साधो, आज महिला दिवस है। आओ आज उन महिलाओं को याद करें, उनकी चर्चा करें जिन्होंने अपनी बात रखने या सरकार से असहमत होने की वजह से सरकारी दमन झेला, झेल रहीं या जेल में कैद हैं। बावजूद इसके वे मुट्ठी बांधे इंक़लाब किए हुए खड़ी हैं।
साधो तुम्हें वो पिछले साल की 20 फरवरी का दिन याद है? अरे वही जब ओवैसी के मंच से एक लड़की ने पाकिस्तान जिंदाबाद कह दिया था तो मंच पर उपस्थित लोग बौखला गए था। वही अमूल्या लियोना जिसकी उम्र उस समय महज 20 साल की थी। साधो, उस समय जब अमूल्या ने तीन बार पाकिस्तान जिंदाबाद कहा तो मंच पर उपस्थित सभी नेताओं की हवाइयां उड़ गईं। कोई उसे हटाने दौड़ा तो कोई माइक छीनने। हालांकि उसने 3 बार पाकिस्तान जिंदाबाद के बाद 6 बार हिंदुस्तान जिंदाबाद भी कहा। पर किसी ने इसे न सुना। सबके होश बस पाकिस्तान का नाम सुनकर ही उड़ गए और सारे लोग उसे चुप कराने दौड़ गए। साधो, बड़ी समस्या ये है कि एक तो महिलाएं बहुत कम अवसर हासिल कर पाती हैं कि कहीं वह मंच से अपनी बात रखें। और कोई बोल रहा है तो उसे पूरी बात रखने न दी जा रही है।
साधो, अब आओ इसपर थोड़ी चर्चा कर लें। क्या पाकिस्तान जिंदाबाद कहना बुरा है? ज़िंदाबाद का बेसिक अर्थ क्या है? जीता रहे, आबाद रहे। भगतसिंह का जन्म पृथ्वी के जिस टुकड़े पर हुआ वह अब पाकिस्तान में है। भारत मे कौन ऐसा न होगा जो भगतसिंह का फैन न होगा? तो क्या भगतसिंह के जन्मस्थान को जिंदाबाद कहना गलत है? हमें भगतसिंह से प्यार है उनके जन्मस्थान से प्रेम है। जगहें चाहे इधर की हों चाहे बटवारे वाली रेखा के उधर की। ये दोनों मुल्क की साझी विरासत हैं। मुल्क के बंटवारे के बाद बापू पाकिस्तान जाना चाहते थे। उन्हें जनता की फिक्र थी। दंगे में पिस रहे लोगों की फिक्र थी। वे लकीरों को नहीं मानते थे। जब खींचीं गई रेखा के दोनों तरफ के लोग आज़ादी का जश्न मना रहे थे तो बापू नोआखली में दंगे शांत कराने में लगे थे। वे सिर्फ नोआखाली तक सीमित नहीं थे। दिल्ली, पंजाब, पाकिस्तान तक पहुंचकर वे दोनों तरफ अमन कायम करना चाहते थे। गांधी को पढ़ते हुए लगता है जैसे वे बंटवारे के बाद भी एक आस लिये हुए थे कि अंग्रेजों के जाने के बाद शायद सब फिर एक हो जाये। तो क्या पाकिस्तान वाली धरती से नफरत कर लेना, उसे मुर्दाबाद कह देना या फिर ज़िंदाबाद कहने वालों को अरेस्ट करवा देना गांधी भगतसिंह का अपमान नहीं है?
साधो, पाकिस्तान के शायर हबीब जालिब जिन्होंने अपनी उम्र का अधिकांश हिस्सा जेल में गुजारा वे जब अपनी नज़्मों में किसान मजदूरों की बात कर रहे होते हैं तो वे सिर्फ पाकिस्तान के किसानों मजदूरों की बात नहीं कर रहे होते हैं, वे साफ तौर पर हिंदुस्तान के किसान मजदूर लोगों की बात भी कर रहे होते हैं। भगतसिंह भी तो यही कर रहे थे।
साधो, एक दो बातें और कर लेते हैं। साधो, तुम्हें याद है जब हमारे अभिनन्दन पाकिस्तान की आर्मी के कब्जे चले गए थे? उस समय पाकिस्तान के लोग जो दोनों मुल्कों की राजनीति को समझते हैं अमन पसन्द लोग हैं अभिनन्दन को छोड़ने की अपील के साथ सड़कों पर उतर आए थे। जब भारत में पुलवामा अटैक हुआ तो पाकिस्तान के ऐसे ही नागरिक इसके विरोध में निंदा करते हुए सड़क पर थे।
साधो, ये तो छोटी छोटी बातें हैं जो याद आ रही मैं चर्चा कर ले रहा हूँ। अब आते हैं अमूल्या पर। अमूल्या ने उस घटना के बाद एक लंबा लेख साझा किया था जिसका निचोड़ यह था कि दुनिया का हर देश ज़िंदाबाद रहे। दुनिया में रहने वाले हर बच्चे को भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा मिले। कोई भी मुल्क भूखा न रहे। यह बात करते हुए मुझे अशोक कुमार पांडेय की एक खूब सूरत लाइन याद आ रही है - हर चूल्हे में आग रहे और आग लगे बंदूकों को।
साधो, अमूल्या 20 वर्ष की उम्र में यह सब सोचती है। मंच पर आसीन नेताओं और इस देश के लोगों के धैर्य की परीक्षा उसने अपने पहले दस सेकेंड में ही ले ली। उसे आगे सुना न गया। पुलिस अरेस्ट कर ले गई। देशभक्ति में चूर लोग उसके घर पर हमले करने लगे। कोई उसे मारने वाले को ईनाम देने की घोषणा करने लगा। बस इतना ही था लोगों का धैर्य।
साधो, तीन महीनों तक पुलिस चार्जशीट फ़ाइल न कर सकी और 12 जून की तारीख को अमूल्या को कोर्ट ने सशर्त बेल दे दिया।
साधो, बात पाकिस्तान की आ गई और महिलाओं की हो रही है तो सशक्त महिला इक़बाल बानो की बात कर लेते हैं। दिल्ली में जन्मी इक़बाल बानो शादी के बाद पाकिस्तान चली गईं। उनकी गायिकी के फैन भारत, पाकिस्तान के अलावा पूरी दुनिया मे हैं। पाकिस्तान में 'जिया उल हक' ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म और महिलाओं के साड़ी पहनने पर प्रतिबंध लगाया तो इक़बाल बानो ने इसका कड़ा विरोध किया। इस विरोध की कड़ी में उन्होंने ऐलान किया कि इस तानाशाही के विरोध में वे फ़ैज़ की नज़्म साड़ी पहनकर निश्चित दिन को लाहौर के स्टेडियम में गाएंगी। हुआ भी वही। निश्चित दिन पर वे काली साड़ी पहनकर स्टेडियम पहुंचीं। उनके पीछे पचास हजार के करीब भीड़ पहुंची जो उनको सुनने आई थी। उन्होंने आदाब किया सबको और कहा- हम तो फ़ैज़ की नज़्म गाएंगे। हमें गिरफ्तार किया गया तो जेल में गाएंगे। पर इस तानाशाही रवैये का बहिष्कार करेंगे। उन्होंने खनकती आवाज के साथ फ़ैज़ की नज़्म ' हम देखेंगे' गाना शुरू किया। जब यह लाइन 'सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे' गाना शुरू किया तो लाखों मुट्ठियाँ हवा में तन गईं। लगातार तालियां बजती रहीं। प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। ये मुट्ठियाँ तानाशाही के खिलाफ तनी थीं। इक़बाल बानो के समर्थन में तनी थीं।
साधो, पिछले कुछ सालों से सुधा भारद्वाज जेल में हैं। वे मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, वकील हैं। उन्हें भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में गिरफ्तार किया गया है। ऐसा सरकार का कहना है। अभी हाल ही में किसी विदेशी अखबार ने दावा किया था कि भीमा कोरेगांव मामले में जो गिरफ्तारियाँ हुई हैं उनमें से कुछ लोगों के लैपटॉप में फर्जी डाटा डाल दिया गया था। यह बात कौन लोगों तक पहुंचाए? मीडिया एक्टिविस्टों के विरोध की चीजें प्रसारित करता है। मीडिया दरबारी हो चुका है।
साधो, सरकारें ऐसा क्यों करती हैं ? दरअसल वे विरोध में उठी आवाजों को डराना चाहती हैं। उठने वाली आवाजों को भयभीत करना चाहती हैं। पर क्या वे गलत के खिलाफ बोल रही बहनों का मुँह बन्द करवा सकी हैं ? पिछले कुछ सालों से जितनी महिलाओं ने दमन झेला उनमे से कुछ प्रमुख नामों को मैं याद करता हूँ-
अमूल्या लियोना
दिशा रवि
नोदीप कौर
गुलशिफ़ा फातिमा
इशरत जहाँ
सफूरा जरगर
नताशा नरवाल
देवांगना कलिता
निकिता जैकब
साधो, ये महिलाएं सिर्फ सरकार, प्रशासन से ही नहीं लड़ रही थी, साथ में सामाजिक ट्रोलरों, सोशल मीडिया ट्रोलरों से भी लड़ रही थीं। इन लोगों को मारने, बलात्कार की धमकियां देने वालों पर सरकार क्या एक्शन लेती है कोई नहीं जानता। कभी कभी तो हालात देखकर ऐसा लगने लगता है कि सरकार इन सब को संरक्षण दे रही है।
साधो, इन सब के डर से न तो इन्होंने लड़ना छोड़ा और न ही कहीं जरा भी भय नजर आया। इन महिलाओं को महिला दिवस पर क्रांतिकारी सलाम।
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साधो तुम्हें वो पिछले साल की 20 फरवरी का दिन याद है? अरे वही जब ओवैसी के मंच से एक लड़की ने पाकिस्तान जिंदाबाद कह दिया था तो मंच पर उपस्थित लोग बौखला गए था। वही अमूल्या लियोना जिसकी उम्र उस समय महज 20 साल की थी। साधो, उस समय जब अमूल्या ने तीन बार पाकिस्तान जिंदाबाद कहा तो मंच पर उपस्थित सभी नेताओं की हवाइयां उड़ गईं। कोई उसे हटाने दौड़ा तो कोई माइक छीनने। हालांकि उसने 3 बार पाकिस्तान जिंदाबाद के बाद 6 बार हिंदुस्तान जिंदाबाद भी कहा। पर किसी ने इसे न सुना। सबके होश बस पाकिस्तान का नाम सुनकर ही उड़ गए और सारे लोग उसे चुप कराने दौड़ गए। साधो, बड़ी समस्या ये है कि एक तो महिलाएं बहुत कम अवसर हासिल कर पाती हैं कि कहीं वह मंच से अपनी बात रखें। और कोई बोल रहा है तो उसे पूरी बात रखने न दी जा रही है।
साधो, अब आओ इसपर थोड़ी चर्चा कर लें। क्या पाकिस्तान जिंदाबाद कहना बुरा है? ज़िंदाबाद का बेसिक अर्थ क्या है? जीता रहे, आबाद रहे। भगतसिंह का जन्म पृथ्वी के जिस टुकड़े पर हुआ वह अब पाकिस्तान में है। भारत मे कौन ऐसा न होगा जो भगतसिंह का फैन न होगा? तो क्या भगतसिंह के जन्मस्थान को जिंदाबाद कहना गलत है? हमें भगतसिंह से प्यार है उनके जन्मस्थान से प्रेम है। जगहें चाहे इधर की हों चाहे बटवारे वाली रेखा के उधर की। ये दोनों मुल्क की साझी विरासत हैं। मुल्क के बंटवारे के बाद बापू पाकिस्तान जाना चाहते थे। उन्हें जनता की फिक्र थी। दंगे में पिस रहे लोगों की फिक्र थी। वे लकीरों को नहीं मानते थे। जब खींचीं गई रेखा के दोनों तरफ के लोग आज़ादी का जश्न मना रहे थे तो बापू नोआखली में दंगे शांत कराने में लगे थे। वे सिर्फ नोआखाली तक सीमित नहीं थे। दिल्ली, पंजाब, पाकिस्तान तक पहुंचकर वे दोनों तरफ अमन कायम करना चाहते थे। गांधी को पढ़ते हुए लगता है जैसे वे बंटवारे के बाद भी एक आस लिये हुए थे कि अंग्रेजों के जाने के बाद शायद सब फिर एक हो जाये। तो क्या पाकिस्तान वाली धरती से नफरत कर लेना, उसे मुर्दाबाद कह देना या फिर ज़िंदाबाद कहने वालों को अरेस्ट करवा देना गांधी भगतसिंह का अपमान नहीं है?
साधो, पाकिस्तान के शायर हबीब जालिब जिन्होंने अपनी उम्र का अधिकांश हिस्सा जेल में गुजारा वे जब अपनी नज़्मों में किसान मजदूरों की बात कर रहे होते हैं तो वे सिर्फ पाकिस्तान के किसानों मजदूरों की बात नहीं कर रहे होते हैं, वे साफ तौर पर हिंदुस्तान के किसान मजदूर लोगों की बात भी कर रहे होते हैं। भगतसिंह भी तो यही कर रहे थे।
साधो, एक दो बातें और कर लेते हैं। साधो, तुम्हें याद है जब हमारे अभिनन्दन पाकिस्तान की आर्मी के कब्जे चले गए थे? उस समय पाकिस्तान के लोग जो दोनों मुल्कों की राजनीति को समझते हैं अमन पसन्द लोग हैं अभिनन्दन को छोड़ने की अपील के साथ सड़कों पर उतर आए थे। जब भारत में पुलवामा अटैक हुआ तो पाकिस्तान के ऐसे ही नागरिक इसके विरोध में निंदा करते हुए सड़क पर थे।
साधो, ये तो छोटी छोटी बातें हैं जो याद आ रही मैं चर्चा कर ले रहा हूँ। अब आते हैं अमूल्या पर। अमूल्या ने उस घटना के बाद एक लंबा लेख साझा किया था जिसका निचोड़ यह था कि दुनिया का हर देश ज़िंदाबाद रहे। दुनिया में रहने वाले हर बच्चे को भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा मिले। कोई भी मुल्क भूखा न रहे। यह बात करते हुए मुझे अशोक कुमार पांडेय की एक खूब सूरत लाइन याद आ रही है - हर चूल्हे में आग रहे और आग लगे बंदूकों को।
साधो, अमूल्या 20 वर्ष की उम्र में यह सब सोचती है। मंच पर आसीन नेताओं और इस देश के लोगों के धैर्य की परीक्षा उसने अपने पहले दस सेकेंड में ही ले ली। उसे आगे सुना न गया। पुलिस अरेस्ट कर ले गई। देशभक्ति में चूर लोग उसके घर पर हमले करने लगे। कोई उसे मारने वाले को ईनाम देने की घोषणा करने लगा। बस इतना ही था लोगों का धैर्य।
साधो, तीन महीनों तक पुलिस चार्जशीट फ़ाइल न कर सकी और 12 जून की तारीख को अमूल्या को कोर्ट ने सशर्त बेल दे दिया।
साधो, बात पाकिस्तान की आ गई और महिलाओं की हो रही है तो सशक्त महिला इक़बाल बानो की बात कर लेते हैं। दिल्ली में जन्मी इक़बाल बानो शादी के बाद पाकिस्तान चली गईं। उनकी गायिकी के फैन भारत, पाकिस्तान के अलावा पूरी दुनिया मे हैं। पाकिस्तान में 'जिया उल हक' ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म और महिलाओं के साड़ी पहनने पर प्रतिबंध लगाया तो इक़बाल बानो ने इसका कड़ा विरोध किया। इस विरोध की कड़ी में उन्होंने ऐलान किया कि इस तानाशाही के विरोध में वे फ़ैज़ की नज़्म साड़ी पहनकर निश्चित दिन को लाहौर के स्टेडियम में गाएंगी। हुआ भी वही। निश्चित दिन पर वे काली साड़ी पहनकर स्टेडियम पहुंचीं। उनके पीछे पचास हजार के करीब भीड़ पहुंची जो उनको सुनने आई थी। उन्होंने आदाब किया सबको और कहा- हम तो फ़ैज़ की नज़्म गाएंगे। हमें गिरफ्तार किया गया तो जेल में गाएंगे। पर इस तानाशाही रवैये का बहिष्कार करेंगे। उन्होंने खनकती आवाज के साथ फ़ैज़ की नज़्म ' हम देखेंगे' गाना शुरू किया। जब यह लाइन 'सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे' गाना शुरू किया तो लाखों मुट्ठियाँ हवा में तन गईं। लगातार तालियां बजती रहीं। प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। ये मुट्ठियाँ तानाशाही के खिलाफ तनी थीं। इक़बाल बानो के समर्थन में तनी थीं।
साधो, पिछले कुछ सालों से सुधा भारद्वाज जेल में हैं। वे मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, वकील हैं। उन्हें भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में गिरफ्तार किया गया है। ऐसा सरकार का कहना है। अभी हाल ही में किसी विदेशी अखबार ने दावा किया था कि भीमा कोरेगांव मामले में जो गिरफ्तारियाँ हुई हैं उनमें से कुछ लोगों के लैपटॉप में फर्जी डाटा डाल दिया गया था। यह बात कौन लोगों तक पहुंचाए? मीडिया एक्टिविस्टों के विरोध की चीजें प्रसारित करता है। मीडिया दरबारी हो चुका है।
साधो, सरकारें ऐसा क्यों करती हैं ? दरअसल वे विरोध में उठी आवाजों को डराना चाहती हैं। उठने वाली आवाजों को भयभीत करना चाहती हैं। पर क्या वे गलत के खिलाफ बोल रही बहनों का मुँह बन्द करवा सकी हैं ? पिछले कुछ सालों से जितनी महिलाओं ने दमन झेला उनमे से कुछ प्रमुख नामों को मैं याद करता हूँ-
अमूल्या लियोना
दिशा रवि
नोदीप कौर
गुलशिफ़ा फातिमा
इशरत जहाँ
सफूरा जरगर
नताशा नरवाल
देवांगना कलिता
निकिता जैकब
साधो, ये महिलाएं सिर्फ सरकार, प्रशासन से ही नहीं लड़ रही थी, साथ में सामाजिक ट्रोलरों, सोशल मीडिया ट्रोलरों से भी लड़ रही थीं। इन लोगों को मारने, बलात्कार की धमकियां देने वालों पर सरकार क्या एक्शन लेती है कोई नहीं जानता। कभी कभी तो हालात देखकर ऐसा लगने लगता है कि सरकार इन सब को संरक्षण दे रही है।
साधो, इन सब के डर से न तो इन्होंने लड़ना छोड़ा और न ही कहीं जरा भी भय नजर आया। इन महिलाओं को महिला दिवस पर क्रांतिकारी सलाम।
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