भी ऐसा फैसला लिया है। लेकिन दूसरी ओर, सरकार ने कहा है कि उसकी सभी एग्री कमोडिटीज (उत्पादों) पर मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP) तय करने की स्पष्ट रूप से कोई योजना नहीं है। वाणिज्य विभाग में अतिरिक्त सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा कि सरकार का सभी एग्री प्रोडक्ट्स के निर्यात को लेकर ऐसा कदम उठाने का कोई इरादा नहीं है।
उन्होंने कहा, मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि सरकार का सभी एग्री प्रोडक्ट्स पर एमईपी लगाने या निर्यात के नजरिये से सभी कृषि उत्पादों की समीक्षा करने का कोई इरादा नहीं है। ऐसा कोई फैसला नहीं है। सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है। अंतर-मंत्रालयी समिति के हॉल ही में बासमती चावल पर ऐसा करने को लेकर, उन्होंने कहा कि इस समिति को व्यापक क्षेत्राधिकार मिलने का मतलब यह नहीं है कि समिति हरेक कृषि उत्पाद पर गौर करेगी और उसके लिए एमईपी लगाने की सिफारिश करना शुरू कर देगी। बताया कि गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद, भारत ने 14 से अधिक देशों के खाद्य सुरक्षा मसलों को देखते हुए उन्हें निर्यात के लिए 13 लाख टन चावल आवंटित किया है।
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आखिर किसान को उसकी फसल का सही दाम कब मिलेगा? दूसरी ओर, उपभोक्ता भी खुश रहे। खास है कि उपभोक्ता मामले विभाग की जिम्मेदारी उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने की है और यह काम वह बखूबी कर रहा है। लेकिन कृषि मंत्रालय का काम किसानों के हितों की रक्षा करना है, जिसमें वो बुरी तरह से फेल साबित हुआ है। ऐसा लगता है कि उपभोक्ता मामले विभाग ने कृषि मंत्रालय को दबा रखा है।
देखा जाए तो प्याज के निर्यात पर रोक लगने से किसान मुसीबत में पड़ गए गए हैं। प्याज के दाम गिरने से किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिल पा रही है। आलम यह है कि मंडी में किसानों को एक रुपये प्रति किलो तक का भाव मिल रहा है। इस बीच महाराष्ट्र के बीड से एक चौंका देने वाली खबर सामने आई, जहां एक किसान को अपनी फसल बेचने के लिए जेब से पैसे भरने पड़े हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के गृहमंत्री धनंजय मुंडे के गृह जिले बीड के नेकनूर गांव में रहने वाले किसान वैभव शिंदे बीती 20 दिसंबर को अपनी प्याज बेचने के लिए सोलापुर की मंडी गए। इस दौरान व्यापारियों ने वैभव की प्याज का दाम कौड़ियों के भाव लगाया। इतना ही नहीं उन्हें 565 रुपये अपनी जेब से व्यापारी को देने पड़े।
बचे हुए प्याज को फेंका
रिपोर्ट के अनुसार, वैभव के पास कुल 7 एकड़ जमीन है, इसमें से दो एकड़ की जमीन पर 70 हजार रुपये प्रति एकड़ का खर्च करते हुए प्याज की फसल लगाई थी। वैभव शिंदे को उम्मीद थी अच्छी पैदावार होगी, उससे वह जो पैसा कमाएंगे उनसे उनकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी। प्याज का उचित दाम न मिलने पर गुस्से में आकर वैभव ने बचे हुए प्याज को खेत में ही फेंक दिया।
'किसान भीख मांगने पर मजबूर'
प्याज किसानों की इस हालत पर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला है। शिवसेना (उद्धव गुट) के प्रवक्ता आनंद दुबे ने तंज कसते हुए कहा सरकार सिर्फ उद्योगपतियों की सुन रही है और उन्हीं की मदद कर रही है। राज्य के किसानों की कोई सुध नहीं ले रहा है। किसान भीख मांगने पर मजबूर हो गए हैं। सरकार बदलने के बाद ही महाराष्ट्र के किसानों की हालत सुधरेगी।
विधानसभा से लेकर संसद तक उठा प्याज का मुद्दा
गौरतलब है कि संसद के शीतकालीन सत्र और महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्याज का मुद्दा खूब जोर शोर से उठाया गया था। वहीं सांसद सुप्रिया सुले ने भी प्याज को लेकर संसद में सरकार से सवाल किया था। शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के विधायक संजय सिरसाट का कहना है कि एक दो जगह से ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां प्याज की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान सहना पड़ा है।
प्याज: 5 महीने, 4 फैसले और तबाह हो गए प्याज किसान, कोई सही नीति नहीं सरकार के पास
सरकार के फैसलों से प्याज के किसान परेशान हैं। एक्सपोर्ट बैन के बाद प्याज के दाम धड़ाम हो गए हैं। किसान नवंबर में जिस प्याज को 40 रुपये किलो के हिसाब से थोक में बेच रहा था उसका दाम अब 10 रुपये भी नहीं मिल रहा है। महंगाई कम करने के इरादे से लिए गए इस फैसले से किसान हलकान है। महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि प्याज को राजनीतिक फसल मानकर सरकार लगातार उत्पादकों को परेशान कर रही है। आलम यह है कि देश के प्याज उत्पादक किसानों को सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। पिछले पांच महीने में ही सरकार ने प्याज के दाम पर वार करने वाले चार ऐसे फैसले लिए हैं कि किसान तबाह हो गए हैं।
अब प्याज की खेती करने वाले किसानों को कब अच्छा दाम मिलेगा कहा नहीं जा सकता। क्योंकि तीन महीने बाद लोकसभा के चुनाव हैं और ऐसे में सरकार नहीं चाहेगी कि प्याज के दाम बढ़ें। उपभोक्ता मामले विभाग पूरी कोशिश कर रहा है कि प्याज के दाम न बढ़ें. उपभोक्ता मामले विभाग की जिम्मेदारी उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने की है और यह काम वह बखूबी कर रहा है। लेकिन कृषि मंत्रालय का काम किसानों के हितों की रक्षा करना है, जिसमें वो बुरी तरह से फेल साबित हुआ है. ऐसा लगता है कि उपभोक्ता मामले विभाग ने कृषि मंत्रालय को दबा रखा है।
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आईए समझते हैं कि आखिर सरकार के किन फैसलों से प्याज उत्पादक किसानों पर आर्थिक मार पड़ी है। पिछले दो साल से किसान प्याज को थोक में 2 से 10 रुपये प्रति किलो तक के भाव पर बेच रहे थे। यह दाम उत्पादन लागत से कम है। तब किसान सरकार से प्याज को एमएसपी के दायरे में लाने की मांग कर रहे थे, लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया। इसके बाद, जब अगस्त में प्याज के दाम बढ़ने लगे तो सरकार को उपभोक्ताओं की चिंता सताने लगी। तब महंगाई कम करने के लिए केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को प्याज पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी। इससे दाम गिर गया। हालांकि, कुछ ही दिन बाद दाम फिर बढ़ने लगे।
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सरकार ने नेफेड और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (एनसीसीएफ) से बाजार के मुकाबले काफी कम दाम पर प्याज बिकवाना शुरू किया। इससे बाजार की नेचुरल चाल खराब हो गई। दाम गिरने लगे। पूरे देश में दोनों एजेंसियों ने केंद्र सरकार के कहने पर 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्याज बेचा। इसकी वजह से ये दोनों संस्थाएं किसानों की नजर में खलनायक बन गईं। नफेड की स्थापना किसानों के हित के लिए हुई है, लेकिन आजकल वो किसानों के हितों को कुचलकर कंज्यूमर्स के हितों के लिए काम कर रही है। जिससे उसके खिलाफ किसानों में गुस्सा है।
सभी एग्री प्रोडक्ट्स के निर्यात पर MEP लगाएगी सरकार?
प्याज पर एमईपी (minimum export price) लगाने के बारे में गौर करने वाली एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने हाल ही में बासमती चावल पर भी ऐसा फैसला लिया है। लेकिन दूसरी ओर, सरकार ने कहा है कि उसकी सभी एग्री कमोडिटीज (उत्पादों) पर मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP) तय करने की स्पष्ट रूप से कोई योजना नहीं है। वाणिज्य विभाग में अतिरिक्त सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा कि सरकार का सभी एग्री प्रोडक्ट्स के निर्यात को लेकर ऐसा कदम उठाने का कोई इरादा नहीं है।
उन्होंने कहा, मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि सरकार का सभी एग्री प्रोडक्ट्स पर एमईपी लगाने या निर्यात के नजरिये से सभी कृषि उत्पादों की समीक्षा करने का कोई इरादा नहीं है। ऐसा कोई फैसला नहीं है। सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है। अंतर-मंत्रालयी समिति के हॉल ही में बासमती चावल पर ऐसा करने को लेकर, उन्होंने कहा कि इस समिति को व्यापक क्षेत्राधिकार मिलने का मतलब यह नहीं है कि समिति हरेक कृषि उत्पाद पर गौर करेगी और उसके लिए एमईपी लगाने की सिफारिश करना शुरू कर देगी। बताया कि गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद, भारत ने 14 से अधिक देशों के खाद्य सुरक्षा मसलों को देखते हुए उन्हें निर्यात के लिए 13 लाख टन चावल आवंटित किया है।
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