मोदी सरकार ने कोरोना संकट की गंभीरता को समझने में बहुत देर की है अब सरकार चाहे कुछ भी बोले लेकिन यह सच बदलने वाला नही है। भारत को नोवेल कोरोना वायरस के संबंध में चीन से पहली सूचना 31 दिसंबर को मिली थी। यह जानकारी स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने 10 फरवरी में दी थी। जी हाँ 10 फरवरी 2020 को पहली बार सदन में कोरोना पर चर्चा हुई थी।
कोरोना के विश्वभर में प्रसार को समझने में 23 जनवरी 2020 बहुत महत्वपूर्ण तारीख है। 23 जनवरी को चीन के वुहान में जो 1 करोड़ की संख्या वाला शहर है वहां पहली बार लॉकडाउन इंप्लिमेंट किया गया था।
लेकिन 23 जनवरी से पहले ही यह वायरस दुनिया भर में फैल चुका था, इसमे WHO की बहुत बड़ी गलती थी। उस पर कभी ओर चर्चा करेंगे लेकिन आप यह जान लीजिए कि 29 जनवरी 2020 तक 18 देशों में कुल 83 मामले सामने आ चुके थे। इसके बाद ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नावेल कोरोनवायरस के प्रकोप को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया 30 जनवरी को ही पहला मामला भारत मे सामने आया था।
लेकिन उससे पहले ही विश्व के अन्य देशों में जैसे थाईलैंड (13 जनवरी); जापान (15 जनवरी); दक्षिण कोरिया (20 जनवरी); ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका (21 जनवरी); हांगकांग और मकाऊ (22 जनवरी); सिंगापुर (23 जनवरी); फ्रांस, नेपाल और वियतनाम (24 जनवरी); ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया (25 जनवरी); कनाडा (26 जनवरी); कंबोडिया (27 जनवरी); जर्मनी (28 जनवरी); फिनलैंड, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात (29 जनवरी); कोरोना के मामले सामने आ चुके थे।
1 फरवरी को फिलीपींस में होने वाली चीन के बाहर पहली हुई कोरोना से मौत दर्ज की गई लेकिन कहा जाता है कि 30 जनवरी को कलकत्ता में एक थाई महिला की भी मौत हुईं थी।
बहरहाल अगर आप जनवरी 2020 के मध्य भाग में देखे तो मोदी सरकार जरूर कुछ प्रो एक्टिव कदम उठा चुकी थी जैसे 18 जनवरी से सरकार ने दिल्ली समेत देश के सात हवाई अड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था कर दी थी ताकि अगर चीन या हांगकांग से लौटे किसी शख़्स में संक्रमण के असर दिखते हैं तो उसकी तुरंत जांच कराई जा सके।
आप यदि स्वास्थ्य मंत्रालय की बात करे तो एक सूचना हमे मिलती है 22 जनवरी तक 60 विमानों के कुल 12,828 यात्रियों की जांच कर ली गयी थी हालांकि किसी भी यात्री में इस विषाणु की पुष्टि नहीं हुई थी।
24 जनवरी को संभवतः पहली बार मीडिया इस विषय मे सचेत हुआ था और उसने खबर दी थी कि मुंबई में कोरोना वायरस के दो संदिग्ध मामले सामने आए हैं। दोनों संदिग्धों को कस्तूरबा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। फिलहाल, उनका परीक्षण कराया जा रहा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन आधिकारिक बयान दिया था कि उन्होंने राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों को बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीजों को अलग-थलग रखने एवं उनका वेंटिलेटर प्रबंधन करने, कमियों की पहचान करने और निगरानी एवं प्रयोगशाला सहयोग के क्षेत्र में मूलभूत क्षमता को मजबूत करने के संदर्भ में अस्पतालों की तैयारियों की समीक्षा करने का निर्देश दिया है यानी उसे स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा कुछ हद तक लग गया था। लेकिन इन आदेशों को राज्यो ने रद्दी की टोकरी में फेंक दिया और मोदी सरकार ने भी बाद में इस पर कोई ध्यान नही दिया।
लेकिन असली गलतियों की शुरुआत हो गयी थी। कोरोना के संदिग्ध भारत आ चुके थे। 28 जनवरी तक भारत में लगभग 450 लोगों को निगरानी में रखने की बात आ गयी थी। उस वक्त सरकार ने भी दावा किया था कि सबसे ज्यादा लोग केरल में हैं। 450 में से 436 लोग सिर्फ केरल के थे। शायद केरल सरकार स्थिति की गंभीरता समझ चुकी थी। ये अधिकतर वो लोग थे जो मेडिकल स्टूडेंट्स थे। भारत के पहले तीन दर्ज किये गए मामले केरल के मेडिकल स्टूडेंट्स के ही थे जो बड़ी संख्या में वुहान में पढ़ते थे और वापस लौट रहे थे।
आपको बेहद आश्चर्य होगा कि मीडिया इसके संकेत दे रहा था 30 जनवरी को बीबीसी में प्रकाशित भारत में नेशनल सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल के डायरेक्टर डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने बीबीसी को एक इंटरव्यू में बताया था, "यह वायरस अमरीका तक पहुंच चुका है तो हमारे देश के लोग भी चीन की यात्रा करते हैं। क़रीब 1200 मेडिकल स्टूडेंट चीन में पढ़ाई कर रहे हैं, जिसमें से ज़्यादातर वुहान प्रांत में ही हैं। ऐसे में अगर वो वहां से लौटते हैं तो इस वायरस के भारत में आ जाने की आशंका बहुत बढ़ जाती है।"
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन हालाँकि कह रही थी कि चीन में नववर्ष की छुट्टियों के मद्देनजर वहां अध्ययनरत या काम करने वालों से भारत आने पर विधिवत चिकित्सा जांच का अनुरोध किया जा रहा है।
मंत्रालय ने भारत आने वाले विमानों के लिए विमान के अंदर घोषणा करने का निर्देश भी दिया। इस संबंध में 17 जनवरी को ट्रेवल एडवाजरी जारी की थी लेकिन चीन से लौट रहे लोगों के लिए 14 दिन तक क्वारंटाइन रहने की एडवाइजरी 30 जनवरी को जारी की गई।
इसके बाद फरवरी में सरकार पूरे महीने सोती ही रही कोई इन यात्रियों के क्वारंटाइन को मॉनिटर करने के लिए कोई कदम नही उठाए गए शायद सरकार नमस्ते ट्रम्प प्रोग्राम में बिजी थी 8 जनवरी से 23 मार्च तक 15 लाख विदेशी यात्री भारत मे आए यह जानकारी खुद केबिनेट सेकेट्री ने दी थी और जैसा ऊपर बताया ही गया है कि यह संक्रमण पूरे विश्व मे बहुत तेजी के साथ फैल चुका था। लेकिन मोदी सरकार स्थिति की गंभीरता को समझने में नाकाम रही।
कोरोना के विश्वभर में प्रसार को समझने में 23 जनवरी 2020 बहुत महत्वपूर्ण तारीख है। 23 जनवरी को चीन के वुहान में जो 1 करोड़ की संख्या वाला शहर है वहां पहली बार लॉकडाउन इंप्लिमेंट किया गया था।
लेकिन 23 जनवरी से पहले ही यह वायरस दुनिया भर में फैल चुका था, इसमे WHO की बहुत बड़ी गलती थी। उस पर कभी ओर चर्चा करेंगे लेकिन आप यह जान लीजिए कि 29 जनवरी 2020 तक 18 देशों में कुल 83 मामले सामने आ चुके थे। इसके बाद ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नावेल कोरोनवायरस के प्रकोप को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया 30 जनवरी को ही पहला मामला भारत मे सामने आया था।
लेकिन उससे पहले ही विश्व के अन्य देशों में जैसे थाईलैंड (13 जनवरी); जापान (15 जनवरी); दक्षिण कोरिया (20 जनवरी); ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका (21 जनवरी); हांगकांग और मकाऊ (22 जनवरी); सिंगापुर (23 जनवरी); फ्रांस, नेपाल और वियतनाम (24 जनवरी); ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया (25 जनवरी); कनाडा (26 जनवरी); कंबोडिया (27 जनवरी); जर्मनी (28 जनवरी); फिनलैंड, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात (29 जनवरी); कोरोना के मामले सामने आ चुके थे।
1 फरवरी को फिलीपींस में होने वाली चीन के बाहर पहली हुई कोरोना से मौत दर्ज की गई लेकिन कहा जाता है कि 30 जनवरी को कलकत्ता में एक थाई महिला की भी मौत हुईं थी।
बहरहाल अगर आप जनवरी 2020 के मध्य भाग में देखे तो मोदी सरकार जरूर कुछ प्रो एक्टिव कदम उठा चुकी थी जैसे 18 जनवरी से सरकार ने दिल्ली समेत देश के सात हवाई अड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था कर दी थी ताकि अगर चीन या हांगकांग से लौटे किसी शख़्स में संक्रमण के असर दिखते हैं तो उसकी तुरंत जांच कराई जा सके।
आप यदि स्वास्थ्य मंत्रालय की बात करे तो एक सूचना हमे मिलती है 22 जनवरी तक 60 विमानों के कुल 12,828 यात्रियों की जांच कर ली गयी थी हालांकि किसी भी यात्री में इस विषाणु की पुष्टि नहीं हुई थी।
24 जनवरी को संभवतः पहली बार मीडिया इस विषय मे सचेत हुआ था और उसने खबर दी थी कि मुंबई में कोरोना वायरस के दो संदिग्ध मामले सामने आए हैं। दोनों संदिग्धों को कस्तूरबा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। फिलहाल, उनका परीक्षण कराया जा रहा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन आधिकारिक बयान दिया था कि उन्होंने राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों को बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीजों को अलग-थलग रखने एवं उनका वेंटिलेटर प्रबंधन करने, कमियों की पहचान करने और निगरानी एवं प्रयोगशाला सहयोग के क्षेत्र में मूलभूत क्षमता को मजबूत करने के संदर्भ में अस्पतालों की तैयारियों की समीक्षा करने का निर्देश दिया है यानी उसे स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा कुछ हद तक लग गया था। लेकिन इन आदेशों को राज्यो ने रद्दी की टोकरी में फेंक दिया और मोदी सरकार ने भी बाद में इस पर कोई ध्यान नही दिया।
लेकिन असली गलतियों की शुरुआत हो गयी थी। कोरोना के संदिग्ध भारत आ चुके थे। 28 जनवरी तक भारत में लगभग 450 लोगों को निगरानी में रखने की बात आ गयी थी। उस वक्त सरकार ने भी दावा किया था कि सबसे ज्यादा लोग केरल में हैं। 450 में से 436 लोग सिर्फ केरल के थे। शायद केरल सरकार स्थिति की गंभीरता समझ चुकी थी। ये अधिकतर वो लोग थे जो मेडिकल स्टूडेंट्स थे। भारत के पहले तीन दर्ज किये गए मामले केरल के मेडिकल स्टूडेंट्स के ही थे जो बड़ी संख्या में वुहान में पढ़ते थे और वापस लौट रहे थे।
आपको बेहद आश्चर्य होगा कि मीडिया इसके संकेत दे रहा था 30 जनवरी को बीबीसी में प्रकाशित भारत में नेशनल सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल के डायरेक्टर डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने बीबीसी को एक इंटरव्यू में बताया था, "यह वायरस अमरीका तक पहुंच चुका है तो हमारे देश के लोग भी चीन की यात्रा करते हैं। क़रीब 1200 मेडिकल स्टूडेंट चीन में पढ़ाई कर रहे हैं, जिसमें से ज़्यादातर वुहान प्रांत में ही हैं। ऐसे में अगर वो वहां से लौटते हैं तो इस वायरस के भारत में आ जाने की आशंका बहुत बढ़ जाती है।"
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन हालाँकि कह रही थी कि चीन में नववर्ष की छुट्टियों के मद्देनजर वहां अध्ययनरत या काम करने वालों से भारत आने पर विधिवत चिकित्सा जांच का अनुरोध किया जा रहा है।
मंत्रालय ने भारत आने वाले विमानों के लिए विमान के अंदर घोषणा करने का निर्देश भी दिया। इस संबंध में 17 जनवरी को ट्रेवल एडवाजरी जारी की थी लेकिन चीन से लौट रहे लोगों के लिए 14 दिन तक क्वारंटाइन रहने की एडवाइजरी 30 जनवरी को जारी की गई।
इसके बाद फरवरी में सरकार पूरे महीने सोती ही रही कोई इन यात्रियों के क्वारंटाइन को मॉनिटर करने के लिए कोई कदम नही उठाए गए शायद सरकार नमस्ते ट्रम्प प्रोग्राम में बिजी थी 8 जनवरी से 23 मार्च तक 15 लाख विदेशी यात्री भारत मे आए यह जानकारी खुद केबिनेट सेकेट्री ने दी थी और जैसा ऊपर बताया ही गया है कि यह संक्रमण पूरे विश्व मे बहुत तेजी के साथ फैल चुका था। लेकिन मोदी सरकार स्थिति की गंभीरता को समझने में नाकाम रही।