नई दिल्ली। दक्षिण पश्चिमी दिल्ली के ओल्ड नांगल गांव में नौ साल की दलित बच्ची के साथ कथित बलात्कार और हत्या के विरोध में विभिन्न छात्र संगठनों और कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) तथा दलित शोषण मुक्ति मंच और अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ ने भी प्रदर्शन किया। अखिल भारतीय छात्र संघ (आइसा) ने भी जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। संगठनों ने बयान जारी कर विरोध प्रदर्शन की जानकारी दी और मामले में शीघ्र न्याय की मांग की।
छात्र संगठनों ने जारी बयान में कहा कि श्मशान घाट के पुजारी और दो-तीन अन्य अपराधियों ने बच्ची की मां की सहमति के बिना लड़की के शरीर का जबरन अंतिम संस्कार कर दिया। बच्ची शाम को श्मशान घाट के वाटर कूलर से ठंडा पानी लेने के लिए निकली थी, लेकिन वापस नहीं लौट सकी। बाद में पुजारी ने लड़की की मां को बच्ची का शव दिखाया और बताया कि कूलर से पानी पीते समय उसे करंट लग गया था। लड़की की माँ पुलिस को सूचित न करे इसलिए पुजारी ने उन्हें यह कहते हुए डराया धमकाया कि इससे मामला बिगड़ जाएगा और यदि पोस्टमॉर्टम किया गया तो उसकी बेटी के अंग निकाल लिए जाएंगे। इस सब के बाद भी माँ शव दफनाने के लिए राज़ी नहीं हुई और अपने पति और गाँव वालों को ख़बर की, इसके बाद पुलिस को मामले की सूचना दी गई।
संगठनों ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा एक बहुत गम्भीर समस्या है जिसका सीधा कारण अनियंत्रित यौन इच्छा नहीं अपितु पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष को प्राप्त शक्ति तथा वर्चस्व से जुड़ता है। पिछले 10 वर्षों में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 6% की वृद्धि हुई है, यह लिंग और जाति दोनों के प्रति की जाने वाली हिंसा है। दलित महिलाएं अपने लिंग और जातिगत पहचान के कारण समाज में सबसे अधिक शक्तिहीन और उत्पीड़ित हैं।
एसएफआई दिल्ली के सचिव प्रतीष ने कहा, "पहले भी कई मामलों में, हमने देखा है कि कैसे यौन हिंसा के कृत्यों को जातिगत अपराधों के लिए 'दंड' के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हमें उस विचारधारा के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए जो बलात्कारी संस्कृति और जाति उत्पीड़न को वैध बनाने की कोशिश करती है।"
दिल्ली राज्य समिति की सदस्य और जेएनयूएसयू अध्यक्ष आइशी घोष ने इस मुद्दे पर कहा, "दलित महिलाओं पर दोहरा अत्याचार किया जाता है। हम एक ऐसे राजनीतिक माहौल में रह रहे हैं, जिसकी सामाजिक व्यवस्था के भीतर जाति को पूरी शक्ति के साथ ढाला गया है। यह कोई पुराने जमाने की बीती हुई बात नहीं बल्कि वर्तमान राज्य के ढांचे ठीक भीतर ही विकसित की जा रही है, और जैसे-जैसे लिंग और जाति की ब्राह्मणवादी धारणाएं शक्तिशाली होती जाएँगी, महिलाओं और ‘निचली’ जातियों के खिलाफ अपराध बढ़ेंगे। हमें इस सब का विरोध करना चाहिए और आक्रोश को संगठित करना चाहिए!",
एसएफआई दिल्ली इस अपराध के विरोध में खड़ी है और मांग करती है कि दलित महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों, उसके कारणों के विविध आयामों की पहचान करते हुए उनका विरोध किया जाए। पीड़िता को इंसाफ मिलना ही चाहिए!
द्वारा जारी-
सुमित कटारिया ( अध्यक्ष, SFI दिल्ली राज्य )
प्रतीश मेमन ( सचिव, SFI दिल्ली राज्य)
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संगठनों ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा एक बहुत गम्भीर समस्या है जिसका सीधा कारण अनियंत्रित यौन इच्छा नहीं अपितु पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष को प्राप्त शक्ति तथा वर्चस्व से जुड़ता है। पिछले 10 वर्षों में दलित महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 6% की वृद्धि हुई है, यह लिंग और जाति दोनों के प्रति की जाने वाली हिंसा है। दलित महिलाएं अपने लिंग और जातिगत पहचान के कारण समाज में सबसे अधिक शक्तिहीन और उत्पीड़ित हैं।
एसएफआई दिल्ली के सचिव प्रतीष ने कहा, "पहले भी कई मामलों में, हमने देखा है कि कैसे यौन हिंसा के कृत्यों को जातिगत अपराधों के लिए 'दंड' के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हमें उस विचारधारा के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए जो बलात्कारी संस्कृति और जाति उत्पीड़न को वैध बनाने की कोशिश करती है।"
दिल्ली राज्य समिति की सदस्य और जेएनयूएसयू अध्यक्ष आइशी घोष ने इस मुद्दे पर कहा, "दलित महिलाओं पर दोहरा अत्याचार किया जाता है। हम एक ऐसे राजनीतिक माहौल में रह रहे हैं, जिसकी सामाजिक व्यवस्था के भीतर जाति को पूरी शक्ति के साथ ढाला गया है। यह कोई पुराने जमाने की बीती हुई बात नहीं बल्कि वर्तमान राज्य के ढांचे ठीक भीतर ही विकसित की जा रही है, और जैसे-जैसे लिंग और जाति की ब्राह्मणवादी धारणाएं शक्तिशाली होती जाएँगी, महिलाओं और ‘निचली’ जातियों के खिलाफ अपराध बढ़ेंगे। हमें इस सब का विरोध करना चाहिए और आक्रोश को संगठित करना चाहिए!",
एसएफआई दिल्ली इस अपराध के विरोध में खड़ी है और मांग करती है कि दलित महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों, उसके कारणों के विविध आयामों की पहचान करते हुए उनका विरोध किया जाए। पीड़िता को इंसाफ मिलना ही चाहिए!
द्वारा जारी-
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