अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: पूंजीवादी व्यवस्था की संरचना महिला उत्थान में बाधक

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: March 8, 2021
पूरी दुनिया आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है जाहिर है इस दिन की ऐतिहासिक विरासत और महिलाओं के मुक्ति का संघर्ष आज भी महिला अधिकारों को लेकर दुनिया भर की औरतों को सजग करता है. यह संघर्ष 19वीं शताब्दी में शुरू जरुर हुआ था लेकिन आज 21वीं सदी में भी उतना ही अर्थपूर्ण है. समाज विकास के बदलते परिवेश के साथ महिलाओं के अधिकार, बंदिशें, ज़रूरतें, चाहतें, सपने, भी बदलते चले गए. पूंजीवाद जहाँ एक ओर कुछ महिलाओं के लिए मुक्ति के रास्ते खोलती है तो बहुलता में महिला शोषण में सहायक व्यवस्था भी है.   



अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास अमेरिका और यूरोपीय देशों की कामकाजी महिला द्वारा श्रम अधिकारों की मांग से जुड़ा हुआ है.  8 मार्च 1857 को अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में कपड़ा उद्योग में काम करने वाली महिला मज़दूरों ने काम के घंटे को कम करवाने और कार्यस्थल पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने जैसी मांगों को लेकर एक बड़ा प्रदर्शन किया, जिसका सरकार ने बुरी तरह दमन कर दिया. 1908  में फिर इसी जगह लगभग 20  हजार महिला मजदूरों ने एक विशाल प्रदर्शन किया और पूरे मैनहट्टन शहर को जाम कर दिया. 8 मार्च के ही दिन बड़े-बड़े संघर्ष हुए. उनके इन संघर्षों के 53 वर्ष बाद 1910 में डेनमार्क के शहर कोपेनहेगन में आयोजित दुनियाभर की मजदूर पार्टियों के अंतरराष्ट्रीय मंच ने महिला सम्मेलन बुलाया जिसमें दुनिया के कई देशों की जागरूक महिलाएं शामिल हुईं. इसी सम्मेलन में जर्मन समाजवादी पार्टी की क्रांतिकारी मजदूर नेता क्लारा जेटकिन ने 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया और तभी से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई. आज विश्व भर में शासक वर्ग द्वारा जानबूझकर 8 मार्च की ऐतिहासिक विरासत को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है. इसलिए ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की ऐतिहासिक महता को विश्व भर की महिलाओं तक पहुचाने की और इस दिन के ऐतिहासिक विरासत से महिलाओं सहित आम आवाम को भी अवगत कराने की जरुरत है. 

दुनिया के लगभग सभी देश समाज विकास के पूंजीवादी दौर से गुजर रहे हैं. महिलाओं की स्थिति न तो, साम्राज्यवादी, सामंतवादी व्यवस्था में ही बेहतर थी और न ही पूंजीवादी व्यवस्था में बहुत अधिक अच्छी हो पायी. भारत की पूंजीवादी व्यवस्था ने 1991 में नई आर्थिक नीतियों को लागू किया जो उदारीकरण, भूमंडलीकरण, व् निजीकरण पर आधारित है. जिसके बाद भारत में एक नव धनाढ्य वर्ग अस्तित्व में आया. मुनाफ़ा पर आधारित बाजारीकरण के इस दौर में ऐसे वर्ग के लिए महिला भी एक वस्तु से अधिक कुछ भी नहीं है. वैश्वीकरण की नयी व्यवस्था जो लगभग 30 साल पहले दुनिया भर में लागू की गयी है उससे मानवीय शोषण में बढ़ोत्तरी ही हुई है. महिला भी इस तरह के शोषण से अछूती नहीं है. वह चाहे बच्चियां हो या नौकरी पेशा औरतें, चाहे बुढ़ापे की दहलीज तक पहुंच गयी हो या विश्वविद्यालय के दरवाजे तक, चाहे सरकारी नौकरी पेशा हो या निजी कंपनी में कार्यरत हो ये अलग-अलग तरह के शोषण का सामना हर ऱोज करती हैं. 

सिर्फ़ भारत की अगर बात की जाए और बहुत पीछे के वर्षों की बात अगर नहीं भी की जाए तो निर्भया कांड के समय भारत में हर दिन बलात्कार के मामले 69 थे वहीँ 2017 में यह आंकड़ा 90 को पार कर गया है और इन दिन तीन सालों में भी अनगिनत बलात्कार के मामले हर ऱोज हमारी नजरों के सामने से होकर गजरते हैं जिनका समुचित आंकड़ों का आना अभी बाकी है. जिसमें हैदराबाद की प्रियंका, उत्तर प्रदेश के हाथरस की घटना, राजस्थान की घटना सहित सैकड़ों घटनाओं ने वीभत्सता की हद पार कर दी है. हर ऱोज समाज में बढती ऐसी भयावह घटनाओं के कई कारण है और वह सभी समाज के लिए गंभीर संवाद का विषय है. बलात्कार के अलावे हर ऱोज हो रहे घरेलू हिंसा की तादाद बहुत अधिक है कई मामलों में तो महिलाओं को पता तक नहीं चल पाता है कि उनके साथ क्या हुआ है और घरेलू हिंसा क्या है? घरेलू हिंसा को लेकर कई गलतफहमियां समाज में व्याप्त हैं जैसे शादी के बाद की मारपीट को ही कई लोग घरेलू हिंसा समझते हैं जबकि अगर लड़की को पढ़ने से रोका जाए, उसकी मर्जी के खिलाफ शादी तय कर दी जाए, उसके पहनावे पर रोक-टोक लगाई जाए तो वह भी घरेलू हिंसा के अंतर्गत ही आता है पर अमूमन लोग इस बारे में बात नहीं  करते हैं. घरेलू हिंसा चार तरह की होती है.. शारीरिक हिंसा, लैंगिक हिंसा, मौखिक और भावनात्मक हिंसा और आर्थिक हिंसा को शामिल करते हैं जिसमें महिलाओं के ससम्मान जिन्दगी जीने को प्राथमिकता दी गयी है. 

भारत में महिलाओं को दिए गए संवैधानिक अधिकारों के लिए कई कानून बनाए गए हैं जो उनके हकों को मजबूती देते हैं. हालाँकि अधिकतर महिलाओं को ऐसे कानूनों के बारे में जानकारी नहीं होती है जिससे महिला शशक्ति  करण को बढ़ावा दिया जा सकता है.  

•    कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ अभद्र भाषा, अभद्र गाने या आपत्तिजनक इशारे का इस्तेमाल करे तो धारा 294 के तहत आरोपी को 3 महीने की सजा हो सकती है.  
•    किसी महिला को जबरन गर्भाधारण या गर्भपात के लिए मजबूर करने वाले व्यक्ति पर धारा 312-315 के तहत कार्रवाई हो सकती है। इसमें 3 से 10 साल तक की जेल है. 
•    कोई अगर महिला के गहने, जमीन या सामान वापस नहीं करे तो धारा 406 के तहत आरोपी पर कार्रवाई हो सकती है। इस धारा के अंतर्गत 3 साल तक की सजा है.   
•    शादी का वादा कर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना करने पर धारा 493 के तहत कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसके तहत 10 साल की सजा का प्रावधान है. 
•    अगर कोई किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाता है तो धारा 306 के तहत उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। ऐसे अपराध की सजा 10 साल तक हो सकती है. 

वर्तमान में महिला दिवस की सार्थकता इस बात में है कि एक ऐसे समाज का निर्माण किया जाए जहाँ महिलाओं को बचपन से लेकर विश्वविद्यालय की शिक्षा समेत समुचित रोजगार की गारंटी की जाए. महिलाओं को सही मायने में आत्मनिर्भर बनाया जाए. तब जाकर हमारे देश में महिलाओं से जुड़ी सामाजिक बुराई को रोका जा सकता है और महिलाओं में भी वो हिम्मत देखि जा सकती है कि वो सामाजिक कुरीतियों और अन्याय के ख़िलाफ़ एकजुट  हो सके. वर्षों से चली आ रही संघर्ष की इस विरासत को व्यवस्था परिवर्तन की तरफ़ ले जाकर असल मुकाम तक पहुचाया जा सकता है. 

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