अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर लगातार जारी है। सरकार की आर्थिक नीतियों और नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों का असर गहराने लगा है। औद्योगिक उत्पादन में पिछले कई महीनों से उथलपुथल का दौर जारी है। और अब सितंबर महीने में भी औद्योगिक उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है। औद्योगिक उत्पादन की विकास दर घट कर 3.8 फीसदी रह गई। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के उत्पादन में गिरावट की वजह से औद्योगिक उत्पादन में कमी आई है।

Image: Reuters
आईआईपी के आधार पर औद्योगिक विकास दर सितंबर 2016 में 5 और इस साल अगस्त में 4.5 फीसदी रही थी। सीएसओ के आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान औद्योगिक विकास दर 2.5 फीसदी रही। एक साल पहले की छमाही में यह 5.8 फीसदी रही थी। इस वित्त वर्ष के दौरान सितंबर के महीने में मैन्यूफैक्चरिंग विकास दर 3.4 फीसदी रह गई। जबकि एक साल पहले की समान अवधि में यह 5.8 फीसदी थी।
दरअसल औद्योगिक उत्पादन में आ रही लगातार गिरावट के पीछे जीएसटी लागू करने का सरकार का फैसला रहा। जीएसटी की अस्पष्टता, हड़बड़ी और जटिलता की वजह से उद्योगों ने अपनी कारोबारी गतिविधियों को रोक दिया है। टैक्स दरों की अस्पष्टता की वजह से उद्योग को नए ऑर्डर लेने और उत्पादन की प्रक्रिया में दिक्कतें आ रही हैं। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट इसका नतीजा है। इसके अलावा मोदी सरकार ने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में जो सुधार का वादा किया वह पूरा नहीं हुआ।
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को रफ्तार देने के लिए बिजली और ऊर्जा सेक्टर में बड़े सुधार के वादे किए गए थे लेकिन ये पूरे नहीं हुए। नया निवेश इस सेक्टर में नहीं आ रहा है। उद्योगों पर भारी कर्ज की वजह से बैंकों का एनपीए बढ़ा है और इसने भी नई परियोजनाओं की रफ्तार पर रोक लगा दी है। सरकार इज ऑफ डुइंग बिजनेस रैंकिंग में 30 अंक की उछाल को बड़ी उपलब्धि बता रही है लेकिन देश में कारोबारी जगत की स्थिति खराब है। सरकार भ्रामक आंकड़ेबाजी के जरिये लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही है कि अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक है। लेकिन उद्योग के प्रदर्शन से यह साफ हो गया है कि हकीकत कड़वी है।

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आईआईपी के आधार पर औद्योगिक विकास दर सितंबर 2016 में 5 और इस साल अगस्त में 4.5 फीसदी रही थी। सीएसओ के आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान औद्योगिक विकास दर 2.5 फीसदी रही। एक साल पहले की छमाही में यह 5.8 फीसदी रही थी। इस वित्त वर्ष के दौरान सितंबर के महीने में मैन्यूफैक्चरिंग विकास दर 3.4 फीसदी रह गई। जबकि एक साल पहले की समान अवधि में यह 5.8 फीसदी थी।
दरअसल औद्योगिक उत्पादन में आ रही लगातार गिरावट के पीछे जीएसटी लागू करने का सरकार का फैसला रहा। जीएसटी की अस्पष्टता, हड़बड़ी और जटिलता की वजह से उद्योगों ने अपनी कारोबारी गतिविधियों को रोक दिया है। टैक्स दरों की अस्पष्टता की वजह से उद्योग को नए ऑर्डर लेने और उत्पादन की प्रक्रिया में दिक्कतें आ रही हैं। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट इसका नतीजा है। इसके अलावा मोदी सरकार ने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में जो सुधार का वादा किया वह पूरा नहीं हुआ।
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को रफ्तार देने के लिए बिजली और ऊर्जा सेक्टर में बड़े सुधार के वादे किए गए थे लेकिन ये पूरे नहीं हुए। नया निवेश इस सेक्टर में नहीं आ रहा है। उद्योगों पर भारी कर्ज की वजह से बैंकों का एनपीए बढ़ा है और इसने भी नई परियोजनाओं की रफ्तार पर रोक लगा दी है। सरकार इज ऑफ डुइंग बिजनेस रैंकिंग में 30 अंक की उछाल को बड़ी उपलब्धि बता रही है लेकिन देश में कारोबारी जगत की स्थिति खराब है। सरकार भ्रामक आंकड़ेबाजी के जरिये लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही है कि अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक है। लेकिन उद्योग के प्रदर्शन से यह साफ हो गया है कि हकीकत कड़वी है।