सिविल कोर्ट के घेराव और अदालत के बाहर प्रदर्शन और हिंसा की घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए, झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से जवाब तलब किया और मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत परिसर में हुई ऐसी घटना खुफिया विभाग की असफलता प्रतीत होती है। इस पर हरकत में आई पुलिस ने ताना भगत संप्रदाय के 30 आदिवासियों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। आरोप है कि ताना भगत आदिवासियों ने प्रधान न्यायाधीश के चेंबर को घंटों बंद करके रखा था। पूर्ण स्वशासन की मांग कर रहे ताना भगतों की कहना है कि अदालत को बंद किया जाए क्योंकि जिला प्रशासन इलाके में प्रचलित संवैधानिक प्रावधानों को नजरअंदाज कर रहा है।
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सिविल कोर्ट का घेराव कर रहे ताना भगत आदिवासी समुदाय के लोगों को तितर-बितर करने के लिए सोमवार को पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और पानी की बौछार की थी। इस दौरान पत्थरबाजी भी हुई। पुलिस ने कहा कि 500 से अधिक लोग लाठियों और दरांतियों से लैस होकर अदालत के बाहर जमा हो गए और परिसर में ताला लगा दिया, जिससे काम ठप हो गया। पुलिस ने कहा कि वे अदालतों या सरकारों की भूमिका के बिना पूर्ण स्वशासन की मांग कर रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस और जनज्वार न्यूज पोर्टल में छपी खबरों के अनुसार, लातेहार के एसपी अंजनी अंजन ने कहा, “वे संविधान की 5वीं अनुसूची की गलत व्याख्या कर रहे हैं और अदालतों या सरकारों की भूमिका के बिना पूर्ण स्वशासन की मांग कर रहे थे। सोमवार को वे हथियार लेकर आए और लोहे की ग्रिल तोड़कर प्रशासन के साथ गाली-गलौज करने लगे। उन्होंने पुलिस पर पथराव भी किया जिस पर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।”
प्राथमिकी में नामजद आरोपियों में अखिल भारतीय ताना भगत समिति के सचिव बहादुर ताना भगत और उसके नेता राजेंद्र ताना भगत, मनोज कुमार मिंज, धर्मदेव भगत, धनेश्वर टोप्पो और अजीत मिंज शामिल हैं। एसपी अंजन ने कहा कि घटना में 5 पुलिसकर्मी घायल हो गए। उन्होंने कहा, “हम इन प्रदर्शनकारियों पर कड़ी निगरानी रख रहे हैं क्योंकि तीन वर्षों में यह तीसरी बार है जब उन्होंने ऐसा कुछ किया है। पिछली बार उन्होंने पूरे कलेक्ट्रेट को पांच दिन के लिए बंद कर दिया था। दो साल पहले उन्होंने रेलवे ट्रैक पर आंदोलन किया था। कोई ताकत है जो उन्हें गुमराह कर रही है और उनका ब्रेनवॉश कर रही है। हम मामले की जांच कर रहे हैं।”
पुलिस का कहना है कि ताना भगतों का इतिहास 1914-1920 का है जब उन्होंने अंग्रेजों तथा 'सामंतों' और उनके शोषणकारी व्यवहारों के खिलाफ सविनय अवज्ञा का सहारा लिया था। संविधान की पांचवीं अनुसूची “आदिवासी स्वायत्तता, उनकी संस्कृति, आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने और शांति और सुशासन के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए है।”
अखिल भारतीय ताना भगत संघ के प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत लातेहार में अदालत का परिचालन और बाहरी लोगों के रोजगार और प्रवेश पर रोक है। उन्होंने कहा कि तब तक प्रदर्शन किया जाएगा जब तक सरकारी संस्थानों, पुलिस और न्यायपालिका को उन्हें सौंप नहीं दिया जाता। वहीं इस घटना के एक दिन बाद झारखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से जवाब तलब किया। उच्च न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी की कि अदालत परिसर में हुई ऐसी घटना खुफिया विभाग की असफलता प्रतीत होती है।
मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने मुख्य सचिव सुखदेव सिंह और पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने का निर्देश दिया। दोनों शीर्ष अधिकारियों के अदालत में पेश होने के बाद पीठ ने उनसे रांची से करीब 110 किलोमीटर दूर लातेहार में हुई घटना पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि अदालत की सुरक्षा में सेंध लगी और पुलिस को इस मामले में और अधिक सतर्क होना चाहिए था। अदालत ने सरकार को अदालत परिसरों की कड़ी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया। उच्च न्यायालय इस मामले पर अगले सप्ताह सुनवाई करेगा।
इससे पहले सोमवार को हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद पुलिस उपाधीक्षक संतोष मिश्रा ने बताया कि आक्रोशित प्रदर्शनकारियों ने मौके पर पहुंचे जिला प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों से बातचीत करने से इनकार कर दिया। इस दौरान पत्थरबाजी भी शुरू कर दी, जिसमें सात पुलिस कर्मी घायल हो गए। उन्होंने बताया कि घायलों में एक पुलिस निरीक्षक और तीन महिला कांस्टेबल शामिल हैं।
पुलिस उपाधीक्षक ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने अदालत को बंद करने की मांग को लेकर नारेबाजी की और सड़क मार्ग बाधित कर दिया। जिसके बाद पुलिस को स्थिति को संभालने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े और पानी की बौछार करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि आंदोलन की खुफिया रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने अदालत के प्रवेश द्वार को बंद कर दिया था और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था लेकिन आंदोलनकारी जबरन अदालत परिसर में घुस गए।
वहीं अखिल भारतीय ताना भगत संघ के प्रदर्शनकारियों-कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत लातेहार में अदालत का परिचालन, बाहरी लोगों के रोजगार के साथ-साथ प्रवेश पर रोक है। उन्होंने कहा कि तब तक प्रदर्शन किया जाएगा, जब तक सरकारी संस्थानों, पुलिस और न्यायपालिका को उन्हें सौंप नहीं दिया जाता है। इसके अलावा संतोष मिश्रा ने कहा कि आखिरकार शाम को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ दिया और अदालत परिसर और उसके आसपास पुलिस बल तैनात कर दिया गया। आदिवासियों में किसी के हताहत होने का अभी पता नहीं चला है। डीएसपी ने कहा कि न्यायाधीशों और अदालत के अधिकारियों के आवास और उसके आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।
उधर, झारखंड हाईकोर्ट ने लातेहार सिविल कोर्ट में सोमवार को हुए हंगामे की रिपोर्ट मांगी है। ताना भगतों के अदालत परिसर में तोड़फोड़ के बाद लातेहार के प्रधान जिला जज ने घटना की जानकारी हाईकोर्ट को दी है। ताना भगत पांचवीं अनुसूची का हवाला देकर आंदोलन कर रहे हैं। वह पांचवीं अनुसूची के तहत कोर्ट चलाने को असंवैधानिक बता रहे थे। ये लोग कोर्ट परिसर में न्यायाधीश को बुलाने की मांग पर अड़ गए थे। आदिवासी ज़िला लातेहार 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, जो अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा या उनके बीच भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करता है। साथ ही अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को भूमि के आवंटन और उन्हें साहूकारों द्वारा व्यापार करने को नियंत्रित करता है।
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सिविल कोर्ट का घेराव कर रहे ताना भगत आदिवासी समुदाय के लोगों को तितर-बितर करने के लिए सोमवार को पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और पानी की बौछार की थी। इस दौरान पत्थरबाजी भी हुई। पुलिस ने कहा कि 500 से अधिक लोग लाठियों और दरांतियों से लैस होकर अदालत के बाहर जमा हो गए और परिसर में ताला लगा दिया, जिससे काम ठप हो गया। पुलिस ने कहा कि वे अदालतों या सरकारों की भूमिका के बिना पूर्ण स्वशासन की मांग कर रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस और जनज्वार न्यूज पोर्टल में छपी खबरों के अनुसार, लातेहार के एसपी अंजनी अंजन ने कहा, “वे संविधान की 5वीं अनुसूची की गलत व्याख्या कर रहे हैं और अदालतों या सरकारों की भूमिका के बिना पूर्ण स्वशासन की मांग कर रहे थे। सोमवार को वे हथियार लेकर आए और लोहे की ग्रिल तोड़कर प्रशासन के साथ गाली-गलौज करने लगे। उन्होंने पुलिस पर पथराव भी किया जिस पर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।”
प्राथमिकी में नामजद आरोपियों में अखिल भारतीय ताना भगत समिति के सचिव बहादुर ताना भगत और उसके नेता राजेंद्र ताना भगत, मनोज कुमार मिंज, धर्मदेव भगत, धनेश्वर टोप्पो और अजीत मिंज शामिल हैं। एसपी अंजन ने कहा कि घटना में 5 पुलिसकर्मी घायल हो गए। उन्होंने कहा, “हम इन प्रदर्शनकारियों पर कड़ी निगरानी रख रहे हैं क्योंकि तीन वर्षों में यह तीसरी बार है जब उन्होंने ऐसा कुछ किया है। पिछली बार उन्होंने पूरे कलेक्ट्रेट को पांच दिन के लिए बंद कर दिया था। दो साल पहले उन्होंने रेलवे ट्रैक पर आंदोलन किया था। कोई ताकत है जो उन्हें गुमराह कर रही है और उनका ब्रेनवॉश कर रही है। हम मामले की जांच कर रहे हैं।”
पुलिस का कहना है कि ताना भगतों का इतिहास 1914-1920 का है जब उन्होंने अंग्रेजों तथा 'सामंतों' और उनके शोषणकारी व्यवहारों के खिलाफ सविनय अवज्ञा का सहारा लिया था। संविधान की पांचवीं अनुसूची “आदिवासी स्वायत्तता, उनकी संस्कृति, आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने और शांति और सुशासन के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए है।”
अखिल भारतीय ताना भगत संघ के प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत लातेहार में अदालत का परिचालन और बाहरी लोगों के रोजगार और प्रवेश पर रोक है। उन्होंने कहा कि तब तक प्रदर्शन किया जाएगा जब तक सरकारी संस्थानों, पुलिस और न्यायपालिका को उन्हें सौंप नहीं दिया जाता। वहीं इस घटना के एक दिन बाद झारखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से जवाब तलब किया। उच्च न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी की कि अदालत परिसर में हुई ऐसी घटना खुफिया विभाग की असफलता प्रतीत होती है।
मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने मुख्य सचिव सुखदेव सिंह और पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने का निर्देश दिया। दोनों शीर्ष अधिकारियों के अदालत में पेश होने के बाद पीठ ने उनसे रांची से करीब 110 किलोमीटर दूर लातेहार में हुई घटना पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि अदालत की सुरक्षा में सेंध लगी और पुलिस को इस मामले में और अधिक सतर्क होना चाहिए था। अदालत ने सरकार को अदालत परिसरों की कड़ी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया। उच्च न्यायालय इस मामले पर अगले सप्ताह सुनवाई करेगा।
इससे पहले सोमवार को हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद पुलिस उपाधीक्षक संतोष मिश्रा ने बताया कि आक्रोशित प्रदर्शनकारियों ने मौके पर पहुंचे जिला प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों से बातचीत करने से इनकार कर दिया। इस दौरान पत्थरबाजी भी शुरू कर दी, जिसमें सात पुलिस कर्मी घायल हो गए। उन्होंने बताया कि घायलों में एक पुलिस निरीक्षक और तीन महिला कांस्टेबल शामिल हैं।
पुलिस उपाधीक्षक ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने अदालत को बंद करने की मांग को लेकर नारेबाजी की और सड़क मार्ग बाधित कर दिया। जिसके बाद पुलिस को स्थिति को संभालने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े और पानी की बौछार करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि आंदोलन की खुफिया रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने अदालत के प्रवेश द्वार को बंद कर दिया था और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था लेकिन आंदोलनकारी जबरन अदालत परिसर में घुस गए।
वहीं अखिल भारतीय ताना भगत संघ के प्रदर्शनकारियों-कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत लातेहार में अदालत का परिचालन, बाहरी लोगों के रोजगार के साथ-साथ प्रवेश पर रोक है। उन्होंने कहा कि तब तक प्रदर्शन किया जाएगा, जब तक सरकारी संस्थानों, पुलिस और न्यायपालिका को उन्हें सौंप नहीं दिया जाता है। इसके अलावा संतोष मिश्रा ने कहा कि आखिरकार शाम को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ दिया और अदालत परिसर और उसके आसपास पुलिस बल तैनात कर दिया गया। आदिवासियों में किसी के हताहत होने का अभी पता नहीं चला है। डीएसपी ने कहा कि न्यायाधीशों और अदालत के अधिकारियों के आवास और उसके आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।
उधर, झारखंड हाईकोर्ट ने लातेहार सिविल कोर्ट में सोमवार को हुए हंगामे की रिपोर्ट मांगी है। ताना भगतों के अदालत परिसर में तोड़फोड़ के बाद लातेहार के प्रधान जिला जज ने घटना की जानकारी हाईकोर्ट को दी है। ताना भगत पांचवीं अनुसूची का हवाला देकर आंदोलन कर रहे हैं। वह पांचवीं अनुसूची के तहत कोर्ट चलाने को असंवैधानिक बता रहे थे। ये लोग कोर्ट परिसर में न्यायाधीश को बुलाने की मांग पर अड़ गए थे। आदिवासी ज़िला लातेहार 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, जो अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा या उनके बीच भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करता है। साथ ही अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को भूमि के आवंटन और उन्हें साहूकारों द्वारा व्यापार करने को नियंत्रित करता है।