Shut down JNU से Fight back JNU तक

Published on: September 11, 2016

Written by Pradeep Sharma



आज तीन प्रतिष्टित यूनिवर्सिटी , Delhi university , JNU aur Punjab University के नतीजे एक साथ आये .
JNU में abvp का सफाया होना एक बहुत बड़े परिवर्तन का संकेत है.

9 फरबरी के बाद जिस तरह का हमला abvp, rss, मोदी सरकार और उसकी भोंपू मीडिया ने किया था उसका जबरदस्त जवाब jnu ने वाम को रिकॉर्ड जीत देकर दे दिया है .जेएनयु की जीत नागपुरी गुंडागर्दी, कार्पोरेट व मीडिया की संयुक्त ताकत के खिलाफ़ जीत है.

वाम छात्र संगठनों की जेएनयू में जीत कोई अनोखी बात नहीं है, लेकिन इस बार उन्होंने सिर्फ विरोधियों को नहीं हराया । युद्धोन्मादी, सांप्रदायिक और फ़ासिस्ट मीडिया को भी हराया है । मीडिया ने जेएनयू को ‘देशद्रोही’ बताने के छदम राष्ट्रवाद की आड़ में अभियान चलाया, पूरे देश में जेएनयू के प्रति घृणा पैदा करने की कोशिश की, लेकिन जेएनयू के छात्रों जबरदस्त लड़ाई से साबित किया की "असली देशभक्ति ” क्या होती है , और असली देश भक्त कौन है ? देश विरोधी नारेबाजी की किसने की थी? किसको गिरफ्तार किया गया था? 

बात उस समय ही साफ़ नज़र आ जाती है कि आखिर माज़रा क्या है. किस तरह रोहित वेमुला के केस में कटघरे में आ चुकी मोदी सरकार के लिए मुद्दे को डायवर्ट करना ज़रूरी था.और फिर जेएनयु तो हमेशा से संघियों की पीड़ा का सबब था. लेकिन इस संघी बिग्रेड के बाक़ी तमाम झूठ की तरह ही ये झूठ भी जनता के सामने आ ही गया.
Jnu ने बहुत कायदे से नकली देशभक्तों को जवाब दे दिया है. 25 साल पहले JNU में राजनीती शुरू करने वाली abvp की ऐतिहासिक हार हुई है। इस जीत के मायने को इस सन्दर्भ में भी समझना चाहिए की पिछला दौर काफी जटिल संघर्ष का दौर रहा है . पूरे देश में संघी ब्रिगेड ने दलितों, अल्पसंख्यको और वंचित तबको को निशाना बनाया है और जिसके खिलाफ पूरे देश में जबरदस्त प्रतिरोध भी हुआ है , इस प्रतिरोध में युवायों ने अति महतवपूर्ण भूमिका अदा की है और उसमे भी Jawahar Lal Nehru University ने हिरावल दस्ते के भूमिका निभाई है .

Occupy UGC, II Madras , रोहित बेमुला की संस्थागत हत्या , दादरी, दनकौर का सवाल रहा हो या कलबुर्गी , पंसारे की हत्या के प्रतिरोध का Jawahar Lal Nehru University के छात्रों ने तीखा प्रतिरोध किया है. पूरे देश के पैमाने पर जो उन्मादी माहोल बनाया गया था और मुख्य निशाना JNU था जिसकी गंभीरता समझते हुए वामछात्र संगठनो ने मिल कर एक जुझारू लड़ाई लड़ी और JNU से इस प्रतिगामी ABVP के सफाए के लिए साथ मिलकर चुनाव लड़ने का अति महतवपूर्ण फैसला लिया , जिसके पीछे चुनाव जीतने की तात्कालिक सोच न होकर प्रतिरोध और सवालिया संस्कृति की रक्षा की सोच प्रमुख थी . इस सोच के आधार पर SFI और AISA ने साँझा पैनल बनाकर JNU में चुनाव लड़ा और JNU के अन्दर abvp की ऐतिहासिक हार की इबादत लिखी .

JNU ने साबित किया की वोह असल देशभक्त हैं जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की तक़लीफ़ों से विचलित होकर लुटियन दिल्ली में तूफ़ान मचाने की ताकत रखते हैं और जिनके आगे सरकार , पुलिस, कार्पोरेट मीडिया बोनी साबित हुई। देश की वास्तविक एकता का रास्ता येही है की हम सबके सवाल और तकलीफ को अपना समझे और उसके खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करे. पिछले दिनों JNU ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया है .यह वैचारिक टकराव असल में दो सपनों के बीच का संघर्ष था और आखिरकार JNU ने तय कर दिया है कि उसे भगत सिंह और आंबेडकर के सपनों के साथ जीना है नाकि हेडगेवार और गोलवरकर के सपनों के साथ. Akhil Bhartiya Vidya Parishad का सफाया  JNU की तरह पंजाब यूनिवर्सिटी में भी हुआ है . Delhi University में ABVP ने ३ पद जीते हैं पर ४४ में से मात्र ११ कॉलेज ही उसके कब्ज़े में आये हैं , ३३ में उसको हार का सामना करना पड़ा है.

 
Pradeep Sharma शिया कॉलेज, Lucknow में समाज शास्त्र पढ़ाते हैं। सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ता हैं और अपने छात्र जीवन में sfi के नेता रहे हैं

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