शुरू में कोरोना प्रभावित देशों से लोगों को ढो-ढो कर लाया गया। उसका प्रचार आपको याद ही होगा। पता नहीं उनमें कितनों को किस आधार पर अलग रखा गया था। और उसकी कामयाबी का क्या हुआ? उसका वीडियो भी घूम रहा था – सरकार ने क्या अच्छी व्यवस्था की है। और सब करने के बाद अब ये हाल कैसे और क्यों है? कोई बता नहीं सकता है। ना बताया जाएगा। सरकार ने जरूर कहा है कि जांच शुरू हो गई थी और यह सही है कि चीन से आने वालों की जांच 21 जनवरी को ही शुरू हुई थी और उनकी सिर्फ थर्मल स्क्रीनिंग हो रही थी यानी तापमान देखा जा रहा था। वह भी सिर्फ सात हवाई अड्डों पर। जनवरी के अंत में इसे बढ़ाकर 20 हवाई अड्डों पर किया गया। फरवरी में इसका विस्तार दूसरे देशों से आने वालों तक किया गया। फरवरी के दौरान बहुत कम मामले मिले। वैसे औपचारिक जांच और पहले शुरू हो गई थी। तब एक फॉर्म भरवाया जाता था और पूछा जाता था कि बुखार तो नहीं हुआ, खांसी तो नहीं है। पर यह सरकारी जांच ही थी। किट तो अभी भी नहीं है उसपर आगे।
शशि थरूर ने कहा था कि संक्रमित लोग (थर्मल) स्क्रीनिंग के बावजूद आ सकते हैं। उन्होंने चिन्ता जताई थी कि कोई देशव्यापी निगराणी की व्यवस्था नहीं है। जांच करने की संरचना अपर्याप्त है (जो अभी तक है) और जनता में जागरूकता नहीं के बराबर है। यह सब राहुल गांधी के ट्वीट के बावजूद है। राजनीति ने उन्हें पप्पू बना रखा है और कोबिड-19 असली पप्पू को सामने ला रहा है। मीडिया के बावजूद। दूसरे देशों को छोड़िए, चीन के वुहान से शुरू हुई यह महामारी हांगकांग में नहीं फैली क्योंकि कार्रवाई शुरू में ही कर दी गई थी। उल्टे जब यह मान लिया गया कि सब ठीक है और लॉक डाउन में छूट दी गई तो मामले बढ़ गए। भारत में क्या होगा अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है पर सरकार जिस ढंग से लाचार और किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आ रही है उससे स्थिति बहुत ही डरावनी और निराशाजनक लग रही है।
भारत ने एक फरवरी से विदेशों में फंसे भारतीयों का बचाव शुरू कर दिया था। और वुहान से ही 324 लोग लाए गए थे। दो फरवरी को फिर 323 लोग लाए गए। इनमें सात मलदीव के थे। 27 फरवरी को फिर 112 लोग वुहान से लाए गए। इनमें 36 विदेशी थे। 10 मार्च को ईरान से 58 लोग लाए गए। 11 मार्च को फिर ईरान से ही 44 लोग लाए गए। 11 मार्च को इटली से 83 लोग लाए गए। इनमें 74 भारतीय थे और 9 अमेरिकी। 15 मार्च को फिर इटली से 218 लोग लाए गए। इन सभी लोगों को छावला स्थित आईटीबीपी के कैम्प में रखा गया। और 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया गया। बाद में 234 भारतीय इरान से लाए गए। इन्हें भारतीय सेना के वेलनेस सेंटर में क्वारंटाइन किया गया जो जैसलमेर में है। 16 मार्च को ईरान के तेहरान और सिराज शहरों से 53 भारतीय लाए गए। इन्हें भी जैसलमर में क्वारंटाइन किया गया। 22 मार्च को 263 भारतीय इटली के रोम से लाए गए और इन्हें आईटीबीपी के कैम्पमें क्वारंटाइन किया गया। सेवा विमानों को रोक दिए जाने के बाद 29 मार्च को 275 भारतीय विमान से जोधपुर पहुंचे। इन्हें प्राथमिक स्क्रीनिंग के बाद वहीं क्वारंटाइन किया गया।
इससे दो बातें स्पष्ट हैं। विदेश या कोरोना संक्रमित देशों से आने वालों को क्वारंटाइन करने का काम 15 मार्च से शुरू किया गया। पहले आए लोगों को क्वारंटाइन करने की कोई खबर मुझे नहीं मिली। विकीपीडिया ने भी 15 मार्च और उसके बाद वालों के बारे में लिखा है। अगर पहले किया गया होता तो भारत सरकार को उसे ठीक करा लेना चाहिए था। दूसरे दिल्ली के बाद जैसलमेंर और जोधपुर में क्वारंटाइन करने का मतलब है कि दिल्ली में यही व्यवस्था थी या है। कोई दूसरी व्यवस्था होती तो उसकी चर्चा होती। मैंने नहीं सुनी। साफ है कि कोरोना प्रभावित लोगों को भारत आने दिया गया और लोगों के बीच जाने दिया गया बिना जांच, बिना क्वारंटाइन। आपको याद होगा महाराष्ट्र ने सबसे पहले क्वारंटाइन किए जाने वाले लोगों के हाथ पर ठप्पा लगाना शुरू किया था और उन्हें अलग रहने के लिए कह कर छोड़ दिया गया था। दूसरी जगह यह भी नहीं हुआ। इससे बेहतर की तो कोई खबर नहीं है।
मेरे एक परिचित की बेटी 17 मार्च को लंदन से आई। आरडब्लूए वालों ने उसे जबरन क्वारंटाइन कराने की कोशिश की। गाजियाबाद के क्वारंटाइन केंद्रों की हालत तो बाद में पता चली पर 25 मार्च को रात में 19 साल की लड़की को लेने आई सरकारी व्यवस्था में कोई महिला नहीं थी। चूंकि आरडब्ल्यूए वाले उसे बिल्डिंग से बाहर भेजने पर आमादा थे सो पुलिस भी बुला ली गई। पर उस लड़की को ले जाने के लिए कोई महिला (सिपाही) नहीं मिली। और वह लड़की जबरन क्वारंटाइन होने से बच गई। मोहल्ले वाले को डर था कि पड़ोसी को खांसी आ रही है और वह इसी कारण है। सबको मौत का डर सता रहा था। मैंने सारे नियम चेक कर लिए मुझे ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि जो थर्मल स्क्रीनिंग में पास हो गया उससे क्वारंटाइन होने के लिए कहा गया है। लंदन में पढ़ने वाली लड़की को भी ऐसा कोई निर्देश समझ में नहीं आया था।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा जबरन क्वारंटाइन कर दिए जाने और आरडब्ल्यूए के दबाव पर उन्होंने निजी केंद्र से जांच कराना चाहा तो कहा गया कि डॉक्टर का प्रेसक्रिप्शन जरूरी है। यह 25 मार्च की बात है। लंदन से आए नागरिक के मामले में। ठीक है कि सागरी बाटला संक्रमित नहीं थी पर डॉक्टर की पर्ची जरूरी थी। और आरडब्ल्यूए के अनुसार जांच भी। हम इस हाल में हैं। सरकार और मीडिया के साथ हममें से पढ़े लिखे लोग कोरोना को कैसे देख रहे हैं समझिए। ऐसे में कैसी जांच हुई और कैसी रोक थी? सरकार ने जो किया उसे ही काम कहते हैं? 56 ईंची लापरवाही का नतीजा देखने के लिए तैयार रहिए।
शशि थरूर ने कहा था कि संक्रमित लोग (थर्मल) स्क्रीनिंग के बावजूद आ सकते हैं। उन्होंने चिन्ता जताई थी कि कोई देशव्यापी निगराणी की व्यवस्था नहीं है। जांच करने की संरचना अपर्याप्त है (जो अभी तक है) और जनता में जागरूकता नहीं के बराबर है। यह सब राहुल गांधी के ट्वीट के बावजूद है। राजनीति ने उन्हें पप्पू बना रखा है और कोबिड-19 असली पप्पू को सामने ला रहा है। मीडिया के बावजूद। दूसरे देशों को छोड़िए, चीन के वुहान से शुरू हुई यह महामारी हांगकांग में नहीं फैली क्योंकि कार्रवाई शुरू में ही कर दी गई थी। उल्टे जब यह मान लिया गया कि सब ठीक है और लॉक डाउन में छूट दी गई तो मामले बढ़ गए। भारत में क्या होगा अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है पर सरकार जिस ढंग से लाचार और किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आ रही है उससे स्थिति बहुत ही डरावनी और निराशाजनक लग रही है।
भारत ने एक फरवरी से विदेशों में फंसे भारतीयों का बचाव शुरू कर दिया था। और वुहान से ही 324 लोग लाए गए थे। दो फरवरी को फिर 323 लोग लाए गए। इनमें सात मलदीव के थे। 27 फरवरी को फिर 112 लोग वुहान से लाए गए। इनमें 36 विदेशी थे। 10 मार्च को ईरान से 58 लोग लाए गए। 11 मार्च को फिर ईरान से ही 44 लोग लाए गए। 11 मार्च को इटली से 83 लोग लाए गए। इनमें 74 भारतीय थे और 9 अमेरिकी। 15 मार्च को फिर इटली से 218 लोग लाए गए। इन सभी लोगों को छावला स्थित आईटीबीपी के कैम्प में रखा गया। और 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया गया। बाद में 234 भारतीय इरान से लाए गए। इन्हें भारतीय सेना के वेलनेस सेंटर में क्वारंटाइन किया गया जो जैसलमेर में है। 16 मार्च को ईरान के तेहरान और सिराज शहरों से 53 भारतीय लाए गए। इन्हें भी जैसलमर में क्वारंटाइन किया गया। 22 मार्च को 263 भारतीय इटली के रोम से लाए गए और इन्हें आईटीबीपी के कैम्पमें क्वारंटाइन किया गया। सेवा विमानों को रोक दिए जाने के बाद 29 मार्च को 275 भारतीय विमान से जोधपुर पहुंचे। इन्हें प्राथमिक स्क्रीनिंग के बाद वहीं क्वारंटाइन किया गया।
इससे दो बातें स्पष्ट हैं। विदेश या कोरोना संक्रमित देशों से आने वालों को क्वारंटाइन करने का काम 15 मार्च से शुरू किया गया। पहले आए लोगों को क्वारंटाइन करने की कोई खबर मुझे नहीं मिली। विकीपीडिया ने भी 15 मार्च और उसके बाद वालों के बारे में लिखा है। अगर पहले किया गया होता तो भारत सरकार को उसे ठीक करा लेना चाहिए था। दूसरे दिल्ली के बाद जैसलमेंर और जोधपुर में क्वारंटाइन करने का मतलब है कि दिल्ली में यही व्यवस्था थी या है। कोई दूसरी व्यवस्था होती तो उसकी चर्चा होती। मैंने नहीं सुनी। साफ है कि कोरोना प्रभावित लोगों को भारत आने दिया गया और लोगों के बीच जाने दिया गया बिना जांच, बिना क्वारंटाइन। आपको याद होगा महाराष्ट्र ने सबसे पहले क्वारंटाइन किए जाने वाले लोगों के हाथ पर ठप्पा लगाना शुरू किया था और उन्हें अलग रहने के लिए कह कर छोड़ दिया गया था। दूसरी जगह यह भी नहीं हुआ। इससे बेहतर की तो कोई खबर नहीं है।
मेरे एक परिचित की बेटी 17 मार्च को लंदन से आई। आरडब्लूए वालों ने उसे जबरन क्वारंटाइन कराने की कोशिश की। गाजियाबाद के क्वारंटाइन केंद्रों की हालत तो बाद में पता चली पर 25 मार्च को रात में 19 साल की लड़की को लेने आई सरकारी व्यवस्था में कोई महिला नहीं थी। चूंकि आरडब्ल्यूए वाले उसे बिल्डिंग से बाहर भेजने पर आमादा थे सो पुलिस भी बुला ली गई। पर उस लड़की को ले जाने के लिए कोई महिला (सिपाही) नहीं मिली। और वह लड़की जबरन क्वारंटाइन होने से बच गई। मोहल्ले वाले को डर था कि पड़ोसी को खांसी आ रही है और वह इसी कारण है। सबको मौत का डर सता रहा था। मैंने सारे नियम चेक कर लिए मुझे ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि जो थर्मल स्क्रीनिंग में पास हो गया उससे क्वारंटाइन होने के लिए कहा गया है। लंदन में पढ़ने वाली लड़की को भी ऐसा कोई निर्देश समझ में नहीं आया था।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा जबरन क्वारंटाइन कर दिए जाने और आरडब्ल्यूए के दबाव पर उन्होंने निजी केंद्र से जांच कराना चाहा तो कहा गया कि डॉक्टर का प्रेसक्रिप्शन जरूरी है। यह 25 मार्च की बात है। लंदन से आए नागरिक के मामले में। ठीक है कि सागरी बाटला संक्रमित नहीं थी पर डॉक्टर की पर्ची जरूरी थी। और आरडब्ल्यूए के अनुसार जांच भी। हम इस हाल में हैं। सरकार और मीडिया के साथ हममें से पढ़े लिखे लोग कोरोना को कैसे देख रहे हैं समझिए। ऐसे में कैसी जांच हुई और कैसी रोक थी? सरकार ने जो किया उसे ही काम कहते हैं? 56 ईंची लापरवाही का नतीजा देखने के लिए तैयार रहिए।