हिन्दी अखबारों में प्रमुख, दैनिक जागरण ने आज बताया है, और “धीमी हुई कोरोना फैलने की रफ्तार” (लीड)। इस खबर का उपशीर्षक है, “सुधरते हालात : देश में 6.2 से बढ़कर अब 7.5 दिन में हो रही है मरीजों की संख्या दोगुनी”। दूसरी ओर, अंग्रेजी अखबार, द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर एक खबर छापी है। इसके अनुसार, जर्मन अनुसंधानकर्ताओं की गणना कहती है कि भारत में संक्रमितों को संख्या सरकारी आंकड़ों के मुकाबले सात गुना, 1,36,000 से ज्यादा होगी। वैसे तो नोटबंदी के बाद हमें यही बताया गया था कि हावर्ड और हार्डवर्क का मुकाबला नहीं है लेकिन गणना और अनुसंधान में भरोसा हो तो देखिए और समझिए कि इसे क्यों गलत होना चाहिए (या नहीं होना चाहिए)। असल में कोविड-19 संक्रमण अजीब है और बहुत सारे लोगों में इसके लक्षण दिखते ही नहीं हैं।
पता नहीं यह संयोग है या प्रयोग, आज ही नवभारत टाइम्स ने कहा है कि कोरोना अब दबे पांव आ रहा है। अखबार की इस खबर का उपशीर्षक है, इसके 80 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें लक्षण या तो बहुत मामूली हैं या फिर हैं ही नहीं। वैसे तो ये दोनों सूचनाएं पुरानी हैं पर आज जब एक अखबार कह रहा है कि इसके फैलने की रफ्तार कम हुई तो यह पुराना तथ्य बिना जांच के ऐसी किसी भी खबर पर उंगली उठाने के लिए पर्याप्त है। सबसे दिलचस्प है कि आज ही के अखबारों में खबर छपी है कि मध्य प्रदेश समेत विपक्ष शासित राज्यों के कई शहरों के बुरे हाल हैं और अपने यहां की स्थिति से संतुष्ट केरल ने मनमानी छूट दी, सख्ती हुई (केंद्र की) तो बैक फुट पर है (अमर उजाला) और अखबार ने इसके साथ ही लिखा है, महामारी से जंग में शुरू हुई राजनीति .... केंद्रीय टीम पर ममता नाराज। ऐसी हालत और इन सुर्खियों के बीच जर्मनी के अनुसंधान को जानना जरूरी है और हिन्दी अखबारों से ऐसी खबर की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। इसलिए आज पढ़िए द टेलीग्राफ की इस खबर के खास अंशों का अनुवाद।
टेलीग्राफ की खबर नई दिल्ली डेटलाइन से जीएस मुदुर की लिखी है। आज (21.04.20) के अखबार में पहले पन्ने पर छपी है। इसके अनुसार सोमवार तक स्वास्थ्य मंत्रालय ने 17,656 मामलों की पुष्टि की थी और इनमें से 2,842 लोग ठीक हो चुके हैं जबकि 559 लोग मर चुके हैं। हमारे यहां अगर कहा जा रहा है कि अब यह बीमारी पहले से कम बढ़ रही है या नियंत्रण में तो यह नहीं बताया जा रहा है कि लगभग दो महीने में 559 लोग निश्चित रूप से मर चुके हैं। और यह स्थिति तब है जब अभी यह बीमारी अपने यहां ठीक से फैली नहीं है। लॉक डाउन से काफी नियंत्रित है। दूसरी ओर सरकार की तैयारियां नहीं के बराबर हैं या उनका पता ही नहीं है।
भारत में एक लाख छत्तीस हजार लोगों के संक्रमित होने की गणना दो जर्मन अनुसंधानकर्ताओं की है। इन लोगों ने कोरोना वायरस से मरने वालों की उम्र के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत समेत दुनिया भर में संक्रमित लोगों की बहुत छोटी संख्या मालूम हुई है और दुनिया भर में संक्रमितों को संख्या दसियों मिलियन (एक मिलियन यानी दस लाख और इस हिसाब से न्यूनतम एक करोड़) होगी। गटिंगन (Goettingen) यूनिवर्सिटी के सेबसटियन वॉलमर और क्रिश्चियन बॉमर ने जो गणना प्रस्तावित की है उसके अनुसार 20 अप्रैल तक भारत में अगर 559 मौतें हो चुकी हैं तो 14 दिन पहले यानी 6 अप्रैल को यहां संक्रमितों की संख्या 1,36,000 होनी चाहिए।
भारत में भिन्न तारीखों को हुई भिन्न मौतों के आधार पर की गई गणना के अनुसार 17 मार्च को भारत में संक्रमितों की संख्या 8400, 23 मार्च को 32000 और 30 मार्च को 86,000 होनी चाहिए। इसकी जगह भारत ने 6 अप्रैल को 4281 कंफर्म मामले दर्ज किए थे। जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसी गणना कुछ मान्यताओं पर निर्भर करती है और मरीजों के लिए अच्छे अस्पतालों की उपलब्धता के कारण हो सकने वाले अंतर का हिसाब नहीं रखा जाता है हालांकि मौत की संख्या इससे भी प्रभावित होती है। भारत में और दुनिया भर में कंफर्म मामले खास जांच पर निर्भर करते हैं जिसकी शर्तों स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा तय की जाती हैं।
भारत में और जर्मनी में जो शर्तें हैं उसके अनुसार संबंधित व्यक्ति का यात्रा का इतिहास, संक्रमित लोगों से करीबी संपर्क या सांस संबंधी गंभीर समस्या (बीमारी) होना चाहिए। चिकित्सा विशेषज्ञों ने कहा है कि जांच की इस तरह की शर्त होने से कई संक्रमित लोगों के छूट जाने की आशंका रहती है क्योंकि कोविड-19 के संक्रमित 80 प्रतिशत लोगों में बहुत हल्का लक्षण होता है और इस बात की संभावना कम रहती है कि वे खुद जांच के लिए आएंगे या उनकी जांच होगी। वॉलमर ने कहा, ऐसी हालत में यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कोविड-19 कितना खतरनाक है। वॉलमर और बॉमर उम्र के लिहाज से मृतकों के खास आंकड़ों पर भरोसा किया। इसे इंपीरियल कॉलेज लंदन के एक अनुसंधान समूह ने तैयार किया है। और इसके आधार पर किसी देश के लिए खास आंकड़ा जुटाने के लिए उस देश की जनसंख्या से संबंधित खास आंकड़े का इस्तेमाल किया जाता है।
इंपीरियल कॉलेज समूह ने यह अनुमान लगाया है कि नौ साल से कम के बच्चों में कोविड से मौत की दर 0.0016 प्रतिशत और 80 साल या ऊपर के लोगों में यह 7.8 प्रतिशत होती है। गटिंगन के अनुसंधानकर्ताओं ने इन मूल्यों का उपयोग कर भारत में संक्रमण से मरने वालों का प्रतिशत 0.41 निकाला। इटली के लिए यह 1.38, जर्मनी के लिए 1.30 और अमेरिका के लिए 1.0 आया। यह हरेक देश की आबादी में भिन्न आयु के लोगों की संख्या पर निर्भर है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जिनोमिक्स, कल्याणी के प्रोफेसर पार्थ मजूमदार ने कहा, आबादी में भिन्न आयु वर्ग के लोगों की मौजूदगी के आधार पर मरने वालों की संख्या का अनुमान लगाने का यह एक दिलचस्प पर आसान तरीका है।
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि देश में संक्रमित पाए जाने वालों की संख्या दूनी होने में 7.5 दिन लग रहे है जबकि देश व्यापी लॉक डाउन से पहले यह 3.4 प्रतिशत था। दूना होने की दर से पता चलता है कि किसी भौगोलिक क्षेत्र में संक्रमण किस तेजी से फैल रहा है। इस समय दिल्ली में दूना होने में अगर 8.5 दिन लग रहे हैं तो कर्नाटक में यह 9.2, पंजाब में 13 और बिहार में 16 दिन है। हरियाणा, असम, उत्तराखंड और लद्दाख में यह 20 दिन से ज्यादा है जबकि केरल में संक्रमितों के दूने होने में अब 72 दिन लगेंगे। विशेषज्ञों ने कहा है कि लॉकडाउन में दूने होने में ज्यादा समय लगेगा और लॉक डाउन के बाद वायरस कितनी तेजी से फैलेगा यह इसपर निर्भर करेगा कि लोग शारीरिक दूरी और दूसरे अनुशासन का पालन कितना करते हैं।
भारत में राजनीतिक कारणों से अनुसंधान और अनुसंधान करने वालों का तो मजाक उड़ाया ही जाता है। दूसरे देशों के अनुसंधान को पढ़ने-पढ़ाने का माहौल भी नहीं है। इसके उलट गोदी मीडिया के जरिए यह फैलाया जा रहा है कि वायरस गर्मी में मर जाता है या भारत जैसे गर्म देश में यह नहीं फैलेगा उसका बढ़ना कम हो गया है आदि।