प्रयागराज: गंगा किनारे दफन लाशों की गिनती करना भी मुश्किल, अंतिम संस्कार कराने में भी विफल योगी सरकार

Written by Navnish Kumar | Published on: May 18, 2021
हमीरपुर व बक्सर में गंगा में बहाए जा रहे शवों का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि यूपी में गंगा किनारे के उन्नाव आदि 27 जिलों के 1140 किलोमीटर में 2,000 से ज्यादा शव मिलने की दैनिक भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट ने सभी को हिलाकर रख दिया। ताजा मामला संगम नगरी प्रयागराज का है जहां भी गंगा नदी के किनारे अनगिनत शवों (Dead Bodies) को रेत में दफनाए जाने का हैरान करने वाला मामला सामने आया है। करीब डेढ़ महीने में सैकड़ों शवों को नदी के किनारे रेत में दफन कर दिया गया है और यह सिलसिला जारी है। यह हाल तब है जब प्रदेश में अंतिम संस्कार की जिम्मेवारी खुद सरकार ने ले रखी है। लेकिन हालात देखने से साफ है कि योगी सरकार लोगों को सम्मानजनक अंतिम विदाई की जिम्मेवारी भी पूरी तरह से नहीं निभा पा रही है।



प्रयागराज में श्रृंगवेरपुर धाम के पास बड़ी संख्या में शव गंगा किनारे दफनाए गए हैं। दैनिक भास्कर की ही रिपोर्ट के अनुसार, आलम ये है कि एक छोर से दूसरे छोर तक केवल शव ही नजर आ रहे हैं। यहां करीब एक किलोमीटर की दूरी में दफन शवों के बीच एक मीटर का फासला भी नहीं है। घाट के दोनों तरफ जहां तक निगाह जाती है, वहां तक शव दफनाए गए हैं। शवों के किनारे झंडा और डंडा भी गाड़ा गया है। यही नहीं शवों के साथ आने वाले कपड़े, तकिए, चादर भी वहीं छोड़ दिए गए हैं। ऐसे में गंगा किनारे काफी गंदगी भी हो गई है। पुलिस का पहरा भी कोई काम नहीं आ रहा है। वजह है कि कोरोना काल में अंतिम संस्कार का सामान भी बहुत महंगा हो गया है।

घाट पर पूजा-पाठ कराने वाले पंडितों का कहना है कि पहले रोज यहां 8 से 10 शव ही आते थे, लेकिन पिछले एक महीने से हर दिन 60 से 70 शव आ रहे हैं। किसी दिन तो 100 से भी ज्यादा लाशें आ रही हैं। एक महीने में यहां 4 हजार से ज्यादा शव आ चुके हैं। घाट पर मौजूद पंडित कहते हैं कि शैव संप्रदाय के लोग गंगा किनारे शव दफनाते रहे हैं। यह बहुत पुरानी परंपरा है। इसे रोका नहीं जा सकता। इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। उन्होंने कहा कि पहले गरीब लोग ही शव दफनाते थे, लेकिन कोरोना के बाद ज्यादातर लोग ऐसा कर रहे हैं

श्रृंगवेरपुर धाम पर पुरोहित का काम करने वाले शिवबरन तिवारी बताते हैं कि सामान्य दिनों में यहां 8-10 शव ही आते थे। इनमें से जो बहुत गरीब लोग होते हैं, जिनके पास खाने के भी पैसे नहीं होते और वे दाह संस्कार का खर्च नहीं वहन कर पाते वही दफनाते हैं। जो सक्षम होते हैं, वे शवों का बाकायदा दाह संस्कार करते हैं। यही अब तक चला आ रहा है। लेकिन कोरोना ने जबसे जोर पकड़ा तबसे अकेले श्रृंगवेरपुर धाम में ही रोज 60 से 70 शव आ रहे हैं। कभी-कभी तो यह संख्या 100 के पार भी पहुंच जाती है। और अब पहले से ज्यादा लोग शव दफना रहे हैं।

शिवबरन कहते हैं कि कोरोना के डर के कारण काफी दिन तक घाट से पंडों-पुरोहितों ने भी डेरा हटा लिया था। सभी डर रहे थे कि कहीं कोरोना न हो जाए। ऐसे में जो जैसे आया और जहां जगह दिखी वहीं शवों को दफना दिया। कोई रोक-टोक न होने के कारण गंगा के घाट किनारे जहां लोग आकर स्नान-ध्यान करते हैं, वहां तक लोगों ने शव दफना दिए। अब तो यह भी आशंका जताई जा रही है कि इन शवों को जानवर बाहर निकाल सकते हैं। सबसे ज्यादा स्थानीय लोगों को कुत्तों से डर है कि कहीं वे शवों को बाहर ना निकाल दें। ऐसी स्थिति में इलाके में कोरोना के फैलने के खतरे के साथ ही एक अजीब सा माहौल बन जाएगा। दरअसल यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि दफन किए गए शवों की मौतें सामान्य हुई हैं या कोरोना से।

प्रयागराज में गंगा किनारे शवों के दफनाए जाने का मामला सामने आने के बाद एक बार फिर देश में हड़कंप मच गया है। खास है कि हिंदू धर्म में शवों के दाह संस्कार की ही परंपरा रही है। देश में कोरोना की दूसरी लहर से कई लोगों की जान जा चुकी है। इन हालातों में कई परिवार अपने परिजनों का शव लेना भी नहीं चाह रहे हैं। इसके साथ ही कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिन्होंने अंतिम संस्कार करने में खुद को असमर्थ बता दिया। इन परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया था कि जिन परिवार के लोग शवों का दाह संस्कार करने में सक्षम नहीं है उनके शव को प्रशासन की उपस्थिति में सरकार द्वारा अंतिम संस्कार किया जाएगा। लेकिन ऐसा पूरी तरह से होता दिख नहीं रहा है।

यही नहीं, कुछ दिन पहले ही गंगा नदी में तैरते शवों से देश भर में हड़कंप मच गया था। उस मुद्दे पर बिहार और उत्तर प्रदेश के स्थानीय प्रशासन आपस में एक दूसरे को आरोप लगाते हुए नजर आए थे। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीसी) के प्रमुख राजीव रंजन मिश्र ने भी गंगा पथ के सभी जिला कलेक्टरों को पत्र लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर दी थी कि डीएम पक्का करें कि गंगा में लाशें ना फेंकी जाएं।

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