"आज जिस तरह से सरकारें इतिहास से हमारे नायकों को मिटाने की कोशिश कर रही हैं, यह बेहद खतरनाक है। आज किताबों तक से अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, पेरियार और हमारे अन्य सामाजिक नायकों को गायब करने का किया जा रहा है। सत्ता सिर्फ 'राम राम' जपने में लगी है, और एक खास विचारधारा को थोपने की कोशिश हो रही है। हमें सावधान रहना होगा और अपने इतिहास को बचाने की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी। हमें अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी होगी।"

महिला शिक्षा और अधिकारों की अलख जगाने वाली क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले के 128वें परिनिर्वाण दिवस पर बीजोपरा में आयोजित महिला सम्मेलन में 'पढ़ेंगे पढ़ाएंगे- संगठन बनाएंगे' के नारे गूंजे और महिलाओं को शिक्षा के महत्व व उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने पर जोर दिया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन 'महिला भू एवं श्रम अधिकार मंच', 'संयुक्त महिला मंच' और 'विकल्प सामाजिक संगठन' के संयुक्त रूप से किया गया।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने सावित्रीबाई फुले व ज्योतिबा फुले के योगदान को याद करते हुए वर्तमान में महिलाओं की स्थिति पर विचार-विमर्श किया। सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि आज मोदी सरकार इतिहास से छेड़छाड़ कर रही है। कहा "आज जिस तरह से सरकारें इतिहास से हमारे नायकों को मिटाने की कोशिश कर रही हैं, यह बेहद खतरनाक है। आज किताबों तक से अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, पेरियार और हमारे अन्य सामाजिक नायकों को गायब करने का किया जा रहा है। सत्ता सिर्फ 'राम राम' जपने में लगी है, और एक खास विचारधारा को थोपने की कोशिश हो रही है। हमें सावधान रहना होगा और अपने इतिहास को बचाने की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी। हमें अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी होगी।"
सावित्रीबाई फुले के योगदान पर प्रकाश डालते हुए, वक्ताओं ने बताया कि 19वीं शताब्दी में जब महिलाओं की शिक्षा की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, तब सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। उन्होंने जातिवादी और पितृसत्तात्मक समाज से लड़ते हुए महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए सावित्रीबाई फुले को समाज में भारी विरोध झेलना पड़ा। जब वह स्कूल पढ़ाने जाती थीं, तो लोग उन पर कीचड़ और गोबर फेंकते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा के जरिए समाज में क्रांति ला दी। उन्होंने सिर्फ लड़कियों की शिक्षा ही नहीं, बल्कि विधवा विवाह को बढ़ावा देने और सती प्रथा के खिलाफ भी संघर्ष किया।
वक्ताओं ने कहा कि सावित्री बाई ने दलित समाज की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा। उन्हें पता था, कि बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी ही है। सावित्रीबाई फुले व ज्योतिबा फुले चाहते थे, कि दलित समुदाय के घरों तक शिक्षा का प्रचार-प्रसार होना चाहिए, विशेषतः वें लड़कियों की शिक्षा के जबरदस्त पक्षधर थे। सावित्रीबाई और ज्योतिबा राव फुले 1851 के अंत तक पुणे में तीन अलग-अलग महिला स्कूलों के प्रभारी थे। शिक्षा का प्रसार करना उस समय के सनातनियों को बिलकुल भी पसंद नहीं था और उनका चारों ओर से विरोध होने लगा। ज्योतिबा फुले फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे। विरोधियों ने उनके पिता गोविंदराव पर दबाव बनाया। और अंततः पिता को भी उनके दवाब ने विवश कर दिया। मजबूरी में ज्योतिबा फुले को अपना घर छोड़ना पड़ा, तब उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ में रहते थे, उन्होंने ज्योतिबा राव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया। यहीं ज्योतिबा राव फूले ने 1848 में अपना पहला स्कूल शुरू किया था। जिसमें सवित्रीबाई फुले ने लड़कियों को शिक्षा देने का काम शुरू किया। उस्मान शेख भी लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझते थे, उनकी एक बहन फातिमा थी। उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल में शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण की और वह भी सावित्रीबाई के साथ लिखना-पढ़ना सीखने लगीं। बाद में ज्योतिबा ने लड़कियों के कई स्कूल कायम किए जहां पर तमाम विरोधों अवरोधों के बावजूद सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने समाज में शिक्षा का उजियारा फैलाने का काम किया।

महिला अधिकारों की मौजूदा स्थिति पर चर्चा
कार्यक्रम में इस बात पर चिंता जताई गई कि आज भी देश में करीब आधी महिलाएं अशिक्षित हैं। गरीब, दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग की इन महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से वंचित रखा गया है। वक्ताओं ने कहा कि सरकार की नीतियां महिलाओं को सशक्त करने के बजाय उनके अधिकार छीनने का काम कर रही हैं। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं को भूमि का अधिकार मिलना चाहिए। आज भी अधिकांश खेती की जमीन पुरुषों के नाम पर दर्ज होती है, जबकि महिलाओं की इसमें बराबरी की भागीदारी होनी चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि महिलाओं को सिर्फ शिक्षा नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र बनाने की जरूरत है। इसके लिए उन्हें भूमि, श्रम और संसाधनों पर अधिकार मिलना चाहिए।
सावित्रीबाई फुले: भारत की पहली महिला शिक्षिका और नारी मुक्ति की प्रेरणा
सावित्रीबाई फुले के योगदान को याद करते हुए वक्ताओं ने बताया कि कैसे 19वीं शताब्दी में जब महिलाओं की शिक्षा के बारे में सोचना भी असंभव था, तब सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिबा फुले ने महिला शिक्षा की अलख जगाई। रेहाना अदीब, गुरमीत कौर, मंतलेश, फरीदा और अनीता एडवोकेट जैसी महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि "आज अगर महिलाएं पढ़-लिख पा रही हैं, अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, तो इसका श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है। उन्होंने उस दौर में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलकर समाज को एक नई दिशा दी।"
महिला शिक्षा और समानता की राह में चुनौतियां
सम्मेलन में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि आज भी समाज में महिला शिक्षा को लेकर पुरानी रूढ़ियों और पितृसत्तात्मक सोच के कारण कई बाधाएं बनी हुई हैं। कार्यक्रम में पहली वन गुर्जर महिला ग्रेजुएट फरीदा ने अपने संघर्ष की कहानी साझा करते हुए कहा, "मुझे पढ़ने के लिए समाज और परिवार दोनों से संघर्ष करना पड़ा। आज भी कई लड़कियों को स्कूल जाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। हमें इसे बदलना होगा और सावित्रीबाई फुले की तरह आगे आकर अपने समाज को शिक्षित करना होगा।"
महिलाओं की ज़मीन और श्रम अधिकारों पर जोर
महिला अधिकार कार्यकर्ता गुरमीत कौर ने कहा कि "हमें महिलाओं के लिए जल, जंगल और ज़मीन के अधिकार की मांग करनी होगी। सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के जरिये महिलाओं को सशक्त बनाने का सपना देखा था, लेकिन आर्थिक स्वतंत्रता के बिना यह अधूरा रह जाएगा।" सम्मेलन में इस बात पर भी चर्चा हुई कि महिलाओं को केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि सामाजिक और कानूनी अधिकार भी मिलने चाहिए। महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा, भेदभाव और दोयम दर्जे के व्यवहार को समाप्त करने के लिए कानूनी जागरूकता पर जोर दिया गया।
कार्यक्रम में संयुक्त महिला मंच की मंतलेश ने कहा, "महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और समाज में असमानता के खिलाफ हमें एकजुट होकर संघर्ष करना होगा। सावित्रीबाई फुले ने जिस हिम्मत से लड़ाई लड़ी, हमें उसी प्रेरणा से आगे बढ़ना होगा।"

महिला दिवस पर संकल्प: "हर लड़की को पढ़ाना है, समाज को बदलना है"
कार्यक्रम के अंत में सभी महिलाओं ने एकसाथ संकल्प लिया कि वे अपने परिवार और समाज में हर लड़की की शिक्षा सुनिश्चित करेंगी। यह भी तय किया गया कि अगले साल तक महिलाओं के भूमि अधिकारों को लेकर एक बड़े आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। इस दौरान महिलाओं ने शिक्षा और समानता के लिए संघर्ष जारी रखने की शपथ ली। सभी ने यह संकल्प लिया कि वे अपने गांवों में महिलाओं को जागरूक करने का काम करेंगी और बेटियों को शिक्षित करने पर जोर देंगी।
सावित्रीबाई न सिर्फ समाज की पहली शिक्षिका है बल्कि भारत की महिलाओं की दूसरी मां है: रोमा
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि सावित्रीबाई न सिर्फ समाज की पहली शिक्षिका है बल्कि भारत की तमाम महिलाओं की दूसरी मां है जिन्होंने महिलाओं को व्याप्त दोयम दर्जे, शोषण और महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा के खिलाफ शिक्षित हो कर प्रतिकार करने की शिक्षा दी। इस लिए हमारे समाज में उनका विशेष स्थान है। नारी शिक्षा का काम आज भी बहुत महत्वपूर्ण काम है। देश की 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं अशिक्षित होने के साथ साथ गरीब और बेरोज़गार है। यह वो तबका है जो दलित, आदिवासी, मुसलमान और अन्य पिछड़े वर्गों से आता है। जिनके स्थाई रोज़गार के बारे में योजना निर्माताओं और सरकार की योजनाए ना के बराबर है। स्थाई रोज़गार केवल भूमि के अधिकारों और श्रम अधिकारों से ही मिल सकते हैं। लेकिन हमारे निति निर्धारक इस विषय पर रूढ़िवादी सोच रखते हैं और अभी भी महिलाओ को खेती की भूमि का मालिकाना हक प्रदान करने की कोई राजनैतिक इच्छा नहीं रखते है। महिलाओं को खुद अपने बुनियादी अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और प्रत्येक महिला को जमीन का मालिकाना हक, कृषि की भूमि में पुरुष के साथ महिलाओं को भी जमीन का अधिकार सुनिश्चित करने को आगे आना होगा। जल, जंगल और भूमि पर महिलाओं के आजीविका के अधिकार सुनिचित करने से ही उनकी गरीबी दूर की जा सकती है और उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है। आज इन संसाधनों पर बड़े पैमाने पर सामंती, पूंजीवादी व भू मफ़िआओ का कब्ज़ा है जिसके कारण असंख्य मेहनतकश जनता गरीबी और भुखमरी के कगार पर पहुँच चुकी है एवं सामाजिक न्याय से वंचित है। महिलाओं को बराबरी का हक़ हमारे संवैधानिक अधिकार है जिसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए। लेकिन इसके लिए महिलाओं को आगे आकर, सावित्रीबाई फुले की तरह महिलाओं को जागरूक करने का बीड़ा उठाना होगा।
शिक्षा महिला सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली उपकरण: अशोक चौधरी
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन व विकल्प के संस्थापक अशोक चौधरी ने कहा कि आज भी महिलाओं को शिक्षित करना महिला सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली उपकरण है। यह महिलाओं को निर्णय लेने, अपने अधिकारों का दावा करने और समाज में समान रूप से आग लेने के लिए आवश्यक जान और कौशल प्रदान करता है। जब महिलाएं शिक्षित होती है, तो वे पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती दे सकती है और लैंगिक समानता की लड़ाई में योगदान दे सकती है। सवित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने मिलकर सामाजिक न्याय आंदोलन की दिशा में कार्य किया, जिसमें उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, दलितों के अधिकारों, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। ज्योतिबा की मृत्यु के बाद भी सवित्रीबाई ने विशेष रुप से शिक्षा के काम को रुकने नहीं दिया और वह अंत तक महिलाओं के लिए काम करती रही।

महिला शिक्षा और अधिकारों की अलख जगाने वाली क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले के 128वें परिनिर्वाण दिवस पर बीजोपरा में आयोजित महिला सम्मेलन में 'पढ़ेंगे पढ़ाएंगे- संगठन बनाएंगे' के नारे गूंजे और महिलाओं को शिक्षा के महत्व व उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने पर जोर दिया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन 'महिला भू एवं श्रम अधिकार मंच', 'संयुक्त महिला मंच' और 'विकल्प सामाजिक संगठन' के संयुक्त रूप से किया गया।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने सावित्रीबाई फुले व ज्योतिबा फुले के योगदान को याद करते हुए वर्तमान में महिलाओं की स्थिति पर विचार-विमर्श किया। सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि आज मोदी सरकार इतिहास से छेड़छाड़ कर रही है। कहा "आज जिस तरह से सरकारें इतिहास से हमारे नायकों को मिटाने की कोशिश कर रही हैं, यह बेहद खतरनाक है। आज किताबों तक से अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, पेरियार और हमारे अन्य सामाजिक नायकों को गायब करने का किया जा रहा है। सत्ता सिर्फ 'राम राम' जपने में लगी है, और एक खास विचारधारा को थोपने की कोशिश हो रही है। हमें सावधान रहना होगा और अपने इतिहास को बचाने की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी। हमें अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी होगी।"
सावित्रीबाई फुले के योगदान पर प्रकाश डालते हुए, वक्ताओं ने बताया कि 19वीं शताब्दी में जब महिलाओं की शिक्षा की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, तब सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। उन्होंने जातिवादी और पितृसत्तात्मक समाज से लड़ते हुए महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए सावित्रीबाई फुले को समाज में भारी विरोध झेलना पड़ा। जब वह स्कूल पढ़ाने जाती थीं, तो लोग उन पर कीचड़ और गोबर फेंकते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा के जरिए समाज में क्रांति ला दी। उन्होंने सिर्फ लड़कियों की शिक्षा ही नहीं, बल्कि विधवा विवाह को बढ़ावा देने और सती प्रथा के खिलाफ भी संघर्ष किया।
वक्ताओं ने कहा कि सावित्री बाई ने दलित समाज की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा। उन्हें पता था, कि बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी ही है। सावित्रीबाई फुले व ज्योतिबा फुले चाहते थे, कि दलित समुदाय के घरों तक शिक्षा का प्रचार-प्रसार होना चाहिए, विशेषतः वें लड़कियों की शिक्षा के जबरदस्त पक्षधर थे। सावित्रीबाई और ज्योतिबा राव फुले 1851 के अंत तक पुणे में तीन अलग-अलग महिला स्कूलों के प्रभारी थे। शिक्षा का प्रसार करना उस समय के सनातनियों को बिलकुल भी पसंद नहीं था और उनका चारों ओर से विरोध होने लगा। ज्योतिबा फुले फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे। विरोधियों ने उनके पिता गोविंदराव पर दबाव बनाया। और अंततः पिता को भी उनके दवाब ने विवश कर दिया। मजबूरी में ज्योतिबा फुले को अपना घर छोड़ना पड़ा, तब उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ में रहते थे, उन्होंने ज्योतिबा राव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया। यहीं ज्योतिबा राव फूले ने 1848 में अपना पहला स्कूल शुरू किया था। जिसमें सवित्रीबाई फुले ने लड़कियों को शिक्षा देने का काम शुरू किया। उस्मान शेख भी लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझते थे, उनकी एक बहन फातिमा थी। उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल में शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण की और वह भी सावित्रीबाई के साथ लिखना-पढ़ना सीखने लगीं। बाद में ज्योतिबा ने लड़कियों के कई स्कूल कायम किए जहां पर तमाम विरोधों अवरोधों के बावजूद सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने समाज में शिक्षा का उजियारा फैलाने का काम किया।

महिला अधिकारों की मौजूदा स्थिति पर चर्चा
कार्यक्रम में इस बात पर चिंता जताई गई कि आज भी देश में करीब आधी महिलाएं अशिक्षित हैं। गरीब, दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग की इन महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से वंचित रखा गया है। वक्ताओं ने कहा कि सरकार की नीतियां महिलाओं को सशक्त करने के बजाय उनके अधिकार छीनने का काम कर रही हैं। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं को भूमि का अधिकार मिलना चाहिए। आज भी अधिकांश खेती की जमीन पुरुषों के नाम पर दर्ज होती है, जबकि महिलाओं की इसमें बराबरी की भागीदारी होनी चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि महिलाओं को सिर्फ शिक्षा नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र बनाने की जरूरत है। इसके लिए उन्हें भूमि, श्रम और संसाधनों पर अधिकार मिलना चाहिए।
सावित्रीबाई फुले: भारत की पहली महिला शिक्षिका और नारी मुक्ति की प्रेरणा
सावित्रीबाई फुले के योगदान को याद करते हुए वक्ताओं ने बताया कि कैसे 19वीं शताब्दी में जब महिलाओं की शिक्षा के बारे में सोचना भी असंभव था, तब सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिबा फुले ने महिला शिक्षा की अलख जगाई। रेहाना अदीब, गुरमीत कौर, मंतलेश, फरीदा और अनीता एडवोकेट जैसी महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि "आज अगर महिलाएं पढ़-लिख पा रही हैं, अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, तो इसका श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है। उन्होंने उस दौर में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलकर समाज को एक नई दिशा दी।"
महिला शिक्षा और समानता की राह में चुनौतियां
सम्मेलन में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि आज भी समाज में महिला शिक्षा को लेकर पुरानी रूढ़ियों और पितृसत्तात्मक सोच के कारण कई बाधाएं बनी हुई हैं। कार्यक्रम में पहली वन गुर्जर महिला ग्रेजुएट फरीदा ने अपने संघर्ष की कहानी साझा करते हुए कहा, "मुझे पढ़ने के लिए समाज और परिवार दोनों से संघर्ष करना पड़ा। आज भी कई लड़कियों को स्कूल जाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। हमें इसे बदलना होगा और सावित्रीबाई फुले की तरह आगे आकर अपने समाज को शिक्षित करना होगा।"
महिलाओं की ज़मीन और श्रम अधिकारों पर जोर
महिला अधिकार कार्यकर्ता गुरमीत कौर ने कहा कि "हमें महिलाओं के लिए जल, जंगल और ज़मीन के अधिकार की मांग करनी होगी। सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के जरिये महिलाओं को सशक्त बनाने का सपना देखा था, लेकिन आर्थिक स्वतंत्रता के बिना यह अधूरा रह जाएगा।" सम्मेलन में इस बात पर भी चर्चा हुई कि महिलाओं को केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि सामाजिक और कानूनी अधिकार भी मिलने चाहिए। महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा, भेदभाव और दोयम दर्जे के व्यवहार को समाप्त करने के लिए कानूनी जागरूकता पर जोर दिया गया।
कार्यक्रम में संयुक्त महिला मंच की मंतलेश ने कहा, "महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और समाज में असमानता के खिलाफ हमें एकजुट होकर संघर्ष करना होगा। सावित्रीबाई फुले ने जिस हिम्मत से लड़ाई लड़ी, हमें उसी प्रेरणा से आगे बढ़ना होगा।"

महिला दिवस पर संकल्प: "हर लड़की को पढ़ाना है, समाज को बदलना है"
कार्यक्रम के अंत में सभी महिलाओं ने एकसाथ संकल्प लिया कि वे अपने परिवार और समाज में हर लड़की की शिक्षा सुनिश्चित करेंगी। यह भी तय किया गया कि अगले साल तक महिलाओं के भूमि अधिकारों को लेकर एक बड़े आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। इस दौरान महिलाओं ने शिक्षा और समानता के लिए संघर्ष जारी रखने की शपथ ली। सभी ने यह संकल्प लिया कि वे अपने गांवों में महिलाओं को जागरूक करने का काम करेंगी और बेटियों को शिक्षित करने पर जोर देंगी।
सावित्रीबाई न सिर्फ समाज की पहली शिक्षिका है बल्कि भारत की महिलाओं की दूसरी मां है: रोमा
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव रोमा ने कहा कि सावित्रीबाई न सिर्फ समाज की पहली शिक्षिका है बल्कि भारत की तमाम महिलाओं की दूसरी मां है जिन्होंने महिलाओं को व्याप्त दोयम दर्जे, शोषण और महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा के खिलाफ शिक्षित हो कर प्रतिकार करने की शिक्षा दी। इस लिए हमारे समाज में उनका विशेष स्थान है। नारी शिक्षा का काम आज भी बहुत महत्वपूर्ण काम है। देश की 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं अशिक्षित होने के साथ साथ गरीब और बेरोज़गार है। यह वो तबका है जो दलित, आदिवासी, मुसलमान और अन्य पिछड़े वर्गों से आता है। जिनके स्थाई रोज़गार के बारे में योजना निर्माताओं और सरकार की योजनाए ना के बराबर है। स्थाई रोज़गार केवल भूमि के अधिकारों और श्रम अधिकारों से ही मिल सकते हैं। लेकिन हमारे निति निर्धारक इस विषय पर रूढ़िवादी सोच रखते हैं और अभी भी महिलाओ को खेती की भूमि का मालिकाना हक प्रदान करने की कोई राजनैतिक इच्छा नहीं रखते है। महिलाओं को खुद अपने बुनियादी अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और प्रत्येक महिला को जमीन का मालिकाना हक, कृषि की भूमि में पुरुष के साथ महिलाओं को भी जमीन का अधिकार सुनिश्चित करने को आगे आना होगा। जल, जंगल और भूमि पर महिलाओं के आजीविका के अधिकार सुनिचित करने से ही उनकी गरीबी दूर की जा सकती है और उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है। आज इन संसाधनों पर बड़े पैमाने पर सामंती, पूंजीवादी व भू मफ़िआओ का कब्ज़ा है जिसके कारण असंख्य मेहनतकश जनता गरीबी और भुखमरी के कगार पर पहुँच चुकी है एवं सामाजिक न्याय से वंचित है। महिलाओं को बराबरी का हक़ हमारे संवैधानिक अधिकार है जिसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए। लेकिन इसके लिए महिलाओं को आगे आकर, सावित्रीबाई फुले की तरह महिलाओं को जागरूक करने का बीड़ा उठाना होगा।
शिक्षा महिला सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली उपकरण: अशोक चौधरी
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन व विकल्प के संस्थापक अशोक चौधरी ने कहा कि आज भी महिलाओं को शिक्षित करना महिला सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली उपकरण है। यह महिलाओं को निर्णय लेने, अपने अधिकारों का दावा करने और समाज में समान रूप से आग लेने के लिए आवश्यक जान और कौशल प्रदान करता है। जब महिलाएं शिक्षित होती है, तो वे पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती दे सकती है और लैंगिक समानता की लड़ाई में योगदान दे सकती है। सवित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने मिलकर सामाजिक न्याय आंदोलन की दिशा में कार्य किया, जिसमें उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, दलितों के अधिकारों, और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। ज्योतिबा की मृत्यु के बाद भी सवित्रीबाई ने विशेष रुप से शिक्षा के काम को रुकने नहीं दिया और वह अंत तक महिलाओं के लिए काम करती रही।