नई दिल्ली। 2017 में उप्र में भाजपा सरकार बनते ही सहारनपुर के शब्बीरपुर में हुई जातीय हिंसा में दो आईएएस पर राजद्रोह का केस हुआ है। मामला जातीय हिंसा के अनुसूचित जाति के पीड़ितों को एससी-एसटी एक्ट की धाराओं के अनुरूप लाभ (आर्थिक सहायता) नहीं दिए जाने का है।
हिंसा पीड़ित दल सिंह की शिकायत पर सहारनपुर एससी एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश वीके लाल की अदालत ने प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार व तत्कालीन जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडेय के खिलाफ राजाज्ञा के उल्लंघन पर राजद्रोह व एससी-एसटी एक्ट के तहत अपनी अदालत में केस (परिवाद) दर्ज किया है।
तीन साल पहले सहारनपुर के देवबंद बड़गांव क्षेत्र के शब्बीरपुर गांव में ठाकुर व दलित समाज के बीच जातीय हिंसा हुई थी। पीड़ित के वकील व संविधान बचाओ समिति के अध्यक्ष एडवोकेट राजकुमार के अनुसार, शब्बीरपुर के रहने वाले दल सिंह ने विशेष न्यायाधीश एससी एसटी एक्ट, वीके लाल की अदालत में दी अर्जी में बताया था कि वह शब्बीरपुर में हई जातीय हिंसा के पीड़ित हैं और बड़गांव थाने में उनका मुकदमा भी दर्ज है।
दल सिंह ने बताया कि उन्हें समाज कल्याण विभाग की ओर से तीन लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी गई है जबकि मुकदमे की धाराओं के अनुसार, उन्हें 8.25 लाख रुपये का अनुदान मिलना चाहिए था। इसके अलावा 5 हजार रुपये प्रति माह की मूल पेंशन के साथ महंगाई भत्ता और बच्चों की स्नातक तक मुफ्त पढ़ाई और सरकार द्वारा पूर्ण वित्त पोषित आवासीय स्कूलों में एडमिशन का लाभ मिलना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
मामले में पीड़ित ने वर्तमान डीएम अखिलेश सिंह से भी शिकायत की थी जिस पर डीएम ने 17 जून 2020 को प्रमुख सचिव समाज कल्याण को पत्र लिखकर आर्थिक लाभ के बाबत जानकारी मांगी थी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
इस पर विशेष न्यायाधीश एससी एसटी एक्ट, वीके लाल ने सुनवाई के बाद अपने आदेशों में कहा है कि महामहिम के आदेशों की अवमानना और एससी-एसटी एक्ट की धारा 4 की अवमानना, राजद्रोह की श्रेणी में आती है। इस आधार पर न्यायालय ने दोनों के विरूद्ध परिवाद के रूप में मामला दर्ज किया है। 19 नवंबर को सुनवाई की तिथि तय की है।
खास है कि भीम आर्मी इसी प्रकरण के बाद सामने आई थी। मामले में भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर 'रावण' को जेल जाना पड़ा था। रासुका भी लगी थी। वहीं, इस प्रकरण में योगी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी सहारनपुर आए थे। हालांकि पुलिस प्रशासन ने उन्हें सहारनपुर में घुसने नही दिया था और सरसावा बॉर्डर से ही उन्हें लौटना पड़ा था।
बसपा सुप्रीमो मायावती भी हिंसा प्रभावित शब्बीरपुर गांव गई थीं जिसके बाद वहां फिर से हिंसा भड़क गई थी और एक दलित युवक की मौत हो गई थी जबकि 10 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस हमले के बाद ठाकुर और दलित फिर से आमने सामने आ गए और शब्बीरपुर गांव में कुछ घरों को जला दिया गया था।
इस मामले में सरकार ने तत्कालीन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे और जिलाधिकारी एनपी सिंह को निलंबित कर दिया था। इसी के चलते मायावती के दो दिन बाद आए राहुल गांधी को गांव जाने से रोक दिया गया था।
मामले में 5 मई 2017 को हिंसा की शुरुआत जिले के शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप की मूर्ति पर माल्यार्पण करने जा रहे राजपूतों और दलितों के बीच झड़प से हुई थी। इस हिंसा में राजपूत पक्ष के एक युवक की मौत हो गई थी। इसके बाद ठाकुर पक्ष द्वारा दलितों के दर्जनों घर फूक दिए गए थे। 9 मई को भीम आर्मी के नेतृत्व में पीड़ित दलितों ने मुआवजे की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन, उपद्रव, तोड़फोड़ व आगजनी की थी। दो पुलिस चौकी फूंक दी थी। पत्रकारों के वाहनों समेत दर्ज़नो वाहन फूंक दिए थे। सहारनपुर में महीनों इंटरनेट भी बंद रहा था।
हिंसा पीड़ित दल सिंह की शिकायत पर सहारनपुर एससी एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश वीके लाल की अदालत ने प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार व तत्कालीन जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडेय के खिलाफ राजाज्ञा के उल्लंघन पर राजद्रोह व एससी-एसटी एक्ट के तहत अपनी अदालत में केस (परिवाद) दर्ज किया है।
तीन साल पहले सहारनपुर के देवबंद बड़गांव क्षेत्र के शब्बीरपुर गांव में ठाकुर व दलित समाज के बीच जातीय हिंसा हुई थी। पीड़ित के वकील व संविधान बचाओ समिति के अध्यक्ष एडवोकेट राजकुमार के अनुसार, शब्बीरपुर के रहने वाले दल सिंह ने विशेष न्यायाधीश एससी एसटी एक्ट, वीके लाल की अदालत में दी अर्जी में बताया था कि वह शब्बीरपुर में हई जातीय हिंसा के पीड़ित हैं और बड़गांव थाने में उनका मुकदमा भी दर्ज है।
दल सिंह ने बताया कि उन्हें समाज कल्याण विभाग की ओर से तीन लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी गई है जबकि मुकदमे की धाराओं के अनुसार, उन्हें 8.25 लाख रुपये का अनुदान मिलना चाहिए था। इसके अलावा 5 हजार रुपये प्रति माह की मूल पेंशन के साथ महंगाई भत्ता और बच्चों की स्नातक तक मुफ्त पढ़ाई और सरकार द्वारा पूर्ण वित्त पोषित आवासीय स्कूलों में एडमिशन का लाभ मिलना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
मामले में पीड़ित ने वर्तमान डीएम अखिलेश सिंह से भी शिकायत की थी जिस पर डीएम ने 17 जून 2020 को प्रमुख सचिव समाज कल्याण को पत्र लिखकर आर्थिक लाभ के बाबत जानकारी मांगी थी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
इस पर विशेष न्यायाधीश एससी एसटी एक्ट, वीके लाल ने सुनवाई के बाद अपने आदेशों में कहा है कि महामहिम के आदेशों की अवमानना और एससी-एसटी एक्ट की धारा 4 की अवमानना, राजद्रोह की श्रेणी में आती है। इस आधार पर न्यायालय ने दोनों के विरूद्ध परिवाद के रूप में मामला दर्ज किया है। 19 नवंबर को सुनवाई की तिथि तय की है।
खास है कि भीम आर्मी इसी प्रकरण के बाद सामने आई थी। मामले में भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर 'रावण' को जेल जाना पड़ा था। रासुका भी लगी थी। वहीं, इस प्रकरण में योगी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी सहारनपुर आए थे। हालांकि पुलिस प्रशासन ने उन्हें सहारनपुर में घुसने नही दिया था और सरसावा बॉर्डर से ही उन्हें लौटना पड़ा था।
बसपा सुप्रीमो मायावती भी हिंसा प्रभावित शब्बीरपुर गांव गई थीं जिसके बाद वहां फिर से हिंसा भड़क गई थी और एक दलित युवक की मौत हो गई थी जबकि 10 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस हमले के बाद ठाकुर और दलित फिर से आमने सामने आ गए और शब्बीरपुर गांव में कुछ घरों को जला दिया गया था।
इस मामले में सरकार ने तत्कालीन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे और जिलाधिकारी एनपी सिंह को निलंबित कर दिया था। इसी के चलते मायावती के दो दिन बाद आए राहुल गांधी को गांव जाने से रोक दिया गया था।
मामले में 5 मई 2017 को हिंसा की शुरुआत जिले के शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप की मूर्ति पर माल्यार्पण करने जा रहे राजपूतों और दलितों के बीच झड़प से हुई थी। इस हिंसा में राजपूत पक्ष के एक युवक की मौत हो गई थी। इसके बाद ठाकुर पक्ष द्वारा दलितों के दर्जनों घर फूक दिए गए थे। 9 मई को भीम आर्मी के नेतृत्व में पीड़ित दलितों ने मुआवजे की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन, उपद्रव, तोड़फोड़ व आगजनी की थी। दो पुलिस चौकी फूंक दी थी। पत्रकारों के वाहनों समेत दर्ज़नो वाहन फूंक दिए थे। सहारनपुर में महीनों इंटरनेट भी बंद रहा था।