बस्तर। छत्तीसगढ़ में लंबे समय बाद सरकार बदली लेकिन सरकारी शह पर आदिवासी ग्रामीणों पर लगातार अत्याचार कर मानवाधिकारों का हनन अभी भी बदस्तूर जारी है। 7 फरवरी 2019 को अबुझमाढ़ पहाड़ी पर स्थित तड़ीबल्ला, भैरमगढ़ तहसील, बीजापुर में बड़ी घटना हुई जिसे सरकार सैन्य बलों की बड़ी कामयाबी के तौर पर दर्शा रही है। लेकिन यहां सोनी सोरी, लिंगाराम कोडोपी सहित कई सामाजिक कार्यकर्ता पहुंचे तो उन्होंने इसकी जांच की जरूरत बताते हुए आदिवासियों के खिलाफ बड़े षडयंत्र की आशंका जाहिर की।
प्रतीकात्मक फोटो
मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता भैरमगढ़ में एकत्र हुए। उन्होंने कहा कि बीजापुर में हुई घटना आदिवासियों पर अत्याचार की ही कड़ी का एक हिस्सा है। उन्होंने कहा कि इस घटना को सरकार और गृहमंत्री सैनिकों की एक बड़ी जीत के रूप में दिखा रहे हैं, लेकिन इस घटना पर ज़रा सी भी पूछताछ या कार्यवाही करें तो एक बेहद ही खौफनाक हकीकत सामने आ पड़ती है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं से ग्रामीणों ने कहा कि जिन 10 लोगों को सुरक्षा बलों ने जान से मार दिया गया है उनमें से कोई नक्सली नहीं था और घटना के दिन कोई मुठभेड़ नहीं हुई थी। मारे गए ग्रामीण में ज्यादातर हमारे बच्चे हैं, जो उस दिन खेलकूद के लिए इकट्ठा हुए थे। जब सुरक्षाबल घटनास्थल पर पहुंचे तो बिना कोई चेतावनी दिए वहां एकत्र ग्रामीणों पर ताबड़तोड़ फायरिंग करना चालू कर दिया जिस कारण भगदड़ मच गई। इसमें जिनको गोली लगी, उनके साथ सैन्य बलों ने जानवरों से भी बदतर सुलूक किया।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इन जवानों ने 2 लड़कियों के साथ बलात्कार किया। उनमें से एक 12 साल की बच्ची भी है जिसके साथ जवानों ने घोर शारीरिक और लैंगिक हिंसा की और उसकी नाक व गुप्तांगों पर काटा। जिन लोगों की गोलीबारी से मौत हो गई सैन्य बलों के जवानों ने उनके साथ भी अमानवीय बर्ताव करने में कोई कसर नहीं छोड़ी तथा वहां मौके पर मौजूद बर्तन आदि को तोड़कर आग लगा दी।
ग्रामीणों ने सवाल दागा कि हम जानना चाहते हैं कि जब भी सैन्य बल हमारे गांव में गश्त के लिए आते हैं तो इस तरह का सुलूक क्यों करते हैं, उनको ये आदेश कहाँ से दिए जा रहे हैं? आदिवासियों को आए दिन बिना कारण बताये, बिना सबूत के गिरफ्तार कर ले जाते हैं। उनको कैंप या थाने ले जाकर कई दिन रखते हैं और मारते पीटते हैं, उनके परिजनों को उनके बारे में खबर देने से मना करते हैं, उसके बाद या तो छोड़ देते है या झूठे नक्सली प्रकरणों में गिरफ्तार कर लेते हैं।
ग्रामीणों ने कहा कि जवान किसके आदेश से आदिवासी महिलाओं के शरीर को अपनी जागीर मानते हैं, उनके साथ छेड़-छाड़ और यौन हिंसा करते हैं? गर्भवती महिलाओं, बच्चियों, और दूध पिलाती महिलाओं को भी फ़ोर्स वाले नहीं बख्शते। अपनी सफाई में जातिवादी बातें कहते हैं जैसे कि आदिवासी महिलाओं के शरीर से बदबू आती है, उनको कौन छूएगा। ये कैसे आदेश हैं जिनके तहत सैकड़ों बेगुनाह आदिवासी लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया है।
यह सिलसिला चलता आ रहा है और आदिवासी लोग बस्तर में लगातार मौत के साए में अपना जीवन जी रहे हैं। हमारे घरों को लूटकर जला दिया जाता है, हमारे जमा किये हुए पैसे, कपडे, धन, फसल, भेड़-बकरी, मुर्गी, पालतू जानवर और समस्त जमा-पूँजी भी क्या सरकार को रास नहीं आती? यह कैसा सैन्यकरण है जो कहने के लिए बस्तर की जनता की सुरक्षा के लिए है पर हर दिन हमको ही खौफ में जीने से मजबूर करता है। ये सैनिक हमारे कैसे हुए जब इनको देखकर हम अपना सब कुछ छोड़कर भागने पर मजबूर हो जाते हैं?
ग्रामीणों ने आगे कहा कि हमने जो खोया है, जो ज़ुल्म सहे हैं, हमको जो दर्द सरकार ने दिया है, वह तो असीम है और उसका भुगतान कर पाना असंभव है। लेकिन आज सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि हमारे सवालों का जवाब दे और हमको न्याय दे! सरकार से हमारी निम्न मांगें हैं:
1. हमारे विवरण के अनुसार घटना को लेकर धारा 302, 307, 376, 376(2)(c), 201 भा.द.वि. और धारा 5(b) बच्चों को यौनिक हिंसा से संरक्षण अधिनियम में एक काउंटर एफआईआर दर्ज कर मामले की निष्पक्ष, सटीक जांच करवाई जाए और जो दोषी हैं उनपर कड़ी कार्यवाही की जाए।
2. इस घटना की तह तक पहुंचने के लिए और न्याय प्रदान करने के लिए एक जांच आयोग का गठन किया जाए जिसकी सुनवाई किसी सेवानिवृत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा कराई जाए।
3. मृतकों के परिजनों को एफआईआर और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की प्रतिलिपि दी जाए।
4. मामले की जांच को लेकर गांव वालों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि वे निडर होकर अपना बयान दे सकें और जांच में मानवाधिकार आयोग के मानकों का पालन किया जाए।
(सोनी सोरी, लिंगाराम कोडोपी से मिले इनपुट्स से साभार)
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मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता भैरमगढ़ में एकत्र हुए। उन्होंने कहा कि बीजापुर में हुई घटना आदिवासियों पर अत्याचार की ही कड़ी का एक हिस्सा है। उन्होंने कहा कि इस घटना को सरकार और गृहमंत्री सैनिकों की एक बड़ी जीत के रूप में दिखा रहे हैं, लेकिन इस घटना पर ज़रा सी भी पूछताछ या कार्यवाही करें तो एक बेहद ही खौफनाक हकीकत सामने आ पड़ती है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं से ग्रामीणों ने कहा कि जिन 10 लोगों को सुरक्षा बलों ने जान से मार दिया गया है उनमें से कोई नक्सली नहीं था और घटना के दिन कोई मुठभेड़ नहीं हुई थी। मारे गए ग्रामीण में ज्यादातर हमारे बच्चे हैं, जो उस दिन खेलकूद के लिए इकट्ठा हुए थे। जब सुरक्षाबल घटनास्थल पर पहुंचे तो बिना कोई चेतावनी दिए वहां एकत्र ग्रामीणों पर ताबड़तोड़ फायरिंग करना चालू कर दिया जिस कारण भगदड़ मच गई। इसमें जिनको गोली लगी, उनके साथ सैन्य बलों ने जानवरों से भी बदतर सुलूक किया।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इन जवानों ने 2 लड़कियों के साथ बलात्कार किया। उनमें से एक 12 साल की बच्ची भी है जिसके साथ जवानों ने घोर शारीरिक और लैंगिक हिंसा की और उसकी नाक व गुप्तांगों पर काटा। जिन लोगों की गोलीबारी से मौत हो गई सैन्य बलों के जवानों ने उनके साथ भी अमानवीय बर्ताव करने में कोई कसर नहीं छोड़ी तथा वहां मौके पर मौजूद बर्तन आदि को तोड़कर आग लगा दी।
ग्रामीणों ने सवाल दागा कि हम जानना चाहते हैं कि जब भी सैन्य बल हमारे गांव में गश्त के लिए आते हैं तो इस तरह का सुलूक क्यों करते हैं, उनको ये आदेश कहाँ से दिए जा रहे हैं? आदिवासियों को आए दिन बिना कारण बताये, बिना सबूत के गिरफ्तार कर ले जाते हैं। उनको कैंप या थाने ले जाकर कई दिन रखते हैं और मारते पीटते हैं, उनके परिजनों को उनके बारे में खबर देने से मना करते हैं, उसके बाद या तो छोड़ देते है या झूठे नक्सली प्रकरणों में गिरफ्तार कर लेते हैं।
ग्रामीणों ने कहा कि जवान किसके आदेश से आदिवासी महिलाओं के शरीर को अपनी जागीर मानते हैं, उनके साथ छेड़-छाड़ और यौन हिंसा करते हैं? गर्भवती महिलाओं, बच्चियों, और दूध पिलाती महिलाओं को भी फ़ोर्स वाले नहीं बख्शते। अपनी सफाई में जातिवादी बातें कहते हैं जैसे कि आदिवासी महिलाओं के शरीर से बदबू आती है, उनको कौन छूएगा। ये कैसे आदेश हैं जिनके तहत सैकड़ों बेगुनाह आदिवासी लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया है।
यह सिलसिला चलता आ रहा है और आदिवासी लोग बस्तर में लगातार मौत के साए में अपना जीवन जी रहे हैं। हमारे घरों को लूटकर जला दिया जाता है, हमारे जमा किये हुए पैसे, कपडे, धन, फसल, भेड़-बकरी, मुर्गी, पालतू जानवर और समस्त जमा-पूँजी भी क्या सरकार को रास नहीं आती? यह कैसा सैन्यकरण है जो कहने के लिए बस्तर की जनता की सुरक्षा के लिए है पर हर दिन हमको ही खौफ में जीने से मजबूर करता है। ये सैनिक हमारे कैसे हुए जब इनको देखकर हम अपना सब कुछ छोड़कर भागने पर मजबूर हो जाते हैं?
ग्रामीणों ने आगे कहा कि हमने जो खोया है, जो ज़ुल्म सहे हैं, हमको जो दर्द सरकार ने दिया है, वह तो असीम है और उसका भुगतान कर पाना असंभव है। लेकिन आज सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि हमारे सवालों का जवाब दे और हमको न्याय दे! सरकार से हमारी निम्न मांगें हैं:
1. हमारे विवरण के अनुसार घटना को लेकर धारा 302, 307, 376, 376(2)(c), 201 भा.द.वि. और धारा 5(b) बच्चों को यौनिक हिंसा से संरक्षण अधिनियम में एक काउंटर एफआईआर दर्ज कर मामले की निष्पक्ष, सटीक जांच करवाई जाए और जो दोषी हैं उनपर कड़ी कार्यवाही की जाए।
2. इस घटना की तह तक पहुंचने के लिए और न्याय प्रदान करने के लिए एक जांच आयोग का गठन किया जाए जिसकी सुनवाई किसी सेवानिवृत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा कराई जाए।
3. मृतकों के परिजनों को एफआईआर और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की प्रतिलिपि दी जाए।
4. मामले की जांच को लेकर गांव वालों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि वे निडर होकर अपना बयान दे सकें और जांच में मानवाधिकार आयोग के मानकों का पालन किया जाए।
(सोनी सोरी, लिंगाराम कोडोपी से मिले इनपुट्स से साभार)