बहुत से लोगो को याद नही होगा... भूल गए होंगे बेचारे ..15 अगस्त 2017 को मोदी जी लाल किले से बोले थे कि 3 लाख करोड़ का काला धन पकड़ा गया है तो अब कहा है वह धन ?
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जब यह साबित हो गया कि लगभग 10 हजार करोड़ छोड़ कर सारा पैसा रिजर्व बैंक के पास वापस आ गया है तो इनकी गति साँप छछुंदर की हो गयी हैं न निगलते बन रहा है न उगलते बन रहा है.
पिछली बार जैसे वही करदाताओं की बढ़ती संख्या का ढोल पीट रहे है यही ढोल 2017 में भी पीट रहे थे हालांकि बाद में मालूम पड़ा था कि जिन 56 लाख ज्यादा टैक्सपेयर्स की बढ़ोतरी की बात की जा रही थी उस वक्त भी वास्तव में 56 लाख नए करदाता नहीं बढ़े थे बल्कि इतने लोग ई-फाइलिंग में शिफ्ट हुए हैं, जो कि पहले से चली आ रही है.
खैर इस बार जेटली जी ने मैदान संभाल लिया है ओर फिर वही बेसुरा राग अलाप रहे हैं कि 'मार्च 2014 में आयकर रिटर्न की संख्या 3.8 करोड़ थी जो 2017-18 में बढ़कर 6.86 करोड़ हो गयी। नोटबंदी के प्रभाव से आय कर रिटर्न में बीते दो साल में 19 प्रतिशत और 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है'.
दरअसल आयकर रिटर्न भरना और इनकम टैक्स जमा कराने में अंतर है. लगभग हर साल करदाताओं की संख्या बढ़ती है लेकिन इसका मतलब यह नही है कि उसी अनुपात में सरकारी खजाने में आई प्रत्यक्ष कर से जमा रकम बढ़ जाए.
कॉमर्स का साधारण विद्यार्थी भी यह बता देगा कि कोई व्यक्ति अगर करयोग्य आमदनी के दायरे में नहीं आता, तब भी वह आयकर रिटर्न भर सकता है. नियमित रूप से आयकर रिटर्न भरने से वास्तव में आप अपनी आमदनी का एक दस्तावेजी साक्ष्य जमा कर लेते हैं जो किसी वक्त अपनी आमदनी साबित करने में आपके काम आ सकता है.
2012 में 2.87 करोड़ लोगों ने वित्त वर्ष के लिए आयकर रिटर्न दाखिल किया था और इनमें से 1.62 करोड़ ने कोई कर नहीं दिया अब यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से आगे जरूर निकल चुका है लेकिन ऐसा नही है कि इसी अनुपात से सरकार का खजाना भी बढ़ रहा हैं.
इस बात की पुष्टि इस खबर से होती है जो मोदी सरकार के परम प्रिय अखबार जागरण में छपी है इस खबर के अनुसार आयकर विभाग के अनुसार 2017-18 में अप्रैल से अगस्त के दौरान देश में जो कुल ऑनलाइन आयकर रिटर्न दाखिल हुए हैं उनमें मात्र 55,285 ही ऐसे हैं जिनमें करदाता की आय एक करोड़ रुपये से अधिक दिखायी गयी है। चौंकाने वाली बात यह है कि करोड़पति करदाताओं की यह संख्या पिछले साल समान अवधि के मुकाबले मात्र 18.61 प्रतिशत ही ज्यादा है.
यानी नोटबन्दी के बाद भी देश मे करोड़पतियों की संख्या विशेष वृद्धि नही हुई है और एक कमाल का आंकड़ा आया है कि देश मे महाराष्ट्र व दिल्ली ही वो दो राज्य हैं जिनकी डायरेक्ट टैक्स देने में 50 फीसदी तक की हिस्सेदारी हैं ओर यदि कर्नाटक व तमिलनाडु की हिस्सेदारी को भी जोड़ देते है तो यह हिस्सेदारी 70 फीसदी तक हो जाती है, यानी देश के 32 प्रदेश मिलकर सिर्फ 30 फीसदी ही टेक्स देते हैं इसमे गुजरात भी शामिल हैं. यानी गुजरात जैसे राज्य में आज भी लोग इनकम टेक्स भरने से कतराते नजर आते हैं.
साफ है कि नोटबन्दी के बाद बढ़ते करदाताओं की बात करके मोदी जी और जेटली सिर्फ देश को भरमाने का काम ही कर रहे हैं.
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जब यह साबित हो गया कि लगभग 10 हजार करोड़ छोड़ कर सारा पैसा रिजर्व बैंक के पास वापस आ गया है तो इनकी गति साँप छछुंदर की हो गयी हैं न निगलते बन रहा है न उगलते बन रहा है.
पिछली बार जैसे वही करदाताओं की बढ़ती संख्या का ढोल पीट रहे है यही ढोल 2017 में भी पीट रहे थे हालांकि बाद में मालूम पड़ा था कि जिन 56 लाख ज्यादा टैक्सपेयर्स की बढ़ोतरी की बात की जा रही थी उस वक्त भी वास्तव में 56 लाख नए करदाता नहीं बढ़े थे बल्कि इतने लोग ई-फाइलिंग में शिफ्ट हुए हैं, जो कि पहले से चली आ रही है.
खैर इस बार जेटली जी ने मैदान संभाल लिया है ओर फिर वही बेसुरा राग अलाप रहे हैं कि 'मार्च 2014 में आयकर रिटर्न की संख्या 3.8 करोड़ थी जो 2017-18 में बढ़कर 6.86 करोड़ हो गयी। नोटबंदी के प्रभाव से आय कर रिटर्न में बीते दो साल में 19 प्रतिशत और 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है'.
दरअसल आयकर रिटर्न भरना और इनकम टैक्स जमा कराने में अंतर है. लगभग हर साल करदाताओं की संख्या बढ़ती है लेकिन इसका मतलब यह नही है कि उसी अनुपात में सरकारी खजाने में आई प्रत्यक्ष कर से जमा रकम बढ़ जाए.
कॉमर्स का साधारण विद्यार्थी भी यह बता देगा कि कोई व्यक्ति अगर करयोग्य आमदनी के दायरे में नहीं आता, तब भी वह आयकर रिटर्न भर सकता है. नियमित रूप से आयकर रिटर्न भरने से वास्तव में आप अपनी आमदनी का एक दस्तावेजी साक्ष्य जमा कर लेते हैं जो किसी वक्त अपनी आमदनी साबित करने में आपके काम आ सकता है.
2012 में 2.87 करोड़ लोगों ने वित्त वर्ष के लिए आयकर रिटर्न दाखिल किया था और इनमें से 1.62 करोड़ ने कोई कर नहीं दिया अब यह आंकड़ा 50 प्रतिशत से आगे जरूर निकल चुका है लेकिन ऐसा नही है कि इसी अनुपात से सरकार का खजाना भी बढ़ रहा हैं.
इस बात की पुष्टि इस खबर से होती है जो मोदी सरकार के परम प्रिय अखबार जागरण में छपी है इस खबर के अनुसार आयकर विभाग के अनुसार 2017-18 में अप्रैल से अगस्त के दौरान देश में जो कुल ऑनलाइन आयकर रिटर्न दाखिल हुए हैं उनमें मात्र 55,285 ही ऐसे हैं जिनमें करदाता की आय एक करोड़ रुपये से अधिक दिखायी गयी है। चौंकाने वाली बात यह है कि करोड़पति करदाताओं की यह संख्या पिछले साल समान अवधि के मुकाबले मात्र 18.61 प्रतिशत ही ज्यादा है.
यानी नोटबन्दी के बाद भी देश मे करोड़पतियों की संख्या विशेष वृद्धि नही हुई है और एक कमाल का आंकड़ा आया है कि देश मे महाराष्ट्र व दिल्ली ही वो दो राज्य हैं जिनकी डायरेक्ट टैक्स देने में 50 फीसदी तक की हिस्सेदारी हैं ओर यदि कर्नाटक व तमिलनाडु की हिस्सेदारी को भी जोड़ देते है तो यह हिस्सेदारी 70 फीसदी तक हो जाती है, यानी देश के 32 प्रदेश मिलकर सिर्फ 30 फीसदी ही टेक्स देते हैं इसमे गुजरात भी शामिल हैं. यानी गुजरात जैसे राज्य में आज भी लोग इनकम टेक्स भरने से कतराते नजर आते हैं.
साफ है कि नोटबन्दी के बाद बढ़ते करदाताओं की बात करके मोदी जी और जेटली सिर्फ देश को भरमाने का काम ही कर रहे हैं.