MP: विश्व आदिवासी दिवस पर मारे गए चैन सिंह भील की हत्या में दोषी वनकर्मियों को बचाने की कोशिश?

Written by Navnish Kumar | Published on: September 16, 2022
मध्य प्रदेश की भाजपानीत शिवराज सरकार आदिवासियों के लिए एक के बाद एक बड़े बड़े आयोजन कर रही है। आदिवासी विकास की घोषणाएं की जा रही हैं लेकिन आदिवासियों पर अत्याचार कम नहीं हो रहा है। मध्य प्रदेश आदिवासी अत्याचार के मामले में देश पर में अव्वल है। वन विभाग की फायरिंग में मारे गए 35 वर्षीय आदिवासी युवक चैन सिंह भील का ताजा मामला भी ऐसा ही है जिसमें दोषी वनकर्मियों पर कार्रवाई न होने को लेकर आदिवासियों में भयंकर रोष व्याप्त है। खास है कि 9 अगस्त को मध्य प्रदेश के विदिशा ज़िला में लटेरी के पास वन विभाग के कर्मचारी की फायरिंग में आदिवासी चैन सिंह भील की मौत हो गई थी।



मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 9 अगस्त को जब पूरी दुनिया विश्व आदिवासी दिवस मना रही थी, तब मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के लटेरी के पास खट्यापुरा में वन कर्मियों द्वारा की गई फायरिंग में आदिवासी युवक चैन सिंह भील की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे। उसी रात पीड़ितों के परिवार वाले और स्थानीय युवा सुनील आदिवासी वन कर्मियों की गिरफ्तारी और मुआवजे की मांग करते हुए थाना के सामने धरने पर बैठ गए। यह मामला ज्यादा तूल पकड़ता, इससे पहले ही सरकार ने अपने को आदिवासी हितैषी बताने के लिए संबंधित वनकर्मियों पर मुकदमा करने और पीड़ितों के लिए मुआवजे का ऐलान कर दिया। 

गोंडवाना समय आदि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 10 अगस्त को जिला कलेक्टर ने बताया कि मृतक के परिवार को 25 लाख और प्रत्येक घायलों को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी। 9 अगस्त को गस्त पर गए सभी वनकर्मियों को तत्काल निलंबित किया जाएगा और संबंधित वनकर्मियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 307 एवं 34 के तहत कार्यवाही की जाएगी और मृतक चैन सिंह के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी। 12 अगस्त को डिप्टी रेंजर निर्मल कुमार अहिरवार को गिरफ्तार भी किया गया। अब वे जमानत पर हैं। चैन सिंह के परिवार को 25 लाख और 5 घायलों को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि दे दी गई और 23 अगस्त को उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति पीएस चौहान की अध्यक्षता में एकल जांच आयोग का गठन किया गया, जिसकी कार्यवाही अभी शुरू नहीं हुई है।

नतीजा, भील के परिवार को आर्थिक सहायता तो मिली, लेकिन वनकर्मियों पर अभी तक न तो कोई कार्यवाही हुई है और न ही उन सभी पर कोई एफ़आईआर दर्ज हुई है। दरअसल सरकार द्वारा की जा रही कार्यवाही के खिलाफ वन कर्मियों ने भी आदिवासियों पर लकड़ी तस्करी के आरोप लगाते हुए आंदोलन शुरू कर दिया जिस पर वन मंत्री ने आश्वासन दिया कि न्यायिक जांच के बाद ही कार्यवाही होगी। इसके बाद से मामला ठंडे बस्ते में पड़ा है।

विश्व आदिवासी दिवस के दिन एक आदिवासी की गोली मार कर हत्या की चारों तरफ निंदा हुई। लिहाजा ज़िला प्रशासन ने काफी फुर्ती से कार्रवाई की और आश्वासन दिया लेकिन अब लगता है कि पूरे मामले में शुरूआती तेज़ी सिर्फ सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि को बचाने के लिए था। क्योंकि यह मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का पुराना संसदीय क्षेत्र है और राजधानी भोपाल से सटा इलाका है। मामले में एक गिरफ्तारी के बाद विभाग ने प्रशासन पर दबाव बढ़ाया और आदिवासियों पर जंगल से लकड़ी तस्करी के आरोप लगाएं। बहरहाल मामला ठंडे बस्ते में चला गया जिस पर सामाजिक संगठनों ने एक नागरिक जांच दल गठित कर पूरे मामले की पड़ताल करते हुए रिपोर्ट तैयार की। जांच दल में जागृत आदिवासी दलित संगठन की माधुरी एवं नितिन, राष्ट्रीय आदिवासी क्रांतिकारी संघ के सुनील कुमार आदि शामिल थे।

जांच दल ने पाया है कि वनकर्मियों के दावे पूरी तरह से गलत हैं और आदिवासियों पर गोली चलाने को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। जांच दल में शामिल जागृत आदिवासी दलित संगठन माधुरी ने कहा, “प्रशासन जिस तरह से आदिवासियों को ही दोषी और तस्कर ठहराने की कोशिश कर रहा है वह बेहद शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि जांच दल की पड़ताल में कोई ऐसा सबूत सामने नहीं आया जिससे वन विभाग के दावों को सही माना जा सकता है।“ उन्होंने कहा, “पूरे मामले को अब ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश नज़र आती है। कितने अफ़सोस की बात है कि मध्य प्रदेश के ही खंडवा में आदिवासी जंगल काटने का विरोध कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन उनकी नहीं सुन रहा है। इधर विदिशा में आदिवासी को ही तस्कर साबित करने की कोशिश की जा रही है।”

जांच रिपोर्ट साझा करते हुए माधुरी ने बताया कि पीड़ितों और प्रशासनिक अधिकारियों से मिलने के बाद यह निष्कर्ष सामने आया कि वन कर्मियों द्वारा फ़ायरिंग पूरी तरह से गलत और आदिवासियों पर अत्याचार था। वनकर्मियों का दावा है कि उन पर पथराव हुआ था, लेकिन इसका कोई भी सबूत नहीं है और न कोई भी वनकर्मी घायल हुआ। यदि पथराव की परिस्थिति होती, तो भी उन्हें चेतावनी दे कर हवाई फ़ायरिंग करनी थी, लेकिन उन्होंने चैन सिंह के मुंह पर टॉर्च की रोशनी मार कर सीधा फ़ायरिंग किया। चैन सिंह के फेफड़े और पेट में गोली लगने से 35 वर्षीय आदिवासी किसान चैन सिंह की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद भी वनकर्मियों ने फिर से कई बार फ़ायरिंग किया, जिससे चैन सिंह के भाई गंभीर रूप से घायल हो कर बेहोश हो गए और पीछे से आ रहे कई आदिवासी भी घायल हो गए। चैनसिंह के चार छोटे बच्चे हैं।

माधुरी ने बताया कि वनकर्मियों द्वारा पीड़ितों को लकड़ी तस्कर बताना शर्मनाक है। कलेक्टर, एसडीओ (वन) और ग्रामीणों ने बताया कि मध्यप्रदेश के गुना, राजगढ़ और इनसे सटे राजस्थान के जिलों से लकड़ी की तस्करी हो रही है लेकिन वनकर्मियों द्वारा पीड़ितों को आदतन अपराधी बता कर वे अपने ऊपर हत्या, हत्या के प्रयास एवं अत्याचार के मामले में कार्यवाही शिथिल करवाना चाह रहे हैं। पीड़ितों के आपरधिक रिकॉर्ड नहीं हैं। सिर्फ चैन सिंह पर पिछले साल का एक मामला है, जिसमें अभी विवेचना जारी है। उस मामले के बारे में परिवार का कहना है कि वनकर्मी उनकी मोटरसाइकल घर से उठा कर ले गए और अभी उसे तस्करी कार्यवाही मे ज़ब्त बता रहे हैं। ज़िला कलेक्टर उमा शंकर भार्गव ने भी स्पष्ट तौर पर बताया कि संबंधित आदिवासी समूह आदतन अपराधी या क्रिमिनल प्रवृत्ति के नहीं हैं और उन्होंने स्वीकारा कि इस मामले के पीड़ितों के तस्करी में भागीदारी संबंधित कोई भी जानकारी उनके पास नहीं है। इससे स्पष्ट है कि वन विभाग असली वन तस्करी माफिया पर अंकुश लगाने के बजाए आदिवासियों को बलि का बकरा बना रहा है। माधुरी ने यह आरोप लगाया कि वन विभाग द्वारा जिस पैमाने पर लकड़ी तस्करी बताया जा रहा है, वह वनकर्मियों के मिलीभगत से ही संभव है।

माधुरी कहती हैं कि न्यायिक जांच के बहाने मध्यप्रदेश शासन द्वारा हत्या, हत्या के प्रयास और अत्याचार के लिए दोषी वनकर्मियों पर कार्यवाही को ठंडे बस्ते में डालने की मंशा दिख रही है। न्यायिक जांच पुलिस अनुसंधान का हिस्सा या पूरक हो सकता है, लेकिन, उसका विकल्प नहीं। एक साल पहले खरगोन में बिस्टान थाने के पुलिस कर्मियों द्वारा मार पीट के कारण 7 सितंबर 21 को बिशन भील की मौत पर न्यायिक जांच के बहाने दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही रोकी गई। बाद में न्यायिक जांच में मृत्यु का कारण पुलिस प्रताड़ना बताए जाने के बाद भी आज तक कोई भी पुलिस कर्मी गिरफ्तार नहीं हुआ है। बिशन भील की हत्या के एक सप्ताह बाद खंडवा के ओंकारेश्वर थाना में एक और आदिवासी किशन निहाल की हत्या का भी यही हश्र हुआ है।

उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लगातार आदिवासी हितैषी होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन पूरे प्रदेश में आदिवासियों पर अत्याचार के मामले थम नहीं रहे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में मध्यप्रदेश में आदिवासी उत्पीड़न के 2,627 केस दर्ज किए गए हैं, जो कि पूरे भारत में सबसे ज्यादा हैं। पिछले 3 सालों में इस प्रकार के मामले लगातार बढ़ते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। पिछले 2 सालों में दबंगों द्वारा, पुलिस और वन विभाग द्वारा आदिवासियों के अत्याचार के कई मामले सामने आए हैं। बिशन भील और किशन निहाल के हत्याओं के अलावा जुलाई 2022 में गुना में एक आदिवासी महिला रामप्यारी बाई को दबंगों द्वारा अपने ही खेत में जिंदा जला दिया गया। मई 2022 में सिवनी जिले में दो आदिवासियों धान शाह इनवाती एवं सम्पत बट्टी को बजरंग दल के व्यक्तियों द्वारा घर में घुस कर पीट-पीट कर मार डाला गया। नीमच में कन्हैया भील को ट्रक से सड़क पर घसीट कर हत्या की गई थी।

जांच दल ने मांग की कि सरकार अपने वायदे के अनुसार उस दिन गश्त पर गए सभी वनकर्मियों पर एफआईआर दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करें और चैन सिंह भील के परिवार के आश्रित को जल्द शासकीय नौकरी दे।

Related:

बाकी ख़बरें