आखिर वो हो ही गया जिसका अंदेशा था भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने शुक्रवार को भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के आईडीबीआई बैंक में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है, अब एलआईसी आईडीबीआई बैंक में 10 से 13 हजार करोड़ रुपए का निवेश किस्तों में करेगी.
जबकि 2015 में यही रेग्युलेटर IRDAI ने LIC से कहा था कि जिन कंपनियों में सीमा से ज्यादा हिस्सेदारी है, उनको घटाने के लिए एक रोडमैप तैयार करें.
आपको याद नही होगा इसलिए आपको याद दिला दू कि जब UPA की सरकार 2012 में थी तो उन्होंने ओएनजीसी के 5 प्रतिशत शेयर LIC को बेचे थे तब भाजपा विपक्ष में थी और इस बात पर बहुत हल्ला मचाया गया था तब पूर्व वित्त मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली वित्त संबंधी स्थायी संसदीय समिति ने कहा था कि 'सरकार राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों का इस्तेमाल 'दुधारू गाय' की तरह कर रही है'.
उस वक्त देश मे एक से एक अर्थशास्त्री मौजूद थे जो बताते थे कि एलआईसी को सरकार के विनिवेश कार्यक्रम में मदद करने की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और मार्च, 2012 सार्वजनिक उपक्रमें की हिस्सेदारी खरीदने मे एलआईसी को 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.
उस वक्त अन्तराष्ट्रीय एजेंसी मूडीज भी बहुत सक्रिय हुआ करती थी ONGC के पांच प्रतिशत शेयर खरीदने पर LIC की उसने रेटिंग बीएए-2 से घटाकर बीएए-3 कर दी थी.
लेकिन अब ऐसे लोग देश के वित्तमंत्री बन गए हैं जो उस वक्त विनिवेश में LIC के इस्तेमाल का विरोध करते थे तो आप ओर हम कर क्या सकते हैं.
सच तो यह है कि जिस IDBI बैंक में LIC से सर पे बंदूक रख कर निवेश करवाया जा रहा है वह गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला बैंक है आईडीबीआई बैंक का सकल एनपीए 27.95% तक पहुंच गया है जिसका मतलब है कि बैंक द्वारा लोन किए गए प्रत्येक 100 रुपये में से 28 रुपये एनपीए में बदल गया है तो ऐसे घाटे के सौदे मे हमारे खून पसीने की बचत को क्यो होम किया जा रहा है ?, चूंकि एलआईसी पॉलिसीधारकों के पैसे से ही खड़ा हुआ है और उस पैसे की सुरक्षा उसका प्राथमिक दायित्व हैं, तो एक डूबते हुए बैंक में नियंत्रण की हिस्सेदारी खरीदना एक समझदारी भरा निर्णय नहीं हो सकता.
एलआईसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पहले से ही एक बड़ा निवेशक है और भारत के 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से 16 में 9% से अधिक हिस्सेदारी रखता है तो उसके बावजूद उसे सर्वाधिक NPA वाले बैंक में इतनी बड़ी हिस्सेदारी के लिए मजबूर करना कौन सी अक्लमंदी है एलआईसी का पैसा उसकी निजी संपत्ति नही है वह पॉलिसी के निपटारे पर धन मूल्यांकन अधिशेष, भंडार, और पॉलिसीधारकों के पैसे हैं, इसलिए उसका इस तरह से इस्तेमाल करना हमारे साथ विश्वासघात करना है.
जबकि 2015 में यही रेग्युलेटर IRDAI ने LIC से कहा था कि जिन कंपनियों में सीमा से ज्यादा हिस्सेदारी है, उनको घटाने के लिए एक रोडमैप तैयार करें.
आपको याद नही होगा इसलिए आपको याद दिला दू कि जब UPA की सरकार 2012 में थी तो उन्होंने ओएनजीसी के 5 प्रतिशत शेयर LIC को बेचे थे तब भाजपा विपक्ष में थी और इस बात पर बहुत हल्ला मचाया गया था तब पूर्व वित्त मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली वित्त संबंधी स्थायी संसदीय समिति ने कहा था कि 'सरकार राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों का इस्तेमाल 'दुधारू गाय' की तरह कर रही है'.
उस वक्त देश मे एक से एक अर्थशास्त्री मौजूद थे जो बताते थे कि एलआईसी को सरकार के विनिवेश कार्यक्रम में मदद करने की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और मार्च, 2012 सार्वजनिक उपक्रमें की हिस्सेदारी खरीदने मे एलआईसी को 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.
उस वक्त अन्तराष्ट्रीय एजेंसी मूडीज भी बहुत सक्रिय हुआ करती थी ONGC के पांच प्रतिशत शेयर खरीदने पर LIC की उसने रेटिंग बीएए-2 से घटाकर बीएए-3 कर दी थी.
लेकिन अब ऐसे लोग देश के वित्तमंत्री बन गए हैं जो उस वक्त विनिवेश में LIC के इस्तेमाल का विरोध करते थे तो आप ओर हम कर क्या सकते हैं.
सच तो यह है कि जिस IDBI बैंक में LIC से सर पे बंदूक रख कर निवेश करवाया जा रहा है वह गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला बैंक है आईडीबीआई बैंक का सकल एनपीए 27.95% तक पहुंच गया है जिसका मतलब है कि बैंक द्वारा लोन किए गए प्रत्येक 100 रुपये में से 28 रुपये एनपीए में बदल गया है तो ऐसे घाटे के सौदे मे हमारे खून पसीने की बचत को क्यो होम किया जा रहा है ?, चूंकि एलआईसी पॉलिसीधारकों के पैसे से ही खड़ा हुआ है और उस पैसे की सुरक्षा उसका प्राथमिक दायित्व हैं, तो एक डूबते हुए बैंक में नियंत्रण की हिस्सेदारी खरीदना एक समझदारी भरा निर्णय नहीं हो सकता.
एलआईसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पहले से ही एक बड़ा निवेशक है और भारत के 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से 16 में 9% से अधिक हिस्सेदारी रखता है तो उसके बावजूद उसे सर्वाधिक NPA वाले बैंक में इतनी बड़ी हिस्सेदारी के लिए मजबूर करना कौन सी अक्लमंदी है एलआईसी का पैसा उसकी निजी संपत्ति नही है वह पॉलिसी के निपटारे पर धन मूल्यांकन अधिशेष, भंडार, और पॉलिसीधारकों के पैसे हैं, इसलिए उसका इस तरह से इस्तेमाल करना हमारे साथ विश्वासघात करना है.