जातिवाद, भ्रष्टाचार पर यूपी के विश्वविद्यालयों में घमासान, कहीं प्रोफेसर पर आरोप, कहीं वीसी कटघरे में
यूपी के विश्वविद्यालयों में आजकल भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के साथ जातिवादी घमासान चर्चाओं में छाया है। कहीं प्रोफेसर पर आरोप लग रहे हैं तो कहीं पर वीसी कटघरे में है। बांदा कृषि विवि में 15 में से 11 प्रोफेसर ठाकुर भर्ती होने को लेकर खुद भाजपाई तक विरोध में उतर आए थे तो बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की ईडब्ल्यूएस कोटे में भर्ती विवाद ने भी खासी सुर्खियां बटोरी थीं। ताजा मामला इलाहाबाद विश्वविद्यालय का है जहां एक दलित प्रोफेसर विक्रम हरिजन के छात्रों को जाति देखकर नंबर देने के 2 साल पुराने आरोप पर विवि प्रशासन द्वारा अब आकर, साक्ष्य मांगे जाने से जातिगत भेदभाव का मामला गरमा गया है। दूसरी ओर गोरखपुर विवि में जहां एक ओर वीसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं तो वहीं छात्रों के साथ भेदभाव आदि के आरोपों में एक प्रोफेसर को सस्पेंड कर दिया गया है। मामले को लेकर छात्र और प्रोफेसर आंदोलन की राह पर हैं।
उत्तर प्रदेश में जातीयता को लेकर लगातार मामले देखने को मिल रहे है। अब पुलिस विभाग हो, पॉलिटिक्स हो, नौकरशाही या फिर शिक्षा विभाग, कोई भी डिपार्टमेंट जाति को लेकर संवेदनशील नजर नहीं आता। अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भी एक ऐसा ही मामला सामने आ रहा जिसमें एक असिस्टेंट प्रोफेसर को महज इसलिए प्रताड़ित किया जा रहा क्योंकि वह दलित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। जानकारी के मुताबिक प्रोफेसर डॉ. विक्रम हरिजन ने तकरीबन दो साल पहले एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाया था। प्रोफेसर का आरोप था कि यहां जातिगत आधार पर नंबर दिए जाते हैं। इस सहित प्रोफेसर विक्रम ने इविवि प्रशासन की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाते हुए विश्वविद्यालय में जातिवाद हावी होने जैसा आरोप भी लगाया था।
असिस्टेंट प्रोफेसर विक्रम हरिजन का आरोप था कि विश्वविद्यालय में छात्र और शिक्षक जाति के आधार पर बंटे हुए हैं। शोध करने वाले छात्र शोध निदेशक के अलावा किसी अन्य शिक्षक से मिल भी नहीं पाते हैं। सीनियर और जूनियर शिक्षकों में आपसी खींचतान रहता है। जिसके चलते शोध का स्तर भी गिर रहा है। इस बात को लेकर प्रोफेसर विक्रम ने कुलपति व अन्य से बात भी की थी और ऐसे मामलों का समाधान किए जाने को लेकर भी कहा था। प्रोफेसर डॉ. विक्रम के इन आरोपों राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने संज्ञान में लेकर इविवि प्रशासन पूछा था कि अब तक इस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जिसके बाद रजिस्ट्रार प्रोफेसर एनके शुक्ला की तरफ से डॉ. विक्रम को नोटिस जारी किया गया है। इस नोटिस में पूछा गया है कि उन्होंने जिस आधार पर यह आरोप लगाए हैं, वह सभी साक्ष्य लोकर इविवि प्रशासन को उससे अवगत कराएं।
इन आरोपों पर डॉ. विक्रम हरिजन ने जनज्वार से बातचीत करते हुए कहा कि, 'यह सभी आरोप जो उनने लगाए हैं वह छात्रों के अनुसार लगाए हैं। विश्वविद्यालय के तमाम छात्रों का कहना है कि उन्हें जाति के आधार पर नंबर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि एक सेमिनार के दौरान मेरा और मेरे मेहमानों का खाना रूकवा दिया गया तब पुलिस के हस्तक्षेप के बाद खाना मिल सका था। यह लोग तमाम तरह से मुझ पर प्रेशर बनाने का प्रयास कर रहे हैं वह इसलिए की मैं छात्रों के हक की कोई बात न उठा सकूं।'
प्रोफेसर विक्रम हरिजन ने जनज्वार से अपनी पीड़ा व्यक्त हुए कहा कि शिक्षा व्यवस्था में उन्हें शुरू से ही हर जगह जातिवादी संकीर्णता का सामना करना पड़ा है। कक्षा में पढ़ते वक्त जब छुआछूत आदि की बात आती तो वह महसूस करते थे कि ऐसा (यह सब) तो उनके साथ भी हो रहा है। यही नहीं, उन्होंने आरोप लगाया कि 2013 में जब उन्होंने इविवि ज्वाइन किया तो शुरू में उनका नाम डॉ विक्रम हरिजन की बजाय डॉ विक्रम रखने की सलाह दी गई। अन्यथा की स्थिति में छात्रों के क्लास अटेंड न करने की बात कही गई थी। जाति देखकर परीक्षा में नंबर देने के आरोप पर अब दो साल बाद साक्ष्य मांगने की बाबत विक्रम हरिजन ने कहा कि उन्हें लगता है कि यह सब उन्हें प्रताड़ित करने के लिए ही किया जा रहा है।
उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में गोरखपुर विश्वविद्यालय भी भेदभाव और भ्रष्टाचार आदि के आरोपों को लेकर जंग का अखाड़ा बना हुआ है। वीसी के खिलाफ सत्याग्रह पर बैठे हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त को विवि प्रशासन की ओर से निलंबित कर दिया गया है। विश्वविद्यालय के मीडिया एवं जनसंपर्क कार्यालय की ओर से कहा गया कि प्रो. गुप्त को विश्वविद्यालय के पठन पाठन के माहौल को खराब करने, बिना सूचना आवंटित कक्षाओं में न पढाने, समय सारिणी के अनुसार न पढ़ाने व असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हुए टिप्पणी करने समेत कई मामलों को लेकर नोटिस जारी किए। मीडिया एवं जनसंपर्क कार्यालय के मुताबिक, विद्यार्थियों को अपने घर बुलाकर घरेलू कार्य कराना तथा उनका उत्पीड़न करना, जो विद्यार्थी उनकी बात नहीं सुनते है उसको परीक्षा में फेल करने की धमकी देने, महाविद्यालयों में मौखिकी परीक्षाओं में धन उगाही की शिकायत, विभाग के लडकियों के प्रति उनका व्यवहार मानसिक रूप से ठीक नहीं रहना एवं नई शिक्षा नीति, नये पाठ्यक्रम तथा सीबीसीएस प्रणाली के बारे में दुष्प्रचार करने, सोशल मीडिया पर बिना विश्वविद्यालय के संज्ञान में लाए भ्रामक प्रचार फैलाने, विश्वविद्यालय के अनुशासनहीनता एवं दायित्व निर्वहन के प्रति घोर लापरवाही तथा कर्तव्य विमुखता के लिए कुलसचिव की ओर से समय समय पर आठ नोटिस जारी किए गए हैं।
प्रो गुप्त का कहना था कि विवि कुलपति प्रो. राजेश सिंह की प्रशासनिक और वित्तीय अनियमितताओं, गैरलोकतांत्रिक कार्यशैली, अपने में निहित शक्तियों के दुरुपयोग, घोर असंवेदनशीलता, नियमविरोधी मनमर्जी और 'देख लेने' वाले आचार-व्यवहार के कारण विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी, शोधार्थी और अभिभावक तनावभरी जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त हो गए हैं। वीसी के भ्रष्ट कृत्यों के खिलाफ आवाज उठाने के चलते उन पर कारवाई की गई है।
कुल मिलाकर मामला उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार के मानो शिष्टाचार में तब्दील होते जाने का है। बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय में नियमों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार के कई कारनामों को अंजाम देने के जिस कुलपति पर आरोप लगे, उसके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शहर के गोरखपुर विश्वविद्यालय की कमान सौंप दी गई। इस पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के शोध छात्रों ने मोर्चा खोला तो वहीं एक शिक्षक ने कुलपति की बर्खास्तगी तक सत्याग्रह की राह पकड़ ली है। पूर्णिया विश्वविद्यालय के छात्र भी कुलपति राजेश सिंह के कार्यकाल में हुई अनियमितताओं की जांच को लेकर लगातार आंदोलनरत हैं। इसी कड़ी में दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिन्दी विभाग के आचार्य प्रो. कमलेश ने कुलपति प्रो. राजेश सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुए 21 दिसम्बर से विवि स्थित दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा के नीचे सत्याग्रह करने का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि प्रो. राजेश सिंह का कुलपति पद पर बने रहना विश्वविद्यालय के हित में नहीं है। प्रो. राजेश सिंह को कुलपति पद से हटाए जाने तक मेरा सत्याग्रह जारी रहेगा।
कुलपति राजेश सिंह के खिलाफ लंबे समय से विरोध जता रहे हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्ता ने 21 दिसंबर से सत्याग्रह करने का ऐलान किया था, जिसके तहत प्रशासनिक भवन में दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा के सामने धरना पर बैठते ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके निलंबन का आदेश जारी कर दिया। इस पर शिक्षकों के साथ ही छात्रों में रोष दिखा। यह आक्रोश शाम ढलते ही आंदोलन में बदल गया। प्रोफेसर कमलेश गुप्ता के समर्थन में विश्वविद्यालय के छा़त्रावास में रहने वाले छात्रों ने मुख्य गेट पर रात में प्रदर्शन किया। बड़ी संख्या में आए इन छात्रों ने घंटो यहां सभा की। इसमें छात्रसंघ के निवर्तमान व पूर्व पदाधिकारियों ने भी हिस्सा लिया।
छात्रों ने कहा कि बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय में लूट मचाने के बाद यह कुलपति अब हमारे विश्वविद्यालय को लूटने में लगे हैं। इसके खिलाफ आवाज उठाने पर प्रोफेसर कमलेश गुप्ता को निलंबत कर दिया। ऐसे में अब यह लड़ाई कुलपति के हटने तक जारी रहेगा। छात्र नेताओं ने सभी से आहवान किया कि दो बजे से कमलेश गुप्ता के सत्याग्रह में हिस्सा लें तथा इसके बाद शहर में कुलपति हटाओ, विश्वविद्यालय बचाओ नारे के सथ पैदल मार्च निकालें। साथ ही यह आंदोलन निरंतर जारी रहेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गोरखपुर विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षक नेता चतुरानन ओझा कहते हैं, 'जो आरोप कुलपति के गुर्गों पर लगना चाहिए वे सारे आरोपों पर कमलेश गुप्त पर लगा दिए गए हैं। कमलेश गुप्त को लोग जानते हैं, कमलेश पर एक भी आरोप सच नहीं हो सकता। प्रोफेसर कमलेश में यदि वह खूबियां होती जिन्हें उन पर आरोपित किया गया है तो वह भी कुलपति की चापलूसी में लगे होते और सत्य, न्याय और शिक्षा की मशाल लेकर संघर्ष नहीं कर रहे होते।
खास है कि विश्वविद्यालय बनाओ संघर्ष समिति के संस्थापक आलोक राज ने पूर्णिया विवि में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शिकायत की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुख्यमंत्री ने इसे गंभीरता से लेते हुए मामले को शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी के पास भेज दिया। आलोक राज ने बताया कि शिक्षा मंत्री ने भी आश्चर्य प्रकट किया कि जहां पर प्रयोगशाला नहीं वहां पर प्रायोगिक विषय की पढ़ाई किस तरह शुरू कर दी गई है। पूर्णिया विश्वविद्यालय के पास अपना कैश बुक तक नहीं है, यह सुनकर मंत्री भी चौंक गए।
यही नहीं, राज्य सरकार की मान्यता के बिना ही पूर्णिया विश्वविद्यालय में पीजी, एलएलएम, एमबीए व पीएचडी पाठ्यक्रमों का अवैध तरीके से पढ़ाई शुरू कर दी गई। आरोप है कि पूर्व कुलपति प्रो.राजेश सिंह विश्वविद्यालय अधिनियम को दरकिनार करते हुए घोटाले व भ्रष्टाचार को अंजाम दिया। पूर्व वीसी प्रो. राजेश सिंह के कार्यकाल 2018 में 11 लाख उत्तरपुस्तिका की खरीदारी कई गुणा अधिक दर पर नियम कानून को दरकिनार कर बिना निविदा के दो एंजेसियों से क्रय की गई। पूर्णिया विश्वविद्यालय के स्थापना से लेकर अभी तक जितनी भी निविदा हुई है। वह नियम संगत नहीं की गई है। बिहार के लोकायुक्त के आदेश पर हुई जांच में भी विश्वविद्यालय में हुए व्यापक भ्रष्टाचार की बात कही है। शिक्षा मंत्री ने आश्वासन दिया है कि कोई भी गलत काम बर्दाश्त नहीं होगा। वहीं इसमें संलिप्त लोग बख्शे नहीं जाएंगे।
यही नहीं, इससे पहले उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री डा. सतीश द्विवेदी के भाई की सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य अभ्यर्थी) में नियुक्ति मामले ने भी जमकर सुर्खियां बटोरी थीं तो उत्तर प्रदेश के ही बांदा कृषि विश्वविद्यालय में आरक्षण रोस्टर से छेड़खानी करके, एक खास जाति ‘ठाकुरों’ को नियुक्त करने का मामला भी खूब चर्चाओं में रहा था। यूनिवर्सिटी की जो चयन सूची सामने आई थी उसमें शिक्षक पद पर नियुक्त 15 में से 11 लोगों के जाति कॉलम में ठाकुर लिखा था। इस सूची के सोशल मीडिया पर वायरल होने पर जातिवाद को लेकर खासी बहस छिड़ी है।
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उत्तर प्रदेश में जातीयता को लेकर लगातार मामले देखने को मिल रहे है। अब पुलिस विभाग हो, पॉलिटिक्स हो, नौकरशाही या फिर शिक्षा विभाग, कोई भी डिपार्टमेंट जाति को लेकर संवेदनशील नजर नहीं आता। अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भी एक ऐसा ही मामला सामने आ रहा जिसमें एक असिस्टेंट प्रोफेसर को महज इसलिए प्रताड़ित किया जा रहा क्योंकि वह दलित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। जानकारी के मुताबिक प्रोफेसर डॉ. विक्रम हरिजन ने तकरीबन दो साल पहले एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाया था। प्रोफेसर का आरोप था कि यहां जातिगत आधार पर नंबर दिए जाते हैं। इस सहित प्रोफेसर विक्रम ने इविवि प्रशासन की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाते हुए विश्वविद्यालय में जातिवाद हावी होने जैसा आरोप भी लगाया था।
असिस्टेंट प्रोफेसर विक्रम हरिजन का आरोप था कि विश्वविद्यालय में छात्र और शिक्षक जाति के आधार पर बंटे हुए हैं। शोध करने वाले छात्र शोध निदेशक के अलावा किसी अन्य शिक्षक से मिल भी नहीं पाते हैं। सीनियर और जूनियर शिक्षकों में आपसी खींचतान रहता है। जिसके चलते शोध का स्तर भी गिर रहा है। इस बात को लेकर प्रोफेसर विक्रम ने कुलपति व अन्य से बात भी की थी और ऐसे मामलों का समाधान किए जाने को लेकर भी कहा था। प्रोफेसर डॉ. विक्रम के इन आरोपों राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने संज्ञान में लेकर इविवि प्रशासन पूछा था कि अब तक इस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जिसके बाद रजिस्ट्रार प्रोफेसर एनके शुक्ला की तरफ से डॉ. विक्रम को नोटिस जारी किया गया है। इस नोटिस में पूछा गया है कि उन्होंने जिस आधार पर यह आरोप लगाए हैं, वह सभी साक्ष्य लोकर इविवि प्रशासन को उससे अवगत कराएं।
इन आरोपों पर डॉ. विक्रम हरिजन ने जनज्वार से बातचीत करते हुए कहा कि, 'यह सभी आरोप जो उनने लगाए हैं वह छात्रों के अनुसार लगाए हैं। विश्वविद्यालय के तमाम छात्रों का कहना है कि उन्हें जाति के आधार पर नंबर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि एक सेमिनार के दौरान मेरा और मेरे मेहमानों का खाना रूकवा दिया गया तब पुलिस के हस्तक्षेप के बाद खाना मिल सका था। यह लोग तमाम तरह से मुझ पर प्रेशर बनाने का प्रयास कर रहे हैं वह इसलिए की मैं छात्रों के हक की कोई बात न उठा सकूं।'
प्रोफेसर विक्रम हरिजन ने जनज्वार से अपनी पीड़ा व्यक्त हुए कहा कि शिक्षा व्यवस्था में उन्हें शुरू से ही हर जगह जातिवादी संकीर्णता का सामना करना पड़ा है। कक्षा में पढ़ते वक्त जब छुआछूत आदि की बात आती तो वह महसूस करते थे कि ऐसा (यह सब) तो उनके साथ भी हो रहा है। यही नहीं, उन्होंने आरोप लगाया कि 2013 में जब उन्होंने इविवि ज्वाइन किया तो शुरू में उनका नाम डॉ विक्रम हरिजन की बजाय डॉ विक्रम रखने की सलाह दी गई। अन्यथा की स्थिति में छात्रों के क्लास अटेंड न करने की बात कही गई थी। जाति देखकर परीक्षा में नंबर देने के आरोप पर अब दो साल बाद साक्ष्य मांगने की बाबत विक्रम हरिजन ने कहा कि उन्हें लगता है कि यह सब उन्हें प्रताड़ित करने के लिए ही किया जा रहा है।
उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में गोरखपुर विश्वविद्यालय भी भेदभाव और भ्रष्टाचार आदि के आरोपों को लेकर जंग का अखाड़ा बना हुआ है। वीसी के खिलाफ सत्याग्रह पर बैठे हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त को विवि प्रशासन की ओर से निलंबित कर दिया गया है। विश्वविद्यालय के मीडिया एवं जनसंपर्क कार्यालय की ओर से कहा गया कि प्रो. गुप्त को विश्वविद्यालय के पठन पाठन के माहौल को खराब करने, बिना सूचना आवंटित कक्षाओं में न पढाने, समय सारिणी के अनुसार न पढ़ाने व असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हुए टिप्पणी करने समेत कई मामलों को लेकर नोटिस जारी किए। मीडिया एवं जनसंपर्क कार्यालय के मुताबिक, विद्यार्थियों को अपने घर बुलाकर घरेलू कार्य कराना तथा उनका उत्पीड़न करना, जो विद्यार्थी उनकी बात नहीं सुनते है उसको परीक्षा में फेल करने की धमकी देने, महाविद्यालयों में मौखिकी परीक्षाओं में धन उगाही की शिकायत, विभाग के लडकियों के प्रति उनका व्यवहार मानसिक रूप से ठीक नहीं रहना एवं नई शिक्षा नीति, नये पाठ्यक्रम तथा सीबीसीएस प्रणाली के बारे में दुष्प्रचार करने, सोशल मीडिया पर बिना विश्वविद्यालय के संज्ञान में लाए भ्रामक प्रचार फैलाने, विश्वविद्यालय के अनुशासनहीनता एवं दायित्व निर्वहन के प्रति घोर लापरवाही तथा कर्तव्य विमुखता के लिए कुलसचिव की ओर से समय समय पर आठ नोटिस जारी किए गए हैं।
प्रो गुप्त का कहना था कि विवि कुलपति प्रो. राजेश सिंह की प्रशासनिक और वित्तीय अनियमितताओं, गैरलोकतांत्रिक कार्यशैली, अपने में निहित शक्तियों के दुरुपयोग, घोर असंवेदनशीलता, नियमविरोधी मनमर्जी और 'देख लेने' वाले आचार-व्यवहार के कारण विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी, शोधार्थी और अभिभावक तनावभरी जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त हो गए हैं। वीसी के भ्रष्ट कृत्यों के खिलाफ आवाज उठाने के चलते उन पर कारवाई की गई है।
कुल मिलाकर मामला उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार के मानो शिष्टाचार में तब्दील होते जाने का है। बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय में नियमों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार के कई कारनामों को अंजाम देने के जिस कुलपति पर आरोप लगे, उसके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शहर के गोरखपुर विश्वविद्यालय की कमान सौंप दी गई। इस पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के शोध छात्रों ने मोर्चा खोला तो वहीं एक शिक्षक ने कुलपति की बर्खास्तगी तक सत्याग्रह की राह पकड़ ली है। पूर्णिया विश्वविद्यालय के छात्र भी कुलपति राजेश सिंह के कार्यकाल में हुई अनियमितताओं की जांच को लेकर लगातार आंदोलनरत हैं। इसी कड़ी में दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिन्दी विभाग के आचार्य प्रो. कमलेश ने कुलपति प्रो. राजेश सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुए 21 दिसम्बर से विवि स्थित दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा के नीचे सत्याग्रह करने का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि प्रो. राजेश सिंह का कुलपति पद पर बने रहना विश्वविद्यालय के हित में नहीं है। प्रो. राजेश सिंह को कुलपति पद से हटाए जाने तक मेरा सत्याग्रह जारी रहेगा।
कुलपति राजेश सिंह के खिलाफ लंबे समय से विरोध जता रहे हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्ता ने 21 दिसंबर से सत्याग्रह करने का ऐलान किया था, जिसके तहत प्रशासनिक भवन में दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा के सामने धरना पर बैठते ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके निलंबन का आदेश जारी कर दिया। इस पर शिक्षकों के साथ ही छात्रों में रोष दिखा। यह आक्रोश शाम ढलते ही आंदोलन में बदल गया। प्रोफेसर कमलेश गुप्ता के समर्थन में विश्वविद्यालय के छा़त्रावास में रहने वाले छात्रों ने मुख्य गेट पर रात में प्रदर्शन किया। बड़ी संख्या में आए इन छात्रों ने घंटो यहां सभा की। इसमें छात्रसंघ के निवर्तमान व पूर्व पदाधिकारियों ने भी हिस्सा लिया।
छात्रों ने कहा कि बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय में लूट मचाने के बाद यह कुलपति अब हमारे विश्वविद्यालय को लूटने में लगे हैं। इसके खिलाफ आवाज उठाने पर प्रोफेसर कमलेश गुप्ता को निलंबत कर दिया। ऐसे में अब यह लड़ाई कुलपति के हटने तक जारी रहेगा। छात्र नेताओं ने सभी से आहवान किया कि दो बजे से कमलेश गुप्ता के सत्याग्रह में हिस्सा लें तथा इसके बाद शहर में कुलपति हटाओ, विश्वविद्यालय बचाओ नारे के सथ पैदल मार्च निकालें। साथ ही यह आंदोलन निरंतर जारी रहेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गोरखपुर विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षक नेता चतुरानन ओझा कहते हैं, 'जो आरोप कुलपति के गुर्गों पर लगना चाहिए वे सारे आरोपों पर कमलेश गुप्त पर लगा दिए गए हैं। कमलेश गुप्त को लोग जानते हैं, कमलेश पर एक भी आरोप सच नहीं हो सकता। प्रोफेसर कमलेश में यदि वह खूबियां होती जिन्हें उन पर आरोपित किया गया है तो वह भी कुलपति की चापलूसी में लगे होते और सत्य, न्याय और शिक्षा की मशाल लेकर संघर्ष नहीं कर रहे होते।
खास है कि विश्वविद्यालय बनाओ संघर्ष समिति के संस्थापक आलोक राज ने पूर्णिया विवि में व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शिकायत की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुख्यमंत्री ने इसे गंभीरता से लेते हुए मामले को शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी के पास भेज दिया। आलोक राज ने बताया कि शिक्षा मंत्री ने भी आश्चर्य प्रकट किया कि जहां पर प्रयोगशाला नहीं वहां पर प्रायोगिक विषय की पढ़ाई किस तरह शुरू कर दी गई है। पूर्णिया विश्वविद्यालय के पास अपना कैश बुक तक नहीं है, यह सुनकर मंत्री भी चौंक गए।
यही नहीं, राज्य सरकार की मान्यता के बिना ही पूर्णिया विश्वविद्यालय में पीजी, एलएलएम, एमबीए व पीएचडी पाठ्यक्रमों का अवैध तरीके से पढ़ाई शुरू कर दी गई। आरोप है कि पूर्व कुलपति प्रो.राजेश सिंह विश्वविद्यालय अधिनियम को दरकिनार करते हुए घोटाले व भ्रष्टाचार को अंजाम दिया। पूर्व वीसी प्रो. राजेश सिंह के कार्यकाल 2018 में 11 लाख उत्तरपुस्तिका की खरीदारी कई गुणा अधिक दर पर नियम कानून को दरकिनार कर बिना निविदा के दो एंजेसियों से क्रय की गई। पूर्णिया विश्वविद्यालय के स्थापना से लेकर अभी तक जितनी भी निविदा हुई है। वह नियम संगत नहीं की गई है। बिहार के लोकायुक्त के आदेश पर हुई जांच में भी विश्वविद्यालय में हुए व्यापक भ्रष्टाचार की बात कही है। शिक्षा मंत्री ने आश्वासन दिया है कि कोई भी गलत काम बर्दाश्त नहीं होगा। वहीं इसमें संलिप्त लोग बख्शे नहीं जाएंगे।
यही नहीं, इससे पहले उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री डा. सतीश द्विवेदी के भाई की सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य अभ्यर्थी) में नियुक्ति मामले ने भी जमकर सुर्खियां बटोरी थीं तो उत्तर प्रदेश के ही बांदा कृषि विश्वविद्यालय में आरक्षण रोस्टर से छेड़खानी करके, एक खास जाति ‘ठाकुरों’ को नियुक्त करने का मामला भी खूब चर्चाओं में रहा था। यूनिवर्सिटी की जो चयन सूची सामने आई थी उसमें शिक्षक पद पर नियुक्त 15 में से 11 लोगों के जाति कॉलम में ठाकुर लिखा था। इस सूची के सोशल मीडिया पर वायरल होने पर जातिवाद को लेकर खासी बहस छिड़ी है।
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