यूएन में क्लाइमेट चेंज को लेकर अपनी स्पीच से वैश्विक नेताओं को हिला देने वाली 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग ने सालभर पहले जब पर्यावरण संरक्षण को लेकर अकेले लड़ाई शुरू की तो शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं होगा कि कुछ ही समय में पूरी दुनिया से उन्हें समर्थन मिलने लगेगा। ग्रेटा की मुहीम भारत में जोरों पर है और दिल्ली, बेंगलुरु समेत देश के बड़े शहरों में स्कूली बच्चों के साथ-साथ युवा सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
नई दिल्ली। संयुक्त संघ (यूएन) में क्लाइमेट चेंज पर वैश्विक नेताओं को फटकार लगाने वाली ग्रेटा थनबर्ग की चर्चा दुनियाभर में है। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की आइकॉन बन चुकीं 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग ने साल 2018 में स्वीडन में जब अपनी लड़ाई शुरू की तो उन्हें खुद भी अंदाजा नहीं होगा कि एक समय पर पूरी दुनिया में लोग उनके समर्थन में होंगे। आज 150 से अधिक देशों के लोग ग्रेटा थनबर्ग के साथ खड़े जिसमें हमारा देश भारत भी शामिल है।
राजधानी दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु समेत कई बड़े शहरों में स्कूली बच्चे और युवा सड़कों पर उतरकर ग्रेटा के समर्थन में क्लाइमेट चेंज को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। 1 साल पहले शुरू हुई ग्रेटा थनबर्ग की मुहीम फ्राइडे फॉर फ्यूचर का पूरी दुनिया में पहुंचना आसान नहीं था लेकिन किसी शायर ने ठीक कहा है ”मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।”
पिछले साल स्वीडन में भीषण गर्मी पड़ी। गर्म लू से लोगों का जीना मुहाल हो गया। लाखों लोग इस परेशानी से जूझ रहे थे जिनमें ग्रेटा थनबर्ग भी एक थीं। उस दौरान स्वीडन में आम चुनाव होने थे। ऐसे में क्लाइमेट चेंज को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए ग्रेटा ने अकेले लड़ाई शुरू की। हालांकि, उनके लिए ऐसा करना बिल्कुल भी आसान नहीं था। स्वीडन में आम चुनाव की तारीख 9 सितंबर 2018 थी, उससे पहले ही ग्रेटा ने 20 अगस्त को अपनी आवाज उठानी शुरू की। धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर लोगों का उन्हें समर्थन मिलने लगा।
ग्रेटा थनबर्ग के आंदोलन से लोग जुड़ने शुरू हो गए। इन सभी लोगों में सबसे ज्यादा तादाद युवाओं और स्कूली बच्चों की नजर आई। यूएन के जनरल सेक्रेटरी एंटोनियो गुटेरिस ने भी ग्रेटा के आंदोलन की तारीफ की। साल 2019 की शुरुआत में ग्रेटा को दुनियाभर के 224 शिक्षाविदों ने समर्थन मिला। 1 साल में ही ग्रेटा ने कई राष्ट्रीय मंचों से अपनी आवाज भी उठाई। अगस्त महीने में उन्होंने सौर उर्जा से चलने वाले जहाज से ब्रिटेन से अमेरिका की यात्रा पूरी की। ग्रेटा के समर्थन में उनका परिवार भी मांस खाना छोड़ दिया है।
ग्रेटा ने शुरुआत स्वीडन से की लेकिन उनके आंदोलन की आग दुनिया के 160 से ज्यादा देशों में पहुंच चुकी है। इन सभी देशों में पर्यावरण प्रेमी ग्रेटा का जमकर समर्थन कर रहे हैं। विश्व के 2 हजार से भी ज्यादा शहरों में क्लाइमेट चेंज को लेकर फ्राइडे फॉर फ्यूचर की मुहीम छिड़ चुकी है।
नई दिल्ली। संयुक्त संघ (यूएन) में क्लाइमेट चेंज पर वैश्विक नेताओं को फटकार लगाने वाली ग्रेटा थनबर्ग की चर्चा दुनियाभर में है। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की आइकॉन बन चुकीं 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग ने साल 2018 में स्वीडन में जब अपनी लड़ाई शुरू की तो उन्हें खुद भी अंदाजा नहीं होगा कि एक समय पर पूरी दुनिया में लोग उनके समर्थन में होंगे। आज 150 से अधिक देशों के लोग ग्रेटा थनबर्ग के साथ खड़े जिसमें हमारा देश भारत भी शामिल है।
राजधानी दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु समेत कई बड़े शहरों में स्कूली बच्चे और युवा सड़कों पर उतरकर ग्रेटा के समर्थन में क्लाइमेट चेंज को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। 1 साल पहले शुरू हुई ग्रेटा थनबर्ग की मुहीम फ्राइडे फॉर फ्यूचर का पूरी दुनिया में पहुंचना आसान नहीं था लेकिन किसी शायर ने ठीक कहा है ”मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।”
पिछले साल स्वीडन में भीषण गर्मी पड़ी। गर्म लू से लोगों का जीना मुहाल हो गया। लाखों लोग इस परेशानी से जूझ रहे थे जिनमें ग्रेटा थनबर्ग भी एक थीं। उस दौरान स्वीडन में आम चुनाव होने थे। ऐसे में क्लाइमेट चेंज को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए ग्रेटा ने अकेले लड़ाई शुरू की। हालांकि, उनके लिए ऐसा करना बिल्कुल भी आसान नहीं था। स्वीडन में आम चुनाव की तारीख 9 सितंबर 2018 थी, उससे पहले ही ग्रेटा ने 20 अगस्त को अपनी आवाज उठानी शुरू की। धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर लोगों का उन्हें समर्थन मिलने लगा।
ग्रेटा थनबर्ग के आंदोलन से लोग जुड़ने शुरू हो गए। इन सभी लोगों में सबसे ज्यादा तादाद युवाओं और स्कूली बच्चों की नजर आई। यूएन के जनरल सेक्रेटरी एंटोनियो गुटेरिस ने भी ग्रेटा के आंदोलन की तारीफ की। साल 2019 की शुरुआत में ग्रेटा को दुनियाभर के 224 शिक्षाविदों ने समर्थन मिला। 1 साल में ही ग्रेटा ने कई राष्ट्रीय मंचों से अपनी आवाज भी उठाई। अगस्त महीने में उन्होंने सौर उर्जा से चलने वाले जहाज से ब्रिटेन से अमेरिका की यात्रा पूरी की। ग्रेटा के समर्थन में उनका परिवार भी मांस खाना छोड़ दिया है।
ग्रेटा ने शुरुआत स्वीडन से की लेकिन उनके आंदोलन की आग दुनिया के 160 से ज्यादा देशों में पहुंच चुकी है। इन सभी देशों में पर्यावरण प्रेमी ग्रेटा का जमकर समर्थन कर रहे हैं। विश्व के 2 हजार से भी ज्यादा शहरों में क्लाइमेट चेंज को लेकर फ्राइडे फॉर फ्यूचर की मुहीम छिड़ चुकी है।