कोरोना की विनाशकारी दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में गंगा नदी ‘लाशों को फेंकने की आसान जगह’ बन गई थी। ये दावा एक नई किताब में किया गया है जिसके लेखक नेशनल मिशन टू क्लीन गंगा के महानिदेशक और नमामि गंगे परियोजना के चीफ राजीव रंजन मिश्रा हैं। कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश में तबाही मचाई थी। उत्तर प्रदेश में भी इस महामारी की चपेट में आने से हजारों लोगों की मौत हुई थी। इस दौरान अनगिनत लाशें गंगा में बहती नजर आई थीं, माना जा रहा था कि ये शव कोविड से मरने वालों के हैं जिन्हें इस तरह नदी में बहा दिया है, हालांकि, सरकार इससे बार-बार इनकार करती रही है।
स्वच्छ गंगा मिशन के प्रमुख राजीव रंजन मिश्रा ने माना कि देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान वाकई गंगा में लाशें डाली गई थीं। गंगा में लाशें डाले जाने की बात मिश्रा ने अपनी नई किताब "गंगा: रीइमैजिनिंग, रीजूवनेटिंग, रीकनेक्टिंग" में मानी है। इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक किताब का एक पूरा हिस्सा इसी घटना पर केंद्रित है। मिश्रा ने लिखा है, "जैसे जैसे कोविड-19 महामारी की वजह से लाशों की संख्या बढ़ने लगी, जिला प्रशासन विह्वल हो गए, उत्तर प्रदेश और बिहार के शवदाह गृहों और श्मशान घाटों की क्षमता से ज्यादा लाशें आने लगी, ऐसे में गंगा में लाशों को डालना आसान हो गया।"
मिश्रा ने यह भी बताया है कि सभी मामले उत्तर प्रदेश के ही थे और नदी के बिहार वाले हिस्सों में जो लाशें मिली थीं वो उत्तर प्रदेश से ही बहकर वहां पहुंची थीं। सभी लाशें उत्तर प्रदेश के ही कन्नौज और बलिया के बीच गंगा में डाली गई थीं। मई 2021 में दूसरी लहर के दौरान मिश्रा को खुद भी कोविड हो गया था और गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका इलाज किया गया था। उन्होंने किताब में लिखा है कि अस्पताल में अपने इलाज के दौरान ही उन्हें इन घटनाओं के बारे में पता चला। मई की शुरुआत में पवित्र गंगा नदी में तैरती लावारिस और अधजली लाशों के बारे में सुना।” आगे कहा कि ”टीवी चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया साइट्स पर भी भयानक तस्वीरों और शवों को नदी में फेंके जाने की खबरों की भरमार थी जो उनके लिए दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था।” उसके बाद उन्होंने सभी 59 जिला गंगा समितियों को इस स्थिति से निपटने का आदेश दिया। फिर उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार को भी इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया।
मिश्रा कहते हैं कि केंद्रीय अधिकारियों की एक बैठक में उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि राज्य के केंद्रीय और पूर्वी हिस्सों में ऐसा वाकई हो रहा है। हालांकि मिश्रा ने किताब में यह भी लिखा है कि गंगा में डाली गई लाशों की कुल संख्या हजारों में नहीं थी बल्कि 300 से ज्यादा नहीं रही होगी। अटकलें लग रही थीं कि हो सकता है गरीब परिवारों ने दाह संस्कार का खर्च उठाने में असमर्थता की वजह से शवों को नदी में प्रवाहित कर दिया होगा, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई।
उस दौरान नदी में सीधे बहा देने के अलावा कई लोगों ने शवों को नदी के किनारे रेत में दफना भी दिया था। उत्तर प्रदेश के स्थानीय मीडिया में आई कई खबरों के मुताबिक अकेले प्रयागराज में एक बड़े घाट पर रेत में दफनाए हुए हजारों शव मिले थे। तब दैनिक भास्कर अखबार ने उत्तर प्रदेश के हर जिले में रिपोर्टर भेज कर गंगा नदी में तैर रही और गंगा के किनारे दफनाई गई लाशों का सच निकालने की कोशिश की थी। बाद में अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने दैनिक भास्कर के मुख्य संपादक ओम गौड़ ने संपादकीय छापा था जिसका शीर्षक था, "मृतकों को लौटा रही है गंगा, वो झूठ नहीं बोलती।
राजीव रंजन मिश्रा 1987 बैच के तेलंगाना-कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और दो कार्यकालों के दौरान पांच साल से अधिक समय तक एनएमसीजी में सेवाएं दे चुके हैं और 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले हैं। किताब ‘गंगा- रीमेजिनिंग, रीजुवेनेटिंग, रीकनेक्टिंग” का विमोचन गुरुवार को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने किया। किताब में महामारी के दौरान गंगा की स्थिति के बारे में कहा गया है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मरने वालों की संख्या बढ़ने के साथ अंतिम संस्कार करने के लिए दायरा बढ़ने लगा था, यूपी और बिहार के श्मशान घाटों पर जलती चिताओं के बीच, गंगा नदी शवों के लिए एक ‘आसान डंपिंग ग्राउंड’ बन गई थी।
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मिश्रा ने यह भी बताया है कि सभी मामले उत्तर प्रदेश के ही थे और नदी के बिहार वाले हिस्सों में जो लाशें मिली थीं वो उत्तर प्रदेश से ही बहकर वहां पहुंची थीं। सभी लाशें उत्तर प्रदेश के ही कन्नौज और बलिया के बीच गंगा में डाली गई थीं। मई 2021 में दूसरी लहर के दौरान मिश्रा को खुद भी कोविड हो गया था और गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका इलाज किया गया था। उन्होंने किताब में लिखा है कि अस्पताल में अपने इलाज के दौरान ही उन्हें इन घटनाओं के बारे में पता चला। मई की शुरुआत में पवित्र गंगा नदी में तैरती लावारिस और अधजली लाशों के बारे में सुना।” आगे कहा कि ”टीवी चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया साइट्स पर भी भयानक तस्वीरों और शवों को नदी में फेंके जाने की खबरों की भरमार थी जो उनके लिए दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था।” उसके बाद उन्होंने सभी 59 जिला गंगा समितियों को इस स्थिति से निपटने का आदेश दिया। फिर उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार को भी इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया।
मिश्रा कहते हैं कि केंद्रीय अधिकारियों की एक बैठक में उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि राज्य के केंद्रीय और पूर्वी हिस्सों में ऐसा वाकई हो रहा है। हालांकि मिश्रा ने किताब में यह भी लिखा है कि गंगा में डाली गई लाशों की कुल संख्या हजारों में नहीं थी बल्कि 300 से ज्यादा नहीं रही होगी। अटकलें लग रही थीं कि हो सकता है गरीब परिवारों ने दाह संस्कार का खर्च उठाने में असमर्थता की वजह से शवों को नदी में प्रवाहित कर दिया होगा, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई।
उस दौरान नदी में सीधे बहा देने के अलावा कई लोगों ने शवों को नदी के किनारे रेत में दफना भी दिया था। उत्तर प्रदेश के स्थानीय मीडिया में आई कई खबरों के मुताबिक अकेले प्रयागराज में एक बड़े घाट पर रेत में दफनाए हुए हजारों शव मिले थे। तब दैनिक भास्कर अखबार ने उत्तर प्रदेश के हर जिले में रिपोर्टर भेज कर गंगा नदी में तैर रही और गंगा के किनारे दफनाई गई लाशों का सच निकालने की कोशिश की थी। बाद में अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने दैनिक भास्कर के मुख्य संपादक ओम गौड़ ने संपादकीय छापा था जिसका शीर्षक था, "मृतकों को लौटा रही है गंगा, वो झूठ नहीं बोलती।
राजीव रंजन मिश्रा 1987 बैच के तेलंगाना-कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और दो कार्यकालों के दौरान पांच साल से अधिक समय तक एनएमसीजी में सेवाएं दे चुके हैं और 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले हैं। किताब ‘गंगा- रीमेजिनिंग, रीजुवेनेटिंग, रीकनेक्टिंग” का विमोचन गुरुवार को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने किया। किताब में महामारी के दौरान गंगा की स्थिति के बारे में कहा गया है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मरने वालों की संख्या बढ़ने के साथ अंतिम संस्कार करने के लिए दायरा बढ़ने लगा था, यूपी और बिहार के श्मशान घाटों पर जलती चिताओं के बीच, गंगा नदी शवों के लिए एक ‘आसान डंपिंग ग्राउंड’ बन गई थी।
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