IL&FS का संकट अभी खत्म नही हुआ है सरकार द्वारा नियुक्त नए चेयरमैन उदय कोटक ने यह माना है कि समूह का कर्ज 91,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो सकता है. केंद्र सरकार ने इसे नियंत्रण में लेने के बाद दावा किया था कि कंपनी आगे से डिफॉल्ट नहीं करेगी लेकिन फिर से इसने अपने कर्ज की क़िस्त चुकाने में डिफॉल्ट किया है.
पहले मोदी सरकार ने एलआईसी को उसे उबारने की जिम्मेदारी दी थी और अब फंदा एसबीआई के गले मे डाला जा रहा है. एसबीआई ने इससे पहले 15,000 करोड़ रुपये की संपत्तियां खरीदने का फैसला किया था. अब उस पर और 30,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त संपत्तियों की खरीदने का दबाव डाला जा है.
एसबीआई पहले से ही घाटा दर्शा रही है इन संपत्तियों के खरीदने से उसकी स्थिति और भी खराब हो जाएगी, 2019 के मार्च तक सभी बैंको को बेसल- 3 मानकों को पूरा करना है. 14 लाख करोड़ का NPA पहले से सार्वजनिक क्षेत्र की बैंको के खाते में दर्ज है. सरकार को इस साल बड़े पैमाने पर लाखों करोड़ की पूंजी इन बैंको में डालनी ही होगी नही तो बेसल- 3 मानकों को हमारे बैंक पूरा नही कर पाएंगे जो अंतराष्ट्रीय स्तर पर बैंकिंग जारी रखने के लिए जरूरी है.
किसानों के कर्जमाफी की मांग पर नाक भो सिकोड़ने वाली मोदी सरकार IL&FS के पीछे जो राशि झोंकना चाहती है वह आयुष्मान योजना से भी तीन गुणा ज्यादा बड़ी राशि है. यह राशि देश के कुल स्वास्थ्य बजट के आधे से भी अधिक है और साल 2018-19 में ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, मनरेगा को आवंटित फंड का लगभग 55% हैं.
प्रश्न यह खड़ा होता है कि इस समस्या की तरफ पहले से ध्यान क्यो नही दिया गया इसके डायरेक्टर मोटी मोटी तनख्वाह लेकर अपनी जेब भरते रहे एक अरसे से इस कंपनी का मैनेजमेंट लूट और अय्याशी में लगा हुआ था, कोई ध्यान क्यों नहीं दे रहा था?
शक तो यह भी है कि नोटबन्दी के बाद इस बड़ी होल्डिंग कम्पनी से जुड़ी 337 कंपनियों के जरिए काले धन को सफेद बनाया जा रहा था. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने अमर उजाला के साथ बातचीत में इस बात की आशंका जाहिर की है.
उनका मानना है कि IL&FS कंपनी इस गैर-कानूनी कार्य में लिप्त हो सकती है, प्रारंभिक जांच में पता चला है कि इसकी कई अनुषंगी इकाइयां हैं और ये बड़ी मात्रा में नकदी का लेन-देन करती थीं. इसलिए आशंका जताई जा रही है कि इसकी आड़ में नकदी को इधर-उधर घुमाकर काले धन को सफेद बनाने का खेल चल रहा था.
पहले मोदी सरकार ने एलआईसी को उसे उबारने की जिम्मेदारी दी थी और अब फंदा एसबीआई के गले मे डाला जा रहा है. एसबीआई ने इससे पहले 15,000 करोड़ रुपये की संपत्तियां खरीदने का फैसला किया था. अब उस पर और 30,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त संपत्तियों की खरीदने का दबाव डाला जा है.
एसबीआई पहले से ही घाटा दर्शा रही है इन संपत्तियों के खरीदने से उसकी स्थिति और भी खराब हो जाएगी, 2019 के मार्च तक सभी बैंको को बेसल- 3 मानकों को पूरा करना है. 14 लाख करोड़ का NPA पहले से सार्वजनिक क्षेत्र की बैंको के खाते में दर्ज है. सरकार को इस साल बड़े पैमाने पर लाखों करोड़ की पूंजी इन बैंको में डालनी ही होगी नही तो बेसल- 3 मानकों को हमारे बैंक पूरा नही कर पाएंगे जो अंतराष्ट्रीय स्तर पर बैंकिंग जारी रखने के लिए जरूरी है.
किसानों के कर्जमाफी की मांग पर नाक भो सिकोड़ने वाली मोदी सरकार IL&FS के पीछे जो राशि झोंकना चाहती है वह आयुष्मान योजना से भी तीन गुणा ज्यादा बड़ी राशि है. यह राशि देश के कुल स्वास्थ्य बजट के आधे से भी अधिक है और साल 2018-19 में ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, मनरेगा को आवंटित फंड का लगभग 55% हैं.
प्रश्न यह खड़ा होता है कि इस समस्या की तरफ पहले से ध्यान क्यो नही दिया गया इसके डायरेक्टर मोटी मोटी तनख्वाह लेकर अपनी जेब भरते रहे एक अरसे से इस कंपनी का मैनेजमेंट लूट और अय्याशी में लगा हुआ था, कोई ध्यान क्यों नहीं दे रहा था?
शक तो यह भी है कि नोटबन्दी के बाद इस बड़ी होल्डिंग कम्पनी से जुड़ी 337 कंपनियों के जरिए काले धन को सफेद बनाया जा रहा था. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने अमर उजाला के साथ बातचीत में इस बात की आशंका जाहिर की है.
उनका मानना है कि IL&FS कंपनी इस गैर-कानूनी कार्य में लिप्त हो सकती है, प्रारंभिक जांच में पता चला है कि इसकी कई अनुषंगी इकाइयां हैं और ये बड़ी मात्रा में नकदी का लेन-देन करती थीं. इसलिए आशंका जताई जा रही है कि इसकी आड़ में नकदी को इधर-उधर घुमाकर काले धन को सफेद बनाने का खेल चल रहा था.