अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैंपस में एक बीजेपी सांसद के टीवी चैनल की टीम के साथ क्या हुआ या उस रिपोर्टर ने क्या भड़काने वाली बात कही थोड़ी देर के लिये इसके गुण-दोष में न जाकर जिस तरह 14 छात्रों पर देशद्रोह का मुकदमा कायम किया गया उसकी मंशा को देखा जाये तो योगी और बीजेपी की हताशा साफ नज़र आती है।
तीन साल पहले फरवरी के ही दूसरे सप्ताह में ही जेएनयू में भी यही हथकंडा अपनाया गया था। पूरी कहानी की स्क्रिप्ट और किरदार एक जैसे हैं। जेएनयू में भी विवाद के केंद्र में भी बीजेपी के सांसद का ही एक दूसरा टीवी चैनल था।
असली मंशा हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकारण है:
बीजेपी एक बात ठीक तरह से समझती है कि वो विकास के नारे पर चुनाव नहीं जीत सकती है और हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण ही उसका एक मात्र आसरा है। मौजूदा समय में बीजेपी की सबसे बड़ी समस्या है कि जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं ध्रुवीकरण के सब हथकंडे बेकार साबित हो रहे हैं। युवा नौकरियां मांग रहा है, किसान फसल की लागत और व्यवसाई जीएसटी और बाज़ार में मंदी दोनों से परेशान है। आर्थिक फ्रंट पर केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी दोनों बुरी तरह विफल हुये हैं। सामाजिक न्याय की शक्तियां एक हुई हैं और मजबूत भी। राफ़ेल डील पर रोज़ नये खुलासे हो रहे हैं। बीजेपी इन सब समस्याओं को हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कर के निबटाना चाहती है।
बुलंदशहर में योजनाबद्ध तरीके से दंगा कराने की कोशिश हुई। पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह ने अपनी जान की बाजी लगा कर उस साजिश को नाकाम कर दिया। तीन साल आरएसएस - बीजेपी के समर्थकों ने गाय के नाम पर कितनों को मौत के घाट उतारा और जेल भेजा। चुनाव करीब आते आते वो दांव भी उलटा पड़ गया। मवेशी कारोबार एक दम ठप्प होगया जो किसान का आपात फंड होता है। आवारा मवेशी फसलों को नुकसान पहुंचाने लगे और हार कर किसानों को उन्हे स्कूलों और सरकारी इमारतों में बंद करना पड़ा।
क्या योगी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिये अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को निशाना बनाया है:
एसपी-बीएसपी गठबंधन का कोई जवाब बीजेपी के पास नहीं है। साझा चुनाव लड़ने की औपचारिक घोषणा के पहले ही ये तालमेल उपचुनाव योगी को उनके गढ़ गोरखपुर में शिकस्त दे चुका है और कैराना जो की आरएसएस की लैब थी वो उनसे छीन चुका है। प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश से सक्रिय राजनीति में उतरने और सफल रोड शो ने कांग्रेस में नया उत्साह भरा है।
उत्तर प्रदेश की गुत्थी को बीजेपी सुलझा नहीं पा रही है। राम मंदिर पर भी अखाड़ों से इतना बेइज्ज़त हुये कि विश्व हिन्दू परिषद को चुनाव तक आंदोलन से पीछे हटना पड़ा। योगी की राजनीति और नियुक्तियों को लेकर ब्राह्मण बीजेपी से खुश नहीं है। यूपी का सामाजिक समीकरण बीजेपी के हाथ से फिसल रहा है।
बीजेपी के अंदर उत्तर प्रदेश को लेकर मंथन चल रहा है। इस बात की भी चर्चा है कि योगी को केंद्र में लाकर किसी ऐसे को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाये जिससे एसपी-बीएसपी गठबंधन से संभावित नुकसान को कम किया जा सके। योगी निश्चित रूप से इस काम के लिये उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं।
इन्हीं अटकलों के चलते योगी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को निशाना बना कर ध्रुवीकरण को चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिससे बीजेपी में अपनी उपयोगिता साबित कर पायें। देखना है पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व योगी को कहां तक ढोता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
तीन साल पहले फरवरी के ही दूसरे सप्ताह में ही जेएनयू में भी यही हथकंडा अपनाया गया था। पूरी कहानी की स्क्रिप्ट और किरदार एक जैसे हैं। जेएनयू में भी विवाद के केंद्र में भी बीजेपी के सांसद का ही एक दूसरा टीवी चैनल था।
असली मंशा हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकारण है:
बीजेपी एक बात ठीक तरह से समझती है कि वो विकास के नारे पर चुनाव नहीं जीत सकती है और हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण ही उसका एक मात्र आसरा है। मौजूदा समय में बीजेपी की सबसे बड़ी समस्या है कि जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं ध्रुवीकरण के सब हथकंडे बेकार साबित हो रहे हैं। युवा नौकरियां मांग रहा है, किसान फसल की लागत और व्यवसाई जीएसटी और बाज़ार में मंदी दोनों से परेशान है। आर्थिक फ्रंट पर केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी दोनों बुरी तरह विफल हुये हैं। सामाजिक न्याय की शक्तियां एक हुई हैं और मजबूत भी। राफ़ेल डील पर रोज़ नये खुलासे हो रहे हैं। बीजेपी इन सब समस्याओं को हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कर के निबटाना चाहती है।
बुलंदशहर में योजनाबद्ध तरीके से दंगा कराने की कोशिश हुई। पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह ने अपनी जान की बाजी लगा कर उस साजिश को नाकाम कर दिया। तीन साल आरएसएस - बीजेपी के समर्थकों ने गाय के नाम पर कितनों को मौत के घाट उतारा और जेल भेजा। चुनाव करीब आते आते वो दांव भी उलटा पड़ गया। मवेशी कारोबार एक दम ठप्प होगया जो किसान का आपात फंड होता है। आवारा मवेशी फसलों को नुकसान पहुंचाने लगे और हार कर किसानों को उन्हे स्कूलों और सरकारी इमारतों में बंद करना पड़ा।
क्या योगी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिये अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को निशाना बनाया है:
एसपी-बीएसपी गठबंधन का कोई जवाब बीजेपी के पास नहीं है। साझा चुनाव लड़ने की औपचारिक घोषणा के पहले ही ये तालमेल उपचुनाव योगी को उनके गढ़ गोरखपुर में शिकस्त दे चुका है और कैराना जो की आरएसएस की लैब थी वो उनसे छीन चुका है। प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश से सक्रिय राजनीति में उतरने और सफल रोड शो ने कांग्रेस में नया उत्साह भरा है।
उत्तर प्रदेश की गुत्थी को बीजेपी सुलझा नहीं पा रही है। राम मंदिर पर भी अखाड़ों से इतना बेइज्ज़त हुये कि विश्व हिन्दू परिषद को चुनाव तक आंदोलन से पीछे हटना पड़ा। योगी की राजनीति और नियुक्तियों को लेकर ब्राह्मण बीजेपी से खुश नहीं है। यूपी का सामाजिक समीकरण बीजेपी के हाथ से फिसल रहा है।
बीजेपी के अंदर उत्तर प्रदेश को लेकर मंथन चल रहा है। इस बात की भी चर्चा है कि योगी को केंद्र में लाकर किसी ऐसे को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाये जिससे एसपी-बीएसपी गठबंधन से संभावित नुकसान को कम किया जा सके। योगी निश्चित रूप से इस काम के लिये उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं।
इन्हीं अटकलों के चलते योगी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को निशाना बना कर ध्रुवीकरण को चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिससे बीजेपी में अपनी उपयोगिता साबित कर पायें। देखना है पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व योगी को कहां तक ढोता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)