कटखना बनाते चैनल !

Written by Indresh Maikhuri | Published on: August 5, 2020
पत्रकारिता के पाठ्यक्रमों में न्यूज़ यानि खबर की एक रोचक परिभाषा बताई जाती है : “When a dog bites a man, it is not news. When a man bites a dog it is news.” यानि जब कुत्ता आदमी को काटे, वह खबर नहीं है। लेकिन यदि आदमी कुत्ते को काटे तो वह खबर है।”



यह अलग बात है कि परीक्षाओं में यह परिभाषा लिख कर पास होने वाले भी जब अखबारी दुनिया में कदम रखते हैं तो वे ही खबर लिखते हैं “आवारा कुत्तों से परेशान।” “आवारा कुत्ते के काटने से घायल”। परिभाषा अपनी जगह है, खबर अपनी जगह।

यहाँ मकसद कुत्ते के काटने के खबर होने या न होने की विवेचना करना नहीं है। दरअसल बीते कुछ दिनों में न्यूज़ चैनलों की कुछ झलकियां यत्र-तत्र देख कर, यह परिभाषा रह-रह कर याद आती रही। लगता है कि चौबीस घंटे वाले न्यूज़ चैनल इस परिभाषा से खासे प्रभावित हैं। वे समझ चुके हैं कि कुत्ता आदमी को काटे, खबर नहीं बनेगी। इसलिए आदमी से ही कटवाने का बंदोबस्त करना होगा। 

गनीमत सिर्फ इतनी है कि आदमी के दांतों, कुत्ते को कटवाने का सीधा प्रसारण अभी किसी चैनल ने नहीं किया है। स्वर्ग का रास्ता, भूत की हवेली मार्का कार्यक्रम वालों का, यह कम बड़ा एहसान है, देखने वालों पर ! पर लगता है कि उनके दिमागों में अटका हुआ है कि आदमी काटे तभी खबर होगी ! 

बेशक मूल परिभाषा में आदमी के कुत्ते को काटने से खबर बनने की बात है। न्यूज़ चैनलों और उनके भंकोरे की तरह बजते एंकरों ने मान लिया है कि जब तक आदमी काटेगा नहीं,तब तक खबर नहीं बनेगी। न्यूज़ चैनलों का ज़ोर खबर देने से ज्यादा कहीं खबर बनाने पर हो गया है। 

चौबीस घंटे और सातों दिन चलने वाले इन न्यूज़ चैनलों के बारे में कहा गया कि ये- “इंफोटेनमेंट” चैनल हैं ; जिनमें इंफो यानि सूचना है और एंटरटेनमेंट का “टेनमेंट” भी है। टेनमेंट शाब्दिक रूप में इंफो से बड़ा है तो न्यूज़ रूम्स में इसकी जगह भी बड़ी होती चली गयी और ज्यूं-ज्यूं “टेनमेंट” का चस्का और तड़का बढ़ता गया,त्यूं-त्यूं इंफो हाशिया पर धकेला जाता रहा है।

हालत यह हो गयी कि बहुतेरे चैनल “इंफो” यानि सूचना को फीका पाते हैं,इसलिए जानकारी वे गढ़ लेते हैं। इंफॉर्मेशन के बजाय मिसइंफॉर्मेशन या डिसइंफॉर्मेशन उन्हें ज्यादा सुहाता। उसमें इंफो भले ही मिस या डिस या दोनों को मिला कर डिसमिस हो जाये पर एंटरटेनमेंट का तड़का भरपूर लग जाता है,जिससे वे अपने नाम के दूसरे हिस्से यानि “टेनमेंट” को नित्य-प्रति सार्थक करते रहते हैं।

इस “टेनमेंट” के लिए आदमी द्वारा काटने पर खबर बनने वाली परिभाषा को न्यूज़ चैनल दिमाग में मजबूती से बैठाये हुए हैं। आदमी कुत्ते को भले ही नहीं काट रहा हो पर भले आदमी को कटखना तो बना ही रहे हैं,कतिपय न्यूज़ चैनल। कुत्ता नहीं है काटने को तो एक-दूसरे को काटने पर ही उतारू हो रहे हैं,लोग इन चैनलों की बहसों में।

बीते दिनों ऐसे ही चैनल की एक चर्चा में लंबी मूछों और न्यूज़ चैनल के “टेनमेंट” स्लॉट के लिए, त्यौरियां चढ़ाये रहने वाले एक हजरत,इस कदर जोश में आ गए कि मातृ सम्बोधन वाली गाली दे बैठे, ऑन एयर ! हिंदी फिल्मों में देखते हैं कि गुंडा गाली दे रहा है- हरा..... और तब तक बीच में सेंसर बोर्ड की कैंची, उसे डॉट-डॉट-बीप-बीप कर देती है। यहाँ न्यूज़ चैनल पर उससे मोटी मोटी और निकृष्ट कोटि की गालियों का सीधा प्रसारण चल रहा है।

ऐसे ही “नेशन वांट्स नो” के जुमले से धरती आसमान को गुंजायमान करने वाले चैनल पर एक महिला,एक बुजुर्ग को जम कर गलिया रही थी। लग ही नहीं रहा था कि किसी अंग्रेज़ियत से सराबोर चैनल पर चर्चा है।

खालिस देसी अंदाज में ऐसे गाली दे रही थी मोहतरमा, जैसे कि सामने वाले ने उनकी भैंस खोल ली हो या उसकी गाय, इनका हरा-भरा खेत चर गयी हो ! वोकल फॉर लोकल का यह रूप अनोखा था ! जिस कटखने अंदाज में इन चैनलों पर बहस होती है, ऐसा न कि किसी दिन कोई किसी को काट खाये और समाचार की परिभाषा ऐसे मुक्कम्ल हो !

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