गुजरात। देश के संविधान में भले ही ‘सर्व-धर्म सम्भाव’ का उल्लेख हो। लेकिन आज भी समाज में पिछड़ी जाति के लोगों को खुलेआम खुशियां मनाने की छूट नहीं है। गुजरात के मेहसाणा जिले में शादी में घोड़ी लाने पर गांव के सवर्णों ने दलित समुदाय का बहिष्कार कर दिया। इस भेदभाव का दलित समाज ने एकजुट होकर मुंह-तोड़ जवाब दिया। साथ ही पुलिस के सहयोग से घोड़ी पर पूरे उत्साह के साथ बारात निकालने में सफल रहे।
पुलिस के अनुसार महसाणा के लोर गांव में 7 मई को दलित जाति के दूल्हे ने घोड़ी पर बारात निकली तो सवर्णों ने आपत्ति जताई। उन्हें कहा गया कि घोड़ी पर बारात सिर्फ अपने इलाके में निकाले पूरे गांव में घूमने की कोई जरूरत नहीं है। जिसका विरोध करते हुए दूल्हे ने पुलिस सुरक्षा की मांग की। पुनः 16 मई को भी पुलिस की निगरानी में दलितों ने दूसरी शादी में घोड़ी पर धूम-धाम से बारात निकली थी। लेकिन इसके बाद नाराज सवर्णों ने दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। दलितों की शिकायत पर पुलिस ने गांव के सरपंच सहित पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।
गांव में उस दिन NGO नवसृजन ट्रस्ट से जुड़ीं शांताबेन सेनमा मौजूद थीं। उन्होंने बताया कि गांव के सरपंच ने ही मंदिर से दलितों को बहिष्कार करने का आदेश किया था। शांताबेन ने कहा कि “8 मई को 6 बजे मैंने सुना था, राम मंदिर में माइक से ऐलान किया जा रहा था कि ठाकुर जाति, राबारी जाति के लोग आएं। दलित, हरिजन के अलावा सभी जाति चौक पर आ जाएं। फिर गांव के लोगों को इकट्टा कर कहा गया कि गांव में जो भी दलितों को दूध, साग-सब्जी देगा, उसके लिए 5,000 रुपये का दंड होगा और उसे गांव से बाहर निकाला जाएगा। इसके साथ ही फेरी वालों, रिक्शावालों को भी कहा गया कि अगर रिक्शा पर बिठाया तो 5,000 रुपये का दंड होगा और गांव से बाहर निकाला जाएगा।”
इस बहिष्कार के बाद शांतबेन ने गांव के दलितों ने सबूत जुटाने के लिए एकजुट किया। उन्होंने सभी से कहा कि ‘2 लोग दुकान पर जाएं और 2 लोग ऑटो रिक्शावाले से बात करने। फिर बातचीत का वीडियो या आवाज की रिकॉर्डिंग के साथ दुकान पर जुटें।“ पूरी सूझ-बुझ के साथ शांतबेन ने फिर सबूतों सहित पुलिस थाना में सुवर्णों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
बता दें कि गांव में लगभग 40-50 से अधिक घर हैं जबकि सवर्णों के 200 से अधिक घर हैं। बातचीत के दौरान दलित समुदाय के लोगों ने बताया कि उन्होंने भी सवर्णों के मृत पशुओं के शवों को उठाने का काम बंद कर दिया है। स्थानीय निवासी विजय परमार ने कहा कि “हमारे पूर्वज पढ़े-लिखे नहीं थे। अब हम पढ़ना-लिखना जानते हैं। हमने बाबा साहब अंबेडकर से सीखा- ‘पहले पढ़ो, आगे बढ़ो, संगठित हो’ तो हमसब यही कर रहे हैं। हमें ये काम पसंद नहीं। ये काम हमने छोड़ दिया और आगे भी नहीं करेंगे।“
फिलहाल लोर गांव के दलितों ने तय कर लिया है कि सवर्णों के अत्याचार का पुरजोर विरोध करेंगे और संविधान से मिले ‘सर्व-धर्म-सम्भाव’ का अधिकार प्राप्त करके ही रहेंगे।
पुलिस के अनुसार महसाणा के लोर गांव में 7 मई को दलित जाति के दूल्हे ने घोड़ी पर बारात निकली तो सवर्णों ने आपत्ति जताई। उन्हें कहा गया कि घोड़ी पर बारात सिर्फ अपने इलाके में निकाले पूरे गांव में घूमने की कोई जरूरत नहीं है। जिसका विरोध करते हुए दूल्हे ने पुलिस सुरक्षा की मांग की। पुनः 16 मई को भी पुलिस की निगरानी में दलितों ने दूसरी शादी में घोड़ी पर धूम-धाम से बारात निकली थी। लेकिन इसके बाद नाराज सवर्णों ने दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। दलितों की शिकायत पर पुलिस ने गांव के सरपंच सहित पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।
गांव में उस दिन NGO नवसृजन ट्रस्ट से जुड़ीं शांताबेन सेनमा मौजूद थीं। उन्होंने बताया कि गांव के सरपंच ने ही मंदिर से दलितों को बहिष्कार करने का आदेश किया था। शांताबेन ने कहा कि “8 मई को 6 बजे मैंने सुना था, राम मंदिर में माइक से ऐलान किया जा रहा था कि ठाकुर जाति, राबारी जाति के लोग आएं। दलित, हरिजन के अलावा सभी जाति चौक पर आ जाएं। फिर गांव के लोगों को इकट्टा कर कहा गया कि गांव में जो भी दलितों को दूध, साग-सब्जी देगा, उसके लिए 5,000 रुपये का दंड होगा और उसे गांव से बाहर निकाला जाएगा। इसके साथ ही फेरी वालों, रिक्शावालों को भी कहा गया कि अगर रिक्शा पर बिठाया तो 5,000 रुपये का दंड होगा और गांव से बाहर निकाला जाएगा।”
इस बहिष्कार के बाद शांतबेन ने गांव के दलितों ने सबूत जुटाने के लिए एकजुट किया। उन्होंने सभी से कहा कि ‘2 लोग दुकान पर जाएं और 2 लोग ऑटो रिक्शावाले से बात करने। फिर बातचीत का वीडियो या आवाज की रिकॉर्डिंग के साथ दुकान पर जुटें।“ पूरी सूझ-बुझ के साथ शांतबेन ने फिर सबूतों सहित पुलिस थाना में सुवर्णों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
बता दें कि गांव में लगभग 40-50 से अधिक घर हैं जबकि सवर्णों के 200 से अधिक घर हैं। बातचीत के दौरान दलित समुदाय के लोगों ने बताया कि उन्होंने भी सवर्णों के मृत पशुओं के शवों को उठाने का काम बंद कर दिया है। स्थानीय निवासी विजय परमार ने कहा कि “हमारे पूर्वज पढ़े-लिखे नहीं थे। अब हम पढ़ना-लिखना जानते हैं। हमने बाबा साहब अंबेडकर से सीखा- ‘पहले पढ़ो, आगे बढ़ो, संगठित हो’ तो हमसब यही कर रहे हैं। हमें ये काम पसंद नहीं। ये काम हमने छोड़ दिया और आगे भी नहीं करेंगे।“
फिलहाल लोर गांव के दलितों ने तय कर लिया है कि सवर्णों के अत्याचार का पुरजोर विरोध करेंगे और संविधान से मिले ‘सर्व-धर्म-सम्भाव’ का अधिकार प्राप्त करके ही रहेंगे।