छत्तीसगढ़ में सोमवार को सुकमा जिले के नुकलातोंग में हुई मुठभेड़ के फर्जी होने के आरोपों के बीच, चौंकाने वाला सच सामने आया है। इससे साबित होता है कि पुलिस ने नक्सलवादियों के बजाय ग्रामीणों को ही घेरकर मारा है और सबूत मिटाने के लिए प्रत्यक्षदर्शियों को भी मौत के घाट उतार दिया।
पत्रिका में छपी खबर के मुताबिक, सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने इस कथित मुठभेड़ में मारे गए कथित नक्सलवादियों के परिजनों से बात की, तब सच्चाई सामने आई।
गांव वालों का कहना है कि मुठभेड़ के दौरान मौके पर कोई नक्सलवादी था ही नहीं। बड़ी संख्या में जब पुलिस फोर्स पहुंची तो डरके मारे निहत्थे ग्रामीण छिपने लगे और भागने लगे। इसके बाद पुलिस ने उन पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया था।
बाद में जवानों को जब पता चला कि ये लोग नक्सलवादी नहीं, बल्कि साधारण ग्रामीण हैं तो उन्होंने उन लोगों को भी जान से मारना शुरू कर दिया जिन्होंने ये घटनाक्रम देखा था और बच गए थे। इस तरह से 15 लोगों की हत्या पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों ने कर डाली।
सोनी सोरी का कहना है कि हत्याकांड का सच उजागर न होने देने के लिए उन्हें मृतकों के परिजनों से मिलने भी नहीं दिया जा रहा था और वे पुलिस को चकमा देकर किसी तरह से उनसे मिली थीं। पुलिस को जब ये पता चला तो वे ग्रामीणों को उनसे दूर हटा ले गई।
पूरे हत्याकांड में केवल दो ग्रामीण बचे रह गए जिनके नाम बुधरी और देवा हैं। सोनी सोरी का कहना है कि जब पुलिस की गोलियों की आवाज सुनकर बड़ी संख्या में ग्रामीण घटनास्थल की ओर पहुंचे तो बुधरी और देवा की जान बच पाई। ग्रामीणों की संख्या ज्यादा देख पुलिस ने दोनों को छोड़ दिया वरना मरने वाले कथित नक्सलियों की संख्या 15 के बजाय 17 हो जाती।
नुकलातोंग मुठभेड़ में बहुत से ग्रामीण घायल हैं, लेकिन वो पुलिस के डर से सामने नहीं आ पा रहे क्योंकि पुलिस भी उन्हें खोज रही है। सोनी सोरी का कहना है कि पुलिस का ये दावा गलत है कि नुकलातोंग में नक्सलवादियों की कोई मीटिंग हो रही थी।
इतना ही नहीं, घटना के बाद मारे गए ग्रामीणों के शव भी उनके परिजनों को नहीं दिए गए।
पत्रिका में छपी खबर के मुताबिक, सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने इस कथित मुठभेड़ में मारे गए कथित नक्सलवादियों के परिजनों से बात की, तब सच्चाई सामने आई।
गांव वालों का कहना है कि मुठभेड़ के दौरान मौके पर कोई नक्सलवादी था ही नहीं। बड़ी संख्या में जब पुलिस फोर्स पहुंची तो डरके मारे निहत्थे ग्रामीण छिपने लगे और भागने लगे। इसके बाद पुलिस ने उन पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया था।
बाद में जवानों को जब पता चला कि ये लोग नक्सलवादी नहीं, बल्कि साधारण ग्रामीण हैं तो उन्होंने उन लोगों को भी जान से मारना शुरू कर दिया जिन्होंने ये घटनाक्रम देखा था और बच गए थे। इस तरह से 15 लोगों की हत्या पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों ने कर डाली।
सोनी सोरी का कहना है कि हत्याकांड का सच उजागर न होने देने के लिए उन्हें मृतकों के परिजनों से मिलने भी नहीं दिया जा रहा था और वे पुलिस को चकमा देकर किसी तरह से उनसे मिली थीं। पुलिस को जब ये पता चला तो वे ग्रामीणों को उनसे दूर हटा ले गई।
पूरे हत्याकांड में केवल दो ग्रामीण बचे रह गए जिनके नाम बुधरी और देवा हैं। सोनी सोरी का कहना है कि जब पुलिस की गोलियों की आवाज सुनकर बड़ी संख्या में ग्रामीण घटनास्थल की ओर पहुंचे तो बुधरी और देवा की जान बच पाई। ग्रामीणों की संख्या ज्यादा देख पुलिस ने दोनों को छोड़ दिया वरना मरने वाले कथित नक्सलियों की संख्या 15 के बजाय 17 हो जाती।
नुकलातोंग मुठभेड़ में बहुत से ग्रामीण घायल हैं, लेकिन वो पुलिस के डर से सामने नहीं आ पा रहे क्योंकि पुलिस भी उन्हें खोज रही है। सोनी सोरी का कहना है कि पुलिस का ये दावा गलत है कि नुकलातोंग में नक्सलवादियों की कोई मीटिंग हो रही थी।
इतना ही नहीं, घटना के बाद मारे गए ग्रामीणों के शव भी उनके परिजनों को नहीं दिए गए।