दलित व आदिवासी वोट बिखराव की पूरी योजना तैयार है। साज़िश यह है कि अनिसुचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में किये गए बदलाव के बाद उपजे आक्रोश तथा 2 अप्रेल को भाजपा शासित राज्यों में बन्द के दौरान हुई हिंसा के कारण भाजपा से नाराज दलित आदिवासी वर्ग की ताकत को खण्ड खण्ड कर दिया जाए।
हम सब जानते है कि यह नाराजगी रोहित वेमुला प्रकरण से प्रारम्भ हुई,जो बाद में डांगावास नरसंहार,डेल्टा मेघवाल,घेनड़ी,भिवाड़ी ,हिंडौन सिटी जैसे दर्जनों कांडों के चलते बढ़ती ही गयी।
2 अप्रेल का बन्द इस नाराजगी का प्रस्फुटन था,हालांकि सरकार ने इस आंदोलन का दमन किया ,सैंकड़ों मुकदमे दर्ज किए गए,हजारों लोग जेलों में ठूंस दिए गए,उन्हें यातनाएं दी गई, सरकारी कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया,इससे नाराजगी और भी बढ़ी ।
बाद में भाजपा सरकार ने मरहम लगाने के लिए 2 अप्रेल के आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमे वापस लेने का एलान किया लेकिन मुकदमे वापस लेने की बात सिर्फ जुमला निकली,इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं हो पाई।आचार संहिता लग गई और मुकदमे आज भी जस के तस है ।
दलित आदिवासी वर्ग के प्रति नफरत और अत्याचार में बढ़ोतरी साफ देखी जा सकती है।
चूंकि भाजपा जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है,इसलिए वह जानबूझकर 30 फीसदी वंचित वर्ग के खिलाफ शेष 70 फीसदी लोगों को एट्रोसिटी एक्ट के नाम पर खड़े कर रही है,दलितों और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के विरुध्द भाजपा का सवर्ण कैडर खुलकर खड़ा हो गया है,ऐसी परिस्थिति में अजा जजा वर्ग के पास भाजपा का पूरी ताकत से विरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है ।
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस नाराजगी को अच्छे से जानता है,उसे मालूम है कि इस नाराजगी को कम करने के चक्कर में उसका परंपरागत सवर्ण वोट भी हाथ से निकल जायेगा ,दुसरीं तरफ दलित आदिवासी वोटों के वापस लौटने के कोई चांस फिलहाल तो नजर नहीं आ रहे है,ऐसी स्थिति में भाजपा को अपने बचाव के लिए जो सहयोग मिल सकता है,वह है दलित आदिवासी वोटों को बिखेर दिया जाये, ताकि उनका आक्रोश छिन्न भिन्न हो जाये और वो कोई ताकत नहीं बन पाये।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दलित आदिवासी वोटो के बिखराव की पटकथा लिख दी है,अब उसे मंचित करने वाले पात्र अलग अलग नामों,नारों,झंडों और मुखौटो के आने वाले है,इस बड़ी साजिश को समझने की जरूरत है।
हम कहते है कि वोट हमारा ,राज तुम्हारा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा,लेकिन हमारा वोट ही बिखर जाये तो कैसा राज बनेगा या जो राज बनेगा वो हमारी परवाह क्यों करेगा ?
राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर 120 सीट ऐसी है जहां जिताने या हराने का दारोमदार अजा जजा के वोटर्स पर है,यहां वह निर्णायक स्थिति में न रह पाए ,इसकी पूरी योजना नागपुर से लेकर बीजेपी हेडक्वार्टर तक मे बन चुकी है।
अगर कुछ नहीं किया गया तो इस " वोटकटवा षड्यंत्र" को शीघ्र ही हम सबकी आंखों के सामने साकार होते दिखेगा।
आज जो बड़े बड़े क्रांतिकारी लोग 'व्यवस्था परिवर्तन' की बाते करते नजर आ रहे है,दरअसल वे अंदरखाने अपनी 'निजी व्यवस्था' ठीक करने के काम करने में लगे है,इनको सत्ता चाहिए,पैसा चाहिए और अपनी जाति व परिवार का वर्चस्व चाहिए,इसके अलावा परिवर्तन और मुक्ति की तमाम बातें महज जुमले है।
तमाम मसीहाओं को कसौटी पर कसियेगा,वो क्या चाहते है,उनकी पॉलिटिक्स क्या है ? सब कुछ समझना जरूरी है ,बिना पूरी राजनीति समझे किसी के झांसे में मत आईये,किसी के लिए इस्तेमाल होने की जरूरत नहीं है।
एकजुट रहिये,एकमुश्त हो कर वोट कीजिये,अपनी शर्तों और अपने सामुहिक एजेंडे पर वोट कीजिये,अपनी ताकत दिखाइये, समुदाय को ताकतवर बनाइये,कथित क्रांतिकारी नेताओं और स्वयम्भू मसीहाओं के चरणों मे अपनी राजनीतिक समझ एवम स्वतंत्रता को गिरवी मत रखिये।
हम सब जानते है कि यह नाराजगी रोहित वेमुला प्रकरण से प्रारम्भ हुई,जो बाद में डांगावास नरसंहार,डेल्टा मेघवाल,घेनड़ी,भिवाड़ी ,हिंडौन सिटी जैसे दर्जनों कांडों के चलते बढ़ती ही गयी।
2 अप्रेल का बन्द इस नाराजगी का प्रस्फुटन था,हालांकि सरकार ने इस आंदोलन का दमन किया ,सैंकड़ों मुकदमे दर्ज किए गए,हजारों लोग जेलों में ठूंस दिए गए,उन्हें यातनाएं दी गई, सरकारी कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया,इससे नाराजगी और भी बढ़ी ।
बाद में भाजपा सरकार ने मरहम लगाने के लिए 2 अप्रेल के आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमे वापस लेने का एलान किया लेकिन मुकदमे वापस लेने की बात सिर्फ जुमला निकली,इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं हो पाई।आचार संहिता लग गई और मुकदमे आज भी जस के तस है ।
दलित आदिवासी वर्ग के प्रति नफरत और अत्याचार में बढ़ोतरी साफ देखी जा सकती है।
चूंकि भाजपा जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है,इसलिए वह जानबूझकर 30 फीसदी वंचित वर्ग के खिलाफ शेष 70 फीसदी लोगों को एट्रोसिटी एक्ट के नाम पर खड़े कर रही है,दलितों और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के विरुध्द भाजपा का सवर्ण कैडर खुलकर खड़ा हो गया है,ऐसी परिस्थिति में अजा जजा वर्ग के पास भाजपा का पूरी ताकत से विरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है ।
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस नाराजगी को अच्छे से जानता है,उसे मालूम है कि इस नाराजगी को कम करने के चक्कर में उसका परंपरागत सवर्ण वोट भी हाथ से निकल जायेगा ,दुसरीं तरफ दलित आदिवासी वोटों के वापस लौटने के कोई चांस फिलहाल तो नजर नहीं आ रहे है,ऐसी स्थिति में भाजपा को अपने बचाव के लिए जो सहयोग मिल सकता है,वह है दलित आदिवासी वोटों को बिखेर दिया जाये, ताकि उनका आक्रोश छिन्न भिन्न हो जाये और वो कोई ताकत नहीं बन पाये।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दलित आदिवासी वोटो के बिखराव की पटकथा लिख दी है,अब उसे मंचित करने वाले पात्र अलग अलग नामों,नारों,झंडों और मुखौटो के आने वाले है,इस बड़ी साजिश को समझने की जरूरत है।
हम कहते है कि वोट हमारा ,राज तुम्हारा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा,लेकिन हमारा वोट ही बिखर जाये तो कैसा राज बनेगा या जो राज बनेगा वो हमारी परवाह क्यों करेगा ?
राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर 120 सीट ऐसी है जहां जिताने या हराने का दारोमदार अजा जजा के वोटर्स पर है,यहां वह निर्णायक स्थिति में न रह पाए ,इसकी पूरी योजना नागपुर से लेकर बीजेपी हेडक्वार्टर तक मे बन चुकी है।
अगर कुछ नहीं किया गया तो इस " वोटकटवा षड्यंत्र" को शीघ्र ही हम सबकी आंखों के सामने साकार होते दिखेगा।
आज जो बड़े बड़े क्रांतिकारी लोग 'व्यवस्था परिवर्तन' की बाते करते नजर आ रहे है,दरअसल वे अंदरखाने अपनी 'निजी व्यवस्था' ठीक करने के काम करने में लगे है,इनको सत्ता चाहिए,पैसा चाहिए और अपनी जाति व परिवार का वर्चस्व चाहिए,इसके अलावा परिवर्तन और मुक्ति की तमाम बातें महज जुमले है।
तमाम मसीहाओं को कसौटी पर कसियेगा,वो क्या चाहते है,उनकी पॉलिटिक्स क्या है ? सब कुछ समझना जरूरी है ,बिना पूरी राजनीति समझे किसी के झांसे में मत आईये,किसी के लिए इस्तेमाल होने की जरूरत नहीं है।
एकजुट रहिये,एकमुश्त हो कर वोट कीजिये,अपनी शर्तों और अपने सामुहिक एजेंडे पर वोट कीजिये,अपनी ताकत दिखाइये, समुदाय को ताकतवर बनाइये,कथित क्रांतिकारी नेताओं और स्वयम्भू मसीहाओं के चरणों मे अपनी राजनीतिक समझ एवम स्वतंत्रता को गिरवी मत रखिये।