रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर एक लंबा आर्टिकल लिखा है। इस आर्टिकल में उन्होंने नाम लिए बगैर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा है। राजन ने लिखा है कि अपने आलोचकों पर ट्रोल आर्मी छोड़ देने वाली सत्ताधारी पार्टी को सोचना चाहिए कि आलोचना को दबाने वाली सरकार भयानक नीतिगत भूल करती है।
नई दिल्ली। पूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने लिखा कि जिन लोगों के पास सत्ता है उन्हें आलोचना सुनने का धैर्य भी रखना चाहिए। अगर हर आलोचक को सरकार और उसके समर्थक खामोश करने की कोशिश करेंगे तो नीतियों के निर्माण में सरकार से भयंकर भूलें होंगी। बता दें कि रघुराम राजन नोटबंदी के पहले तक रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। इसके बाद वो वापस अमेरिका यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में पढ़ाने चले गए। नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की रघुराम राजन कई बार खुले तौर पर आलोचना कर चुके हैं। रघुराम राजन ने महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर एक लंबा आलेख लिखा है जिसमें उन्होंने केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार को आलोचना सुनने का धैर्य रखने की ताकीद करते नजर आ रहे हैं।
रघुराम राजन ने कहा, भारत को जो चीज मजबूत बनाती है वो है इसकी विविधता, वाद विवाद और सहिष्णुता। जो चीज भारत को कमजोर बनाती है वो है संकीर्ण सोच, अनुदारता और एकरूपता। सोशल मीडिया साइट लिंकडिन पर लिखे अपने आर्टिकल में रघुराम राजन ने कहा कि जो सरकार जनता की आलोचनाओं को नजरअंदाज करती है वो अपना ही नुकसान करती है।
रघुराम राजन ने आगे लिखा, ‘अगर हर आलोचक को सरकारी तंत्र द्वारा फोन किया जाए कि वो आलोचना न करें वरना उनके पीछे सत्ताधारी पार्टी की ट्रोल आर्मी लग जाएगी, कई लोग अपनी आलोचना के सुर को मंद कर लेंगे। सरकार इसके बाद खुशफहमी में रह सकती है कि सब अच्छा है, लेकिन कड़वी हकीकत इससे छिप नहीं पाएगी। ‘
निश्चित तौर पर कुछ आलोचनाएं, जिसमें मीडिया भी शामिल है, तथ्यात्मक तौर पर गलत होती हैं या किसी और भावना से की जाती हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर मैंने भी ऐसी आलोचनाओं का सामना किया है। लेकिन इसके बावजूद आलोचनाओं को नजरअंदाज करना किसी भी सरकार के लिए आग से खेलने जैसा है जिससे नीति निर्धारण में गलतियों की संभावना बेहद बढ़ जाती है।’
बता दें कि पिछले ही हफ्ते नरेंद्र मोदी सरकार ने रतिन रॉय और शामिका रवि को इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल से हटा दिया था। दोनों ने सरकार की नीतियों की आलोचना की थी। रॉय ने सरकार के विदेशी मार्केट से फंड जुटाने के लिए बॉंड्स बेचने की आलोचना की थी। बता दें कि रघुराम राजन भी पहले इस फैसले की आलोचना कर चुके हैं।
अपने पोस्ट में राजन ने लिखा है, ‘भारतीय लोकतंत्र में खामियां भी हैं लेकिन यह स्वंय सुधार करने में सक्षम है। कुछ संस्थाएं कमजोर होती हैं तो बाकी संस्थाएं उसकी मदद करने आगे आ जाती है। सभी पर बहुसंख्यक कल्चर थोपने से अल्पसंख्यकों के वो गुण भी हम खो देंगे जो विकास के लिए बेहद जरूरी हैं। सांस्कृतिक विविधता से बौद्धिक विविधता का रास्ता खुलता है जो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए हर मोड़ पर जरूरी है।
रघुराम राजन का यह लेख ऐसे समय में आया है जब पिछले छह सालों में आर्थिक विकास दर सबसे कम स्तर (5 फीसदी) पर है। रघुराम राजन ने नोटबंदी के फैसले का विरोध किया था। तभी से वह मोदी सरकार के निशाने पर हैं। रघुराम राजन ने अपने लिंकडिन पोस्ट में लिखा है, ‘सतत आलोचना से किसी भी नीति में समय सापेक्ष सुधार का रास्ता खुलता है। जनता की आलोचना के बाद ब्यूरोक्रेट अपने राजनीतिक आकाओं से सच बोलने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
भारत में उभर रही हैं ये तीन खतरनाक प्रवृतियां: रघुराम राजन
राजन ने कहा कि भारत में तीन तरह की प्रवृति उभर रही है जो बेहद चिंताजनक है। पहली ये कि हम अपनी महानता के लिए अतीत की तरफ झांक रहे हैं। हमारे सारे संदर्भ पुरातन हैं। इतिहास को छाती पर टांग कर अपनी महानता का बखान करना हमारी असुरक्षा को दिखाता है और इसके उल्टे नतीजे भी हो सकते हैं।’
रघुराम राजन ने अपनी दूसरी चिंता जताते हुए कहा, ऐसा लगता है कि कई सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठन हर उस चीज का विरोध कर रहे हैं जो विदेशी है। ऐसा नहीं है कि विरोध करने से पहले वो तथ्यों की जांच की जहमत उठाते हैं, उनका विरोध सिर्फ विदेशी होने के आधार पर है। हम इतने असुरक्षित नहीं हो सकते कि यह मान कर चलें कि विदेशी कंपनियों से प्रतियोगिता के कारण हमारी संस्कृति, विचार और कंपनियां खत्म हो जाएंगी।
अपनी तीसरी चिंता जताते हुए रघुराम राजन ने कहा,’ कोई भी ऐसी चीज जो आपके खिलाफ हो सरकार उस पर प्रतिबंध लगा दे, इससे हर तरह के वाद विवाद पर रोक लग जाएगी क्योंकि जिसके विचार हमें पसंद नहीं हैं, हमें उस पर क्रोध आएगा। इससे कहीं बेहतर है कि हम माहौल को बेहतर करें, सहिष्णु बनाएं और आपसी सम्मान के साथ एक दूसरे के विचारों के साथ पेश आएं।
रघुराम राजन ने कहा यह हमारे राष्ट्रीय हित के खिलाफ होगा कि हम ऐसी वाइब्रेंट लोकतांत्रिक समाज जो सहिष्णुता और विविधता की इज्जत करता है उसे एकाधिकारवादी, एकरूप संस्कृति वाली और बहुसंख्यकवादी बना दें।’ राजन ने कहा कि हर तरह के विचारों का स्वागत होना चाहिए, उसका गहन विश्लेषण होना चाहिए चाहे वो किसी विश्व प्रसिद्ध प्रोफेसर ने कही हो या किसी अनजान छात्र ने।
नई दिल्ली। पूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने लिखा कि जिन लोगों के पास सत्ता है उन्हें आलोचना सुनने का धैर्य भी रखना चाहिए। अगर हर आलोचक को सरकार और उसके समर्थक खामोश करने की कोशिश करेंगे तो नीतियों के निर्माण में सरकार से भयंकर भूलें होंगी। बता दें कि रघुराम राजन नोटबंदी के पहले तक रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। इसके बाद वो वापस अमेरिका यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में पढ़ाने चले गए। नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की रघुराम राजन कई बार खुले तौर पर आलोचना कर चुके हैं। रघुराम राजन ने महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर एक लंबा आलेख लिखा है जिसमें उन्होंने केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार को आलोचना सुनने का धैर्य रखने की ताकीद करते नजर आ रहे हैं।
रघुराम राजन ने कहा, भारत को जो चीज मजबूत बनाती है वो है इसकी विविधता, वाद विवाद और सहिष्णुता। जो चीज भारत को कमजोर बनाती है वो है संकीर्ण सोच, अनुदारता और एकरूपता। सोशल मीडिया साइट लिंकडिन पर लिखे अपने आर्टिकल में रघुराम राजन ने कहा कि जो सरकार जनता की आलोचनाओं को नजरअंदाज करती है वो अपना ही नुकसान करती है।
रघुराम राजन ने आगे लिखा, ‘अगर हर आलोचक को सरकारी तंत्र द्वारा फोन किया जाए कि वो आलोचना न करें वरना उनके पीछे सत्ताधारी पार्टी की ट्रोल आर्मी लग जाएगी, कई लोग अपनी आलोचना के सुर को मंद कर लेंगे। सरकार इसके बाद खुशफहमी में रह सकती है कि सब अच्छा है, लेकिन कड़वी हकीकत इससे छिप नहीं पाएगी। ‘
निश्चित तौर पर कुछ आलोचनाएं, जिसमें मीडिया भी शामिल है, तथ्यात्मक तौर पर गलत होती हैं या किसी और भावना से की जाती हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर मैंने भी ऐसी आलोचनाओं का सामना किया है। लेकिन इसके बावजूद आलोचनाओं को नजरअंदाज करना किसी भी सरकार के लिए आग से खेलने जैसा है जिससे नीति निर्धारण में गलतियों की संभावना बेहद बढ़ जाती है।’
बता दें कि पिछले ही हफ्ते नरेंद्र मोदी सरकार ने रतिन रॉय और शामिका रवि को इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल से हटा दिया था। दोनों ने सरकार की नीतियों की आलोचना की थी। रॉय ने सरकार के विदेशी मार्केट से फंड जुटाने के लिए बॉंड्स बेचने की आलोचना की थी। बता दें कि रघुराम राजन भी पहले इस फैसले की आलोचना कर चुके हैं।
अपने पोस्ट में राजन ने लिखा है, ‘भारतीय लोकतंत्र में खामियां भी हैं लेकिन यह स्वंय सुधार करने में सक्षम है। कुछ संस्थाएं कमजोर होती हैं तो बाकी संस्थाएं उसकी मदद करने आगे आ जाती है। सभी पर बहुसंख्यक कल्चर थोपने से अल्पसंख्यकों के वो गुण भी हम खो देंगे जो विकास के लिए बेहद जरूरी हैं। सांस्कृतिक विविधता से बौद्धिक विविधता का रास्ता खुलता है जो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए हर मोड़ पर जरूरी है।
रघुराम राजन का यह लेख ऐसे समय में आया है जब पिछले छह सालों में आर्थिक विकास दर सबसे कम स्तर (5 फीसदी) पर है। रघुराम राजन ने नोटबंदी के फैसले का विरोध किया था। तभी से वह मोदी सरकार के निशाने पर हैं। रघुराम राजन ने अपने लिंकडिन पोस्ट में लिखा है, ‘सतत आलोचना से किसी भी नीति में समय सापेक्ष सुधार का रास्ता खुलता है। जनता की आलोचना के बाद ब्यूरोक्रेट अपने राजनीतिक आकाओं से सच बोलने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
भारत में उभर रही हैं ये तीन खतरनाक प्रवृतियां: रघुराम राजन
राजन ने कहा कि भारत में तीन तरह की प्रवृति उभर रही है जो बेहद चिंताजनक है। पहली ये कि हम अपनी महानता के लिए अतीत की तरफ झांक रहे हैं। हमारे सारे संदर्भ पुरातन हैं। इतिहास को छाती पर टांग कर अपनी महानता का बखान करना हमारी असुरक्षा को दिखाता है और इसके उल्टे नतीजे भी हो सकते हैं।’
रघुराम राजन ने अपनी दूसरी चिंता जताते हुए कहा, ऐसा लगता है कि कई सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठन हर उस चीज का विरोध कर रहे हैं जो विदेशी है। ऐसा नहीं है कि विरोध करने से पहले वो तथ्यों की जांच की जहमत उठाते हैं, उनका विरोध सिर्फ विदेशी होने के आधार पर है। हम इतने असुरक्षित नहीं हो सकते कि यह मान कर चलें कि विदेशी कंपनियों से प्रतियोगिता के कारण हमारी संस्कृति, विचार और कंपनियां खत्म हो जाएंगी।
अपनी तीसरी चिंता जताते हुए रघुराम राजन ने कहा,’ कोई भी ऐसी चीज जो आपके खिलाफ हो सरकार उस पर प्रतिबंध लगा दे, इससे हर तरह के वाद विवाद पर रोक लग जाएगी क्योंकि जिसके विचार हमें पसंद नहीं हैं, हमें उस पर क्रोध आएगा। इससे कहीं बेहतर है कि हम माहौल को बेहतर करें, सहिष्णु बनाएं और आपसी सम्मान के साथ एक दूसरे के विचारों के साथ पेश आएं।
रघुराम राजन ने कहा यह हमारे राष्ट्रीय हित के खिलाफ होगा कि हम ऐसी वाइब्रेंट लोकतांत्रिक समाज जो सहिष्णुता और विविधता की इज्जत करता है उसे एकाधिकारवादी, एकरूप संस्कृति वाली और बहुसंख्यकवादी बना दें।’ राजन ने कहा कि हर तरह के विचारों का स्वागत होना चाहिए, उसका गहन विश्लेषण होना चाहिए चाहे वो किसी विश्व प्रसिद्ध प्रोफेसर ने कही हो या किसी अनजान छात्र ने।