उत्तराखंड BJP में खेमेबंदी: तीरथ सिंह रावत के अपने ही फैसलों पर U टर्न से असहज पूर्व CM का खेमा

Written by Navnish Kumar | Published on: April 13, 2021
उत्तराखंड भाजपा इन दिनों बड़ी ही अजीब स्थिति से गुजर रही है। एक तरफ मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अपनी ही सरकार के फैसलों को ताबड़तोड़ पलटने में जुटे हैं तो वहीं दूसरी तरफ पार्टी के अंदर बेहद शांत माहौल में खींचतान की स्थिति यानि खेमेबंदी खड़ी होती दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का खेमा, एक के बाद एक निर्णय पलटे जाने से खासा असहज महसूस कर रहा है।



तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री बनने के एक माह में ही ताबड़तोड़ तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कई निर्णय पलट डाले हैं। जो निर्णय पलटे गए हैं उनमें ताजा मामला गैरसैंण को कमिश्नरी बनाए जाने का शामिल है। कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज पर त्रिवेंद्र सरकार ने विराम लगाया तो तीरथ सिंह रावत ने इसके लिए बजट आवंटित कर दिया। कर्मकार कल्याण बोर्ड में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नया अध्यक्ष और सचिव बैठाया, तो तीरथ सिंह रावत ने आते ही सचिव और अध्यक्ष को हटा दिया। त्रिवेंद्र सरकार के दौरान अहम पदों पर बैठे अधिकारियों को हटाकर दूसरे अधिकारियों को लाया गया। यही नहीं, त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबी माने जाने वाले दायित्वधारियों को भी तीरथ सरकार द्वारा बदल दिया गया है। 

यही नहीं सबसे अहम मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने राज्य के 51 हिन्दू मंदिरों को सरकारी बोर्ड के नियंत्रण से मुक्त करने का निर्णय लिया है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में जनवरी 2020 में राज्य के मंदिरों के प्रबंधन के लिए उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम बोर्ड के गठन का निर्णय लिया गया था। राज्य सरकार ने चारधाम श्राइन मैनेजमेंट बोर्ड ऐक्ट 2019 भी पारित किया था जिसके अंतर्गत यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ समेत 51 मंदिरों का प्रबंधन सरकार के अधिकार क्षेत्र में आ गया था।

इस सारे मामले पर कांग्रेस कहती है कि भाजपा में इस वक्त अंदरूनी खींचतान चल रही है। इसी का नतीजा है कि इस तरह से अपनी ही सरकार के फैसलों को भाजपा बदल रही है। लिहाजा इसका न केवल आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान होगा, बल्कि कांग्रेस को इसका फायदा होगा। जबकि भाजपा के नेता कहते हैं कि ऐसे निर्णय पार्टी के शीर्ष स्तर पर लिए जाते हैं। जो भी निर्णय लिया जाता है उसे बेहद सोच समझकर आगे बढ़ाया जाता है। ऐसे में ऐसे फैसलों के नुकसान का सवाल ही पैदा नहीं होता। जहां तक दायित्वधारियों को हटाने का मामला है तो ऐसे निर्णय पहले भी लिए जाते रहे हैं, पार्टी समय-समय पर परिस्थितियों के हिसाब से ऐसे कदम उठाती है।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद भले इस पूरी कवायद को नई सरकार की अपनी सोच बताकर सार्वजनिक तौर से कोई तूल नहीं देना चाहते हों लेकिन अपने करीबियों के साथ वह खुद भी इससे खासा असहज महसूस कर रहे हैं। मसलन, गैरसैंण कमिश्नरी के कैबिनेट के फैसले को ही लें तो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने फैसले को सही बताते हुए बचाव किया है। वह कहते हैं कि गैरसैंण के भावी विकास के लिए मंडल बनाया जाना जरूरी था और यह उनकी गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति का संगम (प्रयाग) बनाने की कोशिश थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, त्रिवेंद्र कहते हैं कि गैरसैंण मंडल की घोषणा करने से पहले उन्होंने वहां के विधायकों की भी राय ली थी। क्योंकि उन्हें इस बात आशंका थी कि मंडल बनाए जाने से इस तरह के सवाल उठेंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री ने मंडल बनाए जाने के अपने फैसले के समर्थन में तर्क दिया कि ग्रीष्मकालीन राजधानी परिक्षेत्र के सुनियोजित विकास और भविष्य की सोच के साथ यह घोषणा की गई थी। वह चाहते थे कि गैरसैंण मंडल, गढ़वाल और कुमाऊं की मिलीजुली संस्कृति का नया संगम बने। कहा- गैरसैंण के भावी विकास की दृष्टि से भी यह जरूरी था। गैरसैंण राजधानी परिक्षेत्र के सुनियोजित विकास के लिए उन्होंने 10 साल के लिए 25 हजार करोड़ का रोडमैप बनाया था। उस पर काम भी शुरू हो गया है।

गैरसैंण में नियमित रुप से विधानसभा सत्र होंगे, वहां पर कानून व्यवस्था बनाने, प्रदेश की जनता की मांगों के त्वरित निपटारे और राजधानी परिक्षेत्र के सुनियोजित विकास के लिए वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस के नियमित रूप से वहां बैठने के लिए गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने की सोच थी।   

उन्होंने कहा कि कुछ लोगों का कहना था कि मंडल में पिथौरागढ़ को शामिल करना चाहिए था। इस पर हमने विचार करने की बात कही थी। जहां तक गढ़वाल और कुमाऊं की अलग-अलग संस्कृति का सवाल है। अल्मोड़ा को कुमाऊं के एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। संस्कृति गंगा की तरह है कि जो भी उसमें मिलता है वह कभी अपना रूप नहीं बदलती है। बल्कि उसे आत्मसात कर लेती है। गंगा में जितने भी संगम मिलते हैं वह गंगा ही रहती है। इसी तरह से संस्कृति होती है। लेकिन सरकार के मंडल को स्थगित करने के निर्णय पर वह कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। यह सरकार की अपनी सोच और निर्णय है।

चार धाम बोर्ड के निर्णय का भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह कहकर बचाव किया कि चार धाम देवस्थानम बोर्ड का गठन मंदिरों के बेहतर प्रबंधन और श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाओं के निर्माण के लिए किया गया था। कहा कि बोर्ड के दायरे में कोई नया मंदिर नहीं लाया गया।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अब भले अपनी पीड़ा सार्वजनिक तौर पर खुलकर व्यक्त ना करें या ना कर पा रहे हों लेकिन अंदरखाने वह कितने असहज हैं, गैरसैंण को संगम बनाने आदि फैसलों के बचाव की उनकी बातों से ही बखूबी स्पष्ट हो जाता है। तो पार्टी में अंदर पनप रही खेमेबंदी पर से भी परदा हट जा रहा है। अब इस खटास का भाजपा को कितना नफा व नुकसान उठाना पड़ेगा, यह तो अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में ही साफ हो सकेगा।

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