कोच्चि: अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में केरल उच्च न्यायालय ने माना कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए छात्र-छात्राओं के माध्यम और तरीकों पर रोक लगाकर अनुशासन नहीं थोपा जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करना संविधान में प्रदत्त अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा के अधिकार और निजता के अधिकार का हिस्सा है। इसके साथ ही अदालत ने उस छात्रा को कॉलेज के हॉस्टल में फिर से प्रवेश देने का निर्देश दिया जिसे मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक-टोक का विरोध करने पर निकाल दिया गया था। न्यायालय में कॉलेज हॉस्टल से निकाली गई छात्रा को फिर से प्रवेश देने का आदेश दिया है।
बीते गुरुवार को अपने फैसले में जस्टिस पीवी आशा ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद ने पाया है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करना एक मौलिक आजादी है और यह शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करने का भी एक जरिया है। ऐसा कोई भी नियम या निर्देश जो छात्रों के इस अधिकार को हानि पहुंचाता है, उसे कानूनन इजाजत नहीं दी जा सकती।’
अपनी याचिका में छात्रा ने कहा था कि हॉस्टल का नियम उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता की स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कालीकट विश्वविद्यालय के एक सरकारी सहायता प्राप्त श्री नारायणगुरु कॉलेज की बीए के दूसरे वर्ष की छात्रा फहीमा शिरीन ने हॉस्टल से निकाले जाने को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका डाली थी। उस याचिका पर अदालत ने यह फैसला दिया है।
याचिका में 19 वर्षीय छात्रा ने कहा कि छात्रावास में रहने वालों को हॉस्टल के भीतर रात दस बजे से सुबह छह बजे तक मोबाइल इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है। स्नातक छात्राओं को हॉस्टल में लैपटॉप इस्तेमाल करने की भी अनुमति नहीं है। इसमें यह भी कहा गया कि इस तरह की पाबंदियां केवल लड़कियों के छात्रावास में ही लगाई गई हैं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, बीते जून महीने में हॉस्टल में यह नियम लागू किया गया था। हॉस्टल की छात्राओं को रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक अपने मोबाइल फोन और लैपटॉप वार्डन के पास जमा करना होता था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी और पढ़ाई के घंटों में इसे जमा करवाने का निर्देश पूरी तरह से गैरजरूरी है। अदालत ने यह भी कहा कि अनुशासन लागू करते वक्त मोबाइल फोन के सकारात्मक पहलू को देखना भी जरूरी है।
एनडीटीवी से बातचीत में फहीमा ने कहा, ‘पढ़ाई के अलावा हम मोबाइल फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल बहुत सारी चीजों के लिए करते हैं। मैं अपनी पढ़ाई, असाइनमेंट और शोध के लिए हमेशा इंटरनेट का इस्तेमाल करती हूं। जब सेल्फ स्टडी का समय होता था तब के दौरान हम इसका इस्तेमाल ही नहीं कर सकते थे, इसलिए मैंने अपना मोबाइल फोन वार्डन के पास जमा करने से मना कर दिया था। मेरे इस फैसले का मेरे पिता ने भी समर्थन किया था।’
न्यायालय ने कहा है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करना संविधान में प्रदत्त अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा के अधिकार और निजता के अधिकार का हिस्सा है। इसके साथ ही अदालत ने उस छात्रा को कॉलेज के हॉस्टल में फिर से प्रवेश देने का निर्देश दिया जिसे मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक-टोक का विरोध करने पर निकाल दिया गया था। न्यायालय में कॉलेज हॉस्टल से निकाली गई छात्रा को फिर से प्रवेश देने का आदेश दिया है।
बीते गुरुवार को अपने फैसले में जस्टिस पीवी आशा ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद ने पाया है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करना एक मौलिक आजादी है और यह शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करने का भी एक जरिया है। ऐसा कोई भी नियम या निर्देश जो छात्रों के इस अधिकार को हानि पहुंचाता है, उसे कानूनन इजाजत नहीं दी जा सकती।’
अपनी याचिका में छात्रा ने कहा था कि हॉस्टल का नियम उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता की स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कालीकट विश्वविद्यालय के एक सरकारी सहायता प्राप्त श्री नारायणगुरु कॉलेज की बीए के दूसरे वर्ष की छात्रा फहीमा शिरीन ने हॉस्टल से निकाले जाने को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका डाली थी। उस याचिका पर अदालत ने यह फैसला दिया है।
याचिका में 19 वर्षीय छात्रा ने कहा कि छात्रावास में रहने वालों को हॉस्टल के भीतर रात दस बजे से सुबह छह बजे तक मोबाइल इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है। स्नातक छात्राओं को हॉस्टल में लैपटॉप इस्तेमाल करने की भी अनुमति नहीं है। इसमें यह भी कहा गया कि इस तरह की पाबंदियां केवल लड़कियों के छात्रावास में ही लगाई गई हैं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, बीते जून महीने में हॉस्टल में यह नियम लागू किया गया था। हॉस्टल की छात्राओं को रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक अपने मोबाइल फोन और लैपटॉप वार्डन के पास जमा करना होता था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी और पढ़ाई के घंटों में इसे जमा करवाने का निर्देश पूरी तरह से गैरजरूरी है। अदालत ने यह भी कहा कि अनुशासन लागू करते वक्त मोबाइल फोन के सकारात्मक पहलू को देखना भी जरूरी है।
एनडीटीवी से बातचीत में फहीमा ने कहा, ‘पढ़ाई के अलावा हम मोबाइल फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल बहुत सारी चीजों के लिए करते हैं। मैं अपनी पढ़ाई, असाइनमेंट और शोध के लिए हमेशा इंटरनेट का इस्तेमाल करती हूं। जब सेल्फ स्टडी का समय होता था तब के दौरान हम इसका इस्तेमाल ही नहीं कर सकते थे, इसलिए मैंने अपना मोबाइल फोन वार्डन के पास जमा करने से मना कर दिया था। मेरे इस फैसले का मेरे पिता ने भी समर्थन किया था।’