"महंगाई डायन खाय जात है, वर्तमान में इसका सच कितना भयावह है, को जानना हो तो पिछले माह आए SBI लाइफ के इस सर्वे को देख लीजिए। 47% लोगों ने अपनी जीवन बीमा पॉलिसी ही सरेंडर कर दी है। कारण महंगाई है। जी हां, बीते पांच साल में 47% भारतीयों ने अपनी जीवन बीमा पॉलिसी को सरेंडर कर दिया या उसे रिन्यू नहीं कराया है। यही नहीं, SBI Life की ‘Financial Immunity Report’ के अनुसार, 68% लोग मानते हैं कि उनके पास पर्याप्त बीमा कवर है, जबकि वास्तव में यह सिर्फ 6% के ही पास है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि लोग, बीमा अपने और अपने परिवार के भविष्य की सुरक्षा के लिए कराते हैं।"
फाइनेंशियल इम्युनिटी और बीमा रिपोर्ट में कहा गया है कि 71% भारतीय यह मानते हैं कि आर्थिक सुरक्षा (फाइनेंशियल इम्युनिटी) के लिए बीमा जरूरी है। फिर भी, 80% मानते हैं कि बीमा उनकी फाइनेंशियल सुरक्षा के लिए जरूरी है, लेकिन 94% के पास या तो कोई बीमा नहीं है या वह अपर्याप्त है। वहीं, 37% भारतीयों का मानना है कि उनके पास बीमा के बजाय अन्य सोर्स इनकम है। 41% लोग मानते हैं कि सेकेंडरी इनकम से उनकी फाइनेंशियल स्थिति मजबूत होगी। इसके पीछे महंगाई और मेडिकल का बढ़ता खर्च मुख्य कारण हैं जिससे लोग बीमा पॉलिसी को सरेंडर कर रहे हैं।
उल्लेखनीय तथ्य है कि रिपोर्ट से साफ है कि बीमा के महत्व को समझते हुए भी भारतीय उसे नजरअंदाज कर रहे हैं, जिससे उनकी फाइनेंशियल सुरक्षा को खतरा हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों ने बीमा करा रखा था और वो महंगाई के चलते पॉलिसी सरेंडर कर रहे हैं तो इससे महंगाई के विकराल रूप को बखूबी समझा जा सकता है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर एक पोस्ट में इस आशय की मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि मोदी सरकार की "मुनाफाखोरी" नीति के कारण एक आम परिवार के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा, "लूट की कोई सीमा नहीं है, महंगाई ने जीवन बीमा भी छीन लिया है।"
"जानलेवा महंगाई का नतीजा यह है कि लोग जरूरी जीवन बीमा भी सरेंडर करने को मजबूर हो गए हैं। पिछले 5 साल में 47 फीसदी लोगों ने अपनी जीवन बीमा पॉलिसी वापस कर दी है। अगर जनता की जेब का यही हाल है तो किसी को जरूरत नहीं है।" यही नहीं, कांग्रेस प्रमुख ने अपने पोस्ट में कहा यह सब 'लूट' तब है जब यह 'अमृत काल' है।''
5 साल में 47 फीसदी लोगों ने सरेंडर की जीवन बीमा पॉलिसी
बीते साल में 47 फीसदी लोगों ने या तो अपनी जीवन बीमा पॉलिसी सरेंडर कर दिया है या फिर पॉलिसी को रिन्यू नहीं कराया है। SBI लाइफ की एक सर्वे रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 71 फीसदी ऐसे भी लोग हैं, जो ये मानते हैं कि फाइनेंशियल इम्युनिटी के लिए बीमा लेना आवश्यक है, लेकिन वह बीमा लेना नहीं चाहते हैं। वहीं 80 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वित्तीय सुरक्षा के लिए बीमा आवश्यक है। इसके बावजूद भी 94 फीसदी लोगों के पास या तो बीमा नहीं है या फिर पर्याप्त कवर नहीं ले रखा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 87% उपभोक्ता अगले पांच साल में जीवन बीमा खरीदने की योजना बना रहे हैं, जिसमें 46 फीसदी उपभोक्ता अगले साल तक बीमा कवर ले सकते हैं। लेकिन बीमा सरेंडर करने वालों की संख्या चिंतित करती है।
बीते पांच साल बड़ी संख्या में लोगों को बीमा पॉलिसी को सरेंडर करने की खास वजह महंगाई रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि बढ़ती महंगाई के बीच लोगों का जीवन यापन कठिन हुआ है और पैसों की ज्यादा आवश्यकता पड़ी है। वहीं मेडिकल का खर्च भी पहले की तुलना में बढ़ा है, जिस कारण ज्यादातर लोगों ने अपनी लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी को सरेंडर किया है। एसबीआई लाइफ की ओर से यह लोगों के फाइनेंशियल तैयारियों को लेकर रिपोर्ट पेश करता है। इस रिपोर्ट में वित्तीय जरूरतों वाली चीजों पर फोकस किया जाता है और लोगों की वित्तीय कमी को उजागर किया जाता है। एसबीआई लाइफ की ये तीसरी रिपोर्ट है।
केवल 6% ने ही कराया पर्याप्त बीमा: अध्ययन
पर्याप्त रूप से बीमा कराने के लिए, विशेषज्ञों का मानना है कि एक बीमा पॉलिसी को कवरेज के रूप में घर की वार्षिक आय का 10 से 15 गुना प्रदान करना चाहिए। एसबीआई लाइफ द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दैनिक उपभोग की वस्तुओं की बढ़ती लागत और बढ़ती चिकित्सा और शिक्षा लागत भारतीयों के बीच प्रमुख चिंताएं हैं। इस वित्तीय प्रतिरक्षा अध्ययन में भारत के 41 शहरों में 5,000 उत्तरदाताओं का सर्वेक्षण किया गया है।
43% उपभोक्ताओं का एक बड़ा हिस्सा आज के आर्थिक माहौल में मुद्रास्फीति (महंगाई) को अपनी महत्वपूर्ण चिंता मानता है, जबकि पिछले साल दैनिक वस्तुओं की बढ़ती लागत को उपभोक्ताओं के लिए, सबसे कम चिंता के रूप में आंका गया था। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 सर्वेक्षण में शामिल 35% उपभोक्ताओं ने शिक्षा के बढ़ते खर्चों के बारे में भी चिंता व्यक्त की है। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं और तनाव में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इन चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करने के लिए, सर्वेक्षण में शामिल कम से कम 52 प्रतिशत लोगों के पास किसी न किसी प्रकार का निवेश, बचत और बीमा है।
20 वर्ष की आयु वाले भारतीयों ने अपनी वित्तीय प्रतिरक्षा अपेक्षाकृत कम आंकी है, जिसका औसत स्कोर 6.6/10 है। यह आयु वर्ग अपनी तात्कालिक इच्छाओं और चाहतों को पूरा करने को प्राथमिकता देता है। उनका निवेश अल्पकालिक और उच्च जोखिम वाला होता है, जिसमें इच्छा पूर्ति और यात्रा आकांक्षाओं के लिए रिटर्न होता है। रिपोर्ट में कहा गया है, "हालांकि सर्वेक्षण में शामिल 68 प्रतिशत उपभोक्ताओं का मानना है कि वे पर्याप्त रूप से बीमाकृत हैं, केवल 6 प्रतिशत उपभोक्ता ही वास्तव में उनकी वर्तमान बीमा पॉलिसियों के तहत पर्याप्त रूप से बीमाकृत हैं।"
पर्याप्त रूप से बीमा कराने के लिए, विशेषज्ञों का मानना है कि एक बीमा पॉलिसी को कवरेज के रूप में घर की वार्षिक आय का 10 से 15 गुना प्रदान करना चाहिए। उदाहरण: 10 लाख रुपये वार्षिक वेतन वाले उपभोक्ता के पास न्यूनतम 1 करोड़ रुपये का जीवन बीमा कवर होना चाहिए। जब उचित कवरेज की कमी के कारणों के बारे में पूछा गया, तो अधिकांश लोगों ने इसका मुख्य कारण धन की कमी बताया है।
दूसरी ओर, 30 वर्ष की आयु वाले लोगों ने वित्तीय योजना और बीमा पर अधिक जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप समूहों के बीच उच्चतम औसत स्कोर 7.2/10 रहा। आश्चर्यजनक रूप से, 40 की उम्र के लोगों ने अपने 30 की उम्र के लोगों की तुलना में 6.9/10 के स्कोर के साथ कम वित्तीय प्रतिरक्षा स्कोर की सूचना दी, जो यह दर्शाता है कि उन्होंने अवसर गँवा दिया है, क्योंकि बाद में खरीदने के बजाय 20 की उम्र में खरीदने पर बीमा स्वामित्व कहीं अधिक किफायती होता है।
भारत में सबसे पसंदीदा बीमा योजनाएं
सर्वेक्षण में शामिल उपभोक्ताओं में से 75% के महत्वपूर्ण बहुमत ने संकेत दिया कि उनके पास किसी न किसी प्रकार का बीमा कवरेज है। सर्वेक्षण में शामिल उपभोक्ताओं के बीच बचत योजनाएं सबसे लोकप्रिय पॉलिसी के रूप में उभरीं, जिनमें से 50% के पास बचत योजना है। बचत योजनाओं की लोकप्रियता का श्रेय उनके कर बचत लाभों और परिपक्वता पर गारंटीकृत रिटर्न के आश्वासन को दिया जा सकता है। कम से कम, 39% के पास टर्म बीमा पॉलिसियां थीं, जबकि 28% के पास बाल योजनाएं थीं, जिससे वे क्रमशः दूसरी और तीसरी सबसे अधिक स्वामित्व वाली बीमा पॉलिसी बन गईं।
सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि आश्चर्यजनक रूप से 47% उपभोक्ताओं ने पिछले पांच वर्षों के भीतर अपनी पॉलिसियों को सरेंडर कर दिया है या नवीनीकृत नहीं किया है। बीमा के निर्विवाद महत्व के बावजूद, लगभग 50% उपभोक्ताओं ने ऐसी प्रतिबद्धताओं की इच्छित दीर्घकालिक प्रकृति के बावजूद, अपनी पॉलिसियों को समय से पहले सरेंडर करने की प्रवृत्ति का खुलासा किया। अध्ययन से पता चला कि इस घटना के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारक धन की अचानक आवश्यकता है। तरलता की तत्काल आवश्यकता का सामना करने पर लोग अक्सर प्रीमियम खर्च को कम करने के लिए अपनी पॉलिसियों को सरेंडर करना चुनते हैं। हमारे उपभोक्ता अध्ययन के दौरान, यह देखा गया कि लगभग पांचवें उपभोक्ता ने तत्काल वित्तीय आवश्यकताओं के कारण अपनी बीमा पॉलिसियों को सरेंडर करने का विकल्प चुना है।
लगभग 80 प्रतिशत उपभोक्ता पूरी तरह से नियोक्ता द्वारा प्रदत्त बीमा पॉलिसियों पर निर्भर हैं। "हालाँकि, यह देखा गया है कि केवल नियोक्ता द्वारा प्रदत्त बीमा कवरेज के अंतर्गत कवर किए गए 96% कर्मचारी कम बीमाकृत हैं। यह विसंगति नियोक्ताओं द्वारा एक आकार-सभी के लिए फिट दृष्टिकोण अपनाने के कारण उत्पन्न होती है, जो मुख्य रूप से कर्मचारी की वरिष्ठता पर आधारित होती है, जबकि व्यक्तिगत की अनदेखी की जाती है। कर्मचारी के जीवन का विवरण जो उचित कवरेज सुनिश्चित करेगा," अध्ययन में कहा गया है।
बीमा कवर को भी लील रही महंगाई
कहीं आप भी उन लोगों में तो शामिल नहीं, जो सोचते हैं कि भला महंगाई का इंश्योरेंस से क्या लेना-देना? या आपको लगता है कि लोग महंगाई की कुछ ज्यादा ही फिक्र करते हैं। अगर ऐसा है तो आपको अपनी इस सोच पर फिर से विचार करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि महंगाई का आपके इंश्योरेंस पर काफी गहरा असर पड़ सकता है। आपकी पहले से खरीदी हुई बीमा पॉलिसी पर भी और आपके परिवार के भविष्य की आर्थिक सुरक्षा यानी बीमा कवर पर भी। अगर आपने बढ़ती महंगाई का ध्यान नहीं रखा तो बीमा पॉलिसी खरीदने के बाद भी आप अपने परिवार के भविष्य को पूरी तरह आर्थिक संकट से दूर नहीं रख पाएंगे।
इसलिए जरा गौर से सोचो कि महंगाई का आपकी बीमा पॉलिसी पर क्या असर पड़ता है? फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर अब तक नहीं सोचा तो अब सोच लीजिए, क्योंकि बढ़ती कीमतें आपकी जमा पूंजी की तरह ही इंश्योरेंस कवर में भी सेंध लगा देती हैं। जी हां, महंगाई आपके बीमा कवर को भी लील रही है। आप जानते ही है कि महंगाई के कारण रुपये की क्रय शक्ति घट जाती है। लेकिन इसका सीधा असर आपकी बीमा राशि यानी सम एश्योर्ड के वास्तविक मूल्य पर भी पड़ता है।
रुपये का वास्तविक मूल्य घटने का असर
इंश्योरेंस पॉलिसी हमेशा लंबे अरसे की संभावित जरूरत और सुरक्षा को ध्यान में रखकर ली जाती है। लेकिन महंगाई के कारण रुपये का वास्तविक मूल्य घट जाता है। इसका सीधा असर आपकी बीमा राशि यानी सम एश्योर्ड के वास्तविक मूल्य पर भी पड़ता है। मिसाल के तौर पर टर्म प्लान लेने के लिए आम तौर पर यह नियम बताया जाता है कि आपको अपनी सालाना आमदनी के 10 से 12 गुना के बराबर रकम का टर्म प्लान लेना चाहिए। लेकिन अगर महंगाई की दर लगातार काफी तेजी से बढ़ती रही, तो बीमा कराते वक्त जो रकम आपको अपने परिवार के भविष्य की सुरक्षा के लिए पर्याप्त लग रही थी, वह आने वाले दिनों में बेहद कम साबित हो सकती है। क्योंकि जिन जरूरतों का अनुमान आप आज की कीमतों के आधार पर या महंगाई में धीमी रफ्तार से बढ़ोतरी होने की उम्मीद के आधार पर लगाते हैं, वे कीमतों के तेजी से बढ़ने पर गलत साबित हो सकते हैं। यही बात स्वास्थ्य या मेडिल इंश्योरेंस पॉलिसी या किसी अन्य पॉलिसी पर भी लागू होती है। अब सवाल ये है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
इंश्योरेंस पॉलिसी और जरूरत की समीक्षा
आपको हर साल अपनी खरीदी गई इंश्योरेंस पॉलिसी की समीक्षा करनी चाहिए। इस दौरान आपका ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि क्या आपने कुछ बरस पहले जो पॉलिसी ली थी, वो किसी मुसीबत की हालत में परिवार की बढ़ती आर्थिक जरूरतों और महंगाई के कारण उसमें आ रहे उछाल का बोझ उठाने के लिए काफी है? अगर आपको लगता है कि पॉलिसी की मौजूदा रकम काफी नहीं है, तो आप उसमें टॉप अप प्लान के जरिए या कोई नई पॉलिसी लेकर इजाफा कर सकते हैं। बीमा कराते समय परिवार की जिन जरूरतों का सबसे पहले ध्यान आता है, वे हैं घर की मिल्कियत, बच्चों की उच्च-शिक्षा, इलाज पर होने वाले खर्च और रिटायरमेंट के समय पड़ने वाली पैसों की जरूरत। इन सभी बातों पर महंगाई का असर पड़ता है। मिसाल के तौर पर बच्चों की पढ़ाई का खर्च हर साल आपके अनुमान के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ सकता है। यही बात इलाज के खर्च के मामले में भी लागू होती है। उदाहरण के लिए जिस सर्जरी पर आज 5 लाख रुपये खर्च होते हैं, हो सकता है कुछ बरस बाद उसका खर्च 10 लाख या 20 लाख हो जाए। इन सभी बढ़ते खर्चों को ध्यान में रखते हुए उसी अनुपात में इंश्योरेंस की रकम में इजाफा करना जरूरी है।
बढ़ती जरूरतों के हिसाब से बढ़ाएं बीमा राशि
अगर महंगाई के कारण रुपये की क्रय क्षमता में तेजी से गिरावट आ रही है, तो आपको अपने परिवार के लिए जरूरी बीमा कवर का निर्धारण करते समय इसका ध्यान रखना होगा। जिस रफ्तार से रुपये की वास्तविक वैल्यू घट रही है, उसी हिसाब से आपको बीमा राशि की फ्यूचर वैल्यू यानी भविष्य में उसकी संभावित क्रय क्षमता का आकलन करके जरूरी इजाफा करना होगा। यानी अगर रुपये की क्रय क्षमता हर साल 8 फीसदी की रफ्तार से घट रही है, तो आपको भविष्य की जरूरतों का आंकलन करते समय अपना निवेश इतना बढ़ाना होगा ताकि महंगाई आपके परिवार की सुरक्षा में सेंध न लगा दे। जरूरी नहीं कि अपने परिवार की बढ़ती जरूरतों का आकलन करने के लिए आप किसी प्रचलित नियम यानी थंब रूल का ही सहारा लें। अपने परिवार की वास्तविक जरूरतों का सबसे सही अनुमान आप खुद ही लगा सकते हैं। अगर आपने इन बातों का ध्यान रखा और अपने बीमा कवर में समय-समय पर इजाफा करते रहे, तो आपको जरूरत के वक्त बीमा होते हुए भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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फाइनेंशियल इम्युनिटी और बीमा रिपोर्ट में कहा गया है कि 71% भारतीय यह मानते हैं कि आर्थिक सुरक्षा (फाइनेंशियल इम्युनिटी) के लिए बीमा जरूरी है। फिर भी, 80% मानते हैं कि बीमा उनकी फाइनेंशियल सुरक्षा के लिए जरूरी है, लेकिन 94% के पास या तो कोई बीमा नहीं है या वह अपर्याप्त है। वहीं, 37% भारतीयों का मानना है कि उनके पास बीमा के बजाय अन्य सोर्स इनकम है। 41% लोग मानते हैं कि सेकेंडरी इनकम से उनकी फाइनेंशियल स्थिति मजबूत होगी। इसके पीछे महंगाई और मेडिकल का बढ़ता खर्च मुख्य कारण हैं जिससे लोग बीमा पॉलिसी को सरेंडर कर रहे हैं।
उल्लेखनीय तथ्य है कि रिपोर्ट से साफ है कि बीमा के महत्व को समझते हुए भी भारतीय उसे नजरअंदाज कर रहे हैं, जिससे उनकी फाइनेंशियल सुरक्षा को खतरा हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों ने बीमा करा रखा था और वो महंगाई के चलते पॉलिसी सरेंडर कर रहे हैं तो इससे महंगाई के विकराल रूप को बखूबी समझा जा सकता है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर एक पोस्ट में इस आशय की मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि मोदी सरकार की "मुनाफाखोरी" नीति के कारण एक आम परिवार के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा, "लूट की कोई सीमा नहीं है, महंगाई ने जीवन बीमा भी छीन लिया है।"
"जानलेवा महंगाई का नतीजा यह है कि लोग जरूरी जीवन बीमा भी सरेंडर करने को मजबूर हो गए हैं। पिछले 5 साल में 47 फीसदी लोगों ने अपनी जीवन बीमा पॉलिसी वापस कर दी है। अगर जनता की जेब का यही हाल है तो किसी को जरूरत नहीं है।" यही नहीं, कांग्रेस प्रमुख ने अपने पोस्ट में कहा यह सब 'लूट' तब है जब यह 'अमृत काल' है।''
5 साल में 47 फीसदी लोगों ने सरेंडर की जीवन बीमा पॉलिसी
बीते साल में 47 फीसदी लोगों ने या तो अपनी जीवन बीमा पॉलिसी सरेंडर कर दिया है या फिर पॉलिसी को रिन्यू नहीं कराया है। SBI लाइफ की एक सर्वे रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 71 फीसदी ऐसे भी लोग हैं, जो ये मानते हैं कि फाइनेंशियल इम्युनिटी के लिए बीमा लेना आवश्यक है, लेकिन वह बीमा लेना नहीं चाहते हैं। वहीं 80 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वित्तीय सुरक्षा के लिए बीमा आवश्यक है। इसके बावजूद भी 94 फीसदी लोगों के पास या तो बीमा नहीं है या फिर पर्याप्त कवर नहीं ले रखा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 87% उपभोक्ता अगले पांच साल में जीवन बीमा खरीदने की योजना बना रहे हैं, जिसमें 46 फीसदी उपभोक्ता अगले साल तक बीमा कवर ले सकते हैं। लेकिन बीमा सरेंडर करने वालों की संख्या चिंतित करती है।
बीते पांच साल बड़ी संख्या में लोगों को बीमा पॉलिसी को सरेंडर करने की खास वजह महंगाई रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि बढ़ती महंगाई के बीच लोगों का जीवन यापन कठिन हुआ है और पैसों की ज्यादा आवश्यकता पड़ी है। वहीं मेडिकल का खर्च भी पहले की तुलना में बढ़ा है, जिस कारण ज्यादातर लोगों ने अपनी लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी को सरेंडर किया है। एसबीआई लाइफ की ओर से यह लोगों के फाइनेंशियल तैयारियों को लेकर रिपोर्ट पेश करता है। इस रिपोर्ट में वित्तीय जरूरतों वाली चीजों पर फोकस किया जाता है और लोगों की वित्तीय कमी को उजागर किया जाता है। एसबीआई लाइफ की ये तीसरी रिपोर्ट है।
केवल 6% ने ही कराया पर्याप्त बीमा: अध्ययन
पर्याप्त रूप से बीमा कराने के लिए, विशेषज्ञों का मानना है कि एक बीमा पॉलिसी को कवरेज के रूप में घर की वार्षिक आय का 10 से 15 गुना प्रदान करना चाहिए। एसबीआई लाइफ द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दैनिक उपभोग की वस्तुओं की बढ़ती लागत और बढ़ती चिकित्सा और शिक्षा लागत भारतीयों के बीच प्रमुख चिंताएं हैं। इस वित्तीय प्रतिरक्षा अध्ययन में भारत के 41 शहरों में 5,000 उत्तरदाताओं का सर्वेक्षण किया गया है।
43% उपभोक्ताओं का एक बड़ा हिस्सा आज के आर्थिक माहौल में मुद्रास्फीति (महंगाई) को अपनी महत्वपूर्ण चिंता मानता है, जबकि पिछले साल दैनिक वस्तुओं की बढ़ती लागत को उपभोक्ताओं के लिए, सबसे कम चिंता के रूप में आंका गया था। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 सर्वेक्षण में शामिल 35% उपभोक्ताओं ने शिक्षा के बढ़ते खर्चों के बारे में भी चिंता व्यक्त की है। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं और तनाव में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इन चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करने के लिए, सर्वेक्षण में शामिल कम से कम 52 प्रतिशत लोगों के पास किसी न किसी प्रकार का निवेश, बचत और बीमा है।
20 वर्ष की आयु वाले भारतीयों ने अपनी वित्तीय प्रतिरक्षा अपेक्षाकृत कम आंकी है, जिसका औसत स्कोर 6.6/10 है। यह आयु वर्ग अपनी तात्कालिक इच्छाओं और चाहतों को पूरा करने को प्राथमिकता देता है। उनका निवेश अल्पकालिक और उच्च जोखिम वाला होता है, जिसमें इच्छा पूर्ति और यात्रा आकांक्षाओं के लिए रिटर्न होता है। रिपोर्ट में कहा गया है, "हालांकि सर्वेक्षण में शामिल 68 प्रतिशत उपभोक्ताओं का मानना है कि वे पर्याप्त रूप से बीमाकृत हैं, केवल 6 प्रतिशत उपभोक्ता ही वास्तव में उनकी वर्तमान बीमा पॉलिसियों के तहत पर्याप्त रूप से बीमाकृत हैं।"
पर्याप्त रूप से बीमा कराने के लिए, विशेषज्ञों का मानना है कि एक बीमा पॉलिसी को कवरेज के रूप में घर की वार्षिक आय का 10 से 15 गुना प्रदान करना चाहिए। उदाहरण: 10 लाख रुपये वार्षिक वेतन वाले उपभोक्ता के पास न्यूनतम 1 करोड़ रुपये का जीवन बीमा कवर होना चाहिए। जब उचित कवरेज की कमी के कारणों के बारे में पूछा गया, तो अधिकांश लोगों ने इसका मुख्य कारण धन की कमी बताया है।
दूसरी ओर, 30 वर्ष की आयु वाले लोगों ने वित्तीय योजना और बीमा पर अधिक जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप समूहों के बीच उच्चतम औसत स्कोर 7.2/10 रहा। आश्चर्यजनक रूप से, 40 की उम्र के लोगों ने अपने 30 की उम्र के लोगों की तुलना में 6.9/10 के स्कोर के साथ कम वित्तीय प्रतिरक्षा स्कोर की सूचना दी, जो यह दर्शाता है कि उन्होंने अवसर गँवा दिया है, क्योंकि बाद में खरीदने के बजाय 20 की उम्र में खरीदने पर बीमा स्वामित्व कहीं अधिक किफायती होता है।
भारत में सबसे पसंदीदा बीमा योजनाएं
सर्वेक्षण में शामिल उपभोक्ताओं में से 75% के महत्वपूर्ण बहुमत ने संकेत दिया कि उनके पास किसी न किसी प्रकार का बीमा कवरेज है। सर्वेक्षण में शामिल उपभोक्ताओं के बीच बचत योजनाएं सबसे लोकप्रिय पॉलिसी के रूप में उभरीं, जिनमें से 50% के पास बचत योजना है। बचत योजनाओं की लोकप्रियता का श्रेय उनके कर बचत लाभों और परिपक्वता पर गारंटीकृत रिटर्न के आश्वासन को दिया जा सकता है। कम से कम, 39% के पास टर्म बीमा पॉलिसियां थीं, जबकि 28% के पास बाल योजनाएं थीं, जिससे वे क्रमशः दूसरी और तीसरी सबसे अधिक स्वामित्व वाली बीमा पॉलिसी बन गईं।
सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि आश्चर्यजनक रूप से 47% उपभोक्ताओं ने पिछले पांच वर्षों के भीतर अपनी पॉलिसियों को सरेंडर कर दिया है या नवीनीकृत नहीं किया है। बीमा के निर्विवाद महत्व के बावजूद, लगभग 50% उपभोक्ताओं ने ऐसी प्रतिबद्धताओं की इच्छित दीर्घकालिक प्रकृति के बावजूद, अपनी पॉलिसियों को समय से पहले सरेंडर करने की प्रवृत्ति का खुलासा किया। अध्ययन से पता चला कि इस घटना के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारक धन की अचानक आवश्यकता है। तरलता की तत्काल आवश्यकता का सामना करने पर लोग अक्सर प्रीमियम खर्च को कम करने के लिए अपनी पॉलिसियों को सरेंडर करना चुनते हैं। हमारे उपभोक्ता अध्ययन के दौरान, यह देखा गया कि लगभग पांचवें उपभोक्ता ने तत्काल वित्तीय आवश्यकताओं के कारण अपनी बीमा पॉलिसियों को सरेंडर करने का विकल्प चुना है।
लगभग 80 प्रतिशत उपभोक्ता पूरी तरह से नियोक्ता द्वारा प्रदत्त बीमा पॉलिसियों पर निर्भर हैं। "हालाँकि, यह देखा गया है कि केवल नियोक्ता द्वारा प्रदत्त बीमा कवरेज के अंतर्गत कवर किए गए 96% कर्मचारी कम बीमाकृत हैं। यह विसंगति नियोक्ताओं द्वारा एक आकार-सभी के लिए फिट दृष्टिकोण अपनाने के कारण उत्पन्न होती है, जो मुख्य रूप से कर्मचारी की वरिष्ठता पर आधारित होती है, जबकि व्यक्तिगत की अनदेखी की जाती है। कर्मचारी के जीवन का विवरण जो उचित कवरेज सुनिश्चित करेगा," अध्ययन में कहा गया है।
बीमा कवर को भी लील रही महंगाई
कहीं आप भी उन लोगों में तो शामिल नहीं, जो सोचते हैं कि भला महंगाई का इंश्योरेंस से क्या लेना-देना? या आपको लगता है कि लोग महंगाई की कुछ ज्यादा ही फिक्र करते हैं। अगर ऐसा है तो आपको अपनी इस सोच पर फिर से विचार करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि महंगाई का आपके इंश्योरेंस पर काफी गहरा असर पड़ सकता है। आपकी पहले से खरीदी हुई बीमा पॉलिसी पर भी और आपके परिवार के भविष्य की आर्थिक सुरक्षा यानी बीमा कवर पर भी। अगर आपने बढ़ती महंगाई का ध्यान नहीं रखा तो बीमा पॉलिसी खरीदने के बाद भी आप अपने परिवार के भविष्य को पूरी तरह आर्थिक संकट से दूर नहीं रख पाएंगे।
इसलिए जरा गौर से सोचो कि महंगाई का आपकी बीमा पॉलिसी पर क्या असर पड़ता है? फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर अब तक नहीं सोचा तो अब सोच लीजिए, क्योंकि बढ़ती कीमतें आपकी जमा पूंजी की तरह ही इंश्योरेंस कवर में भी सेंध लगा देती हैं। जी हां, महंगाई आपके बीमा कवर को भी लील रही है। आप जानते ही है कि महंगाई के कारण रुपये की क्रय शक्ति घट जाती है। लेकिन इसका सीधा असर आपकी बीमा राशि यानी सम एश्योर्ड के वास्तविक मूल्य पर भी पड़ता है।
रुपये का वास्तविक मूल्य घटने का असर
इंश्योरेंस पॉलिसी हमेशा लंबे अरसे की संभावित जरूरत और सुरक्षा को ध्यान में रखकर ली जाती है। लेकिन महंगाई के कारण रुपये का वास्तविक मूल्य घट जाता है। इसका सीधा असर आपकी बीमा राशि यानी सम एश्योर्ड के वास्तविक मूल्य पर भी पड़ता है। मिसाल के तौर पर टर्म प्लान लेने के लिए आम तौर पर यह नियम बताया जाता है कि आपको अपनी सालाना आमदनी के 10 से 12 गुना के बराबर रकम का टर्म प्लान लेना चाहिए। लेकिन अगर महंगाई की दर लगातार काफी तेजी से बढ़ती रही, तो बीमा कराते वक्त जो रकम आपको अपने परिवार के भविष्य की सुरक्षा के लिए पर्याप्त लग रही थी, वह आने वाले दिनों में बेहद कम साबित हो सकती है। क्योंकि जिन जरूरतों का अनुमान आप आज की कीमतों के आधार पर या महंगाई में धीमी रफ्तार से बढ़ोतरी होने की उम्मीद के आधार पर लगाते हैं, वे कीमतों के तेजी से बढ़ने पर गलत साबित हो सकते हैं। यही बात स्वास्थ्य या मेडिल इंश्योरेंस पॉलिसी या किसी अन्य पॉलिसी पर भी लागू होती है। अब सवाल ये है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
इंश्योरेंस पॉलिसी और जरूरत की समीक्षा
आपको हर साल अपनी खरीदी गई इंश्योरेंस पॉलिसी की समीक्षा करनी चाहिए। इस दौरान आपका ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि क्या आपने कुछ बरस पहले जो पॉलिसी ली थी, वो किसी मुसीबत की हालत में परिवार की बढ़ती आर्थिक जरूरतों और महंगाई के कारण उसमें आ रहे उछाल का बोझ उठाने के लिए काफी है? अगर आपको लगता है कि पॉलिसी की मौजूदा रकम काफी नहीं है, तो आप उसमें टॉप अप प्लान के जरिए या कोई नई पॉलिसी लेकर इजाफा कर सकते हैं। बीमा कराते समय परिवार की जिन जरूरतों का सबसे पहले ध्यान आता है, वे हैं घर की मिल्कियत, बच्चों की उच्च-शिक्षा, इलाज पर होने वाले खर्च और रिटायरमेंट के समय पड़ने वाली पैसों की जरूरत। इन सभी बातों पर महंगाई का असर पड़ता है। मिसाल के तौर पर बच्चों की पढ़ाई का खर्च हर साल आपके अनुमान के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ सकता है। यही बात इलाज के खर्च के मामले में भी लागू होती है। उदाहरण के लिए जिस सर्जरी पर आज 5 लाख रुपये खर्च होते हैं, हो सकता है कुछ बरस बाद उसका खर्च 10 लाख या 20 लाख हो जाए। इन सभी बढ़ते खर्चों को ध्यान में रखते हुए उसी अनुपात में इंश्योरेंस की रकम में इजाफा करना जरूरी है।
बढ़ती जरूरतों के हिसाब से बढ़ाएं बीमा राशि
अगर महंगाई के कारण रुपये की क्रय क्षमता में तेजी से गिरावट आ रही है, तो आपको अपने परिवार के लिए जरूरी बीमा कवर का निर्धारण करते समय इसका ध्यान रखना होगा। जिस रफ्तार से रुपये की वास्तविक वैल्यू घट रही है, उसी हिसाब से आपको बीमा राशि की फ्यूचर वैल्यू यानी भविष्य में उसकी संभावित क्रय क्षमता का आकलन करके जरूरी इजाफा करना होगा। यानी अगर रुपये की क्रय क्षमता हर साल 8 फीसदी की रफ्तार से घट रही है, तो आपको भविष्य की जरूरतों का आंकलन करते समय अपना निवेश इतना बढ़ाना होगा ताकि महंगाई आपके परिवार की सुरक्षा में सेंध न लगा दे। जरूरी नहीं कि अपने परिवार की बढ़ती जरूरतों का आकलन करने के लिए आप किसी प्रचलित नियम यानी थंब रूल का ही सहारा लें। अपने परिवार की वास्तविक जरूरतों का सबसे सही अनुमान आप खुद ही लगा सकते हैं। अगर आपने इन बातों का ध्यान रखा और अपने बीमा कवर में समय-समय पर इजाफा करते रहे, तो आपको जरूरत के वक्त बीमा होते हुए भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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